जानें कैसा रहेगा सूर्य ग्रहण का आपकी राशि पर प्रभाव

इस वर्ष का आखिरी ग्रहण अक्टुबर 2024 को लगेगा. 2/3 अक्टूबर  को सूर्य ग्रहण होगा ये ग्रहण एक पूर्ण सूर्य ग्रहण यानी के कंकण सूर्य ग्रहण के रुप में लगेगा.

सूर्यग्रहण का आरंभ 2/3 अक्टूबर को मध्य रात्रि से आरंभ होगा. इस ग्रहण की आकृति कंकण के समान होगी. इस ग्रहण की कुल अवधि 7 घंटे 25 मिनिट की रहेगी.

ग्रहण का सूतक समय

सूर्य ग्रहण का सूतक काल समय 2/3 अक्टूबर को रात में आरंभ हो जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूतक समय के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. ग्रहण काल समय केवल मंत्र जाप करना अत्यंत लाभकारी कहा गया है. इसके अतिरिक्त इस सम्य मूर्ति पूजन या मूति को स्पर्श करना इत्यादि कार्य वर्जित होते हैं. मंदिरों के कपाट इस समय पर बंद कर दिए जाते हैं.

ग्रहण कहां कहां दिखाई देगा

इस ग्रहण का प्रभाव विदेशों में कई स्थानों पर दिखाई देगा. अमेरिका, प्रशांत महासागर, न्यूजीलैंड, आदि देशों में दिखाई देगा

सूर्य ग्रहण समय

  • ग्रहण आरंभ – 21:13
  • कंकण आरंभ – 22:21
  • परमग्रास – 24:15
  • कंकण समाप्त – 26:09
  • ग्रहण समाप्त 27:17

 

ग्रहण का सभी राशियों पर प्रभाव

ग्रहण का प्रभाव पृथ्वी पर सभी पर पड़ता है, चाहे वे जीव जन्तु हों, वनस्पति, मौसम या फिर मनुष्य सभी पर ग्रहण का प्रभाव अवश्य होता है. भारतीय परंपरा अनुसार ग्रहण समय को बहुत ही विशेष समय माना गया है. ग्रहण के समय को धार्मिक मान्यताओं से जोड़ते हुए देखा जाए तो इस समय के दौरान स्नान, जाप का बहुत महत्व बताया गया है. सूर्य ग्रह के दौरान सूर्य का जप, दान अवश्य करना चाहिए.

इस ग्रहण का आरंभ धनु राशि और मूल नक्षत्र में होगा. इस कारण इस राशि और इस नक्षत्र में जन्में लोगों पर इसका विशेष प्रभाव देखने को मिल सकता है. आईए जानते हैं कैसा रहेगा सूर्य ग्रहण का सभी राशियों पर प्रभाव : –

 

मेष राशि

मेष राशि वालों के लिए ये समय थोड़ी चिंताओं में वृद्धि करने वाला होगा. बच्चों को लेकर भी तनाव बढ़ सकता है. ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए ग्रहण समय गेहूं का दान करें.

वृषभ राशि

आर्थिक रुप से समय सामान्य रहेगा. लेकिन आपके गुप्त शत्रु आपके लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं. समस्या से बचने के लिए आदित्यहृदय स्त्रोत का पाठ करें.

मिथुन राशि

मिथुन राशि वाले अपने जीवन साथी को लेकर अधिक परेशान हो सकते हैं. जीवन साथी को कष्ट रह सकता है. इस से बचने के लिए पीतल से बने बर्तन का दान करें विष्णु मंदिर में.

कर्क राशि

रोग और परेशानी का प्रभाव बना रहेगा. किसी न किसी कारण से चिंताएं होने के कारण माइग्रेन भी बढ़ सकता है. शिवलिंग पर सोमवार के दिन दूध से अभिषेक करें.

सिंह राशि

इस समय आपके खर्च अधिक बढ़ सकते हैं. कुछ कारणों से काम हो पाने में विलम्ब होने के आसार अधिक हैं. इस समय जरुरी काम टालने की कोशिश करनी चाहिए.

कन्या राशि

आपके लिए इस समय काम जल्द से हो जाएंगे. ट्रैवलिंग के मौके मिलेंगे. बंदरों को चने और गुड़ खिलाएं.

तुला राशि

तुला राशि के कारण आर्थिक लाभ अधिक होंगे. श्री लक्ष्मी जी को खीर का भोग लगाएं.

वृश्चिक राशि

आपके लिए ये समय धन हानि का बना हुआ है. उधार देने से बचें. ग्रहण समय के दौरान सात अनाज का दान करें.

धनु राशि

दुर्घटना के कारण परेशानी होगी. मानसिक रुप से आप परेशान अधिक रहते हैं. आदित्यहृदय स्त्रोत का पाठ अवश्य करें.

मकर राशि

मकर राशि के लिए जातकों के लिए आर्थिक क्षेत्र में आपके लिए रास्ते बनेंगे. गरीबों को खाने की वस्तु दान करें.

कुम्भ राशि

लाभ की उन्नती के मौके बनेंगे, अपने काम के लिए आप इस समय काफी संघर्ष में रह सकते हैं. गाय को रोटी खिलाएं.

मीन राशि

रोग कष्ट अधिक रहता है. चिकित्सक के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं. नियमित रुप से 21 दिन माथे पर केसर का तिलक लगाना चाहिए.

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सोमवार के दिन जन्में लोग कैसे होते हैं ? | What are the Characteristics of People Born on Monday?

ज्योतिष की दृष्टि से ये दिन शांत एवं सौम्य दिन-वार की श्रेणी में आता है. सोमवार को शुभता एवं सात्विकता का प्रतीक बताया गया है. सोमवार का दिन भगवान शिव से संबंधित है. इस दिन में जन्में जातक को वार के अनुरुप ही शुभता और सौम्यता की प्राप्ति होती है. यह दिन चंद्रमा का प्रतिनिधित्व भी करता है. भगवान शिव ने चंद्रमा को अपने सिर पर शोभित किया है, अत: इन दोनों शुभस्थ स्थितियों के कारण व्यक्ति को सुख एवं सौभाग्य भी प्राप्त होता है.

स्वभावगत विशेषताएं

सोमवार का दिन चंद्रमा से प्रभावित माना गया है. चंद्रमा को शुभता एवं सौम्यता का ग्रह कहा गया है. ग्रहों में सबसे अधिक गति से चलने वाला चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है. यह मन ,मस्तिष्क ,बुद्धिमता ,स्वभाव को प्रभावित करता है. इसके साथ ही यह भावनाओं पर नियन्त्रण रखता है. ऎसे में चंद्रमा का इन गुणों का असर व्यक्ति के जीवन पर भी पड़ता है.

चंद्रमा के प्रभाव स्वरुप इस दिन जन्मे व्यक्ति में भावुकता अधिक हो सकती है और वह मन से कोमल होता है. किसी अन्य की बातों में जल्द ही आ सकते हैं ऐसे में इन्हें परेशानी भी उठानी पड़ सकती है. सोमवार में जन्मे जातक पर चंद्र का प्रभाव उसे सौम्य प्रवृत्ति का बना सकता है. वह जल्द ही दूसरों के साथ सामंजस्य भी स्थापित कर लेता है. जातक में कल्पनाशिलता भी होती है. वह अपने विचारों में बहुत सी बातें सोच लेता है. परिस्थिति के अनुरूप स्वयं को ढालने का गुण भी इसमें होता है.

कार्यशैली और रचनात्मकता

सोमवार को जन्में जातक में काम को लेकर उत्साह बना रहता है. अपने काम को लेकर आपके प्रयास रहते हैं पर कई मामलों में आप के लिए स्थिति थोड़ी असुविधाजनक भी रह सकती है. कई बार स्थिति आपके मन के अनुरुप न ढल पाए. कई बार आपकी यही कोशिश रह सकती है की बिना किसी व्यर्थ की बहसबाजी से बच कर काम कर लिया जाए.

कभी कभी जिद्दी स्वभाव के कारण आप दूसरों की बातों को सुनना पसंद न करें लेकिन थोड़े से मनाने पर आप बात मान भी जाते हैं. कई बार चीजों को लेकर आप थोड़े ज्यादा ही उदार हो सकते हैं और कई बर स्वयं की मर्जी के चलते ही काम करते हैं. आपने मन के अनुसार चल सकते हैं ऎसे में कई बार बिना कुछ सोचे समझे काम कर बैठते हैं. कुछ भी कह सकते हैं ऎसे में बाद में आपको इस बात का अहसास भी होता है की शायद कुछ गलत तो नहीं कह दिया.

कई मामलों में आप अपनी बातों के सामने दूसरों की भी नहीं सुनते हैं. आपमें उत्सुकता और उतावलापन भी होता है. आप अपने मनमौजी स्वभाव के चलते जल्द ही दूसरों के संपर्क में भी आ जाते हैं. आपकी रचनात्मकता अच्छी हो सकती है. आपके मन में कुछ नई सोच होती है और आप अपने इस टैलेंट को अपने काम में भी उपयोग कर सकते हैं.

परिवार और संबंध

परिवार के साथ अपनी ओर से ये संबंधों को बेहतर बनाने की इच्छा रख सकते हैं. परिवार को एक साथ लेकर चलने की इच्छा भी रहती है. प्रेम संबंधों में आप अपनी ओर से कोशिशें जारी रखते हैं. आपको भाग्य की ओर से कई बार कुछ बेहतर मिल सकता है. प्यार के लिए आप अपनी ओर से भी सब कुछ करने की इच्छा रखते हैं पर अगर साथी की ओर से आपकी भावनाओं को कद्र न मिल पाए तो आप बहुत अधिक परेशान भी हो जाते हैं. मानसिक रुप से आप स्वयं को संभाल पाने में कई बार सक्षम भी नहीं हो पाते हैं.

नौकरी और व्यवसाय

काम काज के मौके बेहतर मिल सकते हैं. अपनी ओर से आप काम में बहुत प्रयास करते हैं और भागदौड़ भी अधिक करते हैं. आप अपने काम में अच्छा स्थान भी पा सकते हैं. आप के लिए जल से जुड़े हुए काम या फिर सुंदरता से युक्त काम बेहतर हो सकते हैं. आप अगर अपनी भावनाओं पर कुछ नियंत्रण रखें ओर कठोर फ़ैसले ले सकें तो आप काम में आगे बढ़ सकते हैं. धन से युक्त होते हैं और अपनी मेहनत से मुकाम भी पाने की कोशिशें भी करते हैं. ये अपने काम को पूरा करने के लिए प्रयास पूरी तरह से करें. अगर आप इस बात पर गंभीर होंगे तो काम को आसानी से कर सकेंगे.

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तिथि वृद्धि और तिथि क्षय क्या होता है | What is Tithi Vridhi and Tithi Kshaya

तिथि पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग हैं. तिथि के निर्धारण से ही व्रत और त्यौहारों का आयोजन होता है. कई बार हम देखते हैं की कुछ त्यौहार या व्रत दो दिन मनाने पड़ जाते हैं. ऎसे में इनका मुख्य कारण तिथि के कम या ज्यादा होने के कारण देखा जा सकता है.

तिथि का निर्धारण सूर्योदय से होता है. यदि एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के बीच में तीन तिथियाँ आ जाएँ तो उसमें एक तिथि क्षयी अर्थात कम हो जाती है. इसी प्रकार अगर दो सूर्योदयों तक एक ही तिथि चलती रहे तो वह तिथि वृद्धि अर्थात बढ़ना कहलाती है.

इन तिथियों का प्रत्येक व्रत व त्यौहार के साथ साथ व्यक्ति के जीवन पर विशेष प्रभाव होता है. एक माह में पहली 15 तिथियां कृष्ण पक्ष और बाकी की 15 शुक्ल पक्ष की होती हैं. कृष्ण पक्ष की 15(30)वीं तिथि को अमावस्या कहा जाता है. शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि को चन्द्रमा पूर्ण होता है, इसलिए इस तिथि को पूर्णिमा कहा जाता है. अमावस्या समय चंद्रमा और सूर्य एक ही भोगांश पर होते हैं.

तिथि क्यों घटती-बढ़ती है | Why does a date increase or decrease?

तिथि का पता सूर्य और चंद्रमा की गति से होता है. ज्योतिष शास्त्र में तिथि वृद्धि और तिथि क्षय की बात कही गई है.
सूर्य और चन्द्रमा एक साथ एक ही अंश पर होना अमावस्या का समय होता है और चंद्रमा का सूर्य से 12 डिग्री आगे निकल जाना एक तिथि का निर्माण करता है और इसी प्रकार प्रतिपदा, द्वितीया क्रमश: तिथियों का निर्माण होता जाता है.

चंद्रमा और सूर्य की गति में बहुत अंतर होता है. जहां सूर्य 30 दिन में एक राशि चक्र पूरा करता है, वहीं चंद्रमा को
एक राशि का चक्र पूरा करने में सवा 2 दिन का समय लेता है. सूर्य और चंद्रमा के मध्य जब अंतर आने लगता है तो प्रतिपदा का आरंभ होता है और ये अंतर 12 अंश समाप्त होने पर प्रतिपदा समाप्त हो जाती है और इसी के साथ द्वितीया का आरंभ होता है.

तिथि वृद्धि और तिथि क्षय होने का मुख्य कारण चंद्रमा की गति का होना है. चन्द्रमा की यह गति कम और ज्यादा होती रहती है. चन्द्रमा कभी तेज चलते हुए 12 अंश की दूरी को कम समय में पार कर लेता है और कभी कभी धीमा चलते हुए अधिक समय लेकर पूरा करता है.

तिथि क्षय और तिथि वृद्धि कैसे पता करें | How to determine ‘Tithi Vridhi’ & ‘Tithi Kshaya’

एक तिथि का भोग काल सामान्यतः 60 घटी का होता है. तिथि का क्षय होना या तिथि में वृद्धि होना सूर्योदय के आधार पर ही निश्चित होता है. अगर तिथि, सूर्योदय से पहले शुरू हो गई है और अगले सूर्योदय के बाद तक रहती है तो उस स्थिति को तिथि की वृद्धि कहा जाता है.

उदाहरण के लिए – रविवार के दिन सूर्योदय प्रातः 06:32 मिनिट पर हुआ और इस दिन पंचमी तिथि सूर्योदय के पहले प्रातः 6:15 मिनिट पर आरंभ होती है और अगले दिन सोमवार को सूर्योदय प्रातः 06:31 मिनिट के बाद प्रातः 7ः53 मिनिट तक रही तथा उसके बाद षष्ठी तिथि प्रारंभ होती है. इस तरह रविवार और सोमवार दोनों दिन सूर्योदय के समय पंचमी तिथि होने से तिथि की वृद्धि मानी जाती है. पंचमी तिथि का कुल मान 25 घंटे 36 मि0 आया जो कि औसत मान 60 घटी या 24 घंटे से अधिक है. इस कारण के होने से तिथि वृद्धि होती है.

इसकी दूसरी स्थिति में जब कोई तिथि सूर्योदय के बाद से शुरू होती है और अगले दिन सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाती है तो इसे क्षय होन आर्थात कम होना कहा जाता है जो हम तिथि क्षय कहते हैं. कैसी होती है क्षय तिथि उदाहरण – शुक्रवार को सूर्योदय प्रातः 07:12 पर हुआ और इस दिन एकादशी तिथि सूर्योदय के बाद प्रातः 07:36 पर समाप्त हो गई एवं द्वादशी तिथि शुरू हो जाए और द्वादशी तिथि 30:26 मिनट अर्थात प्रात: 06:26 तक ही रही और उसके बाद त्रयोदशी तिथि शुरु हो गई हो. सूर्योदय 07:13 पर हुआ ऎसे में द्वादशी तिथि में एक भी बार सूर्योदय नहीं हुआ. ऎसे में शुक्रवार को सूर्योदय के समय एकादशी और शनिवार को सूर्योदय के समय त्रयोदशी तिथि रही, जिस कारण द्वादशी तिथि का क्षय हो गया.

तिथियों के मुख्य नाम | Main Names of Tithis

सभी तिथियों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इन तिथियों के नाम के आधार पर ही इनके प्रभाव भी मिलते हैं. तिथियों के नाम इस प्रकार रहे हैं – नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा. 1-6-11 तिथि को नन्दा तिथि कहते हैं यह तिथि खुशी को दर्शाती है. 2-7-12 तिथि को भद्रा कहा जाता है वृद्धि को दर्शाती है. 3-8-13 जया तिथि कही जाती हैं, इनमें विजय की प्राप्ति होती है. 4-9-14 रिक्ता तिथि होती हैं यह अधिक अनुकूल नहीं होती हैं. 5-10-15 पूर्णा तिथियों में आती हैं यह शुभता को दर्शाती हैं.

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दस महाविद्या साधना मंत्र । Dasha Mahavidya Mantra Sadhana

दशमहाविद्या साधना गुप्त नवरात्रों में मुख्य रुप से की जाती है. मंत्र साधना एवं सिद्धि हेतु दश महाविद्या की उपासना का बहुत महत्व बताया गया है. माता की उपासना विधि में मंत्र जाप का बहुत महत्व होता है. किसी भी साधक के लिए आवश्यक है की वह उपासना में शुद्धता शुचिता का ध्यान रखे. संपूर्ण एकाग्रता के साथ देवी का ध्यान करते हुए मंत्र जाप द्वारा देवी की साधना करे.

दशमहाविद्या मंत्र साधना में कई मंत्रों का उल्लेख मिलता है. साधक अपने अनुकूल मंत्र को ग्रहण करके उसके जाप द्वारा सिद्धि प्राप्ती के मार्ग पर चल सकता है. किसी भी मंत्र का अपना महत्व और शक्ति होती है.

महाविद्या काली | Kali

माँ काली तंत्र साधना की मुख्य देवी हैं, इनका स्वरुप भयावह एवं शत्रु का संहार करने वाला होता है. मां काली दस महाविद्याओं मे से एक मानी जाती हैं. तंत्र विद्या हेतु काली के रूप की साधना की जाती है.

मंत्र
‘ऊँ क्रीं कालिकायै नमः’

महाविद्या तारा | Tara

माँ तारा दशमहाविद्याओं में से एक हैं, इन्हें भी तंत्र साधना के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.मां तारा सर्वसिद्धिकारक हैं एवं उग्र तारा, नील सरस्वती और एकजटा इन्हीं के रूप हैं. यही राज-राजेश्वरी हैं. देवी माँ तारा कला-स्वरूपा और मुक्ति को प्रदान करने वाली हैं.

मंत्र
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट

महाविद्या ललिता | Lalita

माँ ललिता गौर वर्ण की, कमल पर विराजमान हैं उनके तेज से दिशाएं प्रकाशित हैं. इनकी साधना द्वारा साधक को समृद्धि की प्राप्त होती है. माँ के मंत्र जाप साधक को माता का आशीर्वाद प्रदान करने में सहायक होते हैं.

मंत्र
‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।’

महाविद्या भुवनेश्वरी | Bhuvaneswari

देवी भुवनेश्वरी को सर्वोच्च सत्ता की प्रतीक कहा गया है. दिव्य प्रकाश से युक्त माता भुवनेश्वरी साधक को शुभता का वरदान देती हैं. माँ भुवनेश्वरी के मंत्र जाप द्वारा उपासक को सुख और ऎश्वर्य की प्राप्ती होती है.

मंत्र
“ऐं हृं श्रीं ऐं हृं”

महाविद्या त्रिपुर भैरवी | Tripura Bhairavi

माँ त्रिपुर भैरवी की साधना द्वारा साधक को सुख और सौभगय की प्राप्ती होती है. माता की पूजा में लाल रंग का उपयोग किया जाता है. मां के मंत्र जाप द्वारा इनकी सिद्धि और शक्ति की प्राप्ति संभव है.

मंत्र
ऊँ ऎं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:

महाविद्या छिन्नमस्तिका॒ | Chinnamasta

माँ छिन्नमस्तिका॒ को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है. शत्रुओं का नाश करने और साधक को भय मुक्ति करके सुख एवं शांति प्रदान करती हैं. माता भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है. सभी चिंताओं का हरण कर लेने के कारण ही इन्हें चिंतपूर्णी कहा जाता है.

मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा ॥

महाविद्या धूमावती | Dhumavati

मां धूमावती दशमहाविद्याओं में एक हैं. इनके दर्शन मात्र से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. माँ धूमावती में शत्रु का संहार करने की सभी क्षमताएं निहित हैं. इनकी साधना द्वारा साधक को शक्ति एवं सामर्थ्य की प्राप्ती होती है.

मंत्र
ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा

महाविद्या बगलामुखी | Maa Baglamukhi

माँ बगलामुखी स्तंभव की अधिष्ठात्री देवी हैं. इन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है. देवी बग्लामुखी की साधना शत्रु का स्तंभन करने, वाकसिद्धि, विवाद में विजय के लिए की जाती है.

मंत्र
ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा’

महाविद्या मातंगी | Matangi

माता मातंगी वाणी और संगीत की देवी मानी जाती हैं. सुखी जीवन एवं समृद्ध की प्राप्ती के लिए मातंगी माता की उपासना का विधान है. माँ मातंगी को उच्छिष्टचांडालिनी, महापिशाचिनी, राजमांतगी, सुमुखी, वैश्यमातंगी, कर्णमातंगी स्वरुप में भी दर्शाया गया है.

मंत्र
‘क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा:’

महाविद्या कमला | Kamla

माँ कमला कमल पर आसीन हुए स्वर्ण से सुशोभित हैं. सुख समृद्धि और अतुल सामर्थ्य की प्रतीक हैं. इनकी साधना से उपासक को सुख समृद्धि का भंडार मिलता है. धन की कभी कमी नहीं रहती है. चारों दिशाओं में उसका यशोगान होता है

मंत्र

श्रीं क्लीं श्रीं नमः॥

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जानें इस साल कब-कब लगेगा चंद्र ग्रहण

इस वर्ष  25 मार्च 2024 ओर 18 सितंबर 2024 को चंद्र ग्रहण की स्थिति बनेगी. चंद्र ग्रहण भारत में दृष्य नहीं होगा.  

25 मार्च 2024 चंद्र ग्रहण (भारत में अदृष्य)

ग्रहण समय

  • ग्रहण आरंभ (स्पर्श) – 09:04
  • स्पर्श प्रारंभ – 10:11
  • ग्रहण मध्य – 10:42
  • खग्रास समाप्त – 11:13
  • ग्रहण समाप्त – 12:21

18 सितंबर 2024 चंद्र ग्रहण (भारत में अदृष्य)

ग्रहण समय

  • ग्रहण स्पर्श – 07:43
  • ग्रहण मध्य – 08:14
  • ग्रहण समाप्त – 08:46

ग्रहण की कुल अवधि 01 घंटे 03 मिनिट की रहेगी.  शाम 07:43 पर चंद्रग्रहण का आरंभ होगा और 08:46 पर इसका समाप्ति काल अर्थात मोक्ष होगा.

खण्डग्रास चंद्र ग्रहण की सीमा में आने वाले मुख्य देश

चंद्रग्रहण संपूर्ण भारत में अदृष्य होगा इसके साथ ही यह विश्व के कुछ अन्य भागों में भी दिखाई देगा जिसमें से अधिकतर यूरोप के भागों, दक्षिण अमरीका के अधिकांश क्षेत्रों, एशिया इत्यादि स्थानों में भी इसे देखा जा सकेगा.

चंद्र ग्रहण का सूतक काल

सूतक काल में बालकों, वृ्द्ध, रोगी व गर्भवती स्त्रियों को छोडकर अन्य लोगों को सूतक से पूर्व भोजनादि ग्रहण कर लेना चाहिए. तथा सूतक समय से पहले ही दूध, दही, आचार, चटनी, मुरब्बा में कुशा रख देना श्रेयस्कर होता है. ऎसा करने से ग्रहण के प्रभाव से ये अशुद्ध नहीं होते है.परन्तु सूखे खाने के पदार्थों में कुशा डालने की आवश्यक्ता नहीं होती है.

ग्रहण अवधि में किये जाने वाले कार्य

ग्रहण के स्पर्श के समय में स्नान, ग्रहण मध्य समय में होम और देव पूजन और ग्रहण मोक्ष समय में श्राद्ध और अन्न, वस्त्र, धनादि का दान और स्नान करना चाहिए. ग्रहण समय में समुद्र नदी के जल या तीर्थों की नदी में स्नान करने से पुण्यदायक फलों की प्राप्ति होती है. ग्रहण समय के आरम्भ होने से समाप्ति के मध्य की अवधि में मंत्र ग्रहण, मंत्रदीक्षा, जप, उपासना, पाठ, हवन, मानसिक जाप, चिन्तन करना उत्तम होता है.

ग्रहण समाप्ति के बाद क्या करें

ग्रहण का मोक्षकाल समाप्त होने के बाद स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. देवमूर्तियों को स्नान करा कर, गंगाजल छिडक कर, नवीन वस्त्र पहनाकर, देवों का श्रंगार करना चाहिए.

जिस भी स्थान विशेष पर ग्रहण का प्रभाव हो, या फिर ग्रहण दृष्टिगोचर हो रहा हो, उन स्थानों पर रहने वाले व्यक्तियों को यह जानने की जिज्ञासा रहती है कि शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के दिन कार्य किस क्रम में निर्धारित किये जायें. सबसे पहले ग्रहण काल आरम्भ होने के समय स्नान करना चाहिए. ग्रहण काल के मध्य की अवधि में होम और मंत्र सिद्धि के कार्य करने चाहिए. साथ ही ग्रहण समाप्ति समय में स्नान करने के बाद अन्न, वस्त्र, धनादि का दान और इन सभी कार्यों से मुक्त होने के बाद एक बार फिर से स्नान करना चाहिए.

ग्रहण काल में मंत्र जाप

ग्रहण काल की अवधि में किसी भी मंत्र का जाप एवं साधना कार्य करना शुभ रहता है. सभी कष्टों को दूर करने वाले मंत्र “महामृ्त्युंजय ” मंत्र का जाप भी जाप करने वाले व्यक्ति को लाभ देगा. “ओम् त्र्यम्बकं यजामहे, सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनं, उर्वारुक्मिव बंधनात्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्”
इसके अलावा गायत्री मंत्र -” ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्” का जाप भी लाभदायक होता है.

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जानिए क्या है गुप्त नवरात्र । गुप्त नवरात्रि महत्व

गुप्त नवरात्रों में मां दुर्गा की पूजा का विधान होता है, यह गुप्त नवरात्र साधारण जन के लिए नहीं होते हैं मुख्य रुप से इनका संबंध साधना और तंत्र के क्षेत्र से जुड़े लोगों से होता है. इन दिनों भी माता के विभिन्न रूपों की पूजा का विधान होता है. जैसे नवरात्रों में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा की जाती है उसी प्रकार इन गुप्त नवरात्रों में भी साधक माता की विभिन्न प्रकार से पूजा करके उनसे शक्ति और सामर्थ्य की प्राप्ति का वरदान मांगता है.

गुप्त नवरात्र रहस्य

मां दुर्गा को शक्ति कहा गया है ऐसे में इन गुप्त नवरात्रों में मां के सभी रुपों की पूजा की जाती है. देवी की शक्ति पूजा व्यक्ति को सभी संकटों से मुक्त करती है व विजय का आशीर्वाद प्रदान करती हैं.गुप्‍त नवरात्र भी सामान्य नवरात्र की भांति दो बार आते हैं एक आषाढ़ माह में और दूसरे माघ माह में.

इन नवरात्र के समय साधना और तंत्र की शक्तियों में इजाफा करने हेतु भक्त इसे करता है. तंत्र एवं साधना में व‍िश्‍वास रखने वाले इसे करते हैं. इन नवरात्रों में भी पूजन का स्वरूप सामान्य नवरात्रों की ही तरह होता है. जैसे चैत्र और शारदीय नवरात्रों में मां दुर्गा के नौं रूपों की पूजा नियम से की जाती है उसी प्रकार इन गुप्त नवरात्रों में भी दस महाविद्याओं की साधना का बहुत महत्व होता है.

क्‍या होते हैं गुप्‍त नवरात्र‍ि

गुप्‍त नवरात्र में माता की शक्ति पूजा एवं अराधना अधिक कठिन होती है और माता की पूजा गुप्‍त रूप से की जाती है इसी कारण इन्हें गुप्त नवरात्र की संज्ञा दी जाती है. इस पूजन में अखंड जोत प्रज्वलित की जाती है. प्रात:कल एवं संध्या समय देवी पूजन-अर्चन करना होता है. गुप्‍त नवरात्र में तंत्र साधना करने वाले दस महाविद्याओं की साधना करते हैं. नौ दिनों तक दुर्गा सप्तशति का पाठ किया जाता है. अष्‍टमी या नवमी के दिन कन्‍या पूजन कर व्रत पूर्ण होता है.

गुप्त नवरात्रि पूजा विधि

गुप्त नवरात्रों में माता आद्य शक्ति के समक्ष शुभ समय पर घट स्थापना की जाती है जिसमें जौ उगने के लिये रखे जाते है. इस के एक और पानी से भरा कलश स्थापित किया जाता है. कलश पर कच्चा नारियल रखा जाता है. कलश स्थापना के बाद मां भगवती की अंखंड ज्योति जलाई जाती है. भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है. उसके बाद श्री वरूण देव, श्री विष्णु देव की पूजा की जाती है. शिव, सूर्य, चन्द्रादि नवग्रह की पूजा भी की जाती है. उपरोक्त देवताओं कि पूजा करने के बाद मां भगवती की पूजा की जाती है. नवरात्रों के दौरान प्रतिदिन उपवास रख कर दुर्गा सप्तशती और देवी का पाठ किया जाता है.

गुप्त नवरात्र और तंत्र साधना

गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं के पूजन को प्रमुखता दी जाती है. भागवत के अनुसार महाकाली के उग्र और सौम्य दो रुपों में अनेक रुप धारण करने वाली दस महा-विद्याएँ हुई हैं. भगवान शिव की यह महाविद्याएँ सिद्धियाँ प्रदान करने वाली होती हैं. दस महाविद्या देवी दुर्गा के दस रूप कहे जाते हैं. प्रत्येक महाविद्या अद्वितीय रुप लिए हुए प्राणियों के समस्त संकटों का हरण करने वाली होती हैं. इन दस महाविद्याओं को तंत्र साधना में बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण माना जाता है.

देवी काली- दस महाविद्याओं मे से एक मानी जाती हैं. तंत्र साधना में तांत्रिक देवी काली के रूप की उपासना किया करते हैं.

देवी तारा- दस महाविद्याओं में से माँ तारा की उपासना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक मानी जाती है.माँ तारा परारूपा हैं एवं महासुन्दरी कला-स्वरूपा हैं तथा देवी तारा सबकी मुक्ति का विधान रचती हैं.

माँ ललिता- माँ ललिता की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है. दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है.

माँ भुवनेश्वरी – माता भुवनेश्वरी सृष्टि के ऐश्वयर की स्वामिनी हैं. भुवनेश्वरी माता सर्वोच्च सत्ता की प्रतीक हैं. इनके मंत्र को समस्त देवी देवताओं की आराधना में विशेष शक्ति दायक माना जाता है.

त्रिपुर भैरवी – माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं.

माता छिन्नमस्तिका –माँ छिन्नमस्तिका को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है. माँ भक्तों के सभी कष्टों को मुक्त कर देने वाली है.

माँ धूमावती – मां धूमावती के दर्शन पूजन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. माँ धूमावती जी का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है.

माँ बगलामुखी – माँ बगलामुखी स्तंभन की अधिष्ठात्री हैं. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है.

देवी मातंगी – यह वाणी और संगीत की अधिष्ठात्री देवी कही जाती हैं. इनमें संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं.भगवती मातंगी अपने भक्तों को अभय का फल प्रदान करती हैं.

माता कमला – मां कमला सुख संपदा की प्रतीक हैं. धन संपदा की आधिष्ठात्री देवी है, भौतिक सुख की इच्छा रखने वालों के लिए इनकी अराधना सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं.

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अधिक मास उद्यापन विधि | Udyapan Rituals for Adhikmaas

अधिक मास के समय के दौरान बहुत से लोग व्रत, जप, तप और साधना करते हैं भगवान विष्णु के पूजन का ये विशेष समय होता है. इस पूरे अधिक मास को मल मास, प्भुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है इसमें पूजा और तप को ही महत्व दिया गया है. जब ये माह समाप्त होता है तो इसके उद्यापन का भी बहुत महत्व रहा है. अधिक मास के अंतिम दिन में प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य नारायण को लाल पुष्प, चंदन अक्षत मिश्रित जल से अर्घ्य देना चाहिए. विविध प्रकार के अन्न, वस्त्र, घी-गुड़ और गेहूं के बनाए हुए तैंतीस पूओं को पात्र में रख कर, फल, मिष्ठान वस्त्र और दक्षिणा सहित ब्राह्मण को दान करना चाहिए. दान समय उक्त मंत्र जाप करें-

“ऊँ विष्णूरुपी सहस्त्रांशु: सर्वपापप्रणाशन:।
अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु।।”

इसके बाद भगवान विष्णु को प्रार्थना करें –

“यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुडोयस्य वाहनम्:|
शंख: करतले यस्य स मे विष्णु: प्रसीदतु।।”

अधिक मास की समाप्ति पर स्नान, जप, पुरुषोत्तम मास पाठ एवं निम्न मंत्रों सहित गुड़ गेहूं, घी, मिष्ठान, दाख, केला, वस्त्र इत्यादि वस्तुओं का दान, दक्षिणा सहित भगवान को तीन बार अर्घ्य देकर भगवान नारायण के 33 नाम मंत्र जाप करें –

विष्णुं, जिष्णुं, महाविष्णुं, हरिं, कृष्णं, अधोक्षजम, केशवं, माधवं, रामं, अच्युत्यं, पुरुषोत्तमम्, गोविन्दं, वामनं, श्रीशं, श्री कृष्णमं, विश्वसाक्षिणं, नारायणं, मधुरिपुं, अनिरिद्धं, त्रिविक्रमम् , वासुदेवं, जगद्योनिं, अनन्तं, शेयशानियम्, सकर्षणं, प्रद्मुम्नं, दैत्यरिं, विश्वतोमुखम् , जनार्दनं, धरावासं, दामोदरं, मघार्दनं, श्रीपतिं च.

अधिक मास में किए गए  व्रत, दान, पूजा, हवन इत्यादि  ने से पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है. भागवत पुराण तथा अन्य ग्रंथों के अनुसार पुरुषोत्तम मास में किए गये सभी शुभ कर्मो का कई गुना फल प्राप्त होता है.

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ज्येष्ठ अधिक मास पूर्णिमा । Jyeshtha Adhikmas Purnima Puja

हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठा मास हिन्दू वर्ष का तीसरा माह होता है. इस माह में विशेष रुप से गंगा नदी में स्नान और पूजन करने का विधि-विधान है. इस माह में आने वाले पर्वों में गंगा दशहरा और इस माह में आने वाली ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी और निर्जला एकादशी प्रमुख पर्व है. गंगा नदी का एक अन्य नाम ज्येष्ठा भी है. गंगा को गुणों के आधार पर सभी नदियों में सबसे उच्च स्थान दिया गया है.

इस वर्ष ज्येष्ठ मास अधिक मास होने के कारण इस पूर्णिमा का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है, इस समय व्रत एवं पूजा पाठ द्वारा व्यक्ति को सुख-सौभाग्य, धन-संतान कि प्राप्ति होती है. ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस माह की कृष्ण्पक्ष की सप्तमी को कृतिका नक्षत्र के योग में दान तथा विष्णु पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है.

सत्यनारायण कथा एवं पूजन

ज्येष्ठ अधिक मास पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्य नारायण जी कि कथा की जाती है. भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है. सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ गेहूँ के आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगाया जाता है.

सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है. पूर्णिमा में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, पोखर, कुआं या घर पर ही स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. अधिक मास में ब्राह्मण को भोजन कराना, दक्षिणा देनी चाहिए. ज्येष्ठ अधिक मास पूर्णिमा के दिन स्नान करने वाले पर भगवान विष्णु कि असीम कृपा रहती है.

अधिक मास पूर्णिमा व्रत का महत्व | Importance of Adhikmas Purnima

जो व्यक्ति मलमास में पूर्णिमा के व्रत का पालन करते हैं उन्हें भूमि पर ही सोना चाहिए. एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिए. इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए. श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए. श्री रामायण का पाठ या रुद्राभिषेक का पाठ करना चाहिए. साथ ही श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है.

अधिक मास पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भक्ति से व्रत तथा उपवास रखना चाहिए. इस दिन पूजा – पाठ का अत्यधिक माहात्म्य माना गया है. मलमास मे प्रारंभ के दिन दानादि शुभ कर्म करने का फल अत्यधिक मिलता है. जो व्यक्ति इस दिन व्रत तथा पूजा आदि कर्म करता है वह सीधा गोलोक में पहुंचता है और भगवान कृष्ण के चरणों में स्थान पाता है.

व्रत उद्यापन

इस समय स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है. पूर्णिमा की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए. इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए. इसमें धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है. यह माह बहुत गर्म माह होता है ऐसे में इस माह में जल का दान अत्यंत उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है.

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चैत्र नवरात्र में शक्ति पूजा का महत्व 2024

चैत्र माह की प्रतिपदा का आरंभ नव वर्ष के आरंभ के साथ साथ दुर्गा पूजा के आरंभ का भी समय होता है. इस वर्ष 09 मार्च 2024 को चैत्र नवरात्रों के आरंभ से ही विक्रम संवत का आरंभ होगा और इसी के साथ ही प्रतिपदा से नवरात्रों का भी आरंभ होगा. चैत्र नवरात्र का समय देवी दुर्गा के विभिन्न रुपों की पूजा का समय होता है जिसे हम शक्ति पूजा भी कहते हैं. इसी शक्ति पूजा को राम ने भी सफलता एवं युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए देवी के इन रुपों को पूजा और उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई. यही इन नौ दिनों की पूजा का प्रभाव होता है.

जो भी व्यक्ति पूर्ण निष्ठा और सत्य भावना के साथ इन दिनों मॉं के सभी रुपों की पूजा करते हैं उन्हें अपने क्षेत्र में सकारात्मक परिणामों की प्राप्ति अवश्य होती है. चैत्र नवरात्रों के आगमन द्वारा नए वर्ष का आरंभ हो जाता है. इस समय को आधार बनाकर ज्योतिष की गणनाएं भी की जाती हैं.

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती

नवरात्र में शक्ति पूजा के अंतर्गत दुर्गा सप्तशती का बहुत महत्व माना जाता है. इस समय पर सप्तशती के पठन पाठन को शीघ्र फल प्रदान करने वाला माना जाता है. दुर्गा सप्तशती के पाठ का श्रवण मनन करना बहुत ही लाभदायक होता है साथ ही इस समय के दौरान की जाने वाली इस पाठ पूजा में साधक को पूर्ण रुप से सात्विकता और शुद्धता का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है.

चैत्र नवरात्र पूजन का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है. शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नान इत्यादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए.

दुर्गा सप्तशती पाठ पूजन में साधना करने वाले को प्रात:काल स्नान करके, आसन शुद्धि पश्चात आसन ग्रहण करके माता के पूजन की समस्त सामग्री को एकत्रत करके ध्यान पश्चात पूजा को आरंभ करना चाहिए. यदि साधक इस पाठ को पूरा न कर सके तो इनमें दिए गए कुछ मंत्रों के पाठन कर लेने से ही समस्त अध्यायों के पाठन जितना ही फल प्राप्त होता है.

नवरात्र में कन्या पूजन

नवरात्रि के इन नौ दिनों में माता के नव रुपों की पूजा उपासना की जाती है. माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है होता है जिसमें अष्टमी और नवमी के दिन पर विशेश रुप से कन्या पूजन होता है. इस पूजन में 10-9 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को पूजा जाता है उन्हें माता का भोग लगाया जाता है तथा विशेष उपहार भी प्रदान किए जाते हैं.

नवरात्रि पूजा विधान

नौ दिनों की इन महत्वपूर्ण रात्रि में देवी दुर्गा जी को मंत्र एवं तंत्र द्वारा प्रसन्न किया जाता है. पूजा के साथ इन दिनों में तंत्र और मंत्र के कार्य भी किये जाते है. बिना मंत्र के कोई भी साधाना अपूर्ण मानी जाती है. शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को सुख -शान्ति पाने के लिये किसी न किसी ग्रह की उपासना करनी ही चाहिए. माता के इन नौ दिनों में ग्रहों की शांति करना विशेष लाभ देता है. इन दिनों में मंत्र जाप करने से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है. नवरात्रे के पहले दिन माता दुर्गा के कलश की स्थापना कर पूजा प्रारम्भ की जाती है.

इन दिनों में माता को प्रसन्न करने के लिए बहुत प्रकार से पूजा का विधान रहता है और इन पूजा में माता के सभी रुपों के लिए विभिन्न नियमों एवं कार्यों को संपन्न करके शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

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हनुमान जयंती (दक्षिण भारत) 2024। चैत्र माह हनुमान जयंती 2024

इस वर्ष 23 अप्रैल 2024 को मंगलवार के दिन मनाई जाएगी. चैत्र पूर्णिमा और हनुमान जयंती के शुभ अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान और दान इत्यादि करने का विधान बताया गया है. चैत्र पूर्णिमा और जयंती के अवसर पर रामायण का पाठ, भजन-किर्तन संध्या जैसे धार्मिक कृत किए जाते हैं.

हनुमान जयंती पर प्रचलित दो मत

हनुमान जयंती तिथि के विषय में दो मत बहुत प्रचलित हैं. प्रथम यह कि चैत्र पूर्णिमा के दिन यह जयंती मनाई जाती है, इस मत का संबंध दक्षिण भारत से रहा है चैत्र पूर्णिमा के दिन दक्षिण भारत में विशेष रूप से हनुमान जयंती पर्व का आयोजन होता है.

दूसरे मतानुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन इस जयंती को मानाया जाता है. इस दिन उत्तर भारत में हनुमान जयंती पर विशेष रूप से पूजा अर्जना और दान पूण्य किया जाता है. अत: इन दोनों ही मतों के अनुसर हनुमान जयंती भक्ति भाव के साथ मनाई जाती है.

हनुमान जयंती व्रत विधि

हनुमान जी की पूजा अर्चना में ब्रह्मचर्य और शुद्धता का बहुत ध्यान रखना होता है. व्रत का पालन करने वाले को चाहिए की वह व्रत की पूर्व रात्रि को ब्रह्मचर्य का पालन आरंभ करे और पृथ्वी पर ही शयन करे. प्रात: काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने नित्य कर्मों से निवृत होकर श्री राम-सीता जी और हनुमान जी का स्मरण करना चाहिए. हनुमान जी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करते हुए षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. हनुमाजी पर सिंदूर एवं चोला चढा़ना चाहिए. प्रसाद रूप में गुड़, चना, बेसन के लड्डू का भोग लगाना चाहिए.

ऊँ हनुमते नम: मंत्र का उच्चारण करते रहना चाहिए इस दिन रामायण एवं सुंदरकाण्ड का पाठ करना चाहिए व संभव हो सके तो श्री हनुमान चालिसा के सुंदर काण्ड के अखण्ड पाठ का आयोजन करना चाहिए. हनुमान जी का जन्म दिवस उनके भक्तों के लिए परम पुण्य दिवस है. इस दिन हनुमान जी की प्रसन्नता हेतु उन्हें तेल और सिन्दुर चढ़ाया जाता है. हनुमान जी को मोदक बहुत पसंद है अत: इन्हें मोदक का भी भोग लगाना चाहिए. हनुमान जयन्ती पर हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक, बजरंग वाण एवं रामायण का पाठ करने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है.

हनुमान जन्म कथा

हनुमान जी के जन्म के विषय में कथा प्रचलित है कि देवी अंजना और केसरी की कोई संतान नहीं थी. इससे दु:खी होकर यह दोनों मतंग मुनि के पास पहुंचे. मुनि के बताये निर्देश के अनुसार दोनों 12 वर्षों तक वायु पीकर तपस्या करते रहे. इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वायु देव ने पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया. कथा है कि इसी समय अयोध्या में पुत्र प्राप्ति की कामना से दशरथ जी अपनी पत्नियों के साथ पुत्रेष्टि यज्ञ कर रहे थे.

उसे यज्ञ से जो फल प्राप्त हुआ दशरथ जी ने अपनी तीनों रानियों में बाँट दिया. इसी फल का एक अंश लेकर एक पक्षी उस स्थान पर पहुंचा जहां अंजना और केसरी तपस्या कर रहे थे. पक्षी ने फल का वह अंश अंजना की हथेली में गिरा दिया. इस फल को खाने से अंजना भी गर्भवती हो गई और चैत्र शुक्ल नवमी तिथि को अंजना के घर वायु देव के वरदान के फलरूप में रूद्र के ग्यारहवें अवतार हनुमान जी का जन्म हुआ.

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