अधिक मास के दौरान आने वाली एकादशी पदमनी एकादशी के रुप में जानी जाती है. इस एकादशी का समय को सभी प्रकार के शुभ लाभ प्रदान करने वाली एकादशी माना गया है. इस एकदशी के विषय में एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि मुझे पद्मिनी मास की एकादशियों का फल बताएं, भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि एकदशी पापों का नाश करने वाली और सभी मानवीय इच्छाओं को पूरा करने वाली है. है
पद्मिनी एकादशी पूजा विधि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पद्मिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी एवं तिल का भोग लगाना शुभ माना जाता है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु के भक्तों के लिए सबसे पवित्र दिनों में से एक है. भक्त इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और भगवान को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं. एक चंद्र मास में दो बार एकादशी तिथियां आती हैं जो कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में होती हैं लेकिन इस एकादशी को चंद्र मास की प्राप्ति नहीं होती है इस कारण सभी एकादशियों में यह अलग मानी जाती हैं.
ऐसी ही महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक पद्मिनी मलमास में आती है. पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, पद्मिनी एकादशी के शुभ दिन पर भगवान विष्णु के व्रत और पूजा का विशेष धार्मिक महत्व है. इस दिन की पूजा को सैकड़ों वर्षों की तपस्या, दान आदि के बराबर माना जाता है. एकादशी के लिए रात्रि में भोजन न करते हुए, व्यसनों से दूर रहना चाहिए. भगवान के चिंतन में लीन रहकर भगवान का भजन करना चाहिए. अगले दिन सुबह दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर एकादशी व्रत का संकल्प करना चाहिए.
सुबह स्नान करने के बाद हाथ में जल लें और निर्जला एकादशी व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए. अब भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए. फिर उन्हें पीले फूल, अक्षत, चंदन, हल्दी, पान का पत्ता, सुपारी, चीनी, फल, धूप, दीप, गंध, वस्त्र आदि चढ़ानी चाहिए. इस दौरान “भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए.
पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, पद्मिनी एकादशी के शुभ दिन पर भगवान विष्णु के व्रत और पूजा का विशेष धार्मिक महत्व है. इस दिन की पूजा को सैकड़ों वर्षों की तपस्या, दान आदि के बराबर माना जाता है.
कथा इस प्रकार है अवंतीपुरी में शिवशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था. उनके पांच बेटे थे जिनमें से सबसे छोटा बेटा अपनी व्यसनों के कारण पाप करने लगा और उसके पिता और परिवार ने उसे त्याग दिया. अपने बुरे कर्मों के कारण निर्वासित होकर वह भटकता रहा. भूख से व्याकुल होकर वह त्रिवेणी में स्नान करके भोजन की तलाश में लग जाता है. मलमास में आश्रम में बहुत से लोग, साधु-महात्मा एकत्रित होकर एकादशी की कथा सुनते हैं. ब्राह्मण ने आश्रम में सबके साथ मिलकर पद्मिनी एकादशी की कथा सुनकर विधिपूर्वक व्रत का पारण किया. तब उसे इस व्रत से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है, इसलिए एकादशी महात्म्य का एक या आधा श्लोक भी पढ़ने से लाखों पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस कारण से यह एकादशी बेहद विषेश होती है.
पद्मिनी एकादशी महात्म्य
जो लोग सदैव भक्तिपूर्वक भगवान पुरुषोत्तम का नाम जपते हैं, जो श्री नारायण हरि की पूजा में लगे रहते हैं, वे कलियुग में धन्य हैं. ऐसा कहकर देवी लक्ष्मी उस ब्राह्मण को वरदान देती हैं. तब वह ब्राह्मण भी भगवान श्री विष्णु की भक्ति में लीन हो जाता है और अपने पापों से विमुख होकर एक सम्मानित और धनवान व्यक्ति बनकर अपने घर की ओर चला जाता है.च्वह ब्राह्मण जो अपने पिता के घर में सभी सुखों को प्राप्त करता है, अंततः भगवान विष्णु के लोक को प्राप्त होता है. इस प्रकार जो भक्त पद्मिनी एकादशी का उत्तम व्रत करता है और इसके माहात्म्य को सुनता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और धर्म-अर्थ-काम मोक्ष के चार पुरुषार्थों को प्राप्त करता है.
पद्मिनी एकादशी पूजा नियम
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पद्मिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तिल का भोग लगाना शुभ माना जाता है. इस दिन भक्तों को भगवान विष्णु को तिल से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए. इस दिन स्नान और दान करना बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस दिन पूजा करने वालों को पद्मिनी एकादशी से संबंधित व्रत कथा पढ़नी या सुननी चाहिए.
भगवान को प्रसन्न करने के लिए हवन कर सकते हैं. पद्मिनी एकादशी और सभी एकादशियों पर भगवान विष्णु की पूजा करते समय तुलसी दल या तुलसी का पत्ता चढ़ाना नहीं भूलना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु की कोई भी पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए.
एकादशी के दिन भक्तों को तिल से बने खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए. अगर आप पद्मिनी एकादशी का व्रत नहीं भी रख रहे हैं तो भी इस दिन चावल और बैंगन का सेवन नहीं करना चाहिए. पद्मिनी एकादशी के दिन घर में मांसाहारी या तामसिक भोजन नही खाना चाहिए. साथ ही खाना पकाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नही करना चाहिए.
एकादशी व्रत अनुष्ठान
इस एकादशियों की प्रथा अन्य एकादशियों से काफी भिन्न होती है. इस दिन पूर्ण व्रत रखा जाता है. इस व्रत की अवधि लगभग 24 घंटे की होती है. यह एकादशी के सूर्योदय से प्रारंभ होकर अगले दिन के सूर्योदय तक रहता है. एकादशी की तैयारी एकादशी से एक दिन पहले यानी की शुरू हो जाती है. दशमी के दिन. भक्त शाम की प्रार्थना करते हैं और बिना चावल के भोजन करते हैं. आप ध्यान दें कि इस भोजन में चावल वर्जित होते हैं. अन्य एकादशियों की तरह, भगवान विष्णु की प्रार्थना की जाती है जिनके लिए एकादशी पवित्र है. एकादशी के अवसर पर, भक्त अनाज, कपड़े, जल आदि का दान भी करते हैं. एकादशी का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है. कहा जाता है कि जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं उन्हें भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है.