महाशिवरात्रि 2023 (Maha Shivaratri 2023)

maha_shivratri2 भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न होने वाला देव कहा गया है. शिवरात्रि पर्व त्रयोदशी तिथि, फाल्गुण मास, कृष्ण पक्ष की तिथि को प्रत्येक वर्ष किया जाता है. वर्ष 2023 में यह व्रत 18 फरवरी में किया जायेगा. महाशिवरात्रि व्रत की यह विशेषता है कि इस व्रत को बालक, स्त्री, पुरुष और वृद्ध सभी कर सकते है.


इस व्रत के दिन भगवान शिवलिंग दर्शन के लिए हजारों की संख्या में शिव भक्त आते है. सभी शिवालयों में महाशिवरात्रि के दिन बेल, धतूरा और दूध का अभिषेक किया जाता है. शिवरात्रि मात्र एक व्रत नहीं है, और न ही यह कोई त्यौहार है. सही मायनों में देखा जायें, तो यह एक महोत्सव है. इस दिन देवों के देव भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ था. उसकी खुशी में यह पर्व मनाया जाता है.


शास्त्रों में इस तिथि के विषय में कहा गया है, कि जिनकी जटाओं में गंगा भी शरण लेती है, तीनों लोक ( आकाश, पाताल व मृ्त्यु) के वासियों को प्रकट करने वाले है. जिनके नेत्रों से तीन अग्नि निकल कर शरीर का पोषण करती है. ऎसे श्री भगवान शिव भगवान इस तिथि में विवाह रचा कर प्रसन्न है.


महाशिवरात्रि व्रत के फल (Result of Maha Shivratri Fast)

महाशिवरात्रि व्रत करने से साधक को मोक्ष प्राप्ति के योग्य बनाती है. इस व्रत को करने से व्यक्ति का कल्याण होता है. उपवासक के सभी दु:ख, पीडाओं का अंत होता है. साथ ही उसकी इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है. यह व्रत धन, सुख-सौभाग्य, समृ्द्धि की प्राप्ति होती है. इस व्रत को जो भी प्रेम भक्ति के साथ करता है, उसके सभी मनोरथ भगवान शिव की कृ्पा से पूर्ण होते है.


भगवान शिव की पूजा शुद्ध चित से करनी चाहिए. भगवान श्री देव, देवों के देव है. उनका एक नाम नीलकण्ठ है, विश्वनाथ है. भगवान भोलेनाथ का व्रत करने से व्यक्ति कि धन के प्रति क्षुधा, पिपासा, लोभ, मोह आदि से मुक्ति मिलती है. बुद्धि निर्मल होती है. और जीवन सदकार्यो की ओर प्रेरित होता है.


शिव व्रत प्रदोष काल में (Shiv Vrat in Pradosh Kaal)

शास्त्रों में प्रदोषकाल (सूर्यास्त होने के बाद रात्रि होने के मध्य की अवधि) सरल शब्दों में सूर्योस्त होने के बाद के 2 घंटे 24 मिनट कि अवधि प्रदोष काल कहलाती हे. प्रदोष काल के समय में भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. प्रदोषकाल में ही शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. यही कारण है, कि प्रदोषकाल में शिव पूजा या शिवरात्रि में शिव जागरण करना विशेष कल्याणकारी कहा गया है. सभी 12 ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव भी प्रदोष काल महाशिवरात्रि तिथि में ही हुआ था. इसी कारण से फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी "महाशिवरात्रि" के नाम से जानी जाती है.


महाशिवरात्रि में लगने वाले मेले (Maha Shivratri Fests)

महाशिवरात्रि एक पर्व से अधिक उत्सव के रुप में मनाया जाता है. इस अवसर पर देश के कई राज्यों में मेलों का आयोजन किया जाता है. महाशिवरात्रि के अवसर पर लगने वाले मेलों में रंगारंग कार्यक्रमों के अलावा, लाखों की संख्य में कावंरिये भी शामिल होते है. शिव जयकारा लगाते हुए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है. कुछ ऎसा ही नजारा रामनगर में देखने में आता है.


फाल्गुन का मेला खास अहमियत रखता है. माना जाता है, कि पांडवों ने इस दिन रुद्र महायज्ञ किया था. पूरे देश के लाखों श्रद्वालु शिवरात्रि तिथि पर जल चढाते है. महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर शिवभक्त अपने ईष्ट देव को मनाने में पूरी श्रद्वा से लगे होते है. मेलों में शिव भक्तों का विशेष जमावडा होता है. शिवरात्रि के दिन सभी शिवालयों में सैकडों घंटे और शंखनाद की आवाज दूर-दूर तक जाती है. इस दिन भोले को मनाने के लिये ऊँ नम: शिवाय: मंत्र का जाप करना विशेष शुभ है.


यह शिव महोत्सव पूरे भारत में पूरी श्रद्वा और विश्वास के साथ मनाया जाता है. शिवलिंग की पूजा फूल, बेलपत्र, धतूरा, गुड आदि से की जाती है.


महाशिवरात्रि व्रत विधि-विधान (Maha Shivratri Vrat Methods)

महाशिवरात्रि का व्रत सर्वसाधारण व्यक्ति भी कर सकता है. हर वर्ण और वर्ग के लोग इस व्रत को कर सकते है. इस व्रत को करने के लिये अधिक सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है. यही कारण है, कि आर्थिक पक्ष का कमजोर होना, भी इस व्रत के मार्ग में बाधाक नहीं बन पाता है. इस व्रत को करने के लिए स्त्री-पुरुष , बच्चा, युवा और वृ्द्ध सभी कर सकते है. जिन व्यक्तियोम के पास धन का सामर्थ्य हो,वे व्यक्ति इस दिन रुद्राभिषेक और यज्ञ कर सकते है नहीं तो भगवान भोलेनाथ श्रद्वा से चढाये गये एक पत्ते से भी प्रसन्न हो जाते है.


इस व्रत को केवल प्रदोषनिशिथ काल में ही करना चाहिए. जो व्यक्ति इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करने में असमर्थ हो, उन्हें रात्रि के प्रारम्भ में तथा अर्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन जरूर करना चाहिए. अगर इस विधि से भी व्रत करने में असमर्थ हों, तो पूरे दिन भी व्रत न करके भी सांयकाल में भगवान शिव का पूजा- अर्चना करना शुभ रहता है.