प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है. यह व्रत उपवासक को बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है.
11 जनवरी 2025 को शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत होगा
24 मई 2025 को शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत होगा
18 अक्टूबर 2025 को शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत होगा
शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य है कि इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म-जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है तथा उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है.
शनि प्रदोष व्रत कथा | Shani Pradosh Vrat Katha
प्राचीन समय में किसी नगर में एक सेठ रहता था वह धर्म कर्म का पालन करने वाला तथा दान पुन्य़ करने वाला व्यक्ति था सभी उसका सम्मान किया करते थे सब कुछ होने के बावजूद वह दुखी ही रहता था क्योंकि उसके कोई संतान नहीं थी. अपनी व्यथा से परेशान दोनो पति -पत्नी तीर्थयात्रा पर जाने का निश्चय करते हैं. इस यात्रा के दौरान उनकी भेंट तपस्वी साधू से होती है. सेठ की भक्ति से प्रभावित हो साधु संतान प्राप्ति हेतु उन्हें शनि प्रदोष व्रत के विषय में बताते हैं, तीर्थयात्रा के बाद पति-पत्नी वापस घर लौट कर नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करते हैं व्रत के फल स्वरुप सेठ दंपति को संतान की प्राप्ति होती है .
शनि प्रदोष व्रत विधि | Shani Pradosh Vrat Vidhi
प्रदोष व्रत करने के लिये त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए. नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें. इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है और पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किये जाते है.
ईशान कोण की दिशा में किसी एकान्त स्थल को पूजा करने के लिये प्रयोग करना विशेष शुभ रहता है. पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, मंडप तैयार किया जाता है. इस मंडप में पद्म पुष्प की आकृति पांच रंगों का उपयोग करते हुए बनाई जाती है.
प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिये कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार पूजन क्रिया की तैयारियां कर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए. पूजन में भगवान शिव के मंत्र “ॐ नम: शिवाय” इस मंत्र का जाप करते हुए शिव को जल का अर्ध्य देना चाहिए.
इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है.
हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है. और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत में ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है.
शनि प्रदोष व्रत फल | Shani Pradosh Vrat Results
शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए. अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृद्धि होती है. शनि प्रदोष व्रत द्वारा संतान सुख प्राप्त होता है.
भगवान विष्णु ने संसार में धर्म की स्थापना व अधर्म के नाश हेतु अनेकों अवतार लिए इन्हीं में से एक अवतार द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में लिया. श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात्रि में हुआ था. अत: इस पावन तिथि को प्रत्येक वर्ष भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रुप में संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत ही धूम-धाम व आस्था के साथ मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन प्रेरणा स्वरुप रहा है जो जीवन के अनेकों सूत्रों को बताता है और यही अमूल्य सूत्र जीबन को दिशा और मुक्ति का मार्ग दिखलाते हैं.
श्रावण माह की पूर्णिमा बहुत ही शुभ व पवित्र दिन माना जाता है. ग्रंथों में इन दिनों किए गए तप और दान का महत्व उल्लेखित है. इस दिन रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है इसके साथ ही साथ श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता है. श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व है इस दिनयज्ञोपवीत के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है.
जन्माष्टमी अर्थात कृष्ण जन्मोत्सव इस वर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार 16 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा. जन्माष्टमी जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर शोर से आरंभ हो जाती है पूरे भारत वर्ष में इस त्यौहार का उत्साह देखने योग्य होता है. चारों का वातावरण भगवान श्री कृष्ण के रंग में डूबा हुआ होता है. जन्माष्टमी पूर्ण आस्था एवं श्रद्ध के साथ मनाया जाता है.
सावन की शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज महोत्सव के रुप में मनाया जाता है. यह तीज पर्व सिंधारा, हरियाली तीज, मधुस्रवा तृतीय या छोटी तीज के नाम से भी जाना जाता है. इस वर्ष यह त्यौहार 27 जुलाई 2025, के दिन मनाया जाएगा. तीज विशेष रुप से महिलाओं का त्यौहार होता है. तीज का संपूर्ण रंग प्रकृत्ति के रंग में मिलकर अपनी अनुपम छठा बिखेरता है. तीज के आगम पर हाट ओर बाजार सजने लगते हैं, प्रकृत्ति भी अपने सौंदर्य में लिपटी मानो इसी समय का इंतजार कर रही होती है.