जानकी अष्टमी: जाने व्रत विधि और पूजा महत्व

जानकी अष्टमी, जिसे सीता अष्टमी भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भगवान राम की पत्नी सीता की पूजा के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व विशेष रूप से भारत के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां रामायण के चरित्रों और घटनाओं का विशेष महत्व है. यह पर्व फाल्गुन माह की अष्टमी को मनाया जाता है. इस दिन को लेकर हिन्दू धर्म में विशेष श्रद्धा और आदर है क्योंकि इसे भगवान राम की अर्धांगिनी सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है.

सीता माता का स्थान हिन्दू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है. वे केवल भगवान राम की पत्नी ही नहीं, बल्कि एक आदर्श महिला के रूप में पूजी जाती हैं. उनका जन्म मिथिला के राजा जनक के घर हुआ था. उनके जन्म के समय एक अद्भुत घटना घटी थी, जिससे यह सिद्ध हुआ कि सीता देवी का धरती पर आगमन कोई साधारण घटना नहीं थी. सीता का जन्म धरती से हुआ था, और यह घटना जनक जी के खेत में हल चलाते समय घटी थी, जब उन्होंने एक सुंदर कन्या को देखा था.

जानकी अष्टमी के दिन की पूजा विधि
जानकी अष्टमी के दिन विशेष रूप से सीता माता की पूजा की जाती है. लोग इस दिन व्रत रखते हैं और मंदिरों में जाकर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. इस दिन की पूजा में सबसे पहले घर को साफ किया जाता है और फिर दीपों से सजाया जाता है. पूजा स्थल पर सीता माता की मूर्ति या चित्र रखकर उन्हें सुंदर फूलों से सजाया जाता है बहुत से भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और उपवास करते हैं. व्रत के दौरान वे केवल फलाहार करते हैं और पानी पीते हैं. सीता माता की पूजा में विशेष रूप से ‘सीता अष्टकशर मंत्र’ का जाप किया जाता है. इस मंत्र का जाप करने से भक्तों को शांति और सुख की प्राप्ति होती है.

इस दिन रामायण की कथा विशेष रूप से सुनाई जाती है, जिसमें सीता माता के जन्म, उनके विवाह, और उनके जीवन की कठिनाइयों का वर्णन किया जाता है. कथा में उनके धर्म, त्याग, और सत्य के प्रतीक के रूप में उनके योगदान पर विशेष ध्यान दिया जाता है. पूजा के बाद भक्त सीता माता को भोग अर्पित करते हैं और फिर प्रसाद वितरण करते हैं. जानकी अष्टमी का महत्व इसलिए विशेष है क्योंकि इस दिन भगवान राम की पत्नी सीता का जन्म हुआ था. सीता की पूजा करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, सौम्यता और जीवन में सफलता मिलती है. सीता माता ने अपने जीवन में जो कठिनाइयाँ और संघर्ष झेले, वह आज भी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. उनका जीवन सत्य, धर्म और त्याग का प्रतीक है.

सीता माता के जीवन से शिक्षा
सीता माता के जीवन से हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं मिलती हैं. उनके जीवन में जो भी घटनाएँ घटीं, वे हमें एक आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं.
धर्म और सत्य का पालन: सीता माता ने अपने पूरे जीवन में सत्य और धर्म का पालन किया. चाहे वह उनके पिता की आज्ञा मानने का विषय हो, या फिर राम के साथ वनवास जाने का, उन्होंने कभी भी धर्म से परे नहीं किया.

त्याग और सहनशीलता: सीता माता ने हमेशा कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी भी साहस नहीं खोया. वनवास के दौरान उन्होंने अपने पति राम के साथ कठिनाइयों का सामना किया, और अपने बच्चे लव और कुश को अकेले ही पाला.

समर्पण और प्रेम: सीता माता ने राम के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को हमेशा बनाए रखा. उनके जीवन में प्रेम, विश्वास, और समर्पण की भावनाएँ प्रमुख थीं.

धैर्य और साहस: जब सीता माता का हरण रावण ने किया, तो उन्होंने कभी भी धैर्य नहीं खोया. उनका विश्वास और साहस उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी.

जानकी अष्टमी का प्रभाव
जानकी अष्टमी का पर्व महिलाओं के सम्मान, शक्ति, और उनके अधिकारों की याद दिलाता है. सीता माता को समाज में उच्च स्थान देने से महिलाओं के लिए आदर्श प्रस्तुत किया जाता है. इसके अलावा, यह पर्व परिवार और समाज में शांति और समृद्धि की कामना करता है. जानकी अष्टमी का दिन हमें अपने जीवन में सत्य, धर्म, प्रेम, और त्याग को अपनाने की प्रेरणा देता है.

सीता माता के जीवन से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं, विशेष रूप से उनके साहस, धैर्य, और कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्यों का पालन करने की भावना. इस दिन की पूजा से न केवल धार्मिक लाभ मिलता है, बल्कि यह सामाजिक एकता और शांति का संदेश भी देता है. इस दिन को मनाकर हम सीता माता के आदर्शों को अपनाते हुए अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं और जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं.

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