भगवान हनुमान के जन्म से संबंधित कई कथाएं प्रचलित रही हैं. धर्म ग्रंथों में हनुमान जन्मोत्सव के विषय में कई उल्लेख प्राप्त होते हैं. हनुमान जी के जन्म दिवस और तिथि का एक साथ मिलना एक विशेष संयोग माना जाता है. विशेष योग में की गई बजरंगबली की पूजा विशेष फलदायी होती है. हनुमान जयंती विशेष रूप से दक्षिण भारत में मनाई जाती है, वहीं मान्यता है कि चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है. जबकि ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी का जन्म नरक चतुर्दशी यानी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुआ था अत: उत्तर भारत में इस दिन को मनाया जाता है हनुमान जी के जन्म को लेकर विद्वानों में अलग-अलग मत हैं हनुमान जी के अवतार के संबंध में कुछ विशेष तिथियों का वर्णन प्राप्त होता है.
हनुमान हैं रुद्र अवतार
हनुमान को भगवान शिव के अवतार स्वरुप स्थान प्राप्त है. हनुमान जी भगवान शिव के आठ रुद्रावतारों में से एक हैं. शास्त्रों का मत है कि भगवान राम की सहायता हेतु हनुमान जी का अवतरण पृथ्वी पर होता है. धर्म कथाओं के अनुसार पुंजिकस्थल नाम की अप्सरा ने कुंजर नामक वानर की पुत्री “अंजना” के रूप में वानर की योनि में जन्म लिया. अंजना इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर सकती थी. उनका विवाह केसरी नामक वानर से हुआ था. प्रत्येक क्षेत्र का हनुमान जयंती मनाने का अपना अनूठा तरीका और कारण है. तेलुगु हनुमान जयंती को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य के रुप में देखा जाता है.
हनुमान जयंती के संदर्भ में सबसे अधिक विचार धर्म ग्रंथों में प्राप्त होते हैं तथा लोक किवदंतियों में भी इन का उल्लेख प्राप्त होता है. जिस प्रकार श्री राम चंद्र जी के जन्मोत्सव का समय रामनवमी के रुप में मनाया जाता है उसी प्रकार उनके प्रिय भक्त हनुमान जीब का जन्म उत्सव हनुमान जयंती के रुप में मनाए जाने का विधान रहा है. आइये जानते हैं जयंती के समय में होने वाले इन भेदों के बारे में विस्तार से : –
हनुमान जयंती और विभिन्न तिथियों का महत
चैत्र एकादशी समय
हनुमान जी के जन्म से संबंधित एक विचार मिलता है जो बताता है की हनुमान का जन्म समय एकादशी तिथि से जुड़ा रहा है. इसे चैत्र माह की एकादशी तिथि के साथ बताया गया है. इस श्लोक के अनुसार हनुमान जी इस दिन को अवतरण लेते हैं : –
“चैत्रे मासे सिते पक्षे हरिदिन्यां मघाभिदे |
नक्षत्रे स समुत्पन्नौ हनुमान रिपुसूदनः ||”
श्लोक अनुसार भगवान हनुमान जी का जन्म समय चैत्र शुक्ल की एकादशी को हुआ था. इस तिथि का समय अत्यंत ही शुभ फलों को प्रदान करने वाला भी होता है क्योंकि एकादशी का समय भगवान श्री विष्णु के पूजन का भी समय होता है अत: यह समय हनुमान जी के जन्मोत्सव के साथ ही भगवान श्री हरि पूजन का भी विशेष समय होता है.
चैत्र पूर्णिमा समय
हनुमान जी के जन्म से संबंधित एक अत्यंत प्रचलित विचार यह रहा है की भगवान का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ है. धार्मिक ग्रंथों में मौजूद श्लोक एवं ग्रंथों से हम इस विचार को देख पाते हैं. इस समय को देश भर में काफी व्यापक रुप से मनाया भी जाता रहा :-
“महाचैत्री पूर्णीमाया समुत्पन्नौ अन्जनीसुतः |
वदन्ति कल्पभेदेन बुधा इत्यादि केचन ||”
कार्तिक चतुर्दशी समय
हनुमान जन्मोत्सव का समय कार्तिक माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से रहा है. यह समय भगवान हनुमान के जन्म की तिथि के रुप में प्रचलित रही है. चैत्र पूर्णिमा की ही भांति यह दिन भी व्यापक रुप से देश भर में उत्सव रुप में दिखाई देता है. इस श्लोक का संबंध रामायण से प्राप्त होता है. जिसके अनुसार विद्वान इस तिथि को अत्यधिक ग्राह्य मानते हैं.
“ऊर्जे कृष्णचतुर्दश्यां भौमे स्वात्यां कपीश्वरः |
मेष लग्ने अन्जनागर्भात प्रादुर्भूतः स्वयं शिवा |”
वैशाख कृष्ण दशमी (ज्येष्ठ कृष्ण दशमी) समय
एक अन्य मत का संबंध पंचांग में दो माह के समय अनुसार बनता है जिसमें पूर्णिमांत और अमांत के कारण इस अंतर की प्राप्ति होती है. आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना क्षेत्रों में हनुमान जयंती का समय वैशाख कृष्ण दशमी का माना गया है जो उत्तर भारत पंचांग के अनुसर ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि का समय होता है. अत: इस समय को भी भगवान हनुमान के जन्मोत्सव के रुप में वहां बेहद उत्साह एवं भक्ति के साथ मनाया जाता है.
इस दिन हुई थी भेंट श्री राम की हनुमान जी से
तेलगू पंचांग के अनुसार ये वो समय है जब हनुमान जी की प्रभु राम के साथ प्रथम भेंट होती है. हनुमान जी श्री रम के अनन्य भक्त हैं. राम का स्थान हनुमान के लिए सदैव ही अविस्मरणीय रहा है. अपने प्रिय सखा एवं भ्रात के रुप में श्री राम जी को हनुमान जी का सहयोग मिला. हनुमान जी की सहायता से ही वे राम ओर सीता का मिलन भी संभव हो पाता है. इस कारण से यह एक लम्बा समय होता है साधना का भक्तों के लिए अपनी साधना के जब अंतिम पड़ाव पर भक्त होते हैं तो इसके कारण जीवन में शुभता प्राप्त होती है. इस लम्बी हनुमान साधना को भक्त बहुत शृद्धा के साथ पूर्ण करते हैं. जिस प्रकार हनुमान जी को पाकर श्री राम जी के कार्य सिद्ध होते हैं उसी प्रकार भक्त भी हनुमान जी के लिए इस कठोर साधना को करते हुए अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं.
आंध्र और तेलगाना क्षेत्रों से जुड़ा पर्व
आंध्र एवं तेलंगाना क्षेत्र में इस पर्व का विशेष महत्व रहा है यह यहां का लोकप्रिय पर्व भी है. इस समय पर शोभायात्राएं भी निकाली जाती है जिसमें शृद्धालु बढ़ चढ़ कर भाग लेते दिखाई दे सकते हैं. भक्त अपनी साधना काल के दौरान हनुमान की के मंदिरों की यात्रा भी करते हैं. इस समय को आंजनेय साधना के रुप में भी जाना जाता है. भगवान की इस साधना में व्रत उपवास एवं ब्रह्मचर्य का पालन कड़ाई के साथ किया जाता है. इस समय पर व्रत रखने वाला अथवा उपासक नरंगी, लाल रंगों को धारण करते हैं. इस समय हनुमान जी के मंत्र जाप एवं नियमित साधना को किया जाता है.