दुर्गाष्टमी पर्व 2024 (Durgashtami Festival 2024)
चैत्र शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन भवानी व्रत करने का विधि विधान है. वर्ष 2024 में यह व्रत 22 मार्च से आरंभ होंगे और 30 मार्च में संपन्न होंगे इस दिन मां भवानी प्रकट हुई थी. इस दिन विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए. दुर्गा अष्टमी के दिन माता दुर्गा के लिये व्रत किया जाता है. नवरात्रे में नौ रात्रि पूरी होने पर नौ व्रत पूरे होते है. इन दिनों में देवी की पूजा के अलावा दूर्गा पाठ, पुराण पाठ, रामायण, सुखसागर, गीता, दुर्गा सप्तशती की आदि पाठ श्रद्वा सहित करने चाहिए. इस दिन भगवान मत्यस्य जयन्ती भी मध्यान्ह अवधि में मनाई जाती है.
दूर्गा अष्टमी व्रत विधि (Durgashtami Fast Method)
इस व्रत को करने वाले उपवासक को इस दिन प्रात: सुबह उठना चाहिए. और नित्यक्रमों से निवृत होने के बाद सारे घर की सफाई कर, घर को शुद्ध करना चाहिए. इसके बाद साधारणत: इस दिन खीर, चूरमा, दाल, हलवा आदि बनाये जाते है. व्रत संकल्प लेने के बाद घर के किसी एकान्त कोने में किसी पवित्र स्थान पर देवी जी का फोटो तथा अपने ईष्ट देव का फोटो लगाया जाता है.
जिस स्थान पर यह पूजन किया जा रहा है, उसके दोनों और सिंदूर घोल कर, त्रिशुल व यम का चित्र बनाया जाता है. ठिक इसके नीचे चौकी बनावें. त्रिशुल व यम के चित्र के साथ ही एक और 52 व दूसरी और 64 लिखें. 52 से अभिप्राय 52 भैरव है, तथा 64 से अभिप्रात 64 जोगिनियां है. साथ ही एक ओर सुर्य व दूसरी और चन्द्रमा बनायें.
किसी मिट्टी के बर्तन या जमीन को शुद्ध कर वेदी बनायें. उसमें जौ तथा गेंहूं बोया जाता है. कलश अपने सामर्थ्य के अनुसर सोना, चांदी, तांबा या मिट्टी का होना चाहिए. कलश पर नारियल रखा जाता है. नारियल रखने से पहले नीचे किनारे पर आम आदि के पत्ते भी लगाने चाहिए.
कलश में मोली लपेटकर सतिया बनाना चाहिए. पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए. पूजा करने वाले का मुंह दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए. दीपक घी से जलाना चाहिए. नवरात्र व्रत का संकल्प हाथ में पानी, चावल, फूल तथा पैसे लेकर किया जाता है. इसके बाद श्री गणेश जी को चार बार चल के छींटे देकर अर्ध्य, आचमन और मोली चढाकर वस्त्र दिये जाते है. रोली से तिलक कर, चावल छोडे जाते है. पुष्प चढायें जाते है, धूप, दीप या अगरबत्ती जलाई जाती है.
भोग बनाने के लिये सबसे पहले चावल छोडे जाते है. इसके बाद नैवेद्ध भोग चढाया जाता है. जमीन पर थोडा पानी छोडकर आचमन करावें, पान-सुपारी चढाई जाती है. लौंग, इलायची भी चढायें. इसी प्रकर देवी जी का पूजन भी करें. और फूल छोडे, और सामर्थ्य के अनुसार नौ, सात, पांच,तीन या एक कन्या को भोजन करायें. इस व्रत में अपनी शक्ति के अनुसार उपवास किया जा सकता है. एक समय दोपहर के बाद अथवा रात को भोजन किया जा सकता है. पूरे नौ दिन तक व्रत न हों, तो सात, पांच या तीन करें, या फिर एक पहला और एक आखिरी भी किया जा सकता है.
व्रत की अवधि में धरती पर शुद्ध विछावन करके सोवें, शुद्धता से रहें, वैवाहिक जीवन में संयम का पालन करें, क्षमा, दया, उदारता और साहस बनाये रखें. साथ ही लोभ, मोह का त्याग करें. सायंकाल में दीपक जलाकर रखना चाहिए. नवरात्र व्रत कर कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए.
देवी जी को वस्त्र, सामान इत्यादि चढाने चाहिए. जिसमें चूडी, आभूषण, ओढना या घाघरा, धोती, काजल, बिन्दी इत्यादि और जो भी सौभाग्य द्रव्य हो, वे सभी माता को दान करने चाहिए. रोजाना जोत तथा आरती में घर वालों को शामिल करना चाहिए. इन दिनों ब्राह्माण से दुर्गा सप्तशती पाठ कराना चाहिए. और अष्टमी के दिन माता को भोग लगाकर, कन्याओं को भोजन कराने के बाद, उनके पैर छुने चाहिए.