शनिश्चरी अमावस्या : शनिश्चरी जन्म कथा

हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को विशेष महत्व प्राप्त है, विशेषकर जब यह शनिवार को आती है, जिसे शनिश्चरी अमावस्या कहा जाता है. यह तिथि शनिश्चरी देव की उपासना के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है. शनिश्चरी अमावस्या के दिन श्रद्धालु शनि देव की कृपा प्राप्त करने और अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए व्रत, पूजा और दान करते हैं. इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है जब यह किसी विशेष नक्षत्र या योग के साथ आता है.

शनि देव को न्याय का देवता कहा जाता है. वे व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं अच्छा कर्म करने पर उत्तम फल और बुरा कर्म करने पर कष्ट इसलिए इन्हें कर्मफल दाता कहा जाता है. शनि की दृष्टि को क्रूर दृष्टि माना जाता है, लेकिन यह दृष्टि किसी को दंड देने के लिए नहीं, बल्कि सुधारने के लिए होती है. वे व्यक्ति को उसके जीवन के पथ पर संतुलित और धर्मशील बनाए रखने में सहायता करते हैं.

शनिश्चरी अमावस्या कथा

शनिश्चरी अमावस्या शनि देव के जन्म से संबंधित है. इस दिन की कथा अनुसार शनि देव का जन्म सूर्य देव और छाया (संवर्णा) के पुत्र के रूप में हुआ था. छाया, संज्ञा की छाया स्वरूप थीं, जिन्हें सूर्य देव की प्रचंड तेज़ से कष्ट होने पर संज्ञा ने अपने स्थान पर रखा था. छाया ने सूर्य से शनिश्चरी की उत्पत्ति की. ऐसा कहा जाता है कि जब शनिश्चरी देव का जन्म हुआ, तभी से उनके प्रभाव के कारण सूर्य की तेजस्विता मद्धम हो गई और संपूर्ण वातावरण में अंधकार छा गया. शनि का रंग गहरा काला था, और उनका रूप भी अत्यंत गंभीर था. जन्म लेते ही उनके प्रभाव से सूर्य देव भी विचलित हो गए. शनि देव ने तपस्या और साधना से भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे वर प्राप्त किया कि वे सभी ग्रहों में न्यायकर्ता और कर्मफल दाता के रूप में पूजे जाएंगे.

शनिश्चरी अमावस्या का महत्व

शनिश्चरी अमावस्या वह दिन है जब अमावस्या शनिवार को पड़ती है. यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है जिनकी कुंडली में शनिश्चरी दोष, साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही होती है. शनिश्चरी अमावस्या के दिन विशेष पूजा और उपाय करके शनिश्चरी की पीड़ा से राहत पाई जा सकती है.

इस दिन शनि मंदिरों में भारी भीड़ होती है. लोग शनि देव की मूर्ति पर तिल का तेल, काले तिल, नीले फूल, काले वस्त्र और लोहा चढ़ाते हैं. शनि स्तोत्र, दशरथ कृत शनिश्चरी स्तुति और हनुमान चालीसा का पाठ भी इस दिन लाभदायक माना जाता है. इस दिन दान का भी विशेष महत्व होता है काले तिल, कंबल, लोहा, चप्पल आदि का दान करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है.

शनिश्चरी अमावस्या के दिन किए जाने वाले प्रमुख उपाय

शनि मंदिर में तिल का तेल चढ़ाना चाहिए, पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर शनिश्चरी चालीसा पढ़ना चाहिए, काले वस्त्र दान करना चाहिए, निर्धनों को काले वस्त्र, छाता, चप्पल, कंबल आदि का दान करना चाहिए, शनि देव का अभिषेक करना चाहिए, काले तिल मिले जल से शनि देव की मूर्ति का स्नान कराना चाहिए, हनुमान जी की उपासना करनी चाहिए, शनि देव की कृपा पाने के लिए हनुमान जी का स्मरण करना लाभकारी होता है.

शनिश्चरी अमावस्या साढ़ेसाती और उपाय

शनि की साढ़ेसाती व्यक्ति के जीवन में सबसे कठिन समय मानी जाती है. यह 7.5 वर्षों तक चलती है और व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ता है परंतु यह काल केवल दंड का नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण और आत्मविकास का भी होता है. व्यक्ति इस समय संयम, परिश्रम और ईमानदारी से कार्य करे, तो शनि देव उसे अंत में आशीर्वाद भी देते हैं. शनि मंदिर के दर्शन करना चाहिए. व्रत रखें और काले चने, गुड़ और तिल का दान करना चाहिए.गरीबों को भोजन कराना चाहिए.पीपल के वृक्ष की सेवा करनी चाहिए.

शनि देव की पूजा केवल भयवश नहीं बल्कि श्रद्धा और समझदारी से की जानी चाहिए. वे अन्याय का विरोध करते हैं और न्यायप्रिय व्यक्ति का साथ देते हैं. उनके द्वारा दी गई परीक्षा हमें मजबूत और अनुशासित बनाती है. अगर कोई व्यक्ति सच्चे हृदय से सेवा और भक्ति करता है, तो शनिश्चरी देव उसकी कठिनाइयों को समाप्त कर देते हैं.

शनिश्चरी अमावस्या एक अत्यंत पावन दिन है जब भक्त शनिश्चरी देव की पूजा-अर्चना कर अपने जीवन से नकारात्मक प्रभावों को दूर कर सकते हैं. शनिश्चरी देव केवल दंडदाता नहीं, अपितु मार्गदर्शक भी हैं जो हमें कर्म और धर्म के पथ पर चलने की प्रेरणा देते हैं. यदि हम उनके सिद्धांतों को समझकर जीवन में उतारें, तो निश्चित ही हमारा जीवन सुखद और समृद्धिशाली बन सकता है.

शनिश्चरी अमावस्या पितृ पूजा का समय 

शनिश्चरी अमावस्या हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि इसी दिन पितृ पूजा का भी समय  होता है. यह अवधि पितृ तर्पण और पिंड दान जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से पूर्वजों की पूजा के लिए समर्पित है. भक्त ब्राह्मणों को भोजन और कपड़े देते हैं और अक्सर गंगा नदी में पवित्र स्नान करते हैं.

यह अवधि पितृ तर्पण और पिंड दान जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए खास होती है. अमावस्या को महत्वपूर्ण समय माना जाता है जब पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने परिवार के सदस्यों से प्रसन्न होने और उन्हें मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देने की आशा में अपने घर आते हैं. जो लोग इस अवधि के दौरान उनकी पूजा करते हैं, उन्हें सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है और जो लोग उन्हें याद भी नहीं करते हैं, उन्हें पितृ अपने लोक यानी पितृ लोक में लौटने से पहले श्राप देते हैं. शनिश्चरी अमावस्या के दिन लोग सदस्य विभिन्न पूजा अनुष्ठान करते हैं जैसे पितृ तर्पण, पिंड दान, हवन अनुष्ठान और गायत्री पाठ का आयोजन भी करते हैं. वे घर पर ब्राह्मणों या पुजारियों को आमंत्रित करते हैं और उन्हें भोजन, कपड़े, दक्षिणा और विभिन्न उपयोगी वस्तुएं देते हैं जिन्हें वे अपने पूर्वजों के नाम पर दान करना चाहते हैं. 

जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष है, उन्हें अपने पूर्वजों की शांति के लिए विशेष पूजा अवश्य करवानी चाहिए और इस पूजा को पितृ दोष निवारण पूजा कहा जाता है. इस पूजा को करने से उनके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. भक्त अमावस्या के दिन गंगा नदी में पवित्र स्नान करने के लिए गंगा घाटों पर भी जाते हैं. कई भक्त गंगा घाटों के पास ये अनुष्ठान करते हैं क्योंकि गंगा घाट के पास ऐसे अनुष्ठान करने का बहुत महत्व है.  

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