आषाढ़ संक्रांति में सूर्य मिथुन राशि में प्रेवश करेंगे. आषाढ़ संक्रान्ति 15 जून 2024 को मनाई जाएगी.
संक्रांति पुण्य काल समय में दान-धर्म,कर्म के कार्य किये जाते हैं. जिनसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
आषाढ संक्रांति के दिन किया गया दान अन्य शुभ दिनों की तुलना में दस गुना अधिक पुण्य देने वाला होता है. धर्म शास्त्रों में इस दिन देव उपासना व साधना का विशेष महत्व बताया गया है. संक्रांति जीवन में अच्छे बदलाव व उत्तम फलों पाने लिए एक खास समय होता है. यह विशेष घड़ी अध्यात्म ही नहीं बल्कि दैनिक व्यावहारिक नज़रिए से भी लाभदायक है. संक्रांति की पुण्य योग से इस शुभ तत्वों की प्राप्ती संभव है.
आषाढ संक्रांति पूजन | Rituals to perform Ashaadh Sakranti Puja
आषाढ संक्रांति व्रत का पालन, पूजन, पाठ, दानादि का विशेष महत्व शास्त्रों में वर्णित है. संक्रांति व्रत में प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर चौकी पर नवीन वस्त्र बिछाकर उसमें भगवान सूर्य की मूर्ति स्थापित करके गणेश आदि देवताओं का पूजन करके सूर्य नारायण भगवान का षोडशोपचार पूजन के साथ आहवान करना चाहिए. ऐसा करने से संपूर्ण पापों का नाश हो जाता है. सुख-संपत्ति, आरोग्य, बल, तेज, ज्ञानादि की प्राप्ति होती है.
आषाढ संक्रान्ति, के दिन तीर्थस्नान, जप-पाठ, दान आदि का विशेष महत्व रहता है. संक्रान्ति, पूर्णिमा और चन्द्र ग्रहण तीनों ही समय में यथा शक्ति दान कार्य करने चाहिए. जो जन तीर्थ स्थलों में नहीं जा पाएं, उन्हें अपने घर में ही स्नान, दान कार्य कर लेने चाहिए. आषाढ मास में भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिये ब्रह्मचारी रहते हुए नित्यप्रति भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा अर्जना करना पुण्य फल देता है.
इसके अतिरिक्त इस मास में विष्णु के सहस्त्र नामों का पाठ भी करना चाहिए संक्रांति तथा एकादशी तिथि, अमावस्या तिथि और पूर्णिमा के दिन ब्राह्माणों को भोजन तथा छाता, खडाऊँ, आँवले, आम, खरबूजे आदि फल, वस्त्र, मिष्ठानादि का दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान कर, एक समय भोजन करना चाहिए. इस प्रकार नियम पूर्वक यह धर्म कार्य करने से विशेष पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.
आषाढ़ संक्रांति महत्व | Significance of Ashaadh Sakranti
आषाढ संक्रांति लगभग देश के सभी हिस्सों में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. यह सांस्कृतिक पर्व बहुत ही उत्साह, धर्मनिष्ठा के साथ मनाया जाता है. इस शुभ दिन का आरंभ प्राय: स्नान और सूर्य उपासना से आरंभ होता है. ऐसी धारणा है कि ऐसा करने से स्वयं की तो शुद्धि होती ही है, साथ ही पुण्य का लाभ भी मिलता है. इस दिन गायत्री महामंत्र का श्रद्धा से उच्चारण किया जाना चाहिए तथा सूर्य मंत्र का जाप भी करना उत्तम होता है. इससे बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है.
संक्रांति का आरंभ सूर्य की परिक्रमा से किया जाता है. सूर्य जिस राशि में प्रवेश कर्ता है उसी दिन को संक्रांति कहते हैं. संक्रांति के दिन मिष्ठा बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है ओर यह भोग प्रसाद रुप में परिवार के सभी सदस्यों में बांटा जाता है. इस समय नये धान्य का प्रसाद सूर्य को समर्पित किया जाता है यह एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो सामंजस्य और समानता का प्रतीक है. यह समय देवताओं का दिन कहा जाता है अत: इस समय समस्त शुभ एवं मांगलिक कार्यों का आयोजन भी किया जाता है.