भारत की संस्कृति में अनेक राज्य, अनेक धर्म, अनेक भाषाएं, अनेक रीति-रिवाजों को मानने
वाले लोग एक साथ रहते है. अनेक संस्कृ्तियों का एक साथ रहना, हमें विश्व में एक नई
पहचान देता है. साथ ही यह हमारी देश की अंखण्डता को ठिक उसी प्रकार सौन्दर्य प्रधान
करता है, जिस प्रकार एक गुलदस्ते में कई रंग के फूल हों, तो उसकी सुन्दरता स्वयं ही
दोगुनी हो जाती है.
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"खालसा" का शाब्दिक अर्थ शुद्ध, पवित्र है. सिक्खों के दंसवें गुरु श्री गुरु गोविन्द
सिंह ने आज ही के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी. इस पंथ की स्थापना करने का उनका
लक्ष्य तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त करना था. समाज से उंच-नीच की भावना
को समाप्त करने के लिये भी वैशाखी के पवित्र दिन श्री गुरु गोविन्द ने "पंच प्यारे"
नाम से उपाधि दी है.
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वैशाखी पर्व विशेष रुप से कृ्षि पर्व है. भारत के उत्तरी राज्यों में विशेष कर पंजाब
में जब फसलों से हरे-भरे, झूमते- लहलाते खेत, रबी कि फसल के रुप में पककर तैयार हो
जाती है
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वैशाखी का पर्व एक और जहां किसान और फसलों से जुडा हुआ है. वहीं, दूसरी ओर यह ब्रिटिश
शासन के दौरान "जलियांवाला कांड" के समृ्ति दिवस के रुप में भी मनाया जाता है. 14 अप्रैल
के दिन जलियांवाला कांड में सैंकडों लोगों को एक साथ गोलियों से भुन दिया गया था. इस
कांड में मरने वाले व्यक्तियों में निहत्थे पुरुष, महिलाएं थे. यह घटना मानव इतिहास
में सदैव क्रूरतम दिवस के रुप में याद की जाती है. इस दिन से पूर्व और इसके बाद शायद
ही ऎसा कोई अन्य उदाहरण मिले, जिसमें एक साथ इतने साथ लोगों को मार दिया गया था.
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खेतों में जब फसल पक कर तैयार होने पर किसान खुशी से झूम उठता है. इसी खुशी में वैशाखी
का पर्व मनाया जाता है. खुशहाली, हरियाली और अपने देश की समृ्द्धि की कामना करते हुए
लोग इस दिन पूजा- अर्चना, दान -पुण्य़ व दीप जलाकर वैशाखी पर अपनी खुशी का इजहार करते
है. वास्तव में इस दिन जो भांगडा -नृ्त्य होता है, उसके पीछे यही भाव होता है कि सालभर
की कडी मेहनत के बाद अच्छी फसल के रुप में धरती मां से उन्हें प्राप्त हुआ है. उसका
स्वागत यहां के लोग खुशी मना कर करते है. देखा जाये तो यह नई फसल की कटाई का उत्सव
है.