मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को वैकुंठदा एकादशी कहते हैं.यह एकादशी व्रत व्यक्ति के कई प्रकार के पापों का नाश करती है. दक्षिण भारत में इस एकादशी को वैकुंठ एकादशी भी कहते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने महाभारत के आरंभ से पहले अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था. इस एकादशी पर भगवान कृष्ण और गीता की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं.
वैकुंठ एकादशी कब है?
वैकुंठ एकादशी का दिन इस वर्ष 2024 में 11 दिसंबर को मनाया जाएगा. वैकुंठ एकादशी 11 दिसंबर को मनाई जाएगी. इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को स्नान करने के बाद पूजा करने के लिए मंदिर जाना चाहिए. भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेते हुए मंदिर या घर पर विष्णु पाठ करना चाहिए.
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एकादशी के एक दिन बाद पारन करते हुए ब्राह्मणों को दान देने के बाद व्रत का समापन किया जाता है. व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से प्राप्त होने वाले पुण्यों में वृद्धि होती है. वैकुंठदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के पूर्वज, जो मृत्यु के पश्चात नरक में रह रहे थे, स्वर्ग को प्राप्त होते हैं. इस दिन ब्राह्मणों को दान और भोजन कराया जाता है. इस दिन धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान दामोदर की पूजा की जाती है.
वैकुंठ एकादशी कथा
प्राचीन काल में गोकुल नगर में वैखानस नामक एक राजा रहता था. उसके राज्य में चारों वेदों के विद्वान ब्राह्मण रहते थे. एक रात राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके पिता नरक में हैं. पिता की यह दशा देखकर वह व्याकुल हो गया. प्रातःकाल वह ब्राह्मण के पास पहुंचा और स्वप्न सुनाया. उसने कहा कि पिता की यह दशा देखकर उसे सभी सुख-सुविधाएं व्यर्थ लगने लगी हैं. उसने ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि वे उसे कोई ऐसा तप, दान, व्रत आदि बताएं जिससे उसके पिता की आत्मा को मुक्ति मिल सके.
ब्राह्मणों ने उसे पर्वत नामक मुनि के बारे में बताया, जो भूत और भविष्य का ज्ञान रखते थे. उन्होंने राजा को मुनि से समाधान पाने का सुझाव दिया.राजा मुनि के आश्रम में पहुंचे और देखा कि बहुत से ऋषिगण मौन रहकर तप कर रहे हैं. राजा मुनि के पास पहुंचे, उन्हें प्रणाम किया और अपनी समस्या बताई. मुनि ने तुरंत अपनी आंखें बंद कर लीं और कुछ देर बाद बोले, “तुम्हारे पिता ने पिछले जन्म में कुछ गलत काम किए थे, इसलिए वे मृत्यु के बाद नरक में गए.” यह सुनकर राजा ने मुनि से अपने पिता के उद्धार का उपाय बताने की प्रार्थना की.
मुनि ने उन्हें मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने को कहा. और बताया कि इस एकादशी व्रत के पुण्य से राजा के पिता को वैकुंठ की प्राप्ति होगी. इसलिए राजा ने परिवार सहित व्रत रखा. इसके फलस्वरूप उनके पिता को स्वर्ग की प्राप्ति हुई और स्वर्ग जाते समय उनके पिता ने उन्हें आशीर्वाद दिया.
वैकुंठ एकादशी पूजा नियम
वैकुंठ एकादशी का व्रत बहुत महत्व रखता है, इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने से पुण्य मिलता है. एक महीने में दो बार एकादशी आती है, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष. एकादशी व्रत रखने वाले लोगों को दशमी यानी एकादशी के एक दिन पहले से ही कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना होता है. दशमी के दिन से ही मांस, मछली, प्याज, दाल और शहद जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. दशमी और एकादशी दोनों ही दिन लोगों को ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना चाहिए और भोग-विलास से दूर रहना चाहिए.
एकादशी पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें. घर के मंदिर में दीपक जलाना चाहिए. गंगा जल से भगवान विष्णु का अभिषेक करना चाहिए, भगवान विष्णु को फूल और तुलसी के पत्ते अर्पित करने चाहिए. संभव हो तो इस दिन व्रत रखें भगवान की आरती करनी चाहिए, भगवान को भोग लगाना चाहिए, भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए. पूजा में श्री विष्णु जी की तस्वीर या मूर्ति को स्थापित करते हैं. पुष्प, माला, नारियल, सुपारी, अनार, आंवला, बेर, अन्य मौसमी फल, धूप, पंचामृत बनाने के लिए घी, कच्चा दूध, दही, घी, शहद और चीनी की आवश्यकता होती है, चावल, तुलसी, गाय का गोबर, केले का पेड़, मिठाई की भी आवश्यकता होती है. एकादशी व्रत के दिन और उद्यापन के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए.
भक्तों को इसे भक्ति भाव से करना चाहिए. एकादशी व्रत का उद्यापन में ब्राह्मणों को आमंत्रित किया जाता है. उद्यापन पूजा में तांबे के कलश में चावल भरकर रखें. आठ पंखुड़ियों वाला कमल बनाकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी की षोडशोपचार से पूजा की जाती है. कोई भी व्रत तभी पूर्ण माना जाता है जब उसका उद्यापन विधि-विधान से किया जाए, उद्यापन करना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि हम जो व्रत करते हैं उसके साक्षी सभी देवी-देवता, यक्ष, नाग आदि होते हैं. ऐसे में उद्यापन के दौरान की गई पूजा और हवन से उन सभी देवी-देवताओं को उनका भाग प्राप्त होता है. इस दौरान किए गए दान-दक्षिणा से व्रत पूर्ण होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. वैकुंठ एकादशी व्रत के पश्चात व्रत उद्यापन करना शुभ होता है.
एकादशी आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता.
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी.
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी.
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी…॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है.
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै.
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी…॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी.
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली.
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी.
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी.
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी…॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए.
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला.
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी.
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया.
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी.
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै.
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी