त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं. इनकी उपासना भव-बन्ध-मोचन कही जाती है. इस वर्ष त्रिपुर भैरवी 15 दिसंबर 2024 के दिन मनाई जानी है. इनकी उपासना से व्यक्ति को सफलता एवं सर्वसंपदा की प्राप्ति होती है. शक्ति-साधना तथा भक्ति-मार्ग में किसी भी रुप में त्रिपुर भैरवी की उपासना फलदायक ही है, साधना द्वारा अहंकार का नाश होता है तब साधक में पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है और माता, साधक के समक्ष प्रकट होती है. भक्ति-भाव से मन्त्र-जप, पूजा, होम करने से भगवती त्रिपुर भैरवी प्रसन्न होती हैं. उनकी प्रसन्नता से साधक को सहज ही संपूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति होती है.
त्रिपुर भैरवी के विभिन्न रुप | Forms of Tripura Bhairavi
भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि. त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं. भागवत के अनुसार महाकाली के उग्र और सौम्य दो रुपों में अनेक रुप धारण करने वाली दस महा-विद्याएँ हुई हैं. भगवान शिव की यह महाविद्याएँ सिद्धियाँ प्रदान करने वाली होती हैं.
त्रिपुर भैरवी अवतरण कथा | Tripura Bhairavi Katha
‘नारद-पाञ्चरात्र’ के अनुसार एक बार जब देवी काली के मन में आया कि वह पुनः अपना गौर वर्ण प्राप्त कर लें तो यह सोचकर देवी अन्तर्धान हो जाती हैं. भगवान शिव जब देवी को को अपने समक्ष नहीं पाते तो व्याकुल हो जाते हैं और उन्हें ढूंढने का प्रयास करते हैं. शिवजी, महर्षि नारदजी से देवी के विषय में पूछते हैं तब नारद जी उन्हें देवी का बोध कराते हैं वह कहते हैं कि शक्ति के दर्शन आपको सुमेरु के उत्तर में हो सकते हैं वहीं देवी की प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात संभव हो सकेगी. तब भोले शंकर की आज्ञानुसार नारदजी देवी को खोजने के लिए वहाँ जाते हैं. महर्षि नारद जी जब वहां पहुँचते हैं तो देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखते हैं यह प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो जाती हैं. और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट होता है और इस प्रकार उससे छाया-विग्रह “त्रिपुर-भैरवी” का प्राकट्य होता है.
त्रिपुर भैरवी मंत्र | Tripur Bhairavi Mantra
त्रिपुर भैरवी मंत्र के जाप एवं उच्चारण द्वारा साधक शक्ति का विस्तार करता है तथा भक्ति की संपूर्णता को पाता है “हंसै हसकरी हसै” और “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः” के जाप द्वारा सभी कष्ट एवं संकटों का नाश होता है.
त्रिपुर भैरवी जयंती महत्व | Tripura Bhairavi Jayanti Significance
माँ का स्वरूप सृष्टि के निर्माण और संहार क्रम को जारी रखे हुए है. माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं. माँ भैरवी के अन्य तेरह स्वरुप हैं इनका हर रुप अपने आप अन्यतम है. माता के किसी भी स्वरुप की साधना साधक को सार्थक कर देती है. माँ त्रिपुर भैरवी कंठ में मुंड माला धारण किये हुए हैं. माँ ने अपने हाथों में माला धारण कर रखी है. माँ स्वयं साधनामय हैं उन्होंने अभय और वर मुद्रा धारण कर रखी है जो भक्तों को सौभाग्य प्रदान करती है. माँ ने लाल वस्त्र धारण किया है, माँ के हाथ में विद्या तत्व है. माँ त्रिपुर भैरवी की पूजा में लाल रंग का उपयोग किया जाना लाभदायक है.