इस वर्ष महाकाली जयंती 26 अगस्त 2024 के दिन मनाई जाएगी. मधु और कैटभ के नाश के लिये ब्रह्मा जी के प्रार्थना करने पर देवी जगजननी ने महाविद्या काली मोहिनी शक्ति के रूप में प्रकट होती हैं. महामाया भगवान श्री हरि के नेत्र, मुख, नासिका और बाहु आदि से निकल कर ब्रह्मा जी के सामने आ जाती हैं इसी शुभ दिवस को महाकाली जयंती के रुप में मनाया जाता है. महाकाली जी दुष्टों के संहार के लिए प्रकट होती हैं तथा दैत्यों का संहार करती हैं.
महाकाल पुरुष की शक्ति महाकाली है. शक्ति और शक्तिमान में अभेद है. यहीं अर्द्धनारीश्वर उपादना का रहस्य है. सृ्ष्टि से पूर्व इन्हीं का साम्राज्य रहता है. यहीं प्रथम स्वरुप है. आगमशास्त्र में इसे ही प्रथमा कहा गया है. महाकाली को अर्द्धरात्री के समान कहा गया है. महाकाली को प्रलय का रुप भी कहा गया है. इनके अनेक रुप है, अनेक भुजाएं हैं. महाकाली की प्रसन्नता इच्छाओं की पूर्ति करती है.
देवी संहार करने वाली है, प्रलय उनकी प्रतिष्ठा है. शव उनका आसन है. उनकी चार भुजाएं संहार की मुद्रा में होती हैं नाश करने के लिये उनके हाथ में खडग है. अन्य एक हाथ में कटा हुआ मस्तक है, जो नष्ट होने वाली प्राणी का रुप है. तीसरे हाथ अभय मुद्रा में है. उनकी आराधना अभयदायक है.
महाकाली स्वरुप | Appearance of Mahakaali
महाकाली शव पर बैठी है, शरीर की आकृति डरावनी है. देवी के दांत तीखे और महाभयावह है. ऐसे में महाभयानक रुप वाली, हंसती हुई मुद्रा में है. उनकी चार भुजाएं है. एक हाथ में खडग, एक में वर, एक अभयमुद्रा मेम है. गले में मुण्डवाला है, जिह्वा बाहर निकली है, वह सर्वथा नग्न है. वह श्मशानवासिनी हैं. श्मशान ही उनकी आवासभूमि है. उनकी उपासना में सम्प्रदायगत भेद हैं. श्मशानकाली की उपासना दीक्षागम्य है, जो किसी अनुभवी गुरु से दीक्षा लेकर करनी चाहिए. देवी कि साधना दुर्लभ है.
महाकाली कथा | Mahakaali Katha
शुंभ-निशुंभ दानव, महापराक्रमी दैत्य रक्तबीज को देवी के साथ युद्ध करने के लिए भेजते हैं. रक्तबीज को यह वरदान प्राप्त था की उसके शरीर की बूंद जहां भी गिरती थी वहां से एक नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाता था अत: देवी जब भी रक्तबीज पर प्रहार करती तब उसके रक्त से कई सारे दैत्य रक्तबीज उत्पन्न हो जाते, तब मां भगवती के रूप में महाकाली का आगमन होता है और काली रक्तबीज का रक्त धरती पर गिरने से पहले ही उसे अपने मुख में ग्रहण कर लेती है इस प्रकार देवी काली ने रक्तबीज का संहार किया तथा दैत्यों को मारकर देवताओं को उनके आतंक से मुक्ति किया. भगवती कालिका अर्थात काली के अनेक स्वरूप हैं इन्हें श्यामा, दक्षिणा कालिका (दक्षिण काली) गुह्म काली, कालरात्री, भद्रकाली, महाकाली आदि नाम से पुकारा गया है.
महाकाली जयंती महत्व | Significance of Mahakaali Jayanti
महाकाली जयंती के अवसर पर महाकाली शतनाम धारा पाठ व हवन का आयोजन किया जाता है. जिसमें सभी श्रद्धालु बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. महाकाली मां की उपासना करने से उनकी कृपा भक्तों पर सहज हो जाती है. मां कृपालु हैं इनकी शरण में आने वाला कोई खाली हाथ नहीं जाता. महाकाली जयंती के अवसर पर कहीं कहीं सुन्दर काण्ड के पाठ का भी आयोजन किया जाता है. महाकाली जयंती के अवसर पर श्री महाकाली मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ रहती है. भक्त महाकाली जयंती श्रद्धा के साथ मनाते हैं. सैकड़ों श्रद्धालु मां के दरबार में माथा टेकते हैं मंदिरों में यज्ञ एवं भंडारों का आयोजन किया जाता है.