काली चौदस कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है. इस तिथि पर मां काली की पूजा करने का विधान है. ऐसा करने से साधक को सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है. साथ ही इस दिन छोटी दिवाली और नरक चतुर्दशी भी मनाई जाती है. शास्त्रों के अनुसार हर देवी-देवता की पूजा के लिए कुछ खास समय, दिन, तिथि और त्योहार होते हैं. इस समय इनका विशेष सम्मान करना जरूरी है. दिवाली की अमावस्या तिथि पर मां काली की विशेष पूजा और साधना की जाती है. इसी दिन मां काली प्रकट भी हुई थीं, इसलिए दिवाली के दिन काली की पूजा का विधान है. अमावस्या तिथि पर रात 10 बजे से सुबह 02 बजे तक विशेष योग में पूजा करने से मनचाहा फल मिल सकता है.
दिवाली पर ही क्यों आती है काली चौदस
काली पूजा का समय, कौन सा योग विशेष होता है इस दिन के लिए तो शास्त्रों में दिवाली की रात को सबसे बड़ी अमावस्या में से एक माना गया है. इस दिन का धर्म शास्त्रों एवं तंत्र सभी में महत्व मिलत अहै. देवी उपासकों के लिए काली चौदस का दिन अत्यंत ही श्रेष्ठ होता है. सिद्धि योग और अमृत योग में मां काली की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है. हालांकि अलग-अलग जगहों पर काली पूजा के अलग-अलग विधान हैं. अमावस्या तिथि मां काली की विशेष तिथि है, कुछ मान्यताओं के अनुसार इसी तिथि को देवी काली का जन्म हुआ था. मां काली शक्ति संप्रदाय की सबसे प्रमुख देवी हैं, जिस तरह भगवान शिव संहार के अधिष्ठाता हैं, उसी तरह देवी काली संहार की अधिष्ठात्री देवी हैं. शक्ति के अनेक रूप हैं. शुम्भ-निशुम्भ के वध के समय माता के शरीर से एक तेज किरण निकली थी. फलस्वरूप उनका रंग काला हो गया और तब से वे काली कहलायीं.
काली चौदस पूजा और ज्योतिषीय प्रभाव
काली चौदस पर भक्तों द्वारा देवी पार्वती के स्वरूप मां काल की विशेष पूजा की जाती है. देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से अशुभ ग्रहों के दुष्प्रभाव दूर होते हैं. साथ ही हर मनोकामना पूरी होती है. इसके लिए धार्मिक ग्रंथों में मां काली मंत्र और कालरात्रि स्तुति आदि का वर्णन किया गया है, जो ज्योतिष के अनुसार भी महत्वपूर्ण हैं. देवी काली की पूजा की जाती है. यह देवी शनि ग्रह को नियंत्रित करती हैं, जो कर्मफल दाता और दंडदाता है. जो व्यक्ति मां काली की पूजा करता है, शनि उन्हें शुभ फल प्रदान करते हैं. यह देवी पार्वती का उग्र रूप है. यह रूप देवी पार्वती ने शुंभ और निशुंभ का वध करने के लिए धारण किया था. इसके लिए उन्होंने बाहरी सुनहरी त्वचा को हटा दिया था. इनका रंग अत्यंत काला और रात्रि के समान भयानक है. इसी कारण इन्हें देवी कालरात्रि के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन इस रूप में देवी शीघ्र प्रसन्न होती हैं और हर मनोकामना पूरी करती हैं.
राहु केतु होते हैं शांत
काली चौदस के दिन राशु केतु जैसे पाप ग्रहों की भी शांति होती है. इनकी पूजा से भय का नाश होता है, आरोग्य की प्राप्ति होती है, आत्मरक्षा होती है और शत्रुओं पर नियंत्रण होता है. इनकी पूजा से तंत्र मंत्र के सभी प्रभाव समाप्त हो जाते हैं. मां काली की पूजा का उपयुक्त समय रात्रि का समय है. पाप ग्रहों विशेषकर राहु, केतु और शनि की शांति के लिए मां काली की पूजा अचूक है.
धार्मिक ग्रंथों में मां कालरात्रि को श्याम वर्ण और चार भुजाओं वाली बताया गया है. माँ काली अपने भक्तों को अभय और वरद मुद्रा से आशीर्वाद देती हैं. उन्हें उग्र रूप में उपस्थित शुभ और मंगलकारी शक्ति के रूप में भी जाना जाता है. इसके अलावा देवी काल को देवी महायोगेश्वरी और देवी महायोगिनी के नाम से भी जाना जाता है. दिवाली यानी अमावस्या तिथि पर अधिकतर साधक मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं, लेकिन दिवाली से एक दिन पहले यानी छोटी दिवाली पर काली मां की पूजा का विधान है. दिवाली की अधिकतर पूजा और काली पूजा आमतौर पर एक ही दिन होती है. पंचांग के अनुसार, काली पूजा उस दिन की जाती है, जिस दिन मध्य रात्रि में अमावस्या हो.
काली चौदस से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है
काली चौदस की पूजा करने से पहले अभ्यंग स्नान जो सूर्योदय से पहले शरीर पर उबटन लगाकर किया जाने वाला स्नान होता है उसे करना जरूरी माना जाता है. इसके बाद शरीर पर इत्र लगाने और मां काली की विधिवत पूजा करने से साधक के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं. काली चौदस की रात को हल्दी, गोमती चक्र, चांदी का सिक्का और कौड़ियां पीले कपड़े में बांधकर धन रखने के स्थान या तिजोरी में रख देने से व्यापार में आने वाली किसी भी तरह की बाधा दूर होती है.
काली चौदस की पूजा के दौरान काली माता के चरणों में लौंग का एक जोड़ा अर्पित करना शुभ होता है. ऎसा करने से साधक के अंदर मौजूद सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है. साथ ही मां काली को चने की दाल और गुड़ का भोग लगाएं. काली चौदस की पूजा के दौरान मां काली का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करना चाहिए.
काली चौदस मंत्र जाप
‘ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।’
काली चौदस काली स्त्रोत
ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥
दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥
महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
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ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥
कालरात्रि जय जय महाकाली। काल के मुंह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचण्डी तेरा अवतारा॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥
खड्ग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदन्ता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिन्ता रहे ना बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवे। महाकाली माँ जिसे बचावे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि मां तेरी जय॥