विजयादशमी विभिन्न राज्यों को जोडने वाली डोर (Vijaya Dasami, the Festival of Gathering States Together)
विश्व में भारत ही केवल एक ऎसा देश है, जहां एक पर्व कई रुपों में मनाया जाता है. भारत त्यौहारों का देश है, यहां अनेक धर्म, संस्कृ्तियां एक साथ रहती है. एक धर्म के पर्वों को दूसरे धर्म, वर्ग के लोग पूरे हर्षोल्लास से मनाते है. कई बार हिन्दूओं का ही कोई पर्व दुसरे राज्य में किसी ओर नाम से मनाया जा रहा होता है. शास्त्रों के अनुसार देखे तो दशहरे का वास्तविक नाम विजयदशमी है. शास्त्रों में कहीं- कहीं इसे अपराजिता नाम से भी संम्बोधित किया गया है.
उतर भारत में विजय दशमी पर्व (Vijaya Dasami Festival in North India)
दशहरा अर्थात विजय दशमी उतर भारत में अपना पौराणिक महत्व रखता है. उल्लेखनीय है कि पौराणिक कथा के अनुसार विजय दशमी देवताओं द्वारा दानवों पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में मनाई जाती है. इस युद्ध में राजा दशरथ, जनक और शोनक ऋषि जैसे राजाओं ने देवताओं की दानवों से रक्षा की थी.
इसके बाद राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम ने राक्षस राज रावण को मारकर, माता सीता को उनकी कैद से मुक्त कराया था. इसी की खुशी में विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है.
विजयदशमी - बंगाल की दुर्गा पूजा के रुप में (Vijaya Dashami - As Durga puja in Bengal)
उत्तर भारत में विजय दशमी के एक नये रुप में मनाई जाती है. यह पर्व विशेष रुप से बंगाल में मनाया जाता है. दुर्गा पूजा को कलकत्ता का सबसे प्रसिद्ध पर्व भी कहा जा सकता है. दूर्गा पूजा को पूरे बंगाल में पांच दिनों तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है. इस अवसर पर यहां विशेष रुप से दर्शनिय दूर्गा की झांकियां और सजे हुए पण्डाल होते है.
दूर्गा के साथ-साथ अन्य देवी -देवताओं की मूर्तियां भी बनाई जाती है. इस पर्व पर मूर्तियों को बनाना और सजाना और दशमी के दिन इन मूर्तियों को अश्रु सहित विसर्जित कर देने वाला द्रश्य बडा ही मनमोहक होता है. विजय दशमी के दिन नीलकंठ पक्षी को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है. दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. आपस में सिन्दूर लगाया जाता है. सिंदूर खेला जाता है.
विजय दशमी गुजरात में गरबे के रुप में (Vijaya Dashami - As Garba in Gujarat)
विजय दशमी, गुजरात में एक नये तरीके से मनाई जाती है. यहां नवरात्रे के प्रथम दिन से "गरबा" नामक नृ्त्य किया जाता है. इस नृ्त्य को विशेष रुप से कुंवारी कन्याएं सिर पर एक सजा हुआ घडा रख कर करती है. जिसे गरबा कहा जाता है. गुजरात में पूरे नौ दिनों तक चलने वाले इस गरबा नृ्त्य का आज समय के साथ बाजारिकरण हो चुका है.
आज यह गुजरात राज्य की परम्परा, संस्कृ्ति से बाहर निकल कर आज इसे बडे-बडे शहरों और सार्वजनिक स्थलों में देखा जा सकता है. संक्षेप में कहे तो गरबा नृ्त्य गुजरात की शान है. माता की पूजा- आरती करने के बाद डांडिया रास का आयोजन पूरी रात किया जाता है. डांडिया नृ्त्य में पुरुष और स्त्रियां दो छोटे रंगीन डंडोम को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम घूम कर नृ्त्य करते है.
इसके अलावा पूरे भारत में नवरात्रि अवधि में सोने और गहनों की खरीद को शुभ माना जाता है.
पंजाब में विजय दशमी नवरात्रि उपवास समापन के रुप में (Vijaya Dashami - As Conclusion of Navaratri Fast in Punjab)
भारत में जब हम उत्तर भारत की बात करते है, तो उसमें कई राज्यों को शामिल कर लेते है. भारत के उत्तरी राज्यों में से एक राज्य है, पंजाब. पंजाब राज्य अपने एक खास अंदाज, जोश, उत्साह और खुशियों को एक अलग तरीके से मनाने के लिये प्रसिद्ध है. यहां दशहरा नवरात्रि के नौ दिन का उपवास रख कर मनाया जाता है.
इस दौरान यहां के मंदिरों में श्रद्घालुओं की विशेष भीड और उत्साह देखने में आता है. पूजा-पाठ के बाद पारम्परिक मिठाई और उपहार दिये जाते है. दशमी तिथि में बडे बडे मैदानों में मेलों का आयोजन किया जाता है. और रावण-कुम्भकरण-मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाता है. जिसे देखने के लिये हजारों की संख्या में लोग उमड पडते है.
दशहरे पर हिमाचल में मेलों का आयोजन (Dussehra Fair in Himachal)
पूरे भारत में एक वर्ष में जितने मेलों का आयोजन किया जाता है. उन मेलों में से आधे से अधिक सिर्फ हिमाचल प्रदेश में आयोजित किये जाते है. यहां आयोजित होने वाले अन्य मेलों में से एक मेला दशहरा पर्व पर आयोजित किया जाता है. यह मेला "कुल्लू का दशहरा मेला " नाम से प्रसिद्ध है. हिमाचल के कुल्लू शहर में लगने वाले इस मेले की यह खासियत है, कि एक सप्ताह पहले ही इस पर्व की तैयारियां प्रारम्भ हो जाती है. मेले का आयोजन बडे पैमाने पर किया जाता है.
मेले के अवसर पर स्त्रियां और पुरुष सभी सज-धज कर, अपने पारम्परिक वाद्य यन्त्र लेकर जिनमें ढोल, नगाडे, बांसुरी, बिगुल आदि लेकर मेले में शामिल होते है. हिमाजल प्रदेश मुख्यत: ग्रामीण प्रदेश होने के कारण यहां प्राकृतिक वस्तुओं को पूजा में विशेष महत्व दिया जाता है. इनके देवता में भी रघुनाथ जी की पूजा की जाती है. मेले में नृ्त्य नाटिकाओं का भी आयोजन किया जाता है." रघुनाथ" अर्थात भगवान श्री राम की वंदना करने से दशहरे मेले का आरम्भ किया जाता है. दशमी के दिन इस उत्सव में भगवान श्री राम की शोभा यात्रा निकाली जाती है.
दशहरे पर्व के बारे में संक्षेप में कहे तो यह त्यौहार पूरे देश को बांध कर रखता है. हमारे देशवासियों को मिलकर रहना सिखाता है.
दशहरे का कोटा मेला (Kotta Fair on Dussehra)
हिमाचल के कुल्लू मेले की श्रेणी में ही "कोटा-दशहरा मेला" आता है. यह मेला आश्चिन मास की पंचमी से भरने लगता है. इस मेले में पूरे देश से पशु व्यापारी एकत्रित होते है. इसलिये इस मेले का व्यापारिक महत्व भी है. अष्टमी के दिन यहां कुल देवी आशापुरा देवी का पूजन किया जाता है. व नवमी तिथि के दिन प्राचीन काल में यहां देवी के मंदिरों में शास्त्रों की पूजा की जाती थी.
विजय दशमी के दिन रावण वध की सवारी निकाली जाती है. कई तोपें चलाई जाती है, रावण पर तीर चलाये जाते है. इसके बाद रावण के पुतले का दहन किया जाता है. रावण दहन के बाद बच्चे, बडे मेले में लगने वाले व्यंजनों का मजा लेते है. और बच्चे अपन मनपसंद खिलौने खरीदते है.