शिवरात्रि का समय भगवान शिव की महारात्रि का समय होता है. इस समय पर संपूर्ण रात्रि के समय जाग्रित रह कर साधना एवं मंत्र जाप करना शुभ माना गया है. यह समय योग साधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. रात्रि प्रहर का समय पूजा का विशेष समय भी माना जाता है. शिवरात्रि का समय वैसे हर माह को चतुर्दशी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है. शिवरात्रि का समय हर साल माह को मनाते हैं फाल्गुन माह और सावन माह में मनाई जाने वाली शिवरतरि काफी अधिक विशेष हो जाती हैं क्योंकि एक तिथि भगवान शिव के विवाह और दूसरी सावन माह के समय पर आती है.
शिवरात्रि पूजा रात में चार बार की जा सकती है. चार बार शिव पूजा करने के लिए चार प्रहर प्राप्त करने के लिए पूरी रात की अवधि को चार में विभाजित किया जाता है. जो भक्त एकल पूजा करना चाहते हैं, उन्हें इसे मध्यरात्रि के दौरान करना चाहिए.
महा शिवरात्रि के पीछे का महत्व
हिंदू धर्म में हर पर्व एवं व्रत का महत्व मन एवं शरीर को शुद्ध करने का एक महत्वपूर्ण समय होता है. हमें प्रकृत्ति के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा प्रकट करने का भी ये समय होता है. सृष्टि में मौजूद ऊर्जाओं का संतुलित स्वरुप पाने का भी ये विशेष समय होता है. शिवरात्रि भी इन्हीं में एक महत्पूर्ण समय होता है, जो हमें ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. उपवास दो शब्दों में विभाजित है, उप का अर्थ है निकट और वास का अर्थ है रहना. उपवास का अर्थ शक्ति स्वरुप के निकट रहना है. व्रत या उपवास के साथ कई स्वास्थ्य लाभ जुड़े हैं जिनमें शरीर की हर प्रकार की विषाक्ता को दूर करना, रक्तचाप में सुधार करना, कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करना, चयापचय को बढ़ावा देना और न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों को रोकना भी शामिल है.
शिव विवाह कथा
शिवरात्रि के त्यौहार से जुड़ी एक और सबसे लोकप्रिय महाकाव्य शिव पुराण की कथा भगवान शिव और मां पार्वती के बीच विवाह की मान्यता को दर्शाती है. मां सती की मृत्यु के बाद, शिव ने एक साधु की तरह रहने योग साधना में रहने लगे और घोर तपस्या-ध्यान किया. माँ सती ने दक्ष प्रजापति के घर माँ पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया. जीतने के लिए, महादेव का हृदय मां पार्वती ने महादेव का ध्यान जीतने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की, माँ पार्वती के प्रेम से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया.
भगवान शिव और समुद्र मंथन कथा
श्रेष्ठ होने के लिए, देवों और असुरों ने अमरता प्राप्त करने के लिए दिव्य अमृत की तलाश में समुद्र मंथन करना शुरू कर दिया. देवों और असुरों ने मंदराचल पर्वत की सहायता से वासुकी को रस्सी के रूप में समुद्र मंथन किया. समुद्र मंथन में हलाहल कालकूट विष से भरा एक घड़ा भी प्रकट हुआ जिसे भगवान शिव ने ग्रहण किया और उसके प्रभाव से भगवान की अग्नि को समाप्त करने के लिए सभी देव-दैत्यों ने उन पर जल से अभिषेक किया जिसके बाद से शिवरात्रि का पर्व बना.
चार प्रहर की पूजा में किया जाने वाला अभिषेक और पूजा सामग्री
महा शिवरात्रि की पूजा विधि के अनुसार, शिव लिंग अभिषेक को छह अलग-अलग सामग्रियों से करना होता है. चार प्रहर की पूजा के दौरान इन सामग्रियों का उपयोग करन उत्तम होता है.
दूध का अभिषेक करने से पवित्रता का आशीर्वाद मिलता है.
दही का अभिषेक समृद्धि और संतान के सुख को देता है.
शहद से अभिषेक करने के लिए मधुर वाणी की प्राप्ति होती है. .
घी से अभिषेक करने से सफलताओं की प्राप्ति होती है.
चीनी से किया गया अभिषेक खुशी के लिए किया जाता है.
पानी से अभिषेक करने से पवित्रता प्राप्त होती है.
चार प्रहर पूजा करने वाले भक्तों को पहले प्रहर के दौरान जल अभिषेक, दूसरे प्रहर के दौरान दही अभिषेक, तीसरे प्रहर के दौरान घी अभिषेक और चौथे प्रहर के दौरान शहद अभिषेक करना चाहिए.
शिवलिंग चार प्रहर पूजा नियम
अभिषेक की रस्म के बाद शिव लिंग को बिल्वपत्र की माला से सजाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि बिल्वपत्र भगवान शिव को शीतलता प्रदान करता है. उसके बाद शिव लिंग पर चंदन या कुमकुम लगाया जाता है जिसके बाद दीपक और धूप जलाई जाती है. भगवान शिव को मदार का फूल शामिल है जिसे आक के रूप में भी जाना जाता है, विभूति जिसे भस्म भी कहा जाता है.
पूजा के दौरान नमः शिवाय – ऊँ नमः शिवाय मंत्र जाप करना चाहिए. भक्तों को अगले दिन स्नान करने के बाद व्रत तोड़ना चाहिए. व्रत का अधिकतम लाभ पाने के लिए भक्तों को सूर्योदय के बीच और चतुर्दशी तिथि के अंत से पहले उपवास तोड़ना चाहिए.चार प्रहर पूजा करने वाले भक्तों को पहले प्रहर के दौरान जल अभिषेक, दूसरे प्रहर के दौरान दही अभिषेक, तीसरे प्रहर के दौरान घी अभिषेक और चौथे प्रहर के दौरान शहद अभिषेक करना चाहिए.
चार प्रहर पूजा दिन ओर रात्रि मुहूर्त समय
शिव की एक दिन में चार बार पूजा मुख्य रूप से शिवरात्रि या शिव चतुर्दशी अमावस्या से पहले की तिथि या अमावस्या के दिन के दौरान की जाती है. इस पूजा को हिंदू धर्म में चार प्रहर पूजा के रूप में जाना जाता है. यह मूल रूप से एक तिथि या दिन को चार बराबर अवधियों में विभाजित करते हैं . चार प्रहर की पूजा का रात्रि समय भी होता है जिसे रात्रि के चार प्रहर की पूजा कहा जाता है.
प्रात:काल समय पूजा
शिव की चार प्रहर पूजा करने वाले भक्त को सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए. सफेद रंग की साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए और सबसे पहले मन ही मन गणेश जी की पूजा करनी चाहिए. सूर्योदय के साथ ही प्रथम पूजा आरंभ करनी चाहिए दीपक जलाना चाहिए और बिल्वपत्र अर्पित लरना चाहिए, जल से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. कपूर जलाएं और आरती करना चाहिए. और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं. ऊँ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए..
दोपहर समय की पूजा
शिवलिंग को पानी से धोकर साफ कर तैयार करना चाहिए. दीपक जलाकर, बिल्वपत्र चढ़ा कर और फिर दही से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. कपूर जलाना चाहिए और आरती करना चाहिए और केसर से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए ऊँ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए.
प्रदोष पूजा
दही से शिवलिंग को धोकर और साफ करके शिवलिंग तैयार करना चाहिए. दीपक प्रज्जवलित करके, बिल्वपत्र चढ़ाना चाहिए और फिर घी से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. कपूर जला कर आरती करनी चाहिए. शहद से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए ऊं नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए.
मध्यरात्रि पूजा
घी के प्रसाद से शिवलिंग को धोकर और साफ करके शिवलिंग तैयार करना चाहिए. दीपक जलाना चाहिए बिल्वपत्र चढ़ाकर फिर घी से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. कपूर जला कर आरती करना चाहिए. घी से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए. ऊँ नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए.
शिवरात्रि रात्रि चार प्रहर पूजा मुहूर्त 2022
सावन शिवरात्रि मंगलवार, 26 जुलाई 26, 2022
निशिता काल पूजा समय रात्रि 00:07 से 00:49 (जुलाई 27)
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय – 19:16 से 21:52
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय – 21:52 से 00:28 ( जुलाई 27)
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय – 00:28 से 03:04 (जुलाई 27)
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय – 03:04 से 05:39 (जुलाई 27)
शिवरात्रि पारण समय – 05:39 से 15:51 (27 जुलाई)
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – 26 जुलाई 26, 2022 को 18:46
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 27 जुलाई , 2022 को 21:11