महाशिवरात्रि - प्रचलित मान्यताएँ अथवा कथाएँ (Legends of Maha Shivaratri in Hindi)

shivratri_story प्राचीन ग्रंथों में महाशिवरात्रि पर्व के बारे में तथा भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पूजन का प्राचीन ग्रंथों में अनेकों प्रकार से उल्लेख मिलता है. अनेक कथाएँ इस पर्व के साथ जुडी़ हैं. सभी कथाओं में सबसे अधिक प्रचलित कथा शिकारी की है. जिससे अनजाने में ही शिवलिंग पर बिल्वपत्र गिरते रहे और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई. इसके अतिरिक्त ऎसा माना जाता है कि सृष्टि के आरम्भ में अर्धरात्रि में भगवान शिव, ब्रह्मा से रुद्र के रुप में अवतरित हुए थे. भगवान शिव तांडव करते हुए प्रदोष के समय अपने तीसरे नेत्र से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को समाप्त कर देते हैं. चारों ओर केवल अन्धकार छा जाता है.


जब पूरी सृष्टि अन्धकारमय थी तब पार्वती जी ने श्रद्धा तथा सम्पूर्ण आस्था के साथ भगवान शिव की आराधना की. भगवान पार्वती जी की आराधना से प्रसन्न हुए और उन्हें वर माँगने को कहा. माता पार्वती ने कहा कि कोई भी प्राणी इस दिन आपका पूजन करेगा, तब आप उस प्राणी पर हो जाएं. उसे आप मनोनुरुप वरदान दें. तब से ऎसी मान्यता है कि माता पार्वती के वर के प्रभाव से शिवरात्रि पर्व का आरम्भ हुआ.


सागर मंथन की कथा (Story of Sagar Manthan)

एक अन्य धारणा के अनुसार सागर मंथन के समय कालकेतु विष निकला था. उस समय भगवान शिव ने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रक्षा करने के लिए स्वयं ही सारा विष लिया था. विष पीने से भोलेनाथ का कण्ठ नीला हो गया और उन्हें नीलकण्ठ के नाम से भी पुकारा जाने लगा. पुराणों के अनुसार विषपान के दिन को महाशिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है. कई व्यक्ति इस दिन को शिव-पार्वती के विवाह के रुप में भी मनाते हैं. लेकिन अधिकतर धारणाएँ यही है कि जिस दिन भगवान शिव का शिवलिंग के रुप में अवतरण हुआ था उस दिन को महाशिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है.


हिन्दु कैलेण्डर के अनुसार फाल्गुन मास के बाद नए वर्ष का आगमन होता है. ऋतु में परिवर्तन होता है. वर्ष चक्र का पुनरावरण होता है. वातावरण में मादकता का माहौल छाया होता है. कामदेव का प्रभाव चारों ओर दिखाई देता है. इसलिए भी फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन पूजा करना एक महाव्रत है. इस महाव्रत को करने से धीरे-2 इसका नाम महाशिवरात्रि व्रत पड़ गया.


ब्रह्मा-विष्णु विवाद की कथा (Brahma - Vishnu Dispute Story)

पुराणों में महाशिवरात्रि के बारे में कई कथाएँ हैं. उनमें से एक कथा के अनुसार एक बार विष्णु जी तथा ब्रह्मा जी में श्रेष्ठता को लेकर विवाद होने लगा. ब्रह्मा जी का मत था कि वह श्रेष्ठ हैं और विष्णु जी कहने लगे कि वह श्रेष्ठ हैं. ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी के विवाद को सुनकर भगवान शिव एक लिंग के रुप में प्रकट हुए. यह शिवलिंग एक प्रकाश स्तम्भ के रुप में प्रकट हुआ था. ब्रह्माजी और विष्णु जी दोनों उस प्रकाश स्तम्भ के आदि तथा अंत की खोज में लग गए. लेकिन उन्हें प्रकाश स्तम्भ का आदि तथा अंत कुछ भी नहीं मिला.


ब्रह्मा जी ने इसके लिए झूठ का सहारा लेने की कोशिश की. उनकी इस हरकत से भगवान शिव क्रोधित हो गये और उन्होंने ब्रह्मा जी का पाँचवां सिर काट दिया. भगवान शिव के क्रोध को शांत करना कठिन कार्य था. इस पर विष्णु जी ने शिवजी का पूजन तथा उनकी आराधना की. बहुत दिन तक आराधना करने पर भगवान शिव विष्णु जी से प्रसन्न हुए. जिस दिन शिव प्रसन्न हुए उस दिन को महाशिवरात्रि के रुप में मनाया जाने लगा.


राजा चित्रभानु की कथा (The Story of King Chitrabhanu)

पौराणिक कथाओं के आधार पर महाशिवरात्रि के पर्व को मनाने के लिए कई कथाएँ प्रचलित हैं. उनमें से एक कथा राजा चित्रभानु के साथ भी जुडी़ है. इक्ष्वांकु वंश के राजा का नाम चित्रभानु था. वह शिव भगवान की पूजा किया करते थे. एक बार अष्टावक्र ऋषि राजा चित्रभानु से मिलने आए. ऋषि ने देखा कि राजा चित्रभानु सपरिवार पत्नी सहित भगवान शिव की पूजा कर रहें हैं. ऋषि को उस पूजा को जानने की उत्सुकता हुई. उन्होंने चित्रभानु से पूछा कि "आप इतना ध्यानमग्न होकर किसकी पूजा कर रहें हैं?


इस पूजा के करने से आपको क्या फल मिलेगा?" राजा चित्रभानु ने ऋषि को उत्तर दिया कि "मुझे अपने पूर्व जन्म के बारे में सब कुछ पता है. भगवन शिव का जो व्रत मैं आज कर रहा हूँ वह व्रत मैं पूर्व जन्म में भी करता था. पूर्व जन्म के व्रत के फल से आज मुझे यह राजपद प्राप्त हुआ है." राजा ने तब ऋषि से कहा कि पूर्वजन्म में जाने-अनजाने भगवान शिव की भक्ति का फल मुझे प्राप्त हुआ है. पूर्व जन्म के कर्मों का फल मुझे भगवान शिव ने मुझे इस जन्म में भी दिया है. इस कारण राजा चित्रभानु राजपद मिलने पर भी भगवान शिव की आराधना शिवरात्रि के दिन करते थे.


शिवलिंग पूजन की पौराणिक कथा (Legend of Shiva Linga Worship)

महाशिवरात्रि पर्व के विषय में अनेकों कथाओं तथा मान्यताओं का वर्णन प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में मिलता है. महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग के रुप में भगवान शिव ने अवतार लिया था. तभी से इस दिन को महाशिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है. इसके साथ ही भगवान शिव का शिवलिंग के रुप में पूजन करने का पौराणिक महत्व तथा कथा अलग है. कथा इस प्रकार है कि प्रजापति दक्ष ने अपने यज्ञ समारोह में सभी राजाओं तथा देवताओं को आमंत्रित किया था लेकिन माता सती(पार्वती) के पति भगवान शिव को दक्ष ने निमंत्रित नहीं किया. इस बात के पता लगते ही माता सती ने उसी यज्ञ में अपने प्राणों को त्याग दिया और जलकर भस्म हो गई.


माता सती के प्राण त्यागने की सूचना मिलते ही भगवान शिव क्रोध में आकर नग्नावस्था में पृथ्वी पर तांडव करने लगे और पृथ्वी पर जगह-जगह घूमने लगे. एक दिन घूमते हुए भगवान शिव ब्राह्मणों के गाँव में चले गए. भगवान शिव को ऎसी अवस्था में देखकर ब्राह्मणियाँ उन पर मोहित हो गई. इससे ब्राह्मणों को बहुत ही अधिक क्रोध आया और उन्होंने क्रोध में आकर भगवान शिव को श्राप दिया कि उनका लिंग उनके शरीर से अलग होकर धरती पर गिर जाएगा. ब्राह्मणों के श्राप से शिव भगवान का लिंग उनके शरीर से अलग होकर पृथ्वी पर गिर गया. इस घटना से तीनों लोकों में हलचल हो गई. भगवान शिव के लिंग का भार पृथ्वी ना संभल पाई और उससे तीनों लोक हिलने लगे.


जब स्थिति भयंकर रुप धारण करने लगी तब सभी देवता और ऋषि-मुनि, ब्रह्मा जी की शरण में आए. ब्रह्मा जी ने अपने योगबल के आधार पर शिवजी के शरीर से लिंग के लग होने का कारण जान लिया. तब ब्रह्माजी सभी के साथ भगवान शिव के पास आए. ब्रह्मा जी ने भगवान शिव की आराधना की और उनसे अपना लिंग दुबारा धारण करने के लिए प्रार्थना की. इस पर भगवान शिव ने कहा कि यदि आज से सभी प्राणी मेरे लिंग का पूजन करना आरम्भ करेंगें तभी मैं उसे दुबारा धारण करुंगा. इस पर ब्रह्माजी ने सबसे पहले स्वर्ण का शिवलिंग बनाया और उसकी विधिवत तरीके से पूजा की. उसके पश्चात सभी देवताओं तथा ऋषि-मुनियों ने अनेक प्रकार के पदार्थों से शिवलिंग बनाकर पूजन किया.


इस पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव का शिवलिंग के रुप में पूजा का प्रारम्भ तभी से शुरु हुआ. ऎसा कहा गया है कि जिस स्थान पर शिवलिंग की पूजा की जाती है, वह स्थान तीर्थ स्थान बन जाता है. जहाँ पर शिवलिंग का पूजन सदा होता है उस स्थान पर मृत्यु होने पर वह मनुष्य़ शिवलोक में स्थान पाता है. भगवान शिव के मात्र "शिव" शब्द के उच्चारण करने से साधारण मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है.