करवा चौथ व्रत - 01 नवंबर 2024 (Karva Chauth Vrat)
करवा चौथ व्रत मुख्य रुप से उतरी भारत में एक पर्व के समान मनाया जाता है. करवा चौथ का पर्व विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखने के लिये करती है. तथा माता का पूजन कर अपने पति की लम्बी आयु के लिये प्रार्थना करती है. इस व्रत में सारे दिन व्रत करने के बाद सायं काल में चांद देखने के बाद व्रत समाप्त किया जाता है. व्रत के दिन भगवान शिव, पार्वती जी, श्री गणेश जी, कार्तिकेय जी और चांद की पूजा की जाती है.
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाने वाला व्रत (Vrat Which is Done on the 4th Day of the krishna Paksh in Kartik Month)
इस व्रत पर मुख्य रुप से शिव पार्वती का पूजन किया जाता है. कार्तिक मास की कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्थी पर किया जाने वाला यह व्रत उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, बिहार और मध्य प्रदेश में विशेष रुप से मनाया जाता है. यूं भी हमारे पुराणों के अनुसार भगवान शिव और पार्वती का पूजन पारिवारिक सुख-शान्ति और समृ्द्धि के लिये किया जाता है. पति-पत्नी के युगल के रुप में शिव - पार्वती अपना धार्मिक व पौराणिक दोनों महत्व रखते है.
करवा चौथ कथा (Karva Chauth Story)
इस पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित है, जिनमें एक बहन और सात बहनों की कथा बहुत प्रसिद्ध है. बहुत समय पहले की बात है, एक लडकी थी, उसके साथ भाई थें, उसकी शादी एक राजा से हो गई. शादी के बाद पहले करवा चौथ पर वो अपने मायके आ गई. उसने करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी. वह बडी बेसब्री से चांद निकलने की प्रतिक्षा कर रही थी.
उसके सातों भाई उसकी यह हालत देख कर परेशान हो गयें. वे सभी अपने बहन से बेहद स्नेह करते थें. उन्होने अपनी बहन का व्रत समाप्त कराने की योजना बनाई. और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया देखा दी. बहन ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर, भोजन खा लिया. बहन के व्रत समाप्त करते ही उसके पति की तबियत खराब होने लगी.
अपने पति की तबियत खराब होने की खबर सुन कर, वह अपने पति के पास ससुराल गई. और रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिलें. पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृ्त्यु हो चुकी है, क्योकि तुमने नकली चांद को देखकर व्रत समाप्त कर लिया था.
यह सुनकर बहन ने अपनी भाईयों की करनी के लिये क्षमा मांगी. माता पार्वती ने कहा" कि तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जायेगा. लेकिन इसके लिये तुम्हें, करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से करना होगा. इसके बाद माता पार्वती ने करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई. माता के कहे अनुसार बहन ने फिर से व्रत किया और अपने पति को वापस प्राप्त कर लिया.
करवा चौथ का व्रत अपने पति के स्वास्थय और दीर्घायु के लिये किया जाने वाला व्रत है. उत्तरी भारत में यह व्रत आज श्रद्धा व विश्वास की सीमाओं से आगे निकलकर, फैशन और जमाने के नये रंग में रंग गया.
करवा चौथ नया रुप (Karva Chauth in Modern Time)
करवा चौथ के व्रत का महत्व समय के साथ और भी बढ गया है. समय के साथ आधुनिक और शिक्षित महिलाओं के वर्ग में जहां एक ओर अन्य व्रतों का प्रचलन कम हुआ है, वही करवा चौथ आज अपने प्रेमी, होने वाले पति और जीवन साथी के प्रति स्नेह व्यक्त करने का प्रर्याय बन गया है. आज यह केवल सुहागिनों का व्रत ही न रहकर, पतियों के द्वारा अपनी पत्नियों के लिये रखा जाने वाला पहला व्रत बन गया है.
देखने में आया है, कि इस व्रत को पति और पत्नी दोनों रखते है, एक-दूसरे के लिये पूरे दिन व्रत करने के बाद रात को किसी रेस्तरां में जाकर दोनों साथ में भोजन भी करते है. यानी इस व्रत का मूल आधार आज आपसी प्रेम और समर्पण रह गया है. कथा, सुनने, निर्जल रहने, चांद को अर्ध्य देने और पति द्वारा पानी पिलाए जाने जैसी रस्में भी निभाने कि पूरी कोशिश कर ली जाती है. पर नौकरी पेशा होने पर सभी रीतियां विधि विधान के अनुसार तो नहीं होती है.
करवा चौथ पर सजते बाजार (Decorated Markets on karva Chauth)
करवा चौथ पर महिलाओं को व्रत करने के साथ ही सजना और संवरना भी बहुत पसन्द है. इस दिन महिलाएं सुन्दर वस्त्र पहनती है. साडियों और फैशन के अनुसार वस्त्रों की दुकानों महिलाओं की भीड से भरी होती है. ब्यूटी पार्लर और सौन्दर्यवर्धक स्थानों पर भी महिलाओं की रुचि विशेष रुप से देखी जा सकती है. महिलओं में न सिर्फ इस दिन श्रंगार कराने आती है. बल्कि हाथों और पैरों में मेंहदी का बाजार भी करवा चौथ पर लाखों रुपये की आय कमा लेता है. श्रंगार कराने के लिये लम्बी लम्बी कतार में खडी होकर प्रतिक्षा करना भी इन्हें इस दिन मंजूर होता है.
आपसी सामंजस्य को बढाता करवा चौथ (Karva Chauth, increases Co-ordination)
करवा चौथ के व्रत ने बाजारीकरण को कितना लाभ पहुंचाया है, यह तो स्पष्ट है, परन्तु इस पर्व से एक और जो लाभ हुआ है, वह है, यह व्रत वैवाहिक जीवन को सफल और खुशहाल बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. क्योकि करवा़चौथ अब केवल लोक परम्परा न रहकर, भावनाओं के आदान-प्रदान का पर्व बन गया है.
हमारे समाज की यही खासियत है कि हमारे यहां पौराणिकता में नवीनता का अंश लिये होता है. एक समय था जब यह पर्व पत्नियों के द्वारा किया जाता था, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था. लेकिन आज यह पति-पत्नी के सामंजस्य का प्रतीक बन गया है. समय ने इस व्रत पर्व को अधिक संवेदनशील और प्रेम की अभिव्यक्ति का पर्व बना दिया है. दोनों के एक -दुसरे के लिये व्रत करने से अहसास का बंधन मजबूत होता है.
समय के साथ बदलते महानगरीय जीवन में जहां पति-पत्नी एक द्सूरे के लिये समय कम निकाल पाते है, इसका कारण दोनों का नौकरी पेशा होना है. समय की कमी के कारण ही दोनों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अवसर भी कमी ही मिल पाते है.
करवा चौथ पूजन विधि (Method of Karva Chauth Puja)
करवा चौथ का व्रत करने के लिये प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर, प्रात भगवान शिव पार्वती की पूजा की जाती है. कोरे करवे में पानी भरकर, करवा चौथ का कलैण्डर लगा कर, पूजा कि जाती है. सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर सायं काल में फिर से पूजा कर व्रत की कथा का श्रवण किया जाता है. सायं काल में चांद की पूजा कर इस व्रत को समाप्त किया जता है.