ऋषि आरूणि एक योग्य और कर्तव्य निष्ठ महर्षि थे, जिनकी गुरू भक्ति के समक्ष सभी सभी नतमस्तक हुए. ऋषि आरूणि का उल्लेख आरूणकोपनिषद एवं कठउपनिषद में भी देखा गया है. उपनिषद में इनके चरित्र का बहुत विज्ञ रूप प्राप्त होता है. इसलिए अरुणि जी को एक महान उपनिषद् ऋषि भी कहा जाता है. अरुणि ऋषि जी या उद्दालक या उद्दालक अरुणि के नाम से भी जाने जाते हैं इन्हें उपमन्यु के साथ साथ एक और नाम ‘वेद’ अरुणि भी प्राप्त है. यह ऋषि धौम्य के शिष्य थे.
गुरू भक्त आरुणि | Guru Bhakt Aruni
ऋषि धौम्य, वन में आश्रम बनाकर रहा करते थे यह विद्वान वेदों के ज्ञाता और अनेक विद्याओं में कुशल और पारंगत थे. उनके पास बहुत से बालक शिक्षा ग्रहण करने आते थे इन्हीं सभी शिष्यों में से एक आरुणि नाम का एक शिष्य भी था. वह एक आज्ञाकारी शिष्य था तथा सदा अपने गुरु धौम्य के आदेशों का पालन किया करता था. पढने में सामान्य ही था किंतु आज्ञाकारी बहुत था. उसके इसी गुणों के कारण वह अपने गुरु का योग्य शिष्य था.
उसकी गुरू भक्ति के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जब एक बार घनघोर वर्षा होने लगी तो आश्रम में चारों ओर जल का भराव होने लगा. आश्रम के पास जो खेत थे वह भी जल में डुबने लगे. यह दशा देखकर ऋषि धोम्य को चिन्ता होने लगी की यदि खेतों में अधिक जल भर गया तो फ़सल नष्ट हो जाएंगी इस कारण बहुत नुकसान होगा तब वह अपने शिष्य आरुणि को खेतों में जाने को कहते हैं ताकी वह देख सके की वहां पानी जमा तो नहीं हो रहा या खेतों पर लगाई बाड़ तो नहीं टूट गइ यदि ऐसा हो गया है तो वह उस जाकर बंद कर दे.
ऋषि धौम्य का आदेश पाकर आरुणि खेतों की ओर निकल पड़ते हैं वह चारों ओर नज़र देखते हैं तभी एक जगह वह एक मेंड़ को टूटा देखते हैं जिस कारण पानी बड़े वेग से खेतों में आने लगता है. आरुणि उस नाले या मेंड़ को रोकने का प्रयास करते हैं परंतु बहुत परिश्रम करने पर भी वह नाला ठीक नहीं हो पाता. तब आरुणि को एक उपाय सूझता है और वह स्वंय उस स्थान पर लेट जाते हैं इस कारण जल का बहाव रुक जाता है, धीरे-धीरे वर्षा कम होने लगी.
इस प्रकार वह जल को रोक देता है. रात होने लगती है व शिष्य के न लौटने पर ऋषि धौम्य को चिंता सताने लगती है तब ऋषि धौम्य अपने कुछ शिष्यों को साथ लेकर आरुणि को खोजने के लिए खेतों की ओर चल देते हैं. खेत पर उसे ढूंढने पहुंचे तो देखते हैं कि आरुणि पानी को रोके मेड़ के पास लेटा हुआ है उसे देखते ही गुरुजी भावविभोर हो जाते हैं.
वह उसे उठाकर गले से लगा लेते हैं. वह उसे कहते हैं कि तुम एक आदर्श शिष्य के रूप में सदा याद किए जाओगे तथा मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हुँ कि तुम दिव्य बुद्धि प्राप्त करोगे तथा सभी शास्त्रों में निपुण होगे. आज से तुम्हारा नाम उद्दालक के रूप में प्रसिद्ध होगा जिसका अर्थ है जल से निकला या उत्पन्न हुआ. इस कारण आरुणि ऋषि को उद्दालक के नाम से जाना गया तथा बिना पढ़े ही इन्हें सारी विद्याएं प्राप्त हो गईं.
ऋषि उद्दालक अरुणी संबंधी अन्य तथ्य | Other Information related to Saint Uddalak Aruni
कठ उपनिषद में उद्दालक अरुणि के विषय में बताया गया है कि वह एक महान ऋषि थे जिन्हें वाजश्रवस के नाम से भी जाना जाता था यह अनेक यज्ञ एवं दान पुण्य किया करते थे. वहीं दूसरी ओर Chāndogya उपनिषद के अनुसार, उद्दालक अरुणि का बेटा था और इसलिए उद्दालक अरुणी के रूप में जाने गए.
मंगलनाथ मंदिर भारत की प्रमुख धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित है जहाँ के पावन सानिध्य को पाकर सभी धन्य हो जाते हैं जहाँ जाकर सभी के पाप स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं. उज्जैन के प्रमुख मंदिरों में से एक यह मंदिर भक्तों की सभी विपदाओं को हर लेता है पुराणों के अनुसार उज्जैन को मंगल की जननी भी कहा जाता है. इसी कारण इस मंदिर का विशेष महत्व रखता है पूरे भारत से लोग यहां पर आकर मंगल देव की पूजा अराधना करते हैं तथा जिनकी कुंडली में मंगल भारी होता है वह मंगल शांति हेतु यहाँ पहुँचते हैं.
आदि शंकराचार्य एक महान हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे. आदि शंकराचार्य जी का जन्म 788 ईसा पूर्व केरल के कालड़ी में एक नंबूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इसी उपलक्ष में वैशाख मास की शुक्ल पंचमी के दिन आदि गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है. इस वर्ष आद्यगुरू शंकराचार्य जयंती
गंगा जयंती हिन्दुओं का एक प्रमुख पर्व है. वैशाख शुक्ल सप्तमी के पावन दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई इस कारण इस पवित्र तिथि को गंगा जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष 2025 में यह जयन्ती 05 मई को मनाई जाएगी.
वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस कहा जाता है जिस कारण इसे मां बगलामुखी जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष 2025 में यह जयन्ती 05 मई, को मनाई जाएगी. इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए. बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में हर्षोउल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ भजन संध्या एवं विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है.
भारत की मध्ययुगीन संत परंपरा में रविदास या कहें रैदास जी का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है. संत रैदास जी कबीर के समसामयिक थे. संत कवि रविदास का जन्म वाराणसी के पास एक गाँव में सन 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था रविवार के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम रविदास रखा गया. रविदास जी को रामानन्द का शिष्य माना जाता है. इस वर्ष 2025 में यह रविदास जयन्ती 12 फरवरी के दिन मनाई जाएगी.
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है. भगवान श्री नृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख देवता हैं, पौराणिक मान्यता एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था. इस वर्ष 2025 में यह जयन्ती 11 मई को मनाई जाएगी.
वर्धमान महावीर का जन्मदिन महावीर जयन्ती के रुप मे मनाया जाता है. महावीर जयंती 10 अप्रैल 2025, के दिन मनाई जाएगी. वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री आदिनाथ की परंपरा में चौबीस वें तीर्थंकर हुए थे. इनका जीवन काल पांच सौ ग्यारह से पांच सौ सत्ताईस ईस्वी ईसा पूर्व तक माना जाता है. वर्धमान महावीर का जन्म एक क्षत्रिय राजकुमार के रूप में एक राज परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ एवं माता का नाम प्रियकारिणी था. उनका जन्म प्राचीन भारत के वैशाली राज्य में हुआ था.
गुरू नानक देव जी के जन्म दिवस को गुरू नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है. गुरू नानक देव सिखों के प्रथम गुरू थे. इनका जन्म तलवंडी रायभोय (ननकाना साहब) नामक स्थान पर हुआ था. इनके जन्म दिवस को प्रकाश उत्सव (प्रकाशोत्सव ) भी कहते हैं, जो कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन मनाया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा को सिख श्रद्धालु गुरु नानक जी के प्रकटोत्सव के रूप में धूम-धाम से मनाते हैं. गुरु नानकदेव एक समन्वयवादी संत थे. गुरु ग्रंथ साहब में सभी संतों एवं धर्मो की उक्तियों को सम्मिलित कर उन्होंने समन्वयवादी दृष्टिकोण का परिचय दिया. वह आजीवन परोपकार एवं दीन-दुखियों की सेवा में लगे रहे.