ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी का महत्व और पूजा विधि

ज्येष्ठ मास की द्वादशी तिथि अत्यंत पुण्यदायिनी मानी जाती है. हर माह दो बार द्वादशी आती है एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में. इनमें से ज्येष्ठ मास की द्वादशी का विशेष महत्व है. इस दिन गंगा, यमुना जैसे पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यंत शुभ होता है. ज्येष्ठ द्वादशी के अवसर पर यमुना स्नान करने से भगवान की कृपा सहजता से प्राप्त होती है.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस महीने में ग्रहों की स्थिति प्रभावशाली होती है, विशेषकर सूर्य की स्थिति विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है. श्रीहरि की पूजा इस समय मोक्ष की दिशा में मार्ग प्रशस्त करती है. कृष्ण पक्ष की द्वादशी भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती है, इसलिए यह तिथि अत्यंत शुभ और महत्वपूर्ण मानी जाती है.

जो भी व्यक्ति भगवान की कृपा जीवनभर पाना चाहते हैं और समस्त कठिनाइयों से मुक्ति की अभिलाषा रखते हैं, उन्हें इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए. यदि यह संभव न हो तो घर पर ही अपने स्नान जल में गंगाजल या किसी पवित्र जल की कुछ बूंदें मिलाकर स्नान करना चाहिए. जैसा कि इसका नाम ‘ज्येष्ठ द्वादशी’ है, यह व्यक्ति के जीवन को लक्ष्य प्राप्ति और कार्यों में सफलता दिलाने वाली होती है. शास्त्रों में मनुष्य का परम लक्ष्य मोक्ष बताया गया है, और यह व्रत उस राह को सहज बनाता है.

ज्येष्ठ द्वादशी का काल व नामकरण

पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है, इसके अगले दिन की द्वादशी को अत्यंत पवित्र माना जाता है. द्वादशी तिथि का नाम उस दिन की पूर्णिमा तिथि के नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है. ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा ज्येष्ठा नक्षत्र में होती है, इसलिए इसे ‘ज्येष्ठ द्वादशी’ कहा जाता है.  

इस द्वादशी का महत्व अत्यधिक है. भगवान कृष्ण की उपासना इस दिन विशेष फलदायक मानी जाती है.

ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी पौराणिक महत्ता

इस मास में और विशेषतः द्वादशी के दिन उनका पूजन हर प्रकार की सफलता प्रदान करता है. सतयुग में देवताओं ने ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से वर्ष का आरंभ किया था. इस दिन स्नान और दान करने की विशेष परंपरा रही है.

पूजन एवं धार्मिक विधि 

ज्येष्ठ द्वादशी का संपूर्ण आयोजन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा को समर्पित होता है. इस दिन धार्मिक गतिविधियों जैसे जप, ध्यान, दान आदि का विशेष महत्व होता है. पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ वर्ष का सबसे गर्म समय भी होता है और इसमें श्रीकृष्ण की आराधना विशेष फलदायक होती है. इस दिन मुरलीधर कृष्ण की पूजा से जीवन में सुख-शांति आती है. इस शुभ अवसर पर भगवान को पुष्प, फल, नैवेद्य, दीप, धूप आदि अर्पित करें.

इस दिन व्यक्ति को प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करके शरीर को शुद्ध करना चाहिए. स्नान से पहले तुलसी की जड़ की मिट्टी का लेप लगाना चाहिए और फिर स्नान करना चाहिए. स्नान करते समय ‘ॐ नमो भगवते नारायणाय’ या गायत्री मंत्र का जाप शुभ माना जाता है.

दान का महत्व एवं पूजन सामग्री

ज्येष्ठ द्वादशी के दिन वस्त्र, कंबल, फल, अन्न, बिस्तर आदि का दान अत्यंत पुण्यदायक होता है. पूजा सामग्री जैसे तुलसी की माला, चंदन, दीपक, मोरपंख, जल पात्र, पीतांबर, मूर्ति आदि का दान करने से शुभ फल प्राप्त होता है.

हर द्वादशी किसी न किसी देवता को समर्पित होती है. ज्येष्ठ मास में आने वाली द्वादशी विष्णु, लक्ष्मी और श्रीकृष्ण की पूजा के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है. यह महीना पितरों की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी विशेष रूप से श्रद्धेय है.

धार्मिक नियम और परंपराएं

इस दिन गंगा स्नान, सूर्य को अर्घ्य देना, सात्विक भोजन ग्रहण करना तथा तामसिक वस्तुओं से परहेज करना आवश्यक है. व्रती को व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए और भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण व लक्ष्मी जी की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. विष्णुसहस्रनाम और गीता का पाठ विशेष फलदायक होता है. इस दिन जरूरतमंदों को दान देना, पशु-पक्षियों को अन्न-जल खिलाना, पितरों को तर्पण करना शुभ माना गया है.

यदि कोई व्यक्ति तीर्थ यात्रा न कर सके तो घर पर ही पवित्रता के साथ पूजा अर्चना करके द्वादशी का पुण्य प्राप्त कर सकता है.इ द्वादशी के दिन जल का दान सबसे अधिक उत्तम स्थान पाता है। 

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