अपरा एकादशी: धार्मिक महत्त्व, व्रत विधि और लाभ

हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है. हर माह में दो एकादशी होती हैं एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में. अपरा एकादशी, जिसे ‘अचला एकादशी’ भी कहा जाता है, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. यह एकादशी विशेष रूप से पापों के नाश, पुण्य प्राप्ति, मोक्ष की प्राप्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है. ‘अपरा’ का अर्थ है जिसकी कोई तुलना न हो, अर्थात यह एकादशी अपार फलदायिनी मानी जाती है.

धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, इस व्रत को करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वह ईश्वर की कृपा का पात्र बनता है. पद्म पुराण, स्कंद पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस एकादशी का विशेष वर्णन मिलता है. एक कथा के अनुसार, पूर्वकाल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था, जिसे उसके ही छोटे भाई ने मार डाला और उसकी आत्मा प्रेतयोनि में भटकने लगी. महर्षि धौम्य ने उस राजा के भाई को अपरा एकादशी व्रत करने की सलाह दी. व्रत के प्रभाव से प्रेत योनि से छुटकारा मिला और उसे स्वर्ग प्राप्त हुआ.

एकादशी व्रत की विधि

अपरा एकादशी व्रत को विशेष नियमों और विधियों के साथ किया जाता है. व्रती को दशमी तिथि से ही संयमित भोजन लेना चाहिए और एकादशी को व्रत रखना चाहिए. आइए व्रत विधि के बारे में जानते हैं.

एकादशी व्रत की तैयारी दशमी तिथि में ही आरंभ हो जाती है. दशमी की रात्रि को सात्विक भोजन करना चाहिए.

रात को ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए एकादशी व्रत की शुरुआत होती है और प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करनी चाहिए. भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं, पुष्प अर्पित करें और धूप से पूजन करें.

पीले वस्त्रों में श्रीहरि की मूर्ति को सजाएं और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए.’ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए.

उपवास और भजन-कीर्तन करना चाहिए. दिन भर व्रती को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. फलाहार या जल ग्रहण किया जा सकता है। दिन भर भजन-कीर्तन करें, श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना शुभ होता है.रात को जागरण करना अति पुण्यदायी होता है. भगवान विष्णु की कथाओं का श्रवण करना विशेष होता है।

द्वादशी को पारण का समय होता है. द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें. ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन कराएं, वस्त्र और दक्षिणा देना चाहिए.

अपरा एकादशी व्रत से जुड़ी अन्य बातें

अपरा एकादशी ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाएगी. यह व्रत पुण्यों को प्रदान करने वाला एवं समस्त पापों को नष्ट करने वाला होता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपार धन संपदा प्राप्त होती है. इस व्रत को करने वाला प्रसिद्धि को पाता है. अपरा एकादशी के प्रभाव से बुरे कर्मों से छुटकारा मिलता है. इसके करने से कीर्ति, पुण्य तथा धन में अभिवृद्धि होती है.

अपरा एकादशी भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को लाभ मिलता है, अपरा एकादशी को पूरे भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इस दिन देवी भद्र काली की पूजा की जाती है. ओडिशा में, इसे ‘जलक्रीड़ा एकादशी’ के रूप में जाना जाता है और भगवान जगन्नाथ के सम्मान में मनाया जाता है.

अपरा एकादशी के दिन ही भद्रकाली जयंती का पर्व भी मनाया जाता है. मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी भाग, विशेष रूप से केरल और तमिलनाडु में है देवी भद्रकाली के कुछ प्रसिद्ध मंदिर हैं.

पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस शुभ दिन पर, देवी सती की मृत्यु के बारे में सुनकर, देवी भद्रकाली भगवान शिव के बालों से प्रकट हुई थीं. देवी शक्ति के ‘अवतरण’ का मुख्य कारण पृथ्वी से सभी राक्षसों को नष्ट करना था. भद्रकाली जयंती हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण पूजा का दिन है और पूरे देश में बहुत जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह उत्सव दक्षिण भारत से लेकर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और कश्मीर में बहुत प्रसिद्ध है.

हिंदू भक्त देवी भद्रकाली की पूरी भक्ति और समर्पण के साथ पूजा करते हैं. भक्त सुबह जल्दी उठते हैं और सुबह की रस्में पूरी करने के बाद इस दिन काले वस्त्र धारण करते हैं. भद्रकाली जयंती पर काला या नीला रंग पहनना शुभ माना जाता है. भद्रकाली माता की मूर्ति को जल, दूध, चीनी, शहद और घी से पवित्र स्नान कराया जाता है. इसके बाद ‘पंचामृत अभिषेक’ पश्चात माता की मूर्ति को सुसज्जित किया जाता है. इस दिन देवी को नारियल पानी चढ़ाना भी बहुत शुभ माना जाता है. इसके बाद चंदन पूजा और बिल्व पूजा होती है, देवी भद्रकाली को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कई देवी मंत्रों का पाठ किया जाता है. 

अपरा एकादशी व्रत के लाभ

अपरा एकादशी का व्रत करने से कई आध्यात्मिक और लौकिक लाभ प्राप्त होते हैं. पापों से मुक्ति मिलती है, शास्त्रों के अनुसार, यह व्रत गंगा स्नान, काशी वास, गायत्री जप, ब्राह्मण भोजन, तपस्या आदि के बराबर फल प्रदान करता है. आध्यात्मिक उन्नति मिलती है, व्यक्ति के अंतःकरण की शुद्धि होती है और मन शांत होता है. 

आर्थिक समृद्धि आती है, व्रतधारी के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और दरिद्रता दूर होती है.  मोक्ष की प्राप्ति होती है, अपरा एकादशी के प्रभाव से प्राणी को अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है. विशेष फलों की प्राप्ति: व्रत करने से चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण में किया गया दान, प्रयाग में माघ स्नान, कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण में स्नान जितना फल मिलता है.

अपरा एकादशी केवल आध्यात्मिक ही नहीं, सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. इस दिन समाज में व्रत, दान, सेवा, सत्संग और सहानुभूति जैसे मूल्यों को बढ़ावा मिलता है. अनेक मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है और साधु-संतों को अन्नदान दिया जाता है.

अपरा एकादशी विशेष महत्व 

जहां आम एकादशियों में मोक्ष या विशेष पुण्य की प्राप्ति का वर्णन है, वहीं अपरा एकादशी विशेष रूप से पापों के नाश और सम्मान व यश की प्राप्ति के लिए जानी जाती है. इस कारण इसे ‘अपर अर्थात अपार’ फल देने वाली एकादशी कहा गया है.

अपरा एकादशी व्रत न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, संयम, सेवा और ईश्वर भक्ति की एक सुंदर साधना भी है. यह जीवन में अनुशासन, सदाचार और पुण्य कर्म की प्रेरणा देती है. जब व्यक्ति नियमित रूप से इस व्रत को करता है, तो उसका जीवन स्वयं ईश्वरीय गुणों से परिपूर्ण हो जाता है और वह लोक व परलोक दोनों में श्रेष्ठ फल प्राप्त करत

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