एकादशी दो तरह की होती है. विद्धा एकादशी और शुद्धा एकादशी. सूर्योदयकाल में यदि दशमी तिथि का वेध हो या अरुणोदयकाल में एकादशी में दशमी का वेध हो तब यह एकादशी विद्धा कहलाती है.
यदि अरुणोदयकाल में दशमी के वेध से रहित एकादशी हो तब उसे शुद्धा एकादशी माना जाता है. प्राय: सभी शास्त्रों में दशमी से युक्त एकादशी व्रत करने का निषेध माना गया है. यदि शुद्धा एकादशी दो घड़ी तक भी हो और वह द्वादशी तिथि से युक्त हो तब उसे ही व्रत के लिए ग्रहण करना चाहिए.
इस वर्ष 2024 में निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को रखा जाएगा. ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ऋषि वेदव्यास जी के अनुसार इस एकादशी को भीमसेन ने धारण किया था. इसी वजह से इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पडा. इस एकादशी के दिन व्रत व उपवास करने का विधान भी है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. निर्जला अर्थात जल के बिना रहना इस कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है यह एक कठिन व्रत होता है. इस व्रत को निर्जल रखा जाता है अर्थात इस व्रत में जल का सेवन भी नहीं किया जाता .
इस एकादशी को करने से वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है. यह व्रत करने के पश्चात द्वादशी तिथि में ब्रह्मा बेला में उठकर स्नान,दान तथा ब्राह्माण को भोजन कराना चाहिए. इस दिन “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करके गौदान, वस्त्रदान, छत्र, फल आदि दान करना चाहिए.
निर्जला एकादशी पूजा | Nirjala Ekadashi Pooja
निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिये दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन आरंभ हो जाता है. इस एकादशी में “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. इस दिन गौ दान करने का भी विशेष महत्व होता है. इस दिन व्रत करने के अतिरिक्त जप, तप गंगा स्नान आदि कार्य करना शुभ रहता है.
इस व्रत में सबसे पहले श्री विष्णु जी की पूजा कि जाती है तथा व्रत कथा को सुना जाता है. पूजा पाठ के पश्चात सामर्थ अनुसार ब्राह्माणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए संभव हो सके तो व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए.
निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Fast Story
निर्जला एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है – महाभारत काल में भीमसेन ने व्यास जी से कहा की हे भगवान, युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुन्ती तथा द्रौपदी सभी एकादशी के दिन व्रत किया करते हैं परंतु मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता. मैं दान देकर वासुदेव भगवान की अर्चना करके प्रसन्न कर सकता हूं. मैं बिना काया कलेश की ही फल प्राप्त करना चाहता हूं अत: आप कृपा करके मेरी सहायता करें.
इस पर वेद व्याद जी भीमसेन से कहते हैं कि हे भीम अगर तुम स्वर्गलोक जाना चाहते हो, तो दोनों एकादशियों का व्रत बिना भोजन ग्रहण किए करो क्योंकि ज्येष्ठ मास की एकादशी का निर्जल व्रत करना विशेष शुभ कहा गया है. इस व्रत में आचमन में जल ग्रहण कर सकते है. अन्नाहार करने से व्रत खंडित हो जाता है. व्यास जी की आज्ञा अनुसार भीमसेन ने यह व्रत किया और वे पाप मुक्त हो गये.
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व | Significance of nirjala ekadasi vrat
मिथुन संक्रान्ति के मध्य ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जल व्रत किया जाता है. सूर्योदय से व्रत का अरंभ हो जाता है. इसके अतिरिक्त द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए. इस एकादशी का व्रत करना सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है. निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्ति पाता है. जो मनुष्य़ निर्जला एकादशी का व्रत करता है उनको मृत्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नही होता है. यह एकादशी पांडव एकादशी के नाम से भी जानी जाती है. इस व्रत को करने के बाद जो व्यक्ति स्नान, तप और दान करता है, उसे करोडों गायों को दान करने के समान फल प्राप्त होता है.
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