मकर संक्रान्ति धार्मिक महत्व (Spiritual and Religious Importance of Makar Sankranti)
मकर संक्रान्ति भारत का प्रमुख पर्व है. इस दिन सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण होता है. इसलिए इस पर्व को उत्तरायणी पर्व के रूप में भी जाना जाता है. देश के विभिन्न प्रांतों में मकर संक्रांति पर्व को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. तमिलनाडु में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है. असम में इसे माघ बिहू एवं भोगल बिहू के नाम पुकारा जाता है. पंजाव एवं हरियाणा में प्रांत में मकर संक्रान्ति को लोहरी पर्व के रूप में लोग मनाते हैं. उत्तर प्रदेश में इस पर्व को दान पर्व एवं खिंचड़ी पर्व के तौर पर मनाया जाता है. बिहार में मकर संक्रांति को तिल संक्रांति एवं खिचड़ी पर्व के नाम से मनाते हैं.
मकर संक्रांति और धार्मिक भावनाएं: मकर संक्राति जिस तरह देश के सभी प्रांतों में श्रद्धा
और उल्लास से मनाया जाता है उससे यही अनुमान होता है कि इस पर्व में कहीं न कही कुछ
धार्मिक मान्यताएं भी शामिल हैं. इस पर्व का जिक्र हमारे कई धार्मिक ग्रंथों में हुआ
है जिससे इस पर्व के धार्मिक महत्व का ज्ञान होता है. धर्म ग्रंथों में सबसे आदरणीय
"गीता" जिसे भगवान श्री कृष्ण की वाणी माना जाता है उसमें कहा गया है कि उत्तरायण का
6 महीना देवता का दिन है
और दक्षिणायण का 6 महीना देवताओं के लिए रात्रि है. जो व्यक्ति उत्तरायण में शरीर का
त्याग करता है उसे कृष्ण के लोक में स्थान प्राप्त होता है, उसे मुक्ति मिल जाती है.
जबकि, दक्षिणायन में शरीर त्यागने वाले को पुन: जन्म लेना पड़ता है.
महाभारत काल में भिष्म पितामह जिन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. वाणों की शैय्या पर लेटे रहने के बावजूद उन्होंने दक्षिणायण में प्राण त्याग नहीं किया बल्कि सूर्य के उत्तरायण में होने तक इंतजार करते रहे. मान्यता है कि मकर संक्रान्ति के पुण्य दिन जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश किया तब उन्होंने अपने शरीर का त्याग किया.
मकर संक्रान्ति के विषय में एक अन्य धार्मिक कथा है कि भगवान श्री कृष्ण को पुत्र रूप में पाने के लिए यशोदा माता ने व्रत किया था. गंगावतरण की कथा भी मकर संक्रान्ति से सम्बन्धित है. माना जाता है कि मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा भगीरथ मुनि के पीछे-पीछे चलते हुए सागर में जा मिली थी. मकर संक्रान्ति के दिन गंगा का सागर में संगम होने के कारण इस दिन गंगासागर में स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है
मकर शनि की राशि है. मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य शनि की राशि में प्रवेश करता है. सूर्य देव शनि के पिता हैं. पिता अपने पुत्र से मिलने उनके घर जाता है. शनि और सूर्य दोनों ही पराक्रमी ग्रह हैं इन दोनों के शुभ फल से मनुष्य अपार सफलता प्राप्त कर सकता है. इसलिए लोग मकर संकान्ति के पावन पर्व पर सूर्य एवं शनि देव को भी प्रसन्न करते हैं.
मकर संक्रान्ति सत्य, पुण्य और धर्म का पर्व (Makar Sankranti the Festival of Truth, Virtue and Religion)
रात को असत्य, पाप और अधर्म का प्रतीक माना जाता है जबकि दिन को सत्य, पुण्य और धर्म का प्रतीक कहा गया है. इसलिए जब देवताओं का दिन होता है उस समय सभी पुण्य कर्म किये जाते हैं. कर्मों का फल भी अच्छा मिलता है. मकर संक्रान्ति के दिन जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है तब रातें छोटी होने लगती हैं और दिन बड़ा होने लगता है. इस दिन से देवलोक का द्वार खुल जाता है. इस शुभ अवसर पर लोग उत्सव मनाते हैं.
सौभाग्य का पर्व मकर संक्रान्ति (Makar Sankranti the Festival of Good Fortune)
मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य के उत्तरायण होने से दिन बड़ा होने लगता है. सुहागन महिलाएं अपने पति की लम्बी आयु के लिए इस दिन सूर्य देव की पूजा करती हैं एवं अपने बड़ों को भेंट देकर उनसे अपने पति की लम्बी आयु का आशीर्वाद लेती हैं कि जिस प्रकार दिन बढ़ रहा है उसी प्रकार उनके पति की आयु भी बढ़े.
इन सभी धार्मिक भावनाओं एवं मान्यताओं से प्रेरित होकर लोग मकर संक्रान्ति का उत्सव मनाते हैं.