बुधाष्टमी व्रत, जानें बुधाष्टमी पूजा विधि और कथा

बुधाष्टमी व्रत, जानें बुधाष्टमी पूजा विधि और कथाभारतवर्ष में प्रत्येक दिन किसी न किसी महत्व से जुड़ा होता है. यहां मौजूद तिथि, नक्षत्र और दिनों का मेल होने पर कोई उत्सव, व्रत-त्यौहार इत्यादि संपन्न होते हैं. इन सभी का मेल एक उत्साह ओर विश्वास के साथ भक्ति और शक्ति के प्रतिबिंब को दर्शाने वाला होता है. इसी में एक व्रत आता है बुधाष्टमी व्रत.


बुधाष्टमी व्रत को बुधवार के दिन अष्टमी तिथि के पड़ने पर किया जाता है. श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया गया बुधाष्टमी व्रत जीवन में सुख को लाता है. इसके अतिरिक्त मृत्यु पश्चात मोक्ष को प्र्दान करने में भी सहायक बनता है. कुछ मान्यताओं के अनुसार यह व्रत धर्मराज के निमित्त भी किया जाता है. बुध अष्टमी का व्रत करने वाले व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात नरक की यातना नहीं झेलनी पड़ती है. व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है. उसके जीवन में शुभता आती है.

बुधाष्टमी पर्व

बुधाष्टमी का पर्व पौराणिक और लोक कथाओं के साथ जुडा़ हुआ है. बुध अष्टमी का उपवास करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर जाते हैं और पाप नष्ट हो जाते हैं. हमारे शास्त्रों में अष्टमी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है. जिस बुधवार के दिन अष्टमी तिथि पड़ती है उसे बुध अष्टमी कहा जाता है. बुध अष्टमी के दिन सभी लोग विधिवत बुद्धदेव और सूर्य देव की पूजा अर्चना करते हैं. मान्यताओं के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर होता है उनके लिए बुध अष्टमी का व्रत बहुत ही फलदायी होता है.


अष्टमी तिथि का हिंदु पंचांग में बहुत महत्व रहा है. यह चन्द्र पक्ष के दो समय पर आती है. एक शुक्ल पक्ष के समय और दूसरी कृष्ण पक्ष के समय. इन दोनों ही समय पर बुधवार का संयोग इसे और भी शुभता देता है. यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, उस दिन बुधवार का समय होने पर बुधाष्टमी का पर्व अत्यंत शुभदायक होता है. शुक्ल पक्ष की अष्टमी के स्वामी भगवान शिव है. इसके साथ ही यह तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है. इस कारण से ये बहुत ही शुभ मानी गयी है.

बुधाष्टमी दिलाता है विजय

बुधाष्टमी पर्व विजय की प्राप्ति के लिए बहुत ही उपयोगी होता है. यह व्रत उन कार्यों में सफलता दिलाने में बहुत सहायक बनता है जिनमें व्यक्ति को साहस और शौर्य की अधिक आवश्यकता होती है. धर्मराज, माँ दुर्गा और भगवान शिव की शक्ति के लिए भी बुधाष्टमी का व्रत बहुत महत्व होता है. इस व्रत की ऊर्जा का प्रवाह व्यक्ति को जीवन शक्ति और विपदाओं से आगे बढ़ने की क्षमता देता है. जिस पक्ष में बुधाष्टमी का अवसर हो उस दिन यह सिद्धि का योग बनाता है.


बुध अष्टमी तिथि में किसी पर विजय प्राप्ति करना उत्तम माना गया है. यह विजय दिलाने वाली तिथि है, इस कारण जिन भी चीजों में व्यक्ति को सफलता चाहिए वह सभी काम इस तिथि में करे तो उसे सकारात्मक फल मिल सकते हैं. यह दिन बुरे कर्मों के बंधन को दूर करता है. इस दिन लेखन कार्य, घर इत्यादि वास्तु से संबंधित काम, शिल्प निर्माण से संबंधी काम, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले काम का आरम्भ भी सफलता देने वाला होता है.

बुध अष्टमी पूजन विधि-

बुध अष्टमी का व्रत करने के लिए पहले से ही सभी तैयारियों को कर लेना भी सही होता है. व्रत के पहले दिन व्रती को चाहिए कि वह सात्विकता और आध्यात्मिकता का आचरण करना चाहिए. बुधअष्टमी के दिन व्रती को चाहिए की वह ब्रह्म मुहूर्त समय पर उठना चाहिए. प्रातः काल उठकर स्नान कार्य करना चाहिए. यदि संभव हो सके तो इस दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर इत्यादि में स्नान करना चाहिए. पर अगर ये संभव न हो सके तो घर पर ही स्नान कार्य करना चाहिए. घर पर अपने नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करना गंगा स्नान जैसा फल दिलाने वाला होता है. अपने नित्य कार्यों को कर लेने के बाद व्रती को पूजा का संकल्प लेना चाहिए.


पूजा स्थान पर एक पानी से भरा कलश स्थापित करना चाहिए. कलश के पानी में गंगाजल भरना चाहिए. इस कलश को घर के पूजा स्थान में स्थापित करना उत्तम होता है.बुधाष्टमी के दिन बुध देव व बुध ग्रह का पूजन किया जाता है. पूजा में बुधाष्टमी कथा का पाठ भी करना उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है.


भक्त को चाहिए की इस दिन व्रत का संकल्प भी धारण करे. बुधाष्टमी के व्रत के अवसर पर संपूर्ण दिन मानसिक, वाचिक और आत्मिक शुद्धि का पालन करना चाहिए. इस भगवान के समक्ष धूप-दीप, पुष्प, गंध इत्यादि को अर्पित करना चाहिए. भगवान को विभिन्न पकवान और मेवे फल इत्यादि का अर्पित करने चाहिए. बुध भगवान की पूजा विधिवत तरीके से संपन्न करनी चाहिए. पूजा अर्चना करने के पश्चात भगवान बुध देव को को भोग लगाना चाहिए. पूजा समाप्ति के बाद भगवान का प्रसाद सभी लोगों में वितरित करना चाहिए.

बुध अष्टमी व्रत कथा और महत्व

कई जगहों पर बुध अष्टमी के दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा होती है. श्री विष्णु भगवान का पूजन, श्री गणेश जी का पूजन भी किया जाता है. इस दिन घर को अच्छी तरह से साफ सुथरा करके इष्ट देव की पूजा करनी चाहिए. शास्त्रों के अनुसार बुध अष्टमी के दिन भगवान की पूजा करना जीवन में सकारात्मकता और शुभता लाने वाला माना जाता है.


बुधाष्टमी की कथा का संबंध वैवस्वत मनु से भी संबंधित बतायी गयी है. इसके अनुसार मनु के दस पुत्र हुए और एक पुत्री इला हुई थी. इला बाद में पुरुष बन गयी थी. इला के पुरुष बनने की कथा इस प्रकार रही कि मनु ने पुत्र की कामना से मित्रावरुण नामक यज्ञ किया. पर उस प्रभाव से पुत्री की प्राप्ति हुई. कन्या का नाम इला रखा गया.


इला को मित्रावरुण ने उसे अपने कुल की कन्या और मनु का पुत्र इल होने का वरदान दिया था. एक बार राजा इल एक शिकार का पीछा करते हुए, ऎसे स्थान में जा पहुंचे जिसे भग्वान शिव और पार्वती ने वरदान दिया था की उस स्थान में जो भी प्रवेश करेगा वह स्त्री रुप में हो जाएगा. उस प्रभाव के कारण वन में इल के प्रवेश करते ही वह स्त्री में बदल जाते हैं.


इला के सुंदर रुप को देख कर बुध उनसे प्रभावित हो जाते हैं. इला से विवाह कर लेते हैं. इला और बुध का विवाह के अवसर को बुधाष्टमी के रुप में मनाने की परंपरा रही.

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