सूर्य ग्रहण में क्या करें, क्या न करें? (Do's and dont's during Surya Grahan)

Surya Grahan timings सूर्य ग्रहण हो या फिर चन्द्र ग्रहण सभी के कारक पृ्थ्वी, सूर्य व चन्द्रमा ही होते है. चन्द्र के फलस्वरुप सूर्य के प्रकाश में कमी सूर्य ग्रहण कहलाता है. यह अवधि कुल मिलाकर उतने ही समय के लिये होती है जितने समय के लिये सूर्य की किरणें चन्द छाया के फलस्वरुप पृ्थ्वी तक नहीं पहुंच पाती है. ग्रहण का प्रभाव सभी सजीव जीवों पर पडता है, उसमें मनुष्य, पशु, पक्षी और अन्य कीट पतंगों को भी शामिल किया जा सकता है. ग्रहण काल में सूतक के नियमों का विशेष रुप से विचार किया जाता है. आईये नियमों को समझने से पहले सूतक को समझने का प्रयास करते है.


सूतक क्या है? (What is Sutak during Surya Grahan)

सूतक समय को सामान्यता अशुभ मुहूर्त समय के रुप में प्रयोग किया जाता है. सामान्य शब्दों में इसे एक ऎसा समय कहा जा सकता है, जिसमें शुभ कार्य करने वर्जित होते है. धार्मिक नियमों के अनुसार ग्रहण के 12 घंटे से पूर्व ही सूतक समय आरम्भ हो जाता है. और यह ग्रहण समाप्ति के मोक्ष काल के बाद स्नान धर्म स्थलों को फिर से पवित्र करने की क्रिया के बाद ही समाप्त होता है.


सूर्य ग्रहण के 12 घण्टे से पूर्व ही सूतक लगने के कारण मंदिरों के पट भी बंद कर दिये जाते है. ऎसे में पूजा, उपासना या देव दर्शन नहीं किये जाते है.


ग्रहण काल में क्या करें? ग्रहण काल में क्या न करें? (What not to do, and what to do during Solar Eclipse)

  1. ग्रहन काल आरम्भ होने से समाप्ति के मध्य की अवधि में मंत्र ग्रहण, मंत्रदीक्षा, जप, उपासना, पाठ, हवन, मानसिक जाप, चिन्तन करना कल्याणकारी होता है.

  2. सूर्य ग्रहण अवधि में देव मूर्तियों को स्पर्श नहीं किया जाता है. सूतक समय के बाद स्वयं भी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, तथा देवमूर्तियोम को स्नान करा कर, गंगाजल छिडक कर, नवीन वस्त्र पहनाकर, देवों का श्रंगार करना चाहिए.

  3. देव प्रतिमाओं के अलावा तुलसी वृ्क्ष, शमी वृ्क्ष को स्पर्श नहीं किया जाता है.

  4. ग्रहण के बाद इन सभी पर भी गंगाजल छिडक इन्हें शुद्ध किया जाता है.

  5. ग्रहण काल में अपने इष्ट देव, मंत्र, गुरु मंत्र, गायत्री मंत्र आदि का जप दीपक जला कर करना चाहिए.

  6. मंत्रों की सिद्धि के लिये यह समय सर्वथा शुभ होता है.

तथा इसके विपरीत इस समयाधि के मध्य समय में भोजन ग्रहण करना, भोजन पकाना, शयन, मल-मूत्र त्याग, रतिक्रियाएं व सजने संवरने से संबन्धित कार्य नहीं करने चाहिए.


ग्रहण काल से जुडी एक मान्यता के अनुसार इस अवधि में सब्जी काटना, सीना-पिरोना आदि से बचना चाहिए, नहीं तो जन्म लेने वाले बालक में शारीरिक दोष होने की संभावना रहती है. इसके अलावा उन्हें ग्रहण समय में घर से बाहर भी नहीं निकलना चाहिए. तथा ग्रहण दर्शन तो कदापि नहीं करना चाहिए.


ग्रहण के सूतक के नियमों का विचार गर्भवती महिलाओं, रोगी, बालकों और वृ्द्धो के लिये नहीं होता है.


ग्रहण समाप्ति के बाद क्या करें? (What to do after the end of the Surya Grahan)

शास्त्रों के अनुसार ग्रहण का मोक्षकाल समाप्त होने के बाद स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद श्राद्ध व तर्पण कार्य भी किये जा सकते है. अमास्या का दिन क्योकि विशेष रुप से पितरों के कार्य के लिये होता है. इसलिये पितरों की शान्ति से संबन्धित कार्य भी इसके बाद किये जा सकते है.


ग्रहण काल में मंत्र जाप व चिंतन के कार्य करने का विधान है, इसलिये ग्रहण का मोक्ष काल समाप्त होते ही भगवान के दर्शन करना विशेष शुभ फल देता है. ग्रहण समय में अगर कोई व्यक्ति तीर्थ यात्राओं पर है, तो उसे ग्रहण समाप्त होने के बाद करीब के तीर्थ स्थल पर जाकर स्नान अवश्य करना चाहिए. इस दिन स्नान, दान का पुन्य फल बढ गया है.


ग्रहण आरम्भ होने से ग्रहण समाप्त होने के मध्य की अवधि में किये जाने वाले कार्य क्रम अनुसार

जिस भी स्थान विशेष पर ग्रहण का प्रभाव हो, या फिर ग्रहण दृष्टिगोचर हो रहा हो, उन स्थानों पर रहने वाले व्यक्तियों को यह जानने की जिज्ञासा रहती है कि शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के दिन कार्य किस क्रम में निर्धारित किये जायें. सबसे पहले ग्रहण काल आरम्भ होने के समय स्नान करना चाहिए. ग्रहण काल के मध्य की अवधि में होम और मंत्र सिद्धि के कार्य करने चाहिए. ग्रहण की अंत की अवधि में श्राद्ध और दान कार्य करना कल्याणकारी होता है. साथ ही ग्रहण समाप्ति समय में स्नान करने के बाद अन्न, वस्त्र, धनादि का दन और इन सभी कार्यो से मुक्त होने के बाद एक बार फिर से स्नान करना चाहिए.


ग्रहण काल में किस मंत्र का जाप करें? (Chanting Mantra During Surya Grahan)

सामान्यत: ग्रहण काल की अवधि में किसी भी मंत्र का जाप करना शुभ रहता है. या फिर सूर्य ग्रहण में सूर्य के मंत्र का जाप किया जा सकता है. सभी कष्टों को दूर करने वाले मंत्र "महामृ्त्युंजय " मंत्र का जाप भी जाप करने वाले व्यक्ति को लाभ देगा.. इस अवधि में सूर्य उपासना विशेष रुप से की ही जाती है.


महामृ्त्युंजय मंत्र इस प्रकार है


"ओम् त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं, उर्वारुक्मिव बंधनात्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्"


इसके अलावा गायत्री मंत्र का जाप करना शुभ होता है.


"ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्"


व सूर्य मंत्र जाप भी कल्याण करता है.


"ऊँ घृणि सूर्याय नम:"