माघ गुप्त नवरात्रि : क्यों मनाए जाते हैं माघ माह में गुप्त नवरात्रि

माघ मास की गुप्त नवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो विशेष रूप से दस महाविद्या के साथ देवी के नौ रूपों की पूजा-अर्चना के लिए मनाई जाती है. यह पर्व आमतौर पर माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है. माघ गुप्त नवरात्रि, विशेष रूप से उन भक्तों द्वारा मनाई जाती है, जो इस समय उपवास रखते हुए देवी के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति करते हैं. गुप्त नवरात्रि को गृहस्थ से अलग सन्यासी और साधना की इच्छा रखने वालों के लिए विशेष माना गया है.  

गुप्त नवरात्रि पूजा 

गुप्त नवरात्रि का नाम ‘गुप्त’ इस बात से आया है कि यह नवरात्रि अन्य नवरात्रियों की तुलना में कम प्रसिद्ध है और इस दौरान पूजा की प्रक्रिया गुप्त रूप से की जाती है. इस समय देवी दुर्गा की उपासना का महत्व बहुत अधिक माना जाता है, क्योंकि यह समय विशेष रूप से साधना और तंत्र-मंत्र के लिए उपयुक्त होता है. यह नवरात्रि उन भक्तों के लिए है जो गहन साधना और ध्यान के माध्यम से देवी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं. 

गुप्त नवरात्रि के दौरान उपवासी रहते हुए दिनचर्या में साधना, जाप और पूजा की जाती है. इस समय देवी के 10 रूपों की पूजा की जाती है इसके अलावा 9 देवियों का पूजन भी होता है जिसमें से हैं ” शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री ” . इन नौ रूपों की पूजा विशेष रूप से कल्याणकारी मानी जाती है, क्योंकि इन्हें विभिन्न प्रकार की मानसिक और भौतिक बाधाओं को दूर करने वाला माना जाता है.

गुप्त नवरात्रि शमशान पूजा

माघ गुप्त नवरात्रि का पर्व हमें साधना और तपस्या की महत्ता सिखाता है. इस नवरात्रि को तामसिक पूजा के रुप में पहचाना जाता है इस कारण से इस दिन शमशान पूजा के साथ तंत्र पूजा भी की जाती है. यह नवरात्रि विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो आध्यात्मिक तंत्र में उन्नति की इच्छा रखते हैं. यह समय देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का है. गुप्त नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से उपवासी रहने का महत्व है. भक्त अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण रखते हुए उपवासी रहते हैं और दिन में केवल फलाहार करते हैं. 

इस दौरान माता रानी की 108 बार या 1008 बार पूजा अर्चना करके श्रद्धा पूर्वक मंत्र जाप करते हैं. माघ गुप्त नवरात्रि के व्रत से व्यक्ति की आत्मशक्ति में वृद्धि होती है और उसकी मानसिक शांति में सुधार होता है. साथ ही, यह व्रत आत्मसाक्षात्कार की दिशा में भी सहायक होता है. इस दौरान किए गए साधनाओं से भक्त की सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है और वह जीवन के कठिनाइयों से मुक्त होता है.

महाविद्या शब्द का अर्थ उस विद्या है जो शक्तियों का पुंज है और यह भारतीय तंत्रशास्त्र तथा हिन्दू धर्म के भीतर शक्ति की दस प्रमुख रूपों को व्यक्त करता है. इन दस महाविद्याओं को तंत्र, मंत्र और योग साधना में विशेष स्थान प्राप्त है. इन महाविद्याओं के माध्यम से साधक आत्मज्ञान, मोक्ष और शक्ति प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है. महाविद्याओं के ज्ञान और सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए साधक को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ अभ्यास करना पड़ता है. इन देवी-देवताओं की उपासना से जीवन में हर प्रकार की समस्याओं का समाधान और सुख-शांति की प्राप्ति होती है. महाविद्या की प्रमुख दस रूपों की सूची इस प्रकार है:

माता काली  

काली देवी का रूप समय, परिवर्तन और संहार का प्रतीक है. यह अज्ञान के अंधकार को नष्ट करने वाली, और ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग दिखाने वाली देवी मानी जाती हैं. काली का रूप अक्सर काल, मृत्यु और विनाश से जुड़ा हुआ होता है, लेकिन इनकी शक्ति पुनर्निर्माण की भी होती है.

माता तारा  

तारा देवी का रूप त्राण, सुरक्षा और उद्धार का प्रतीक है. तारा का मंत्र साधक को मानसिक शांति और सुरक्षा प्रदान करता है. तारा को साधना करने से जीवन के संकटों से मुक्ति मिलती है.

मां धूमावती

मां धूमावती का रूप शक्ति, साहस और विजय का प्रतीक है. वे राक्षसों और असुरों का नाश करने वाली देवी मानी जाती हैं. देवी का ध्यान करने से व्यक्तित्व में शक्ति और दृढ़ता आती है, और जीवन में संघर्षों को पार करने की क्षमता प्राप्त होती है.

मां ललिता  

ललिता देवी का रूप सृजन और पालन का प्रतीक है. यह देवी जीवों की उत्पत्ति, पालन और संरक्षण करती हैं. देवी का ध्यान साधक को जीवन के उद्देश्यों को समझने और समर्पण की शक्ति प्रदान करता है.

माता छिन्नमस्तिका  

छिन्नमस्तिका देवी का रूप आत्मसंयम, तात्त्विकता और ब्रह्मा के ज्ञान का प्रतीक है. यह देवी स्वयं के आत्मोत्सर्ग के रूप में प्रसिद्ध हैं. वे तात्त्विक ज्ञान और साधना के माध्यम से आत्मज्ञान की प्राप्ति का मार्ग प्रदर्शित करती हैं.

माता भैरवी

भैरवी देवी का रूप शांति और भय का संयोग है. यह देवी तंत्रशास्त्र की महत्वपूर्ण देवी मानी जाती हैं और साधक को मानसिक और आत्मिक शक्ति का प्रसार करती हैं. भैरवी की साधना से कोई भी साधक बुरे प्रभावों और भय से मुक्त हो सकता है.

माता मातंगी  

मातंगी देवी की पूजा से ज्ञान, बुद्धि और मानसिक स्पष्टता की प्राप्ति होती है. मातंगी की साधना करने से व्यक्तित्व में सुधार आता है, और जीवन के कठिनाईयों को सुलझाने की क्षमता बढ़ती है.

माता कमला 

कमला देवी समृद्धि, धन और ऐश्वर्य की देवी हैं. इनकी पूजा से आर्थिक समृद्धि और खुशहाली प्राप्त होती है. लक्ष्मी की महाविद्या का ध्यान करने से जीवन में स्थिरता, सुख और समृद्धि आती है.

माता भुवनेश्वरी

माता भुवनेश्वरी देवी समस्त सिद्धियों और तंत्र-मंत्र की देवी मानी जाती हैं. ये साधक को सभी प्रकार की सिद्धियों का आशीर्वाद देती हैं और उनके जीवन में दिव्य शक्तियों का संचार करती हैं. उनकी साधना से अत्यधिक आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त होता है.

बगलामुखी  

बगलामुखी देवी का रूप शत्रु नाश, विजय और रक्षा का प्रतीक है. ये देवी अपने भक्तों को शत्रुओं से मुक्ति, शारीरिक और मानसिक शांति प्रदान करती हैं. बगलामुखी की पूजा से सभी बाधाओं और समस्याओं से निजात मिलती है.

इन महाविद्याओं की पूजा, साधना और ध्यान से व्यक्ति को अपनी आंतरिक शक्ति का ज्ञान होता है. महाविद्याओं के प्रत्येक रूप में अलग-अलग शक्तियाँ, गुण और तत्त्व समाहित होते हैं, जो विभिन्न जीवन स्थितियों में सहायक होते हैं. तंत्र, योग और मंत्र साधना के माध्यम से इन महाविद्याओं की प्राप्ति की जाती है. महाविद्याओं की साधना से मनुष्य को न केवल भौतिक लाभ मिलते हैं, बल्कि मानसिक शांति, आत्मसाक्षात्कार और आत्मनिर्भरता की ओर भी अग्रसर होते हैं.

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