सरस्वती पूजन 2024, 26 जनवरी (Saraswati Pooja, 5th January, 2024)

saraswati_pooja या कुन्देन्दु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता !

या वीणावरदंडमंडितकरा, या श्वेत पद्मासना !!

या ब्रह्मास्च्युत शंकर प्रभृतिर्भिरदेवाः सदाबंदिताः

सा मां पातु सरस्वती देवी, या निशेष जाड़यापहा !!


सरस्वती वाणी एवं ज्ञान की देवी है. ज्ञान को संसार में सभी चीजों से श्रेष्ठ कहा गया है. इस आधार पर देवी सरस्वती सभी से श्रेष्ठ हैं. कहा जाता है कि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी एवं काली माता भी विराजमान रहती हैं. इसका प्रमाण है माता वैष्णो का दरबार जहॉ सरस्वती, लक्ष्मी, काली ये तीनों महाशक्तियां साथ में निवास करती हैं. जिस प्रकार माता दुर्गा की पूजा का नवरात्रे में महत्व है उसी प्रकार बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का महत्व है.


सरस्वती पूजा के दिन यानी माघ शुक्ल पंचमी के दिन सभी शिक्षण संस्थानों में शिक्षक एवं छात्रगण सरस्वती माता की पूजा एवं अर्चना करते हैं. सरस्वती माता कला की भी देवी मानी जाती हैं अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग भी माता सरस्वती की विधिवत पूजा करते हैं. छात्रगण सरस्वती माता के साथ-साथ पुस्तक, कापी एवं कलम की पूजा करते हैं. संगीतकार वाद्ययंत्रों की, चित्रकार अपनी तूलिका की पूजा करते हैं.


सरस्वती उत्पत्ति कथा (Saraswati Birth Story)

सृष्टि के निर्माण के समय सबसे पहले महालक्ष्मी देवी प्रकट हुईं. इन्होंने भगवान शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का आह्वान किया. जब ये तीनों देव उपस्थित हुए. देवी महालक्ष्मी ने तब तीनों देवों से अपने-अपने गुण के अनुसार देवियों को प्रकट करने का अनुरोध किया. भगवान शिव ने तमोगुण से महाकली को प्रकट किया, भगवान विष्णु ने रजोगुण से देवी लक्ष्मी को तथा ब्रह्मा जी ने सत्वगुण से देवी सरस्वती का आह्वान किया. जब ये तीनो देवी प्रकट हुईं तब जिन देवों ने जिन देवियों का आह्वान किया था उन्हें वह देवी सृष्टि संचालन हेतु महालक्ष्मी ने भेंट किया. इसके पश्चात स्वयं महालक्ष्मी माता लक्ष्मी के स्वरूप में समा गईं.


सरस्वती वाणी की देवी (Saraswati - The Goddess of Music)

सृष्टि का निर्माण कार्य पूरा करने के बाद ब्रह्मा जी ने जब अपनी बनायी सृष्टि मृत शरीर की भांति शांत है. इसमें न तो कोई स्वर है और न वाणी. अपनी उदासीन सृष्टि को देखकर ब्रह्मा जी को अच्छा नहीं लगा. ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास गये और अपनी उदासीन सृष्टि के विषय में बताया. ब्रह्मा जी से तब भगवान विष्णु ने कहा कि देवी सरस्वती आपकी इस समस्या का समाधान कर सकती हैं. आप उनका आह्वान किया कीजिए उनकी वीणा के स्वर से आपकी सृष्टि में ध्वनि प्रवाहित होने लगेगी.


भगवान विष्णु के कथनानुसार ब्रह्मा जी ने सरस्वती देवी का आह्वान किया. सरस्वती माता के प्रकट होने पर ब्रह्मा जी ने उन्हें अपनी वीणा से सृष्टि में स्वर भरने का अनुरोध किया. माता सरस्वती ने जैसे ही वीणा के तारों को छुआ उससे 'सा' शब्द फूट पड़ा. यह शब्द संगीत के सप्तसुरों में प्रथम सुर है.


इस ध्वनि से ब्रह्मा जी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचार होने लगा. हवाओं को, सागर को, पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को वाणी मिल गयी. नदियों से कलकल की ध्वनि फूटने लगी. इससे ब्रह्मा जी अति प्रसन्न हुए उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से सम्बोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया. माता सरस्वती का एक नाम यह भी है. सरस्वती माता के हाथों में वीणा होने के कारण इन्हें वीणापाणि भी कहा जाता है.


वसन्त पंचमी सरस्वती का जन्मोत्सव (Vasant Panchami : The Birthday of Goddess Saraswati)

वसन्त पंचमी के दिन सरस्वती माता की पूजा की प्रथा सदियों से चली आ रही है. मान्यता है सृष्टि के निर्माण के समय देवी सरस्वती बसंत पंचमी के दिन प्रकट हुई थीं अत: बसंत पंचमी को सरस्वती माता का जन्मदिन माना जाता है. सरस्वती माता का जन्मदिन मनाने के लिए ही माता के भक्त उनकी पूजा करते हैं.


सरस्वती पूजनोत्सव (Saraswati Pooja Celebration)

ज्ञान एवं वाणी के बिना संसार की कल्पना करना भी असंभव है. माता सरस्वती इनकी देवी हैं अत: मनुष्य ही नहीं, देवता एवं असुर भी माता की भक्ति भाव से पूजा करते हैं. सरस्वती पूजा के दिन लोग अपने-अपने घरों में माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर की पूजा करते हैं. विभिन्न पूजा समितियों द्वारा भी सरस्वती पूजा के अवसर पर पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है.


सरस्वती पूजा की विधि (Method of Saraswati Pooja)

सरस्वती पूजा करते समय सबसे पहले सरस्वती माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखना चाहिए. इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा करनी चाहिए. इसके बाद माता सरस्वती की पूजा करें. सरस्वती माता की पूजा करते समय उन्हें सबसे पहले आचमन एवं स्नान कराएं. इसके बाद माता को फूल एवं माला चढ़ाएं. सरस्वती माता को सिन्दुर एवं अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करनी चाहिए. बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल भी अर्पित किया जाता है.

देवी सरस्वती श्वेत(सफेद) वस्त्र धारण करती हैं अत: उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं. सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं. प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के अलावा बूंदिया अर्पित करना चाहिए. इस दिन सरस्वती माता को मालपुए एवं खीर का भी भोग लगाया जाता है.


सरस्वती माता का हवन (Havan of Goddess Saraswati)

सरस्वती पूजा करने बाद सरस्वती माता के नाम से हवन करना चाहिए. हवन के लिए हवन कुण्ड अथवा भूमि पर सवा हाथ चारों तरफ नापकर एक निशान बना लेना चाहिए. इसे कुशा से साफ करके गंगा जल छिड़क कर पवित्र करने के बाद. आम की छोटी-छोटी लकडि़यों को अच्छी तरह बिछा लें और इस पर अग्नि प्रजज्वलित करें. हवन करते समय गणेश जी, नवग्रह के नाम से हवन करें. इसके बाद सरस्वती माता के नाम से "ॐ श्री सरस्वत्यै नमः " इस मंत्र से 108 बार हवन करना चाहिए. हवन के बाद सरस्वती माता की आरती करें और हवन का भभूत लगाएं.


सरस्वती विसर्जन (Saraswati Immersion)

माघ शुक्ल पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा के बाद षष्ठी तिथि को सुबह माता सरस्वती की पूजा करने के बाद उनका विसर्जन कर देना चाहिए. संध्या काल में मूर्ति को प्रणाम करके जल में प्रवाहित कर देना चाहिए.