मार्गशीर्ष माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का दिन गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के रुप में पूजा जाता है. इस दिन भगवान श्री गणेश जी का पूजन विधि विधान के साथ करते हैं. भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और गणेश जी की पूजा वंदना करते हैं. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी गणेश पूजन का विशेष समय होता है.
हिंदू पंचांग के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन भगवान का जन्म हुआ था जो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था. इस कारण से हर माह आने वाली चतुर्थी खास होती है. इस शुभ दिन बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता भगवान गणेश की विधिवत पूजा की जाती है.
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी के दिन स्नान के बाद भगवान गणेश जी का पूजन किया जाता है. भगवान के पूजन में भगवान को सिंदूर, चंदन, यज्ञोपवीत, दूर्वा, लड्डू या गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाकर धूप-दीप से आरती करने का विशेष महत्व है. भगवान गणेश स्वयं शुभता और ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं. भगवान सभी भक्तों के विघ्न, संकट, रोग, दोष और दरिद्रता को दूर करते हैं.
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि गणेश चतुर्थी श्री गणेश जी की विशेष पूजा का दिन है. भगवान गणेश बुध ग्रह के भी अधिपति हैं. इस दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करने से नवग्रह दोष से मुक्ति मिलती है. गणेश जी की विभिन्न प्रकार की पूजा से कई प्रकार के ग्रह दोषों का निवारण किया जा सकता है. ग्रहों के दोषों का निवारण भी गणेश पूजा से किया जा सकता है.
शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री गणेश की विशेष पूजा के लिए गणेश चतुर्थी सबसे उपयुक्त दिन है. मान्यताओं के अनुसार गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा और उपाय करने से हर समस्या का समाधान हो जाता है. साधक की सभी परेशानियां दूर होती हैं. गणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके भगवान श्री गणेश को दूर्वा की ग्यारह या इक्कीस गांठें अर्पित करना शुभ होता है.
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी को सिंदूर, चंदन, यज्ञोपवीत, दूर्वा अर्पित करें और मोदक अर्पित करना चाहिए. गणेश चतुर्थी के दिन धूप-दीप से भगवान गणेश की आरती करने से भी पापों से मुक्ति मिलती है. जीवन के कष्टों एवं समस्या से मुक्ति पाने के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा करनी चाहिए. मान्यता है कि गणेश जी के स्त्रोत, मंत्र एवं चालीसा का पाठ करने से साधक को कई लाभ मिलते हैं.
श्री गणेश चालीसा
जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता।विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन।तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला।स्वर्ण मुकुट सिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित।चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता।गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि—सिद्धि तव चँवर डुलावे।मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी।पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी।बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा।मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला।बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना।पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना।लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥
सकल मगन सुख मंगल गावहिं।नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं।सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा।देखन भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।बालक देखन चाहत नाहीं॥
गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो।उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई।का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास उमा कर भयऊ।शनि सों बालक देखन कहऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी।सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा।शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए।काटि चक्र सो गज सिर लाए॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो।प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन भरमि भुलाई।रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे।नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।शेष सहस मुख सकै न गाई॥
मैं मति हीन मलीन दुखारी।करहुं कौन बिधि विनय तुम्हारी॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै।अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥
दोहा
श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी पूजा लाभ
मार्गशीर्ष माह में आने वाली गणाधिप संकष्टी चतुर्थी बहुत ही शुभ फल प्रदान करती है. गणेश जी की पूजा के लिए गणेश चतुर्थी का दिन शुभ माना जाता है. कठिन और विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त होती है. भगवान गणेश की पूजा से सुख, वैभव, शांति और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है. किसी भी काम की सफलता में आ रही है बाधा, गणेश पूजा से दूर होती है. गणेश जी की पूजा से करें बुध ग्रह की शांति होती है. गणेश जी को दूर्वा अर्पित करने से कार्यों में आ रही रुकावटें खत्म होती है.संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से चंद्रमा के शुभ फल मिलते हैं. गणेश जी के मंत्रों का जाप करने से भी शनि दोष से पीड़ित व्यक्ति को राहत मिलती है