त्रिपुरारी पूर्णिमा : जानें त्रिपुरारी पूर्णिमा कथा और महत्व

त्रिपुरारी पूर्णिमा एक ऐसा त्यौहार है जो हिंदुओं, सिखों और जैनियों द्वारा की पूर्णिमा पर मनाया जाता है. यह उत्सव मनाने वालों के लिए साल का सबसे पवित्र महीना है. त्रिपुरी पूर्णिमा को बहुत से नामों के रुप में मनाया जाता है जिसमें से एक है कार्तिक पूर्णिमा. वैसे त्रिपुरारी पूर्णिमा  जाने वाला यह त्यौहार भगवान शिव की राक्षस त्रिपुरासर पर जीत का उत्सव है. यह त्यौहार भगवान विष्णु के सम्मान में भी मनाया जाता है. इस दिन उन्होंने मत्स्य के रूप में अवतार लिया था, जो उनका पहला अवतार है.

त्रिपुरारी पूर्णिमा मुहूर्त 2024

मान्यताओं के अनुसार इस शुभ दिन पर देवता पवित्र नदियों में स्नान हेतु धरती पर उतरे हैं. यही कारण है कि त्रिपुरारी पूर्णिमा के दौरान भक्त पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और मानते हैं कि उन्हें देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस साल त्रिपुरारी पूर्णिमा 15 नवंबर 2024, शुक्रवार को पड़ रही है. इस त्यौहार का महत्व तब और बढ़ जाता है जब यह नक्षत्र कृतिका में पड़ता है. इस समय इसे महात्रिपुरारी कहा जाता है.

त्रिपुरारी पूर्णिमा पांच दिवसीय त्यौहार

त्रिपुरारी पूर्णिमा पांच दिवसीय त्यौहार है. प्रबोधनी एकादशी से ही मुख्य उत्सव शुरू होता है. यह पृथ्वी पर अवतरित देवताओं के आगमन का प्रतीक है. यह चतुर्मास के अंत का भी प्रतीक है, जो चार महीने की अवधि है जब भगवान विष्णु सो रहे थे. हिंदू शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन एकादशी और पंद्रहवें दिन पूर्णिमा मनाते हैं. 

त्रिपुरारी पूर्णिमा त्यौहार के दौरान भक्त कई रीति-रिवाजों का पालन करते हैं. हिंदू शास्त्रों के अनुसार, इस दिन सभी भक्तों को गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए. भगवान विष्णु की विजय का उत्सव मनाने के लिए दीये भी जलाते हैं. माना जाता है कि भगवान वनवास खत्म होने के बाद वे अपने निवास पर वापस आ गए थे. 

इस दिन भक्त कई तरह की झाकियां भी निकालते हैं जिसमें भगवान शिव और श्री विष्णु जी की मूर्तियों को लेकर चलते हैं. मंदिरों में, सभी देवताओं को प्रसाद चढ़ाया जाता है. भक्त सूर्योदय या चंद्रोदय के समय पवित्र नदियों के किनारे भी इकट्ठा होते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं. इसके बाद भक्त भंडारा और अन्न दान नामक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं. यह आने वाले वर्ष में संपत्ति और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है.

त्रिपुरारी पूर्णिमा कथा

त्रिपुरोत्सव से जुड़ी एक बहुत ही प्रचलित पौराणिक कथा है. इस दिन यह कथा अवश्य सुननी चाहिए. एक बार त्रिपुर नामक एक बहुत शक्तिशाली राक्षस था. उस राक्षस ने देवताओं को जीतने के लिए कठोर तपस्या की. उसकी तपस्या इतनी प्रबल थी कि उसके तप से तिलक जलने लगे. कोई भी उसके सामने खड़ा नहीं हो सकता था, युद्ध करना तो दूर की बात है. उसकी कठोर तपस्या की चर्चा पूरे नगर में होने लगी और त्रिलोक पर देवताओं की शक्ति डगमगाने लगी. 

त्रिपुर की कठोर तपस्या को समाप्त करने के लिए देवताओं ने अनेक प्रयास किए. देवताओं ने त्रिपुर को विचलित करने और उसे माया में फंसाने के लिए अप्सराएं भेजीं. लेकिन राक्षस अत्यंत एकाग्र था और कोई भी उसे रोक नहीं सका. राक्षस की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उसके सामने प्रकट हुए. ब्रह्मा जी ने राक्षस से वरदान मांगने को कहा. राक्षस ने ब्रह्मा से वरदान के रूप में अमरता मांगी. ब्रह्मा जी ने राक्षस से कहा कि अमरता देना संभव नहीं है, क्योंकि इस संसार में जो भी जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है. 

यह सुनकर राक्षस ने दूसरा वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु देवताओं, पुरुष, स्त्री या किसी अन्य व्यक्ति के हाथों न हो. ब्रह्मा जी राक्षस को यह वरदान दे देते हैं. मनचाहा वरदान मांग लेने के बाद राक्षस त्रिपुर बहुत अहंकारी हो जाता है और सभी पर हुक्म चलाने लगता है. वह यह मानने लगता है कि वह अजेय है. वह देवताओं को देवलोक से बाहर निकाल देता है और देवलोक पर अपना अधिकार स्थापित कर लेता है. त्रिपुर अपनी शक्ति से देवताओं और मनुष्यों पर हावी होने लगता है और सभी को परेशान करने लगता है. 

भगवान शिव ने किया त्रिपुरासर का अंत 

त्रिपुरासर के अत्याचारों से हर जगह अराजकता और निराशा फैल जाती है. अंत में देवता ब्रह्माजी के पास पहुंचते हैं और उनसे त्रिपुर से उन्हें बचाने के लिए कहते हैं. ब्रह्मा जी देवताओं को बताते हैं कि कोई भी देवता या मनुष्य उन्हें नहीं मार सकता, उनका विनाश केवल भगवान शिव ही कर सकते हैं. इसके बाद देवता भगवान महादेव के पास जाते हैं. वे उनसे प्रार्थना करते हैं और उनसे त्रिपुर राक्षस के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए कहते हैं. 

भगवान शिव त्रिपुर राक्षस का वध करते हैं जिससे देवताओं और मनुष्यों का कल्याण होता है. राक्षस की मृत्यु से शांति और सुख की प्राप्ति होती है. इस अवसर पर देवों और दानवों ने भगवान शिव की जीत को चिह्नित करने के लिए दीप जलाए. इस जीत का जश्न मनाने के लिए आज भी त्रिपोर्त्सव का त्योहार मनाया जाता है. त्रिपुरोत्सव: भगवान शिव की पूजा त्रिपोत्सव के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है. जिस तरह भगवान शिव की पूजा की जाती है, उसी तरह त्रिपुरोत्सव के दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है.

शिव ने एक ही बाण से राक्षस का वध कर दिया था, उसी तरह वे एक ही वार में सभी के दुख दूर कर देते हैं. शिव की पूजा से सभी तरह के रोग, दुख और पीड़ा दूर हो जाती है. इस दिन चंद्रोदय के समय दीपक जलाकर भगवान शिव की पूजा करने से भी जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होती हैं. उसी रोशनी से जीवन रोशन होता है.

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