आदि शंकराचार्य जयंती | Adi shankaracharya jayanti | Aadi shankaracharya | Aadi Shankaracharya Jayanti 2024

आदि शंकराचार्य एक महान हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे. आदि शंकराचार्य जी का जन्म 788 ईसा पूर्व केरल के कालड़ी में एक नंबूदरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इसी उपलक्ष में वैशाख मास की शुक्ल पंचमी के दिन आदि गुरु शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है. इस वर्ष आद्यगुरू शंकराचार्य जयंती
12 मई 2024, के दिन मनाई जाएगी. हिन्दू धार्मिक मान्यता अनुसार इन्हें भगवान शंकर का अवतार माना जाता है यह अद्वैत वेदान्त के संस्थापक और हिन्दू धर्म प्रचारक थे. आदि शंकराचार्य जी जीवनपर्यंत  सनातन धर्म के जीर्णोद्धार में लगे रहे उनके प्रयासों ने हिंदु धर्म को नव चेतना प्रदान की.

आदि शंकराचार्य जयन्ती के पावन अवस्रप पर शंकराचार्य मठों में पूजन हवन का आयोजन किया जाता है. देश भर में आदि शंकराचार्य जी को पूजा जाता है. अनेक प्रवचनों एवं सतसंगों का आयोजन भी होता है. सनातन धर्म के महत्व पर की उपदेश दिए जाते हैं और चर्चा एवं गोष्ठी भी कि जाती है.

मान्यता है कि इस पवित्र समय अद्वैत सिद्धांत का पाठ करने से व्यक्ति को परेशानियों से मुक्ति प्राप्त होती है. इस दिन धर्म यात्राएं एवं शोभा यात्रा भी निकाली जाती है.आदि शंकराचार्य जी ने अद्वैत वाद के सिंद्धांत को प्रतिपादित किया जिस कारण  आदि शंकराचार्य जी को हिंदु धर्म के महान प्रतिनिधि के तौर पर जाना जाता है, आदि शंकराचार्य, जी को जगद्गुरु  एवं शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है.

आदि शंकराचार्य’ जन्म कथा | Adi Shankaracharya Birth Story

असाधारण प्रतिभा के धनी आद्य जगदगुरू शंकराचार्य का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी के पावन दिन हुआ था. दक्षिण के कालाड़ी ग्राम में जन्में शंकर जी आगे चलकर ‘जगद्गुरु आदि शंकराचार्य’ के नाम से विख्यात हुए. इनके पिता शिवगुरु नामपुद्रि के यहाँ जब विवाह के कई वर्षों बाद भी कोई संतान नहीं हुई, तो इन्होंने अपनी पत्नी विशिष्टादेवी सहित संतान प्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए से दीर्घकाल तक भगवान शंकर की आराधना की इनकी श्रद्धा पूर्ण कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा.

शिवगुरु ने प्रभु शंकर से एक दीर्घायु सर्वज्ञ पुत्र की इच्छा व्यक्त की. तब भगवान शिव ने कहा कि ‘वत्स, दीर्घायु पुत्र सर्वज्ञ नहीं होगा और सर्वज्ञ पुत्र दीर्घायु नहीं होगा अत: यह दोनों बातें संभव नहीं हैं तब शिवगुरु ने सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति की प्रार्थना की और भगवान शंकर ने उन्हें सर्वज्ञ पुत्र की प्राप्ति का वरदान दिया तथा कहा कि मैं स्वयं पुत्र रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म लूंगा.

इस प्रकार उस ब्राह्मण दंपती को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्त हुई और जब बालक का जन्म हुआ तो उसका नाम शंकर रखा गया शंकराचार्य ने शैशव में ही संकेत दे दिया कि वे सामान्य बालक नहीं है. सात वर्ष की अवस्था में उन्होंने वेदों का पूर्ण अध्ययन कर लिया था, बारहवें वर्ष में सर्वशास्त्र पारंगत हो गए और सोलहवें वर्ष में ब्रह्मसूत्र- भाष्य कि रचना की उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना शिष्यों को पढ़ाते हुए कर दी अपने इन्हीं महान कार्यों के कारण वह आदि गुरू शंकराचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए.

आदि शंकराचार्य जयंती महत्व | Significance of Adi Shankaracharya Jayanti

आदि शंकराचार्य जयन्ती के दिन शंकराचार्य मठों में पूजन हवन किया जाता है और पूरे देश में सनातन धर्म के महत्व पर विशेष कार्यक्रम किए जाते हैं. मान्यता है कि आदि शंकराचार्य जंयती के अवसर पर अद्वैत सिद्धांत का किया जाता है.

इस अवसर पर देश भर में शोभायात्राएं निकली जाती हैं तथा जयन्ती महोत्सव होता है जिसमें बडी संख्या में श्रद्वालु भाग लेते हैं तथा यात्रा करते समय रास्ते भर गुरु वन्दना और भजन-कीर्तनों का दौर रहता है. इस अवसर पर अनेक समारोह आयोजित किए जाते हैं जिसमें वैदिक विद्वानों द्वारा वेदों का सस्वर गान प्रस्तुत किया जाता है और समारोह में शंकराचार्य विरचित गुरु अष्टक का पाठ भी किया जाता है.

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