पतंग पर्व - 14 जनवरी 2024 (Kite Festival - 14th January 2024)

patang_parva1 14 जनवरी के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है. इस दिन से सूर्य उत्तरायण होना आरम्भ कर देते हैं. यह दिन सारे भारतवर्ष में पर्व के रुप में मनाया जाता है. इसलिए देश के विभिन्न भागों में इस दिन को भिन्न-भिन्न पर्वों के नाम से जाना जाता है. कहीं इसे मकर संक्रान्ति के रुप में मनाया जाता है तो किसी भाग में इसे लोहडी़ के रुप में मनाते हैं. देश के कुछ भागों में यह त्यौहार तीन दिन तक भी मनाया जाता है और इसे पोंगल के नाम से मनाया जाता है. नाम भले ही अलग हों परन्तु उद्देश्य एक ही होता है.


मकर संक्रान्ति का त्यौहार देश के कई भागों में पतंग पर्व के रुप में भी मनाया जाता है. विशेष रुप से गुजरात में इस दिन पतंग उडा़ने की परम्परा है. इसलिए मकर संक्रन्ति के पर्व को पतंग पर्व के नाम से भी जाना जाता है. पतंग उडा़ने का इतिहास भारत में बहुत ही पुराना है. भगवान राम के काल से पतंग उडा़ने का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है. तुलसीदास जी द्वारा रचित ग्रंथ रामचरित मानस के एक दोहे में भगवान राम के द्वारा पतंग उडा़ने का वर्णन मिलता है. दोहा है:


राम इक दिन चंग उडा़ई

इन्द्रलोक में पहुंची जाई.


दोहे का अर्थ है कि भगवान श्रीराम ने अपने साथियों के साथ मिलकर पतंग उडा़ई और वह इन्द्रलोक तक पहुंच गई. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पतंगबाजी का रिवाज प्राचीन समय से ही चला आ रहा है. मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य मकर रेखा से उत्तर रेखा की ओर आना आरम्भ करता है. सूर्य देव का उत्तर रेखा की ओर आने से पतंग को आसमान में उडा़कर उनके आने का स्वागत किया जाता है. भारत के साथ-साथ अन्य कई देशों जैसे वियतनाम, चीन, थाईलैंड, मलेशिया, जापान आदि में भी पतंग उडा़ने की परम्परा है.


गुजरात में पतंगबाजी का महत्व (Significance of Kite Flying in Gujarat)

मकर संक्रान्ति के दिन गुजरात में पतंग उडा़ने का बहुत महत्व है. सूर्य के इस दिन उत्तरायण होने से यह पर्व गुजरात का अत्यंत लोकप्रिय पर्व है. घर-घर में सभी लोगों को पतंग उडा़ने का चाव रहता है. बच्चों से लेकर बूढे़ व्यक्ति तक उस दिन छतों पर, पार्क में तथा खुले मैदानों में पतंग उडा़ते नजर आते हैं. सभी पतंगबाजी की तैयारी में जुटे होते हैं. मकर संक्रान्ति से कई दिन पहले से रंग-बिरंगी पतंगों तथा मजबूत मांजों का संग्रह करना आरम्भ कर देते हैं.


सुबह सभी लोग मूंगफली, तिल तथा गुड़ की गज्जक खाते हैं. दान करते हैं. उसके बाद सुबह से लेकर रात तक पतंगबाजी चलती है. कई लोग तो सुबह से खाना-पीना भूलकर देर रात तक केवल पतंगबाजी में लगे रहते हैं. एक-दूसरे की पतंग काटने की प्रतिस्पर्धा शुरु हो जाती है. हर कोई दूसरे की अधिक से अधिक पतंग काटना चाहता है. इस दिन पूरा आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भरा दिखाई देता है. जैसे ही कोई पतंग कटती है वैसे ही सब हल्ला करना शुरु कर देते हैं. इस दिन सभी लोग बहुत ही मस्ती करते हैं. कई लोग तो थाली बजाकर अथवा ढो़ल बजाकर पतम्ग कटने की खुशी जाहिर करते हैं. कुछ लोग उस दिन छत पर ही सारे दिन के खाने-पीने की तैयारी के साथ बैठ जाते हैं. वहीं छत पर ही खाना भी पकाते हैं. साथ में पतंग भी उडा़ते हैं.


रात में जो पतंग उडा़ई जाती हैं वह और भी मनमोहक लगती है. पतंगों के अंदर रोशनी जलाकर उन्हें रात में उडा़या जाता है. कई लोग सफेद पतंगों में अलग-अलग तरह की रोशनी और विभिन्न प्रकार के आकार की पतंगें जलाते हैं. सारा आसमान रोशनी से भरा नजर आता है. यह दृश्य मन को मोहने वाला होता है.


खाने का महत्व (Importance of food on Makar Sankranthi)

गुजरात में मकर संक्रान्ति का त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन सुबह से ही पतंगबाजी की जाती है. इसके साथ ही खाने में इस दिन खिचडी़ का बनाने तथा खाने का बहुत ही महत्व होता है. खिचडी़ में बहुत सी चीजों को मिलाया जाता है और उसे धीमी आँच पर पकाया जाता है. इस दिन सभी सब्जियों को मिलाकर एक सब्जी बनाई जाती है जिसे "उधीयु" कहते हैं. सब्जी को बाजरे की रोटी के साथ खाया जाता है. साथ में दही से बनी छाछ पी जाती है. इस सारे भोजन का आनन्द छत पर पतंगबाजी के साथ लिया जाता है. सभी लोग इस दिन मिलजुल कर खाना खाते हैं. इस दिन खाने में भुने हुए हरे चने भी खाए जाते हैं. गन्ने चूसने का आनन्द भी कई लोग इस दिन उठाते हैं. मकर संक्रान्ति के दिन मीठे बेर तथा जामफल भी खाने का महत्व है.


गिल्ली डण्डे का महत्व (Gilli Danda and Makar Sankranti)

सूर्य के बिना इस जगत में जीवन कि कल्पना भी नहीं की जा सकती है. प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करने और सूर्य को जल देने से पिता का सुख और भाग्य में वृ्द्धि होती है. 14 जनवरी, 2024 को रात्रि को में सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहे है. इस दिन को सूर्य उपासना का दिन ही कहा जाता है.


मकर संक्रान्ति के दिन देश के कुछ भागों में गिल्ली-डण्डा खेलने का भी महत्व माना गया है. ये दोनों चीजें लकडी़ से बनी होती हैं. एक बडा़ सा डण्डा होता है और साथ में बेलन के आकार की छोटी सी गिल्ली होती है. इस दिन सभी लोग सुबह गुड़ तिल, खिचडी़ आदि खाने और दान करने के पश्चात खुले मैदान में आ जाते हैं. यहाँ आने के पश्चात सभी लोग अपने-अपने गुट बनाकर खेलना आरम्भ कर देते हैं. पूरे जोश के साथ सभी गिल्ली-डण्डे के खेल का आनन्द उठाते हैं. बच्चे हों या बडे़ हों सभी पूरे उत्साह के साथ खेलते हैं. गिल्ली-डण्डे का खेल गाँव वालों के लिए किसी अन्तर्राष्ट्रीय खेल से कम नहीं है. इसलिए गाँव में तो इस खेल को इस दिन और भी उत्साह के साथ खेला जाता है.