
रक्षा बंधन का त्यौहार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक होकर चारों ओर अपनी छटा को बिखेरता सा प्रतीत होता है. सात्विक एवं पवित्रता का सौंदर्य लिए यह त्यौहार सभी जन के हृदय को अपनी खुश्बू से महकाता है. इतना पवित्र पर्व यदि शुभ मुहूर्त में किया जाए तो इसकी शुभता और भी अधिक बढ़ जाती है.
राखी में भद्रा का महत्व
धर्म ग्रंथों में सभी त्यौहार एवं उत्सवों को मनाने के लिए कुछ विशेष समय का निर्धारण किया गया है जिन्हें शुभ मुहूर्त समय कहा जाता है, इन शुभ समय पर मनाए जाने पर त्यौहार में शुभता आती है तथा अनिष्ट का भाव भी नही रहता.इसी प्रकार रक्षा का बंधन के शुभ मुहूर्त का समय भी शास्त्रों में निहित है, शास्त्रों के अनुसार भद्रा समय में श्रावणी और फाल्गुणी दोनों ही नक्षत्र समय अवधि में राक्षा बंधन नहीं करना चाहिए. इस समय राखी बांधने का कार्य करना मना है और त्याज्य होता है. मान्यता के अनुसार श्रावण नक्षत्र में राजा अथवा फाल्गुणी नक्षत्र में राखी बांधने से प्रजा का अहित होता है. इसी का कारण है कि राखी बांधते समय, समय की शुभता का विशेष रुप से ध्यान रखा जाता है.
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष 2025 में रक्षा बंधन का त्यौहार 09 अगस्त को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि आरम्भ 08 अगस्त को आरंभ होगी और 09 अगस्त तक व्याप्त रहेगी. भद्रा मुक्त समय होने रक्षाबंधन संपन्न किया जाएगा, यदि यह कार्य करना हो तो मुख त्यागकर इसे पुच्छ में इसे करना चाहिए.
इस वर्ष 2025 में रक्षा बंधन का त्यौहार 09 अगस्त, को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 08 अगस्त 2025 को 14:13 से आरंभ होगा और 09 अगस्त रात्रि 13:25 तक व्याप्त रहेगी.
09 अगस्त को भद्रा नहीं रहेगी. रक्षा बंधन समय भद्रा विचार किया जाता है. भद्रा मुक्त समय होने से रक्षाबंधन संपन्न करना अनुकूल होता है. यदि भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को त्यागकर भद्रा पुच्छ काल में इसे करना चाहिए. 09 अगस्त को भद्रा समय नहीं होगा.
अन्य विचारकों के मतानुसार
धर्मशास्त्र के अनुसार किसी त्यौहार एवं उत्सव समय में चौघड़िए तथा ग्रहों के शुभ समय एवं अशुभ समयों को जाना जाता है. रक्षाबंधन के समय में भद्रा काल का त्याग करने की बात कही जाती है, तथा निर्दिष्ट निषेध समय दिया जाता है, अत: वह समय शुभ कार्य के लिए त्याज्य होता है. पौराणिक मान्यता के आधार पर देखें तो भद्रा का उचित नहीं माना जाता क्योंकि जब भद्रा का वास किसी उत्सव समय को स्पर्श करता है तो उसके समय को उपयोग में नहीं लाया जाता है भद्रा में नक्षत्र व तिथि के अनुक्रम तथा पंचक के पूर्वाद्ध नक्षत्र के मान व गणना से इसका समय में बदल सकता है.
मान्यतानुसार भद्रायुक्त काल का वह समय छोड़ देना चाहिए, जिसमें भद्रा के मुख तथा पृच्छ का विचार हो रहा हो, रक्षाबंधन का पर्व भद्रा रहित अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा में करने का विधान है. यदि पहले दिन अपराह्न काल भद्रा व्याप्त हो तथा दूसरे दिन उदयकालिक पूर्णिमा तिथि तीन मुहूर्त्त से अधिक हो तो उसी उदयकालिक पूर्णिमा के दोपहर समय में रक्षाबंधन मनाना चाहिए. इस दृष्टि से भद्रा के उक्त समय को छोड़कर रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जा सकता है.
रक्षा के सूत्र के लिए उचित मुहूर्त्त का इंतजार सभी की चाह है पर सबसे खास बात है राखी के साथ कुमकुम रोलौ, हल्दी, चावल, दीपक, अगरबती, मिठाई का उपयोग किया जाता है. कुमकुम हल्दी से भाई का टीका करके चावल का टीका लगाया जाता है और भाई की कलाई पर राखी बांधी जाती है.
अन्य त्यौहारों की तरह इस त्यौहार पर भी उपहार और पकवान अपना विशेष महत्व रखते है.इस दिन पुरोहित तथा आचार्य सुबह सुबह अपने यजमानों के घर पहुंचकर उन्हें राखी बांधते है, और बदले में धन वस्त्र, दक्षिणा स्वीकार करते है. राखी बांधते समय बहनें निम्न मंत्र का उच्चारण करें, इससे भाईयों की आयु में वृद्धि होती है.
“येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: I तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल II”
रक्षा बंधन का पर्व जिस व्यक्ति को मनाना है, उसे उस दिन प्रात: काल में स्नान आदि कार्यों से निवृ्त होकर, शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद अपने इष्ट देव की पूजा करने के बाद राखी की भी पूजा करें साथ ही पितृरों को याद करें व अपने बडों का आशिर्वाद ग्रहण करें.
सम्पूर्ण भारतवर्ष में गोस्वामी तुलसीदास के स्मरण में तुलसी जयंती मनाई जाती है. श्रावण मास की सप्तमी के दिन तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है. इस वर्ष यह 31 जुलाई 2025 के दिन गोस्वामी तुलसीदास जयंती मनाई जाएगी. गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी प्रवाहित हो रही है. गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया वरन सभी को श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास किया. वाल्मीकि जी की रचना ‘रामायण’ को आधार मानकर गोस्वामी तुलसीदास ने लोक भाषा में राम कथा की रचना की
नाग पंचमी श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है. नाग पंचमी के दिन कालसर्प दोष की पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन काल सर्पदोष की पूजा करने से व्यक्ति को इसके दुषप्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है और जीवन में आने वाले उतार चढावों से रहत प्राप्त होती है. इसलिए नाग पंचमी के दिन कालसर्प योग से मुक्ति हेतु शिवलिंग के अभिषेक एवं शांति पूजा की जानी चाहिए. यदि इस दिन द्वादश ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक किया जाए तो शुभता में वृद्धि होती है.
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पवित्रा एकादशी के रुप में मनाते हैं. इस वर्ष पवित्रा एकादशी का पर्व 05 अगस्त 2025 को मनाया जाना है. धर्म ग्रंथों के अनुसर इस व्रत की कथा सुनने मात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है. पवित्रा एकादशी का महत्व को भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था.
श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है. रक्षा बंधन का पर्व भाई – बहन के स्नेह की अट्टू डोर का प्रतीक है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है. संपूर्ण भारत में मनाया जाने वाला यह त्यौहार अपने में अनेक सौगातों को समेते हुए है. रक्षा सूत्र को सामान्य बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है. इसका अर्थ रक्षा करना, रक्षा को तत्पर रहना या रक्षा करने का वचन देने से है.
श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है. यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता इसके साथ जुडे़ समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं. शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है. श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है. श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है. इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है. धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है इस माह की प्रत्येक तिथि किसी न किसी धार्मिक महत्व के साथ जुडी़ हुई होती है. इसका हर दिन व्रत और पूजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण रहता है.
सावन माह में शिवभक्त श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है. भक्तजन दूर स्थानों से जल भरकर लाते हैं और उस जल से भगवान का जलाभिषेक करते हैं.
श्रवण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नाग पंचमी का पर्व प्रत्येक वर्ष श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 29 जुलाई 2025 के दिन मनाया जाएगा. नाग पंचमी हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार रहा है नाग पंचमी के दिन नाग पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन नागों का पूजन करना कल्याणकारी माना जाता है. हिंदु धर्म में नागपूजा के संदर्भ में कई पौराणिक उल्लेख प्राप्त होते हैं. नाग क्षेत्रपाल देवताओं में से एक हैं क्षेत्रपाल देवता अर्थात क्षेत्र की रक्षा करने वाले देवता माने जाते हैं.
तीज का त्यौहार भारत के कोने-कोने में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है. यह त्यौहार भारत के उत्तरी क्षेत्र में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. सावन का आगमन ही इस त्यौहार के आने की आहट सुन्नाने लगता है समस्त सृष्टि सावन के अदभूत सौंदर्य में भिगी हुई सी नज़र आती है. सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज के रुप में मनाया जाता है. यह हरियाली तीज के नाम से भी जानी जाती है. यह त्यौहार मुख्यत: स्त्रियों का त्यौहार माना जाता है.
भृगु संहिता में भृगु जी ने अपने ज्ञान द्वारा ग्रहों, नक्षत्रों की गति को देख कर उनका पृथ्वी और मनुष्यों पर पड़ने वाला प्रभाव जाना और अपने सिद्धांतो को प्रतिपादित किया. शोध एवं खोज के उपरांत उन्होंने ग्रहों और नक्षत्रों की गति तथा उनके पारस्परिक संबंधों के आधार पर कालगणना निर्धारित की गई.