त्रिपुर भैरवी जयंती | Tripura Bhairavi Jayanti | Tripura Bhairavi Jayanti 2024 | Maa Tripura Bhairavi

त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं. इनकी उपासना भव-बन्ध-मोचन कही जाती है. इस वर्ष त्रिपुर भैरवी 15 दिसंबर 2024 के दिन मनाई जानी है. इनकी उपासना से व्यक्ति को सफलता एवं सर्वसंपदा की प्राप्ति होती है. शक्ति-साधना तथा भक्ति-मार्ग में किसी भी रुप में त्रिपुर भैरवी की उपासना फलदायक ही है, साधना द्वारा अहंकार का नाश होता है तब साधक में पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है और माता, साधक के समक्ष प्रकट होती है. भक्ति-भाव से मन्त्र-जप, पूजा, होम करने से भगवती त्रिपुर भैरवी प्रसन्न होती हैं. उनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही संपूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति होती है.

त्रिपुर भैरवी के विभिन्न रुप | Forms of Tripura Bhairavi

भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी,  भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि. त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं. भागवत के अनुसार महाकाली के उग्र और सौम्य दो रुपों में अनेक रुप धारण करने वाली दस महा-विद्याएँ हुई हैं. भगवान शिव की यह महाविद्याएँ सिद्धियाँ प्रदान करने वाली होती हैं.

त्रिपुर भैरवी अवतरण कथा | Tripura Bhairavi Katha

‘नारद-पाञ्चरात्र’ के अनुसार एक बार जब देवी काली के मन में आया कि वह पुनः अपना गौर वर्ण प्राप्त कर लें तो यह सोचकर देवी अन्तर्धान हो जाती हैं. भगवान शिव जब देवी को को अपने समक्ष नहीं पाते तो व्याकुल हो जाते हैं और उन्हें ढूंढने का प्रयास करते हैं. शिवजी, महर्षि नारदजी से देवी के विषय में पूछते हैं तब नारद जी उन्हें देवी का बोध कराते हैं वह कहते हैं कि शक्ति के दर्शन आपको सुमेरु के उत्तर में हो सकते हैं वहीं देवी की प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात संभव हो सकेगी. तब भोले शंकर की आज्ञानुसार नारदजी देवी को खोजने के लिए वहाँ जाते हैं. महर्षि नारद जी जब वहां पहुँचते हैं तो देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखते हैं यह प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो जाती हैं. और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट होता है और इस प्रकार उससे छाया-विग्रह “त्रिपुर-भैरवी” का प्राकट्य होता है.

त्रिपुर भैरवी मंत्र | Tripur Bhairavi Mantra

त्रिपुर भैरवी मंत्र के जाप एवं उच्चारण द्वारा साधक शक्ति का विस्तार करता है तथा भक्ति की संपूर्णता को पाता है “हंसै हसकरी हसै” और “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः” के जाप द्वारा सभी कष्ट एवं संकटों का नाश होता है.

त्रिपुर भैरवी जयंती महत्व | Tripura Bhairavi Jayanti Significance

माँ का स्वरूप सृष्टि के निर्माण और संहार क्रम को जारी रखे हुए है. माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं. माँ भैरवी के अन्य तेरह स्वरुप हैं इनका हर रुप अपने आप अन्यतम है. माता के किसी भी स्वरुप की साधना साधक को सार्थक कर देती है. माँ त्रिपुर भैरवी कंठ में मुंड माला धारण किये हुए हैं. माँ ने अपने हाथों में माला धारण कर रखी है. माँ स्वयं साधनामय हैं उन्होंने अभय और वर मुद्रा धारण कर रखी है जो भक्तों को सौभाग्य प्रदान करती है. माँ  ने लाल वस्त्र धारण  किया है, माँ के हाथ में  विद्या तत्व है. माँ त्रिपुर भैरवी की पूजा में लाल रंग का उपयोग किया जाना लाभदायक है.

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वामन जयंती | Vaman Jayanti | Vaman Jayanti 2024 | Vaman Dwadashi | Vaman Dwadashi 2024

भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रुप में मनाया जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में श्री विष्णु के अन्य रुप भगवान वामन का अवतार हुआ था. इस वर्ष वामन जयंती, 15 सितंबर 2024 को मनाई जाएगी.

इस दिन प्रात:काल भक्तों को श्री हरि का स्मरण करने नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करना चाहिए. भगवान वामन का पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करने के पश्चात चावल, दही इत्यादि वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है. संध्या समय व्रती भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और व्रत कथा सुननी चाहिए तथा समस्त परिवार वालों को भगवान का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. इस दिन व्रत एवं पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं.

वामन जयंती कथा | Vaman Jayanti Katha

वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है. भगवान की लीला अनंत है और उसी में से एक वामन अवतार है इसके विषय में वेद पुराण में विस्तार पूर्वक कहा गया. इसमें भगवान की लीला का अद्भुत वर्णन है. श्रीमद्भगवद पुराण में भी इस अवतार का उल्लेख मिलता है.

वामन अवतार कथा अनुसार देव और दैत्यों के युद्ध में असुर पराजित होने लगते हैं. पराजित असुर मृत एवं आहतों को लेकर अस्ताचल चले जाते हैं और दूसरी ओर असुर नरेश बलि इन्द्र के वज्र से मृत हो जाते हैं तब आचार्य शुक्राचार्य अपनी संजीवनी विद्या से बलि और दूसरे असुरों को भी जीवित एवं स्वस्थ कर देते हैं. राजा बलि के लिए शुक्राचार्य जी एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथ अग्नि से दिव्य रथ, त्रोण, अभेद्य कवच पाते हैं इससे असुरों की शक्ति में इज़ाफा होता है और असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है.

इंद्र को राजा बली की मनोइच्छा का भान होता है कि राजा बलि इस सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे, तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं. भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं. दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यप जी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है. तब भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं तथा ब्राह्मण-ब्रह्मचारी का रूप धारण करते हैं.

महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं राजा बली नर्मदा के उत्तर-तट पर अन्तिम अश्वमेध यज्ञ कर रहे होते हैं.

वामन अवतार ले, ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गयें. ब्राह्माण बने श्री विष्णु ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली. राजा बलि अपने वचन पर अडिग रहते हुए, श्री विष्णु को तीन पग भूमि दान में दे दी. वामन रुप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया. अभी तीसरा पैर रखना शेष था. बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया. ऎसे मे राजा बलि अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होगा है. आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहां तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए. वामन भगवान ने ठिक वैसा ही किया, श्री विष्णु के पैर रखते ही, राजा बलि परलोक पहुंच गए.

बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न्द हुए, उन्होंने आग्रह किया कि राजा बलि उनसे कुछ मांग लें. इसके बदले में बलि ने रात दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया., श्री विष्णु को अपना वचन का पालन करते हुए, राजा बलि का द्वारपाल बनना पडा.

वामन जयंती महत्व | Vaman Jayanti Significance

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर इस दिन श्रावण नक्षत्र हो तो इस व्रत की महत्ता और भी बढ़ जाती है। भक्तों को इस दिन उपवास करके वामन भगवान की स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर पंचोपचार सहित उनकी पूजा करनी चाहिए. जो भक्ति श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक वामन भगवान की पूजा करते हैं वामन भगवान उनको सभी कष्टों से उसी प्रकार मुक्ति दिलाते हैं जैसे उन्होंने देवताओं को राजा बलि के कष्ट से मुक्त किया था.

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श्री ललिता जयंती | Sri Lalita Jayanti | Lalita Jayanti 2024 | Lalita Devi Jayanti 2024 | Lalita Devi Festival

माँ ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं. ललिता जयंती का व्रत भक्तजनों के लिए बहुत ही फलदायक होता है. श्री ललिता जयंती इस वर्ष 24 फरवरी 2024 को मनाई जाएगी. भक्तों में मान्यता है कि यदि कोई इस दिन मां ललिता देवी की पूजा भक्ति-भाव सहित करता है तो उसे देवी मां की कृपा अवश्य प्राप्त होती है और जीवन में हमेशा सुख शांति एवं समृद्धि बनी रहती है.

मां ललिता मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. पुराणों के अनुसार आदिशक्तित्रिपुर सुंदरी जगत जननी ललिता माता के मंदिर में दर्शनों एवं पूजन हेतु हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं.

श्री ललिता जयंती कथा | Lalita Jayanti Katha

देवी ललिता आदि शक्ति का वर्णन देवी पुराण में प्राप्त होता है. जिसके अनुसार पिता दक्ष द्वारा अपमान से आहत होकर जब दक्ष पुत्री सती ने अपने प्राण उत्सर्ग कर दिये तो सती के वियोग में भगवान शिव उनका पार्थिव शव अपने कंधों में उठाए चारों दिशाओं में घूमने लगते हैं. इस महाविपत्ति को यह देख भगवान विष्णु चक्र द्वारा सती के शव के 108 भागों में विभाजित कर देते हैं. इस प्रकार शव के टूकडे़ होने पर सती के शव के अंश जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ की स्थापना हुई. उसी में एक माँ ललिता का स्थान भी है. भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा.

एक अन्य कथा अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव तब होता है जब ब्रह्मा जी द्वारा छोडे गये चक्र से पाताल समाप्त होने लगा. इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि भी घबरा जाते हैं, और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है. तब सभी ऋषि माता ललिता देवी की उपासना करने लगते हैं. उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी जी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं. सृष्टि पुन: नवजीवन को पाती है.

श्री ललिता जयंती महत्व | Importance of Sri Lalita Devi

माता ललिता जयंती के उपलक्ष्य पर अनेक जगहों भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है, जिसमें हज़ारों श्रद्धालु श्रद्धा और हर्षोल्लासपूर्वक भाग लेते हैं. मां ललिता देवी मंदिर में हमेशा ही भक्तों का तांता लगा रहता है, परन्तु जयंती के अवसर पर मां की पूजा-आराधना का कुछ विशेष ही महत्व होता है.

यह पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यतानुसार इस दिन देवी ललिता भांडा नामक राक्षस को मारने के लिए अवतार लेती हैं. राक्षस भांडा कामदेव के शरीर के राख से उत्पन्न होता है. इस दिन भक्तगण षोडषोपचार विधि से मां ललिता का पूजन करते है. इस दिन मां ललिता के साथ साथ स्कंदमाता और शिव शंकर की भी शास्त्रानुसार पूजा की जाती है.

श्री ललिता पूजा – अर्चना | Sri Lalita Jayanti Puja

शक्तिस्वरूपा देवी ललिता को समर्पित ललिता जयंती आश्विन मास के शुक्ल पक्ष को पांचवे नवरात्र के दिन मनाई जाती है. इस शुभ दिन भक्तगण व्रत एवं उपवास का पालन करते हैं यह दिन ललिता जयंती व्रत के नाम से जाना जाता है. देवी ललिता जी का ध्यान रुप बहुत ही उज्जवल व प्रकाश मान है. माता की पूजा श्रद्धा एवं सच्चे मन से की जाती है. शुक्ल पक्ष के समय प्रात:काल  माता की पूजा उपासना करनी चाहिए. कालिकापुराण के अनुसार देवी की दो भुजाएं हैं, यह गौर वर्ण की, रक्तिम कमल पर विराजित हैं.

ललिता देवी की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है. दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है.  इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है तथा ललितोपाख्यान, ललितासहस्रनाम, ललितात्रिशती का पाठ किया जाता है. दुर्गा का एक रूप भी ललिता के नाम से जाना गया है.

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छिन्नमस्तिका जयंती 2024 | Chhinamastika Jayanti

दस महा विद्याओं में छिन्नमस्तिका॒ माता छठी महाविद्या॒ कहलाती हैं. इस वर्ष देवी छिन्नमस्तिका जयंती 21 मई 2024, के दिन मनाई जाएगी. यह जयंती भारत वर्ष में धूमधाम के साथ मनाई जाती है. माता के सभी भक्त इस दिन माता की विशेष पूजा अर्चना करते हैं. माता छिन्नमस्तिका जयंती पर माता के दरबार को रंग-बिरंगी॒रोशनियों और फूलों से सजाया जाता है. मंदिर में मंत्रोच्चारण के साथ पाठ का आयोजन किया जाता है. छिन्नमस्तिका माता के दरबार में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं.

छिन्नमस्तिका देवी को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है. देवी के इस रूप के विषय में कई पौराणिक धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है. मार्कंडेय पुराण व शिव पुराण आदि में देवी के इस रूप का विशद वर्णन किया गया है इनके अनुसार जब देवी ने चंडी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया.

दैत्यों को परास्त करके देवों को विजय दिलवाई तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा. परंतु देवी की सहायक योगिनियाँ अजया और विजया की रुधिर पिपासा शांत नहीँ हो पाई थी इस पर उनकी रक्त पिपासा को शांत करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई जिस कारण माता को छिन्नमस्तिका नाम से भी पुकारा जाने लगा.

माना जाता है की जहां भी देवी छिन्नमस्तिका का निवास हो वहां पर चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी हो. इस बात की सत्यता इस जगह से साबित हो जाती हैं क्योंकी मां के इस स्थान के चारों ओर भगवान शिव का स्थान भी है. यहां पर कालेश्वर महादेव व मुच्कुंड महादेव तथा शिववाड़ी जैसे शिव मंदिर स्थापित हैं.

देवी छिन्नमस्ता की उत्पति कथा | Maa Chinnamasta Origin Story in Hindi

छिन्नमस्ता के प्राद्रुभाव की एक कथा इस प्रकार है- भगवती भवानी अपनी दो सहचरियों के संग मन्दाकिनी नदी में स्नान अक्र रही थी. स्नान करने पर दोनों सहचरियों को बहुत तेज भूख लगी. भूख कि पीडा से उनका रंग काला हो गया. तब सहचरियों ने भोजन के लिये भवानी से कुछ मांगा. भवानी के कुछ देर प्रतिक्षा करने के लिये उनसे कहा, किन्तु वह बार-बार भोजन के लिए हठ करने लगी.

तत्पश्चात सहचरियों ने नम्रतापूर्वक अनुरोध किया – “मां तो भूखे शिशु को अविलम्ब भोजन प्रदान करती है” ऎसा वचन सुनते ही भवानी ने अपने खडग से अपना ही सिर काट दिया. कटा हुआ सिर उनके बायें हाथ में आ गिरा और तीन रक्तधाराएं बह निकली. दो धाराओं को उन्होंने सहचरियों की और प्रवाहित कर दिया. जिन्हें पान कर दोनों तृ्प्त हो गई. तीसरी धारा जो ऊपर की प्रबह रही थी, उसे देवी स्वयं पान करने लगी. तभी से वह छिन्नमस्तिका के नाम से विख्यात हुई है.

छिन्नमस्तिका जयंती महत्व | Importance of Chhinamastika Jayanti

मां की जयंती मनाने के कुछ दिन पहले से ही जोरदार तैयारियां शुरू हो जाती हैं मां के दरबार को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. इस मौके पर मां दुर्गा सप्तशती के पाठ का आयोजन भी किया जाता है  जिसमें श्रद्धालुओं सहित सभी भक्त भाग लेते हैं. इस दिन श्रद्धालुओं को लंगर परोसा जाता है जिसमें तरह-तरह के लजीज व्यंजन शामिल होते हैं. माता चिंताओं का हरण करने वाली हैं.

मां के दरबार में जो भी सच्चे मन से आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है. मां का आशीर्वाद सभी पर इसी तरह बना रहे इसके लिए मां के दरबार में विश्व शांति व कल्याण के लिए मां की स्तुति का पाठ भी किया जाता है. मंदिर न्यास की ओर से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यापक प्रबंध किए जाते हैं. इस मौके पर हजारों श्रद्धालुओं मां की पावन पिंडी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं.

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श्री भुवनेश्वरी जयंती | Shri Bhuvaneshwari Jayanti | Bhuvaneshwari Jayanti 2024 | Bhuvaneshwari Jayanti

माँ भुवनेश्वरी शक्ति का आधार हैं तथा प्राणियों का पोषण करने वाली हैं. माँ भुवनेश्वरी जी की जयंती इस वर्ष 15 सितंबर 2024,के दिन मनाई जाएगी. यही शिव की लीला-विलास सहभागी हैं. इनका स्वरूप कांति पूर्ण एवं सौम्य है. चौदह भुवनों की स्वामिनी मां भुवनेश्वरी दस महाविद्याओं में से एक हैं. शक्ति सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा हैं. देवी के मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है.

तीनों लोकों को तारण करने वाली तथा वर देने की मुद्रा अंकुश पाश और अभय मुद्रा धारण करने वाली माँ भुवनेश्वरी अपने तेज एवं तीन नेत्रों से युक्त हैं. देवी अपने तेज से संपूर्ण सृष्टि को देदीप्यमान करती हैं. मां भुवनेश्वरी की साधना से शक्ति, लक्ष्मी, वैभव और उत्तम विद्याएं प्राप्त होती हैं. इन्हीं के द्वारा ज्ञान तथा वैराग्य की प्राप्ति होती है. इसकी साधना से सम्मान प्राप्ति होती है.

देवी भुवनेश्वरी स्वरुप | Appearance of Goddess Bhuvaneshwari

माता भुवनेश्वरी सृष्टि के ऐश्वयर् की स्वामिनी हैं. चेतनात्मक अनुभूति का आनंद इन्हीं में हैं. विश्वभर की चेतना इनके अंतर्गत आती है. गायत्री उपासना में भुवनेश्वरी जी का भाव निहित है. भुवनेश्वरी माता के एक मुख, चार हाथ हैं चार हाथों में गदा-शक्ति का एवं दंड-व्यवस्था का प्रतीक है. आशीर्वाद मुद्रा प्रजापालन की भावना का प्रतीक है यही सर्वोच्च सत्ता की प्रतीक हैं. विश्व भुवन की जो, ईश्वर हैं, वही भुवनेश्वरी हैं.

इनका वर्ण श्याम तथा गौर वर्ण हैं. इनके नख में ब्रह्माण्ड का दर्शन होता है. माता भुवनेश्वरी सूर्य के समान लाल वर्ण युक्त दिव्य प्रकाश से युक्त हैं. इनके मस्तक पर मुकुट स्वरूप चंद्रमा शोभायमान है. मां के तीन नेत्र हैं तथा चारों भुजाओं में वरद मुद्रा, अंकुश, पाश और अभय मुद्रा है.

माँ भुवनेश्वरी मंत्र | Maa Bhuvaneshwari Mantra

माता के मंत्रों का जाप साधक को माता का आशीर्वाद प्रदान करने में सहायक है. इनके बीज मंत्र को समस्त देवी देवताओं की आराधना में विशेष शक्ति दायक माना जाता हैं इनके मूल मंत्र “ऊं ऎं ह्रीं श्रीं नम:” , मंत्रः “हृं ऊं क्रीं” त्रयक्षरी मंत्र और “ऐं हृं श्रीं ऐं हृं” पंचाक्षरी मंत्र का जाप करने से समस्त सुखों एवं सिद्धियों की प्राप्ति होती है.

श्री भुवनेश्वरी पूजा-उपासना | Rituals to worship Shri Bhuvaneshwari

माँ भुवनेश्वरी की साधना के लिए कालरात्रि, ग्रहण, होली, दीपावली, महाशिवरात्रि, कृष्ण पक्ष की अष्टमी अथवा चतुर्दशी शुभ समय माना जाता है. लाल रंग के पुष्प , नैवेद्य ,चंदन, कुंकुम, रुद्राक्ष की माला, लाल रंग इत्यादि के वस्त्र को पूजा अर्चना में उपयोग किया जाना चाहिए. लाल वस्त्र बिछाकर चौकी पर माता का चित्र स्थापित करके पंचोपचार और षोडशोपचार द्वारा पूजन करना चाहिए.

भुवनेश्वरी जयंती महत्व | Significance of Bhuvaneshwari Jayanti

माँ भुवनेश्वरी जयंती के अवसर पर त्रैलोक्य मंगल कवचम्, भुवनेश्वरी कवच,श्री भुवनेश्वरी पंजर स्तोत्रम का पाठ किया जाता है. जप, हवन, तर्पण करने के साथ ही साथ ब्राह्मण और कन्याओं को भोजन कराया जाता है. माता भुवनेश्वरी का श्रद्धापूर्वक पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. देवी की भक्ति, भक्त को अभय प्रदान करती हैं. जीव जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पाता हे. तथा भगवती की कृपा का पात्र बनता है.

इनहीं की शक्ति से संसार का सारा संचालन होता है. यह समस्त को पूर्ण करती हैं.  इनके बीज मंत्र से ही सृष्टि की रचना हुई है. इन्हें राज राजेश्वरी भी कहा जाता हैं. यह दयालु हैं, सभी का पालन करती हैं, इनकी कृपा से भक्त को उस दिव्य दर्शन की अनुभूति प्राप्त होती है जो मोक्ष प्रदान करे.

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कूर्म जयंती 2024। Kurma Jayanti | Kurma Avatar | Kurma Avatar Story

भगवान विष्णु के कूर्म अवतार रूप में वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन कूर्म जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष कूर्म जयंती 22 मई 2024 के दिन मनाई जाएगी. हिंदु धार्मिक मान्यता अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने कूर्म(कछुए) का अवतार लिया था और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण करने समुद्र मंथन में सहायता की थी.

कूर्म अवतार कथा | Kurma Avatar Story

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस अवतार में भगवान के कच्छप रूप के दर्शन होते हैं. कूर्म अवतार का संबंध समुद्र मंथन के प्रायोजन से ही हो पाया. धर्म ग्रंथों में निहित कथा कहती है कि दैत्यराज बलि के शासन में असुर दैत्य व दानव बहुत शक्तिशाली हो गए थे और उन्हें दैत्यगुरु शुक्राचार्य की महाशक्ति भी प्राप्त थी.

देवता उनका कुछ भी अहित न कर सके क्योंकि एक बार अपने घमंड में चूर देवराज इन्द्र को किसी कारण से नाराज़ हो कर महर्षि दुर्वासा ने श्राप देकर श्रीहीन कर दिया था जिस कारण इन्द्र शक्तिहीन हो गये थे. इस अवसर का लाभ उठाकर दैत्यराज बलि नें तीनों लोकों पर अपना राज्य स्थापित कर लिया और इन्द्र सहित सभी देवतागण भटकने लगे.

सभी देवता ब्रह्मा जी के पास जाकर प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें इस संकट से बाहर निकालें. तब ब्रह्मा जी संकट से मुक्ति के लिए देवताओं समेत भगवान विष्णु जी के समक्ष पहुँचते हैं और भगवान विष्णु को अपनी विपदा सुनाते हैं. देवगणों की विपदा सुनकर भगवान विष्णु उन्हें दैत्यों से मिलकर समुद्र मंथन करने के कि सलाह देते हैं जिससे क्षीर सागर को मथ कर देवता उसमें से अमृत निकाल कर उस अमृत का पान कर लें और अमृत पीकर वह अमर हो जाएंगे तथा उनमें दैत्यों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा.

भगवान विष्णु के आदेश अनुसार इंद्र दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए जाते हैं. समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया जाता है. मंदराचल को उखाड़ उसे समुद्र की ओर ले चले तथा जब मन्दराचल पर्वत को समुद्र में डाला जाता है तो वह डूबने लगता है.

तब भगवान श्री विष्णु कूर्म अर्थात कच्छप अवतार लेकर समुद्र में जाकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रख लेते हैं. समस्त लोकपाल दिक्पाल उनकी कूर्म आकृति में स्थित हो जाते हैं और भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा तथा इस प्रकार समुद्र मंथन का संपन्न हो सका.

कूर्म जयंती महत्व | Significance of Kurma Jayanti

जिस दिन भगवान विष्णु जी ने कूर्म का रूप धारण किया था उसी तिथि को कूर्म जयंती के रूप में मनाया जाता है. शास्त्रों नें इस दिन की बहुत महत्ता मानी गई है. इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है, क्योंकि योगमाया स्तम्भित शक्ति के साथ कूर्म में निवास करती है. कूर्म जयंती के अवसर पर वास्तु दोष दूर किए ज सकते हैं, नया घर भूमि आदि के पूजन के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है तथा बुरे वास्तु को शुभ में बदला जा सकता है.

कूर्म मंत्र ।  Kurma Mantra

ॐ कूर्माय नम:
ॐ हां ग्रीं कूर्मासने बाधाम नाशय नाशय
ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम:
ॐ ह्रीं कूर्माय वास्तु पुरुषाय स्वाहा

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धूमावती जयंती 2024 | Dhumavati Jayanti

मां धूमावती जयंती के विशेष अवसर पर दस महाविद्या का पूजन किया जाता है. 14 जून 2024, को धूमावती जयंती मनाई जाएगी. धूमावती जयंती समारोह में धूमावती देवी के स्तोत्र पाठ व सामूहिक जप का अनुष्ठान होता है. काले वस्त्र में काले तिल बांधकर मां को भेंट करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. परंपरा है कि सुहागिनें मां धूमावती का पूजन नहीं करती हैं और केवल दूर से ही मां के दर्शन करती हैं. मां धूमावती के दर्शन से पुत्र और पति की रक्षा होती है.

पुराण अनुसार एक बार मां धूमावती अपनी क्षुधा शांत करने के लिए भगवान शंकर के पास जाती हैं किंतु उस समय भगवान समाधि में लीन होते हैं. मां के बार-बार निवेदन के बाद भी भगवान शंकर का ध्यान से नहीं उठते. इस पर देवी श्वास खींचकर भगवान शिव को निगल जाती हैं. शिव के गले में विष होने के कारण मां के शरीर से धुंआ निकलने लगा और उनका स्वरूप विकृत और श्रृंगार विहीन हो जाता है. इस कारण उनका नाम धूमावती पड़ता है.

माँ धूमावती कथा | Maa Dhumavati Katha

देवी धूमावती जी की जयंती कथा पौराणिक ग्रंथों अनुसार इस प्रकार रही है- एक बार देवी पार्वती बहुत भूख लगने लगती है और वह भगवान शिव से कुछ भोजन की मांग करती हैं. उनकी बात सुन महादेव देवी पार्वती जी से कुछ समय इंतजार करने को कहते हैं ताकी वह भोजन का प्रबंध कर सकें. समय बीतने लगता है परंतु भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती और देवी पार्वती भूख से व्याकुल हो उठती हैं. क्षुधा से अत्यंत आतुर हो पार्वती जी भगवान शिव को ही निगल जाती हैं. महादेव को निगलने पर देवी पार्वती के शरीर से धुआँ निकलने लगाता है.

तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी , धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा. भगवान कहते हैं तुमने जब मुझे खाया तब विधवा हो गई अत: अब तुम इस वेश में ही पूजी जाओगी. दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है

देवी धूमावती जयंती महत्व | Importance of Devi Dhumavati Jayanti

धूमावती देवी का स्वरुप बड़ा मलिन और भयंकर प्रतीत होता है.  धूमावती देवी का स्वरूप विधवा का है तथा कौवा इनका वाहन है, वह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए, खुले केश रुप में होती हैं. देवी का स्वरूप चाहे जितना उग्र क्यों न हो वह संतान के लिए कल्याणकारी ही होता है. मां धूमावती के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. पापियों को दण्डित करने के लिए इनका अवतरण हुआ. नष्ट व संहार करने की सभी क्षमताएं देवी में निहीत हैं. देवी नक्षत्र ज्येष्ठा नक्षत्र है इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है.

ऋषि दुर्वासा, भृगु, परशुराम आदि की मूल शक्ति धूमावती हैं. सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है. चौमासा देवी का प्रमुख समय होता है जब देवी का पूजा पाठ किया जाता है. माँ धूमावती जी का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है. यह विधवा हैं, इनका वर्ण विवर्ण है, यह मलिन वस्त्र धारण करती हैं. केश उन्मुक्त और रुक्ष हैं. इनके रथ के ध्वज पर काक का चिन्ह है. इन्होंने हाथ में शूर्पधारण कर रखा है, यह भय-कारक एवं कलह-प्रिय हैं. माँ की जयंती पूरे देश भर में धूमधाम के साथ मनाई जाती है जो भक्तों के सभी कष्टों को मुक्त कर देने वाली है

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महाकाली जयंती | Mahakaali Jayanti | Mahakaali Jayanti 2024 | Mahakaali Jayanti Festival

इस वर्ष महाकाली जयंती 26 अगस्त 2024 के दिन मनाई जाएगी. मधु और कैटभ के नाश के लिये ब्रह्मा जी के प्रार्थना करने पर देवी जगजननी ने महाविद्या काली मोहिनी शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं. महामाया भगवान श्री हरि के नेत्र, मुख, नासिका और बाहु आदि से निकल कर ब्रह्मा जी के सामने आ जाती हैं इसी शुभ दिवस को महाकाली जयंती के रुप में मनाया जाता है. महाकाली जी दुष्टों के संहार के लिए प्रकट होती हैं तथा दैत्यों का संहार करती हैं.

महाकाल पुरुष की शक्ति महाकाली है. शक्ति और शक्तिमान में अभेद है. यहीं अर्द्धनारीश्वर उपादना का रहस्य है. सृ्ष्टि से पूर्व इन्हीं का साम्राज्य रहता है. यहीं प्रथम स्वरुप है. आगमशास्त्र में इसे ही प्रथमा कहा गया है. महाकाली को अर्द्धरात्री के समान कहा गया है. महाकाली को प्रलय का रुप भी कहा गया है. इनके अनेक रुप है, अनेक भुजाएं हैं. महाकाली की प्रसन्नता इच्छाओं की पूर्ति करती है.

देवी संहार करने वाली है, प्रलय उनकी प्रतिष्ठा है. शव उनका आसन है.  उनकी चार भुजाएं संहार की मुद्रा में होती हैं नाश करने के लिये उनके हाथ में खडग है. अन्य एक हाथ में कटा हुआ मस्तक है, जो नष्ट होने वाली प्राणी का रुप है. तीसरे हाथ अभय मुद्रा में है. उनकी आराधना अभयदायक है.

महाकाली स्वरुप | Appearance of Mahakaali

महाकाली शव पर बैठी है, शरीर की आकृति डरावनी है. देवी के दांत तीखे और महाभयावह है. ऐसे में महाभयानक रुप वाली, हंसती हुई मुद्रा में है. उनकी चार भुजाएं है. एक हाथ में खडग, एक में वर, एक अभयमुद्रा मेम है. गले में मुण्डवाला है, जिह्वा बाहर निकली है, वह सर्वथा नग्न है. वह श्मशानवासिनी हैं. श्मशान ही उनकी आवासभूमि है. उनकी उपासना में सम्प्रदायगत भेद हैं. श्मशानकाली की उपासना दीक्षागम्य है, जो किसी अनुभवी गुरु से दीक्षा लेकर करनी चाहिए. देवी कि साधना दुर्लभ है.

महाकाली कथा | Mahakaali Katha

शुंभ-निशुंभ दानव, महापराक्रमी दैत्य रक्तबीज को देवी के साथ युद्ध करने के लिए भेजते हैं. रक्तबीज को यह वरदान प्राप्त था की उसके शरीर की बूंद जहां भी गिरती थी वहां से एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाता था अत: देवी जब भी रक्तबीज पर प्रहार करती तब उसके रक्त से कई सारे दैत्य रक्तबीज उत्पन्न हो जाते, तब मां भगवती के रूप में महाकाली का आगमन होता है और काली रक्तबीज का रक्त धरती पर गिरने से पहले ही उसे अपने मुख में ग्रहण कर लेती है इस प्रकार देवी काली ने रक्तबीज का संहार किया  तथा दैत्यों को मारकर देवताओं को उनके आतंक से मुक्ति किया. भगवती कालिका अर्थात काली के अनेक स्वरूप हैं इन्हें श्यामा, दक्षिणा कालिका (दक्षिण काली) गुह्म काली, कालरात्री, भद्रकाली, महाकाली आदि नाम से पुकारा गया है.

महाकाली जयंती महत्व | Significance of Mahakaali Jayanti

महाकाली जयंती के अवसर पर महाकाली शतनाम धारा पाठ व हवन का आयोजन किया जाता है. जिसमें सभी श्रद्धालु बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. महाकाली मां की उपासना करने से उनकी कृपा भक्तों पर सहज हो जाती है. मां कृपालु हैं इनकी शरण में आने वाला कोई खाली हाथ नहीं जाता. महाकाली जयंती के अवसर पर कहीं कहीं सुन्दर काण्ड के पाठ का भी आयोजन किया जाता है. महाकाली जयंती के अवसर पर श्री महाकाली मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ रहती है. भक्त महाकाली जयंती श्रद्धा के साथ मनाते हैं. सैकड़ों श्रद्धालु मां के दरबार में माथा टेकते हैं मंदिरों में यज्ञ एवं भंडारों का आयोजन किया जाता है.

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परशुराम जयंती 2024 | Parshuram Jayanti | Akshaya Tritiya | Parshuram Jayanti 2024

वर्ष 2024 में 10 मई, वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को परशुराम जयन्ती मनाई जाएगी. वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की रात में पहले प्रहर में भगवान परशुराम का जन्म हुआ था. इसलिए यह जयन्ती तृतीया तिथि के प्रथम प्रहर में मनाई जाती है.

राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र,परशुराम जी भगवान विष्णु के अवतार थे. परशुराम भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. वह एक परम ज्ञानी तथा महान योद्धा थे इन्ही के जन्म दिवस को परशुराम जयंती के रूप में संपूर्ण भारत में बहुत हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. भगवान परशुराम जयंती के अवसर पर देश भर में हवन, पूजन, भोग एवं भंडारे का आयोजन किया जाता है तथा परशुराम जी शोभा यात्रा निकली जाती है. विष्णु के अवतार परशुराम जी का पूर्व नाम तो राम था, परंतु को भगवान शिव से प्राप्त अमोघ दिव्य शस्त्र परशु को धारण करने के कारण यह परशुराम कहलाए.

भगवान विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार के रूप में अवतरित हुए थे धर्म ग्रंथों के आधार पर परशुराम जी का जन्म अक्षय तृतीया, वैशाख शुक्लतृतीया को हुआ था जिसे परशुराम जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन व्रत करने और पर्व मनाने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. परम्परा के अनुसार इन्होंने क्षत्रियों का अनेक बार विनाश किया। क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए इनका जन्म हुआ था.

भगवान परशुराम जयंती महत्व | Significance of Parshuram Jayanti

वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि त्रेतायुग आरम्भ की तिथि मानी जाती है और इसे अक्षय तृतीया भी कहते है इसी दिन भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था. भागवत अनुसार हैहयवंश राजाओं के निग्रह के लिए अक्षय तृतीया के दिन जन्म परशुराम जी का जन्म हुआ. जमदग्नि व रेणुका की पांचवी सन्तान रूप में परशुराम जी पृथ्वी पर अवतरीत होते हैं इनके चार बड़े भाई रूमण्वन्त, सुषेण, विश्व और विश्वावसु थे अक्षय तृतीया को भगवान श्री परशुराम जी का अवतार हुआ था जिस कारण यह परशुराम जयंती के नाम से विख्यात है.

भगवान परशुराम जी शास्त्र एवम् शस्त्र विद्या के ज्ञाता थे. प्राणी मात्र का हित ही उनका सर्वोपरि लक्ष्य रहा. परशुराम जी  तेजस्वी, ओजस्वी, वर्चस्वी महापुरूष रहे. परशुराम जी अन्याय का निरन्तर विरोध करते रहे उन्होंने दुखियों, शोषितों और पीड़ितों की हर प्रकार से रक्षा व सहायता की. भगवान परशुराम जी की जयंती की अक्षततिथि तृतीया का भी अपना एक अलग महत्त्व है. इस तारीख को किया गया कोई भी शुभ कार्य फलदायक होता है. अक्षत तृतीया तिथि को शुभ तिथि माना जाता है इस तिथि में बिना योग निकाले भी कार्य होते हैं. भगवान परशुराम की जयंती हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है. प्राचीन ग्रंथों में इनका चरित्र अलौकिक लगता है. महर्षि परशुराम उनका वास्तविक नाम तो राम ही था जिस वजह से यह भी कहा जाता है कि ‘राम से पहले भी राम हुए हैं’.

परशुराम जन्म कथा । Parshuram Birth Story

भगवान परशुराम के जन्म के संबंध में दो कथाएं प्रचलित हैं। हरिवंशपुराण के अनुसार उन्हीं में से एक कथा इस प्रकार है-

पोराणिक काल में महिष्मती नगरी पर हैययवंशी क्षत्रिय कार्तवीर्य अर्जुन(सहस्त्रबाहु) का शासन था. वह बहुत अत्याचारी शासक था. जब क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार बहुत बढ़ गया तो पृथ्वी माता, भगवान विष्णु के पास गई और अत्याचारियों का नाश करने का आग्रह किया तब भगवान विष्णु ने उन्हें पृथ्वी को वचन दिया कि वह धर्म की स्थापना के लिए महर्षि जमदग्नि के पुत्र में रूप में अवतार लेकर अत्याचारियों का सर्वनाश करेंगे इस प्रकार भगवान, परशुराम रूप में जन्म लेते हैं और पृथ्वी पर से पापियों का नाश कर देते हैं.

परशुराम ने कार्त्तवीर्य अर्जुन का वध कर दिया इसके बाद उन्होंने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से रहित कर दिया और उनके रक्‍त से समन्तपंचक क्षेत्र में पाँच सरोवर भर दिये थे. अन्त में महर्षि ऋचीक ने प्रकट होकर परशुराम को ऐसा घोर कृत्य करने से रोका और तब परशुराम जी ने कश्यप ऋषि को पृथ्वी का दान कर दिया और स्वयं महेन्द्र पर्वत पर निवास करने लगते हैं.

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श्री महातारा जयंती | Sri Mahatara Jayanti | Mahatara Jayanti Festival | Mahatara Jayanti 2024

महातारा जयंती पूरे देश में उत्साह के साथ मनाई जाती है. इस वर्ष महातारा जयंती 17 अप्रैल 2024, के दिन मनाई जाएगी.चैत्र माह की नवमी तिथि तथा शुक्ल पक्ष के दिन माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है. दस महाविद्याओं में से एक हैं भगवती तारा. देवी तारा को सूर्य प्रलय की अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुप माना जाता है. जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं तथा भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं.

देवी तारा शक्ति स्वरूपा हैं इनकी साधना से साधक को ज्ञान, विज्ञान और सुख-संपदा प्राप्त होती है. देवी तारा को तारिणी विद्या भी कहा जाता है. उग्र तारा, नील सरस्वती और एकजटा इन्हीं के रूप हैं. शत्रुओं का नाश करने वाली सौंदर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए सहायक मानी जाती हैं.

देवी महातारा उत्पत्ति | Origin of Devi Mahatara

सृष्टि से पहले चारों ओर घोर अन्धकार व्याप्त था न कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अंतहीन अंधकार का साम्राज्य ही था और इसी अंधकार की देवी थी माँ काली, तब इस घोर अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न होती है जो तारा कही गई. यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रह्माण्ड में जितने भी पिंड हैं सभी की स्वामिनी देवी तारा ही मानी जाती हैं, सृष्टि उत्पत्ति के समय प्रकाश के रूप में इनका प्रकाश हुआ इस कारण इन्हें देवी महातारा नाम प्राप्त हुआ.

देवी तारा को महानीला या नील तारा भी कहा जाता है इस नाम के पिछे एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार जब सागर मंथन हुआ तो सागर से अनेक वस्तुएं निकलती हैं और जब विष निकला, जो तीनों लोक संकट में पड़ गए. देव-दानवों, ऋषि मुनिओं ने भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, तब भगवान शिव ने उस विष को पी लिया,और विष को कंठ में ही रोक लिया किंतु विष के प्रभाव से उनका शरीर भी नीला हो गया, जब देवी ने भगवान को इस संकट में देखा तो वह भगवान शिव के भीतर प्रवेश करके विष को अपने प्रभाव से हीन कर देती हैं. किंतु विष के प्रभाव से देवी का शरीर भी नीला पड़ जाता है. तब भगवान शिव ने देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार देवी नीलतारा नाम से विराजमान हुईं.

देवी के तीन प्रमुख रूप हैं १)उग्रतारा २)एकाजटा और ३)नील सरस्वती देवी ब्रह्म की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी, ब्रह्मांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती हैं. यह सात शक्तियां हैं परा, परात्परा, अतीता, चित्परा, तत्परा, तदतीता तथा सर्वातीता. देवी का ध्यान एवं स्मरण करने से भक्त को अनेक विद्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है. देवी तारा के भक्त के बुद्धि बल का मुकाबला तीनों लोकों में कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है

महातारा उपासना | Worship of Mahatara

देवी तारा की  पूजा एवं मंत्रों का जप करने से वाक शक्ति, शत्रुनाश एवं मुक्ति की प्राप्ति होती है. देवी के मंत्रः “स्त्रीं हूं हृं हूं फट्” का उच्चारण करने से सभी का कल्याण होता है. इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप भक्त को सदगती प्रदान करता है. देवी तारा माता भगवती का ही एक रुप हैं इन्हीं के द्वारा सृष्टि प्रकाश मान है, देवी तारा जीवन शक्ति हैं.

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