अपरा या अचला एकादशी वर्त 03 जून 2024 के दिन ज्येष्ठ मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाएगी. यह व्रत पुण्यों को प्रदान करने वाला एवं समस्त पापों को नष्ट करने वाला होता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपार धन संपदा प्राप्त होती है. इस व्रत को करने वाला प्रसिद्धि को पाता है. अपरा एकादशी के प्रभाव से बुरे कर्मों से छुटकारा मिलता है. इसके करने से कीर्ति, पुण्य तथा धन में अभिवृ्द्धि होती है.
अचला एकादशी का महत्व | Importance of Achla Ekadashi
शास्त्रों में कहा गया है कि जिस प्रकार मनुष्य को कार्तिक मास में स्नान अथवा गंगाजी के तट पर पितरों को पिंड दान करने से जो फल मिलता है. वैसा ही फल उसे अपरा एकाद्शी का व्रत करने से प्राप्त होता है. व्यक्ति का गोमती में स्नान, करने से कुम्भ में श्री केदारनाथ जी के दर्शन करने से तथा बद्रिकाश्रम में रहने से तथा सूर्य-चन्द्र ग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान करने का जो महत्व है. वही अपरा एकादशी का व्रत का महत्व होता है.
अपरा या अचला एकादशी का फल, हाथी घोडे के दान, यज्ञ करने , स्वर्ण दान करने जैसा ही है. गौ व भूमि स्वर्ण के दान का फल भी इसके फल के बराबर होता है. अपरा का व्रत पाप रुपी अन्धकार के लिये सूर्य के के प्रकाश समान है. इसलिये जो मनुष्य इस अमूल्य देह को पाकर इस महत्व पूर्ण व्रत को करता है वह धन्य है.
अचला एकादशी पूजा-विधि | Procedure of Achla Ekadashi puja
अपरा एकादशी व्रत के दून पूजा का विशेष विधान रहता है इसमें साफ सफाई एवं मन की स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाता है. इस व्रत का प्रारम्भ दशमी तिथि से ही आरंभ हो जाता है. दशमी तिथि से ही भोजन और आचार-विचार में संयम रखना चाहिए. एकादशी तिथि के दिन प्रात: काल में जल्द उठ कर अन्य क्रियाओं से निवृत होकर स्नान आदि करके व्रत का संकल्प और श्री विष्णु भगवान की पूजा करें पूरे दिन व्रत कर संध्या समय में फल आदि से भगवान को भोग लगा कर, श्री विष्णु जी की पूजा धूप, दीप और फूलों से करते हुए कथा का श्रवण करना चाहिए इसके पश्चात समस्त लोगों में भगवान का प्रसाद वितरित करें.
अचला एकादशी व्रत कथा | Story of Achla Ekadashi Fast
धर्म ग्रंथों में अचला एकादशी व्रत के साथ एक कथा कही गई है जो इस प्रकार है कि महिध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था उसका छोटा भाई बज्रध्वज बहुत ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी व्यक्ति था. वह अपने बडे भाई से बडा द्वेष रखता था तथा वह स्वभाव से अवसरावादी था. एक रात्रि उसने अपने बडे भाई की हत्या कर देता है और उसकी देह को पीपल के वृक्ष के नीचे दबा देता है.
मृत्यु के उपरान्त वह पीपल के वृक्ष पर उत्पात करने लगा जिस कारण वहां रहने वाले सभी लोग भयभीत रहने लगे अकस्मात एक दिन धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजरते हैं जब उन्हें इस बात का बोध होता है तो वह अपने तपोबल से उस आत्मा को पीपल एक पेड से नीचे उतारते हैं और उसे विधा का उपदेश देते हैं. प्रेत्मात्मा को मुक्ति के लिये अपरा एकादशी व्रत करने का मार्ग दिखाते हैं. इस प्रकार इस व्रत को करने से उसे प्रेत योनि से मुक्ति मिलत जाती है और मोक्ष प्राप्त होता है.