रक्षाबंधन 2024, 19 अगस्त (Rakshabandhan 2024, 19th August)

rakshabandhanka2 इस वर्ष 2024 में रक्षा बंधन का त्यौहार 19 अगस्त, को मनाया जाएगा. श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 18 अगस्त 2024 को 27:05 से आरंभ होगा और 19 अगस्त 2024 को रात्रि 23:56 तक व्याप्त रहेगी. भद्रा का प्रभाव 18 अगस्त को 27:05 से 19 अगस्त 13:31 तक रहेगा. रक्षा बंधन समय भद्रा विचार किया जाता है. भद्रा मुक्त समय होने से रक्षाबंधन संपन्न करना अनुकूल होता है. यदि भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को त्यागकर भद्रा पुच्छ काल में इसे करना चाहिए. 19 अगस्त को रक्षाबंधन का भद्रा मुक्त समय दोपहर13:31 के बाद रहेगा. भद्रा पुच्छ का समय सुबह 09:52 से 10:55 तक भद्रा मुख का समय 10:55 से 12:13 तक होगा.


जब भी कोई कार्य शुभ समय में किया जाता है, तो उस कार्य की शुभता में वृद्धि होती है. भाई- बहन के रिश्ते को अटूट बनाने के लिये इस राखी बांधने का कार्य शुभ मुहूर्त समय में करना चाहिए.


राखी बांधने का शुभ मुहूर्त (Auspicious Muhurta for Rakshabandhan)

इस वर्ष 2024 में रक्षा बंधन का त्यौहार 19 अगस्त, को मनाया जाएगा.19 अगस्त को रक्षाबंधन अनुष्ठान का समय - रक्षा बन्धन अनुष्ठान का समय - 13:31 के बाद होगा


19 अगस्त को संपूर्ण प्रदोष काल भद्रा से मुक्त रहेगा. प्रदोष काल समय- 18:50 से 21:05 तक रहेगा. 19 अगस्त को संपूर्ण प्रदोष काल भद्रा से मुक्त रहेगा. प्रदोष काल समय- 18:50 से 21:05 तक रहेगा.


19 अगस्त राहुकाल समय सुबह 07:31 से 09:08 बजे तक.

राखी अभिजित मुहूर्त 2024 के दिन

11:58 से 12:51 तक रहेगा.


30 अगस्त बुधवार के दिन अभिजित मुहूर्त का समय नहीं होगा.

सामान्यत: उतरी भारत जिसमें पंजाब, दिल्ली, हरियाणा आदि में प्रात: काल में ही राखी बांधने का शुभ कार्य किया जाता है. परम्परा वश अगर किसी व्यक्ति को परिस्थितिवश भद्रा-काल में ही रक्षा बंधन का कार्य करना हों, तो भद्रा मुख को छोड्कर भद्रा-पुच्छ काल में रक्षा - बंधन का कार्य करना शुभ रहता है. शास्त्रों के अनुसार में भद्रा के पुच्छ काल में कार्य करने से कार्यसिद्धि और विजय प्राप्त होती है. परन्तु भद्रा के पुच्छ काल समय का प्रयोग शुभ कार्यों के के लिये विशेष परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए.


बहन के प्रति भाईयों के दायित्वों का बोध कराने का पर्व (Festival of Auspicious Realationship of Sister and Brother)

वेद शास्त्रों के अनुसार रक्षिका को आज के आधुनिक समय में राखी के नाम से जाना जाता है. रक्षा सूत्र को सामान्य बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है. इसका अर्थ रक्षा करना, रक्षा को तत्पर रहना या रक्षा करने का वचन देने से है.


श्रावण मास की पूर्णिमा का महत्व इस बात से और बढ़ जाता है कि इस दिन पाप पर पुण्य, कुकर्म पर सत्कर्म और कष्टों के उपर सज्जनों का विजय हासिल करने के प्रयासों का आरंभ हो जाता है। जो व्यक्ति अपने शत्रुओं या प्रतियोगियों को परास्त करना चाहता है उसे इस दिन वरूण देव की पूजा करनी चाहिए.


दक्षिण भारत में इस दिन न केवल हिन्दू वरन् मुसलमान, सिक्ख और ईसाई सभी समुद्र तट पर नारियल और पुष्प चढ़ाना शुभ समझा जाता है नारियल को भगवान शिव का रुप माना गया है, नारियल में तीन आंखे होती है. तथा भगवान शिव की भी तीन आंखे है.


धागे से जुडे अन्य संस्कार (Other Sanskaras Related to Thread)

हिन्दू धर्म में प्रत्येक पूजा कार्य में हाथ में कलावा (धागा) बांधने का विधान है. यह धागा व्यक्ति के उपनयन संस्कार से लेकर उसके अन्तिम संस्कार तक सभी संस्करों में बांधा जाता है. राखी का धागा भावनात्मक एकता का प्रतीक है. स्नेह व विश्वास की डोर है. धागे से संपादित होने वाले संस्कारों में उपनयन संस्कार, विवाह और रक्षा बंधन प्रमुख है।


पुरातन काल से वृक्षों को रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा है। बरगद के वृक्ष को स्त्रियां धागा लपेटकर रोली, अक्षत, चंदन, धूप और दीप दिखाकर पूजा कर अपने पति के दीर्घायु होने की कामना करती है। आंवले के पेड़ पर धागा लपेटने के पीछे मान्यता है कि इससे उनका परिवार धन धान्य से परिपूर्ण होगा।


वह भाइयों को इतनी शक्ति देता है कि वह अपनी बहन की रक्षा करने में समर्थ हो सके। श्रवण का प्रतीक राखी का यह त्यौहार धीरे-धीरे राजस्थान के अलावा अन्य कई प्रदेशों में भी प्रचलित हुआ और सोन, सोना अथवा सरमन नाम से जाना गया.