शाकंभरी जयंती 2024 – जाने क्यों लिया देवी ने शाकम्भरी अवतार

पौष माह की पूर्णिमा को शाकम्भरी जयंती मनाई जाती है. शक्ति के अनेक अवतारों में से एक अवतार शाकंभरी माता का भी है. देवी दुर्गा के भिन्न-भिन्न अवतारों में से एक शांकंभरी अवतार सृष्टि के कल्याण और सृजन हेतु होता है. माता शाकंभरी सभी प्राणियों की भूख को शांत करने वाली हैं. देवी शाकम्भरी के आशीर्वाद से जीवन में धन और धान्य की कभी कमी नहीं होती है. व्यक्ति का जीवन सभी सुखों से परिपूर्ण होता है.

शाकम्भरी देवी की पूजा में भंडारे ओर कीर्तनों का आयोजन होता है. देवी शाकम्भरी की पूजा में आसन और साधन का विशेष ख्याल रखा जाता है. शाकंभरी पूजा में मंत्रों और साधना का प्रयोग अवश्‍य करना चाहिए. देवी की साधना नहीं कर सकें तो कोई बात नहीं कम से कम शाकंभरी जयंती के दिन मंत्रों का जाप कर लेना भी बहुत ही उत्तम होता है.

शाकंभरी जयंती पूजा मुहूर्त समय

दुर्गा उपासना में शक्ति के शाकम्भरी रुप की उपासना का विधान है. इस वर्ष 06 जनवरी 2024 के दिन माँ शाकंभरी जयंती मनाई जाएगी.

कैसा है माता शाकंभरी स्वरुप

मां शाकंभरी का नीला वर्ण की हैं. उनके नेत्र भी कमल के समान सुंदर हैं. वह कमल पुष्प पर विराजमान हैं. देवी एक हाथ में कमल धारण किए हुए हैं और दूसरे हाथ में बाणों को धारण किए हुए हैं. अपने भक्तों की शाक-वनस्पति इत्यादि भोजन से रक्षा करने के कारण ही माता को शाकंभरी कहा गया है.

शाकंभरी पूजा और विधि-विधान

पौष मास की पूर्णिमा के दिन देवी का पूजन विशेष रुप से प्रारम्भ होता है. माता के पूजन का आरंभ कलश स्थापना के साथ होता है. कलश को देवी के प्रतीक रुप में स्थापित किया जाता है. इस कारण से पूजा में कलश की स्थापना की जाती है. कलश स्थापना के लिए भूमि को जिस स्थान पर पूजा करनी है उस स्थान को शुद्ध किया जाता है. गंगा-जल से भूमि को शुद्ध कर लेने के बाद. इस स्थान पर अक्षत डाले जाते हैं. कुमकुम का टिका लगाया जाता है कलश को अक्षत के ऊपर स्थापित किया जाता है.

शाकंभरी पूजा में माता का आहवान किया जाता है. माता की पूजा में पुष्प, गंध, दीप, अक्षत इत्यादि से पूजन होता है. इस मंत्र के साथ माता को सामग्री अर्पित किया जाता है “जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते”.

शाकंभरी मंत्र

शाकंभरी माता की पूजा में माता के मंत्र का जाप अत्यंत आवश्यक होता है. माता के इस मंत्र की को 108 बार पढ़ना चाहिए. इस मंत्र के द्वारा माता का ध्यान करना चाहिए. यह मंत्र सभी प्रकार के सुखों को देने में सहायक होता है –

शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।

मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।

शाकम्भरी अवतार कथा

देवी दुर्गा के मुख्य अवतारों में से एक माँ शाकंभरी की उपासना भी बड़े भक्ति भाव और उल्लास के साथ की जाती है. शांकम्भरी जयंती के अवसर पर देश भर में शक्ति स्थलों में पूजा अर्जना और जागरण इत्यादि धार्मिक कार्य किए जाते हैं. देवी दुर्गा के अवतारों में एक शाकम्भरी अवतार है. दुर्गा के सभी अवतारों का होना किसी न किसी उद्देश्य से ही हुआ है. माता के अनेक अवतार प्रसिद्ध हैं. इस कारण से माता की पूजा में इनकी कथा का पाठ अवश्‍य करना चाहिए.

शाकंभरी जयंती कथा

माँ शाकम्भरी जयंती से संबंधित कुछ पौराणिक कथाएं प्राप्त होती है. इन कथाओं से ज्ञात होता है की दुर्गा ने क्यों लिया शाकम्भरी का अवतार और किसी प्रकार किया माता शाकम्भरी ने लोगों का कल्याण. देवी शाकंभरी के बारे में दुर्गा सप्तशती में भी सुनने को मिलता है. दुर्गा सप्तशति में कथा अनुसार एक बार धरती पर अनेकों दैत्य ने चारों और आतंक मचा रखा था. उसके अतंक द्वारा ऋषि-मुनि अपने धार्मिक कार्य नहीं कर पाते थे. पृथ्वी पर सभी यज्ञ और धार्मिक कार्य दैत्यों के प्र्कोप से प्रभावित हो रहे थे. पृथ्वी पर सभी शुभ कार्य समाप्त हो गए. पृथ्वी पर वर्षा नहीं हुई. सौ वर्षों तक वर्षा ना होने के कारण चारों और हाहाकार मच जाता है. पृथ्वी पर जल का अभाव हो जाने से प्राणीयों का जीवन संकट में पड़ जाता है.

चारों ओर अकाल पड़ने लग जाते हैं. दुर्भिक्ष के चलते सभी प्राणी वनस्पतियां जीव जन्तु नष्ट होने लग जाते हैं. इस अकाल के कारण सभी के प्राण संकट में पड़ जाते हैं. चारों ओर मृत्यु का ताण्डव मच जाता है. ब्र्ह्मा जी सृष्टि के संतुलन के बिगड़ने से परेशान हो उठते हैं. पृथ्वी पर जीवन समाप्त होने लगता है. अन्न-जल के अभाव में प्रजा मरने लगती है. उस समय समस्त ऋषि मिलकर देवी भगवती की उपासना करते हैं. जिससे दुर्गा जी ने शाकम्भरी नाम से अवतार लिया और उनकी कृपा से वर्षा हुई. इस अवतार में देवी ने जलवृष्टि से पृथ्वी को शाक-सब्ज़ी से परिपूर्ण कर देती हैं. इससे पृथ्वी के सभी प्राणियों को जीवन मिलता है और पृथ्वी पुन: हरी-भरी हो जाती है.

शाकंभरी जयंती अन्य कथा

एक अन्य पौराणिक कथा अनुसार एक दुर्गम नामक दैत्य ने अपने आतंक द्वारा सभी को कष्ट दिए थे. दैत्य ने देवों को पराजित करने का विचार किया. उसने सोचा की वेदों और यज्ञों द्वारा जो शक्ति देवताओं को प्राप्त होती है उसे नष्ट कर दिया जाए. इसके लिए ब्रह्मा जी की साधना आरंभ की. उसकी तपस्या के प्रभाव से ब्रह्मा ने उसे दर्शन दिए.

ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया की उसे वेद की संपूर्ण शक्ति प्राप्त होगी. दैत्य को वरदान देने के बाद ब्रह्मा जी वहां से चले जाते हैं. वेदों का वरदान मिलन पर समस्त ज्ञान शून्य हो आता है. सृष्टि पर ज्ञान का प्रकाश समाप्त होने से अंधकार की शक्ति बढ़ने लगी. चारों ओर उत्पात मचने लग जाता है. तब सभी देव देवी शक्ति की उपसना करना आरंभ कर देते हैं. माता से प्राथना करते हैं की वह सृष्टि को बचाए.

मां जगदंबा देवों की प्रार्थना सुन कर प्रसन्न होती हैं ओर उन्हें विजय श्री का वरदान देती हैं. माता तब दुर्गम दैत्य से वेदों को मुक्त कराती हैं. माता ने मां शाकंभरी का रुप धरा और पृथ्वी पर वर्षा की जिससे अंधकार हट गया और पृथ्वी पर जल का प्रवाह होता है. शाकुंभरी देवी ने दुर्गम दैत्य का अंत करके सभी को उस दैत्य के आतंक से मुक्त करवाया. अत: माता का प्रकाट्य ही शाकंभरी जयंती के रुप में मनाया जाता है.

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