मंगलवार को भगवान मुरुगन की पूजा और इसका महत्व

हिंदू धर्म में प्रत्येक देवता किसी न किसी ग्रह, दिन और गुण से जुड़े होते हैं. इसी परंपरा के अंतर्गत भगवान मुरुगन  जिन्हें कार्तिकेय, स्कंद, कुमारस्वामी और सुब्रमण्यम भी कहा जाता है। भगवान मुरुगन को मंगलवार के दिन विशेष रूप से पूजा जाता है. भगवान मुरुगन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और भगवान गणेश के छोटे भाई हैं.

दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु, में मुरुगन को अत्यंत प्रिय और शक्तिशाली देवता माना जाता है. वे शक्ति, विजय, साहस, और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रतीक हैं. मंगलवार को मुरुगन की पूजा का विशेष महत्व है. यह दिन न केवल ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक लाभ की दृष्टि से भी अत्यंत फलदायक माना जाता है.

भगवान मुरुगन और मंगल ग्रह का संबंध

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार का संबंध मंगल ग्रह से होता है. मंगल एक उग्र और तेजस्वी ग्रह है, जो जीवन में शक्ति, साहस, आत्मबल और विजय का प्रतीक माना जाता है. भगवान मुरुगन को ज्योतिष में मंगल ग्रह का अधिपति माना गया है. मुरुगन स्वयं सेनापति हैं देवताओं की सेना के सेनानायक और वे युद्ध, पराक्रम और विजय के देवता हैं. मंगल ग्रह की उग्रता जीवन में दुर्घटनाएं, क्रोध, विवाद, शारीरिक कष्ट, और वैवाहिक कलह का कारण बन सकती है. ऐसे में भगवान मुरुगन की पूजा करने से न केवल मंगल के दुष्प्रभाव शांत होते हैं, बल्कि जीवन में संतुलन, ऊर्जा और सफलता भी प्राप्त होती है.

भगवान मुरुगन पूजा विशेष 

साहस और आत्मविश्वास की प्राप्ति

मंगलवार को भगवान मुरुगन की आराधना करने से मनुष्य में साहस, आत्मबल, और आत्मविश्वास उत्पन्न होता है. वे अपने भय और असमंजस को दूर कर पाने में समर्थ होता है. यह गुण विशेष रूप से छात्रों, युवाओं, और उन लोगों के लिए आवश्यक हैं जो जीवन में कठिन संघर्षों का सामना कर रहे हैं.

विजय और सफलता का मार्ग

भगवान मुरुगन की पूजा से व्यक्ति को अपने कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. जीवन में जो लोग बार-बार असफल हो रहे होते हैं, उन्हें मुरुगन की कृपा से सही मार्गदर्शन और विजय का आशीर्वाद मिलता है. वे नकारात्मक विचारों से ऊपर उठकर एक सकारात्मक और उद्देश्यपूर्ण जीवन की ओर अग्रसर होते हैं.

कुज दोष से मुक्ति

जिनकी कुंडली में कुज दोष यानि मंगल दोष होता है, उनके वैवाहिक जीवन में समस्याएँ आती हैं. विवाह में देरी, झगड़े, असंतोष और तलाक जैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं. मुरुगन की पूजा मंगलवार को नियमित रूप से करने से कुज दोष के प्रभाव कम होते हैं और वैवाहिक जीवन में स्थायित्व आता है.

स्वास्थ्य में सुधार

भगवान मुरुगन की पूजा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है. आयुर्वेद और योग से जुड़े तंत्रों में भी मंगल को शरीर की ऊर्जा और रक्तसंचार से जोड़ा गया है. इसलिए मंगल ग्रह के संतुलन से व्यक्ति में ऊर्जा, बल, और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है.

मानसिक शांति और ध्यान की गहराई

भगवान मुरुगन को ज्ञान और भक्ति का प्रतीक भी माना जाता है. वे उन भक्तों को विशेष कृपा देते हैं जो ध्यान और साधना के माध्यम से ईश्वर से जुड़ना चाहते हैं. मंगलवार को मुरुगन की पूजा करने से ध्यान केंद्रित होता है और आत्मज्ञान की ओर यात्रा सुगम होती है.

मुरुगन पूजा की विधि 

मंगलवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र पहनें. घर के द्वार पर सुंदर कोलम रंगोली बनाएं यह मुरुगन को आमंत्रित करने का पारंपरिक तरीका है. मुरुगन की मूर्ति या चित्र को पुष्पों और मालाओं से सजाएं. भगवान मुरुगन को पंचामृतम दूध, दही, घी, शहद और केला का मिश्रण बहुत प्रिय है. इसके अलावा आप उन्हें मिठाइयां, विशेषकर ‘पाल पायसम’ और ‘वेल्लम’ गुड़ का भोग अर्पित कर सकते हैं. मंगलवार को पूर्ण या आंशिक व्रत रखा जा सकता है. जो लोग पूर्ण व्रत नहीं रख सकते, वे फल, दूध या सिर्फ एक बार सात्विक भोजन ले सकते हैं.

मुरुगन मंत्र जाप  

“ॐ सरवणभवाय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए. ‘कंधा षष्ठी कवस्म’, ‘कंधा गुरु कवस्म’ और ‘सुब्रमण्यम भुजंगम्’ जैसे स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए.

मंगलवार को मुरुगन की पूजा और व्रत के विशेष प्रकार

हर मंगलवार को व्रत रखने का यह सबसे सामान्य तरीका है. श्रद्धा और नियम से हर मंगलवार को पूजा कर कुज दोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है. मुरुगन का जन्म कार्तिगई नक्षत्र में हुआ था. इस नक्षत्र के दिन व्रत और पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है. चंद्र पक्ष की षष्ठी तिथि को मुरुगन की पूजा का विशेष महत्व है. विशेषकर कंधा षष्ठी पर उपवास रखने और कावसम का पाठ करने से जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन आ सकते हैं.

मंगलवार को मुरुगन की पूजा लाभ

परिवार में सुख और शांति का आशीर्वाद मिलता है। मुरुगन की पूजा से परिवार में शांति, एकता, प्रेम और सामंजस्य बना रहता है. जो लोग पारिवारिक कलह से परेशान होते हैं, उन्हें यह पूजा अत्यंत लाभकारी होती है.  विवाह में विलंब का निवारण होता है। अविवाहित युवक-युवतियां जो विवाह में विलंब का सामना कर रहे होते हैं, उन्हें मंगलवार को मुरुगन की पूजा और व्रत रखने से शीघ्र और शुभ विवाह की प्राप्ति होती है. संतान सुख मिलता है। माता-पिता अपने बच्चों के लिए भी मुरुगन से प्रार्थना करते हैं. भगवान मुरुगन बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और चरित्र में श्रेष्ठता प्रदान करते हैं.

मंगलवार को मुरुगन पूजा महत्व 

मंगलवार को मुरुगन की पूजा करने से व्यक्ति मानसिक रूप से केंद्रित और सकारात्मक रहता है. नियमित व्रत और ध्यान से शरीर में विषैले तत्वों की मात्रा घटती है और शरीर हल्का और ऊर्जावान महसूस करता है. इसके साथ ही यह आत्मनियंत्रण और अनुशासन को भी बढ़ावा देता है. मंगलवार को भगवान मुरुगन की पूजा करना न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है बल्कि ज्योतिषीय, मानसिक, शारीरिक और पारिवारिक जीवन को भी संतुलित करता है. 

यह दिन एक ऐसा अवसर है जब हम अपने जीवन की बाधाओं से ऊपर उठकर साहस, शक्ति और विजय के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं. भगवान मुरुगन के प्रति श्रद्धा और समर्पण से ही भक्तों को वह शक्ति प्राप्त होती है जो उन्हें जीवन के प्रत्येक युद्ध में विजयी बनाती है. इसीलिए दक्षिण भारत ही नहीं, बल्कि पूरे देश में मंगलवार को मुरुगन की पूजा का एक विशेष स्थान है.

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वैशाख मासिक शिवरात्रि: भगवान शिव की आराधना का समय

हिंदू धर्म में शिवरात्रि का विशेष महत्व है. यह पर्व भगवान शिव को समर्पित होता है, जिसे भक्तगण अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं. वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि के अलावा हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है. प्रत्येक मासिक शिवरात्रि का अपना एक विशेष आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व होता है, और वैशाख मास की शिवरात्रि उन सभी में अत्यंत शुभ मानी जाती है.

वैशाख मासिक शिवरात्रि भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने, अपने पापों से मुक्ति पाने और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करने का एक पावन अवसर होती है. 

वैशाख मासिक शिवरात्रि की तिथि और मुहूर्त

वैशाख मासिक शिवरात्रि वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है.इस दिन रात्रि के समय शिव पूजन करने से विशेष फल मिलता है. पूजा का उत्तम समय रात्रि में निशीथ काल अर्थात रात का मध्य भाग माना जाता है.

वैशाख मासिक शिवरात्रि पूजा विधि  

वैशाख माह की मासिक शिवरात्रि के दिन पूजा हेतु सुबह स्नान करके भगवान शिव का ध्यान करना चाहिए और अगर संभव हो सके तो व्रत का संकल्प लेना चाहिए. आप फलाहार व्रत रख सकते हैं या निर्जल व्रत भी कर सकते हैं. शिवलिंग का अभिषेक गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से करते हैं. बिल्वपत्र, धतूरा, आक का फूल, सफेद पुष्प, कमल, कनेर, चंदन, भस्म, धूप, दीप,अक्षत, रोली, मौली अर्पित करते हैं. रात भर जागकर शिव भजन, स्तुति और मंत्रों का जाप करें. चार प्रहरों में शिव पूजन करने की परंपरा है.

वैशाख मासिक शिवरात्रि शिव मंत्र 

वैशाख माह में आने वाली मासिक शिवरात्रि के समय भगवान शिव के पूजन के साथ साथ शिव मंत्रों का जाप करना बहुत ही शुभ होता है। इस दिन मंत्रों का जाप विशेष फलदायी होता है:

ॐ नमः शिवाय 

महामृत्युंजय मंत्र 

ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्.

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

शिव गायत्री मंत्र 

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि.

तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

वैशाख मासिक शिवरात्रि के लाभ

मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, शिवरात्रि व्रत और पूजा व्यक्ति को मानसिक शांति और ऊर्जा प्रदान करता है. ध्यान और मंत्र जाप से मन केंद्रित होता है और नकारात्मकता दूर होती है.

पारिवारिक सुख-सौभाग्य आता है, इस दिन किए गए शिव-पार्वती पूजन से गृहस्थ जीवन में सुख और समृद्धि आती है. स्त्रियां इस दिन सौभाग्य की प्राप्ति और पति की लंबी आयु के लिए व्रत करती हैं.

रोग और कष्टों से मुक्ति मिलती, भगवान शिव ‘वैद्यनाथ’ भी कहे जाते हैं. मासिक शिवरात्रि के दिन उनका स्मरण रोगों और कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला होता है.

कर्मों का शुद्धिकरण होता है, मासिक शिवरात्रि के उपवास से पापों का क्षय होता है. आत्मा शुद्ध होती है और व्यक्ति मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर होता है.

शिवरात्रि से जुड़ी कुछ मान्यताएं

यह माना जाता है कि शिवरात्रि की रात को भगवान शिव ब्रह्मांड में विशेष रूप से सक्रिय होते हैं. उनकी ऊर्जा इस समय सबसे अधिक सुलभ होती है. अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से इस दिन भगवान शिव की आराधना करता है, तो उसे सात जन्मों तक कोई कष्ट नहीं होता.

इस दिन व्रत के दौरान क्रोध, लोभ, मोह, आलस्य आदतों से बचना चाहिए. दिन भर भगवान शिव के नाम का स्मरण करते रहना चाहिए. रात के समय दीप जलाकर “ॐ नमः शिवाय” का जप करते हुए ध्यान करना चाहिए.

शिव को ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. शिवरात्रि का व्रत और पूजन विद्यार्थियों को एकाग्रता, स्मरण शक्ति और आत्म-नियंत्रण देता है.

यह दिन संयम, ब्रह्मचर्य और आत्मिक उन्नति के लिए प्रेरणादायक है. युवाओं को जीवन में धैर्य, सादगी और तप का महत्व समझने का अवसर मिलता है.

शिव और पार्वती आदर्श गृहस्थ जीवन के प्रतीक हैं. इस दिन उनके पूजन से परिवार में प्रेम, समर्पण और संतुलन बना रहता है.

वैशाख मासिक शिवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, मन की एकाग्रता, और भगवान शिव के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है. इस दिन का व्रत करने वाला व्यक्ति न केवल सांसारिक सुख-संपत्ति प्राप्त करता है, बल्कि वह आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर भी अग्रसर होता है.

वैशाख मासिक शिवरात्रि का पौराणिक महत्व

पुराणों में उल्लेख है कि मासिक शिवरात्रि वह रात्रि है जब माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह का वर प्राप्त किया. इस दिन व्रत और पूजा करके स्त्रियाँ अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं.

शास्त्रों के अनुसार, मासिक शिवरात्रि के दिन उपवास और शिव पूजन करने से व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में शुभ फल प्राप्त होते हैं. यह आत्मशुद्धि और भगवान से जुड़ने का दिन होता है. यह दिन भौतिकता से हटकर आत्मिक उन्नति का भी प्रतीक है. शिवरात्रि की रात को जागरण और ध्यान करने से आत्मा में जागरूकता आती है. यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने का माध्यम बनती है.

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वैशाख विनायक चतुर्थी पर्व: पूजा, विशेषता, लाभ एवं धार्मिक महत्व

वैशाख विनायक चतुर्थी पर्व

वैशाख माह की मासिक विनायक चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा एवं अराधना की जाती है। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के समय श्री गणेश वंदना करने से भक्तों को जीवन में सुख एवं शांति की प्राप्ति होती है. ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है। वैशाख विनायक चतुर्थी का पर्व भक्तों के मध्य भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है.  यह पर्व भगवान गणेश की आराधना के लिए समर्पित होता है और इस दिन का पूजन व्रत नियम करना जीवन को सफल और सुखमय बनाने वाला होता है.

वैशाख विनायक चतुर्थी न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में शुभ ऊर्जा और नवीनता की प्रेरणा भी देती है. इस पर्व पर भगवान गणेश की भक्ति करने से मनोबल, साहस और सफलता प्राप्त होती है. आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जब लोग मानसिक तनाव, असफलता और अस्थिरता से जूझ रहे हैं, तब इस प्रकार के आध्यात्मिक पर्व उन्हें शांति और समाधान का मार्ग दिखाते हैं. इसलिए, हर श्रद्धालु को चाहिए कि वह इस शुभ तिथि को पूरी निष्ठा और नियमपूर्वक मनाकर भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करे और जीवन में समस्त विघ्नों का नाश कर सफलता के मार्ग पर आगे बढ़े.

वैशाख विनायक चतुर्थी पूजा विधि 

विनायक चतुर्थी का दिन भगवान श्री गणेश जी को अत्यंत प्रिय रहा है। इस दिन भगवान का पूजन भक्त को जीवन के नकारात्मक पक्ष से बचाव देने वाला होता है। वैशाख विनायक चतुर्थी की पूजा प्रातःकाल सूर्योदय के बाद प्रारंभ की जाती है. पूजा विधि इस प्रकार होती है : 

प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा स्थान को शुद्ध करें और भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें. फिर संकल्प लें कि आप यह व्रत श्रद्धा और भक्ति से करेंगे.

एक तांबे या पीतल के कलश में जल भरकर आम या अशोक के पत्ते लगाएं और उसके ऊपर नारियल रखें. फिर भगवान गणेश के सामने दीपक, अगरबत्ती, फूल, दूर्वा, मोदक, लड्डू, पंचमेवा आदि अर्पित करने चाहिए.

ॐ गण गणपतये नमः मंत्र का 108 बार जाप करें. इसके अलावा गणेश अष्टोत्तर शतनामावली, गणेश चालीसा या श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है.  पूजा के बाद गणेश व्रत कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करना चाहिए. इस दिन की कथा में भगवान गणेश द्वारा भक्तों को संकटों से मुक्त करने की कथाएं वर्णित होती हैं. पूजा के अंत में गणेश जी की आरती करें जय गणेश जय गणेश देवा और मोदक या लड्डू का प्रसाद वितरित करना चाहिए।

मासिक विनायक चतुर्थी प्रभाव 

हर माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ‘विनायक चतुर्थी’ के रूप में मनाया जाता है, परंतु वैशाख मास की विनायक चतुर्थी विशेष रूप से शुभ मानी जाती है क्योंकि यह वसंत ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत का प्रतीक भी होती है.

यह तिथि किसी भी नए कार्य की शुरुआत के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है. व्यापारी वर्ग, विद्यार्थी, लेखक, कलाकार तथा नवविवाहित जोड़े इस दिन विशेष पूजा करते हैं.

चंद्रमा दर्शन से बचाव

इस दिन चंद्र दर्शन नहीं करने की परंपरा है. पौराणिक मान्यता है कि चतुर्थी के दिन चंद्रमा देखने से मिथ्या दोष लगता है. यदि भूलवश देख लिया जाए तो “श्रीकृष्ण-सत्यभामा संवाद” या “स्यमंतक मणि कथा” का पाठ कर लेना चाहिए.

बुद्धि और विवेक की प्राप्ति

भगवान गणेश को बुद्धि का दाता कहा गया है. उनकी आराधना से व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है और वह जीवन में सही दिशा में आगे बढ़ता है.

विघ्नहर्ता गणेश जी की उपासना जीवन में आने वाले हर प्रकार के संकट और विघ्नों को दूर करती है. विशेषकर जिन लोगों के जीवन में बार-बार कार्य में अड़चनें आती हैं, उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए.

जो दंपति संतान की प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी होता है. साथ ही, यह व्रत पारिवारिक सौहार्द और समृद्धि को भी बढ़ाता है.

जो विद्यार्थी पढ़ाई या परीक्षा में सफलता चाहते हैं, उन्हें विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा कर ‘विद्या मंत्र’ का जाप करना चाहिए

वैशाख विनायक चतुर्थी महत्व 

स्कंद पुराण, गणेश पुराण इत्यादि में गणेश चतुर्थी का विस्तृत वर्णन मिलता है. इनमें कहा गया है कि जो भक्त चतुर्थी को व्रत और पूजा करता है, उसे गणेश जी की कृपा से संपूर्ण मनोकामनाएं प्राप्त होती हैं.

चतुर्थी तिथि स्वयं गणेश जी की तिथि मानी जाती है. वैशाख में जब यह तिथि शुभ नक्षत्रों में आती है, तब यह अत्यंत फलदायी मानी जाती है. नियमित विनायक चतुर्थी व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि, मानसिक शांति, व्यवसाय में वृद्धि तथा पारिवारिक प्रेम की प्राप्त होती है.

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भानु सप्तमी: भानु सप्तमी के दिन राशि उपाय

भानु सप्तमी: भानु सप्तमी के दिन राशि उपाय 

भानु सप्तमी हिंदू धर्म में सूर्य देवता को समर्पित एक विशेष तिथि है. यह पर्व प्रत्येक मास की शुक्ल और कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन विशेष मान्यता माघ मास और वैशाख मास में आने वाली भानु सप्तमी को दी जाती है. “भानु” शब्द का अर्थ होता है सूर्य और “सप्तमी” का अर्थ है सातवां दिन. इस प्रकार यह दिन सूर्य देव की उपासना और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का विशेष अवसर होता है.

सूर्य सप्तमी के दिन को ज्योतिष अनुसार भी विशेष माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, जब पहली बार सूर्य की किरणें धरती पर पड़ी थीं, वह दिन सप्तमी तिथि का ही था. इसी कारण इस तिथि को सूर्य जयंती के रूप में भी देखा जाता है. यह दिन उन लोगों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है जो रोग, शारीरिक कष्ट, मानसिक तनाव, आत्मबल की कमी या करियर की रुकावट जैसी समस्याओं से ग्रसित होते हैं. 

भानु सप्तमी पूजा विधि

भानु सप्तमी की पूजा सुबह सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में की जाती है. सबसे पहले व्यक्ति को स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए. यदि संभव हो तो गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करना श्रेष्ठ माना जाता है, अन्यथा घर पर स्नान करते समय जल में गंगाजल मिलाना शुभ होता है.

स्नान के पश्चात पूर्व दिशा की ओर मुख करके सूर्यदेव को तांबे के लोटे में जल, लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत और शक्कर मिलाकर अर्घ्य दिया जाता है. अर्घ्य देते समय “ॐ घृणि सूर्याय नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए. इसके बाद सूर्यदेव की प्रतिमा या चित्र पर लाल वस्त्र, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य आदि अर्पित करना चाहिए.

भक्त इस दिन व्रत भी रखते हैं और दिनभर फलाहार करते हैं. सूर्य कथा का पाठ करना चाहिए और अंत में आरती गाएं. संभव हो तो किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और गौसेवा करना चाहिए. सूर्यदेव को लाल रंग के फूल और मीठा भोग विशेष प्रिय होता है.

भानु सप्तमी का महत्व

भानु सप्तमी केवल एक धार्मिक तिथि नहीं, बल्कि यह जीवन में स्वास्थ्य, ऊर्जा और सकारात्मकता लाने वाला पर्व है. ज्योतिष के अनुसार सूर्य ग्रह नवग्रहों का राजा है और आत्मबल, नेतृत्व क्षमता, आत्मविश्वास, दृष्टि शक्ति, और निर्णय क्षमता का प्रतीक है. सूर्य की कृपा से व्यक्ति का भाग्य तेज़ होता है और उसका सम्मान बढ़ता है.

सूर्य की उपासना से हड्डियों से जुड़ी समस्याएं, नेत्र रोग, मानसिक कमजोरी और त्वचा रोगों में लाभ होता है. जो लोग आलस्य, आत्महीनता या निर्णय लेने में असमर्थता से ग्रसित होते हैं, उनके लिए सूर्य उपासना अत्यंत प्रभावी मानी जाती है. इसके अलावा यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो नौकरी में उन्नति, प्रमोशन या सरकारी क्षेत्र में सफलता की कामना रखते हैं.

भानु सप्तमी केवल एक धार्मिक तिथि नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, ऊर्जा संचार और सकारात्मकता का स्रोत है. सूर्यदेव की उपासना व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाती है. यदि इस दिन श्रद्धा, संयम और शुद्धता के साथ पूजा-अर्चना की जाए, दान और सेवा का भाव रखा जाए, तो यह दिन जीवन के लिए एक सकारात्मक मोड़ बन सकता है.

भानु सप्तमी सभी के लिए एक ऐसा पर्व है जो हमें प्रकृति, ब्रह्मांड और आत्मा की शक्ति को समझने और उनसे जुड़ने का अवसर देता है. सूर्य का तेज न केवल हमारे शरीर को गर्मी देता है, बल्कि हमारी आत्मा को भी जाग्रत करता है. यही इस पर्व की सच्ची महिमा है.

सूर्यदेव को सत्य, तेज और धर्म का प्रतीक माना गया है. इसलिए इस दिन सत्यनिष्ठा और सेवा-भाव से किया गया हर कार्य दीर्घकालिक शुभ परिणाम देता है.

भानु सप्तमी पर सभी राशियों के लिए विशेष उपाय

हर राशि पर सूर्य की स्थिति अलग प्रभाव डालती है. भानु सप्तमी के दिन यदि राशि अनुसार विशेष उपाय किए जाएं तो यह और भी अधिक फलदायी सिद्ध हो सकते हैं:

मेष राशि

इस राशि के जातकों को इस दिन तांबे के पात्र में जल, लाल पुष्प और गुड़ मिलाकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. इससे नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है। और नौकरी में प्रमोशन की संभावनाएं बनती हैं.

वृषभ राशि

वृषभ राशि वाले इस दिन गाय को हरा चारा खिलाएं और सूर्य मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए. इससे पारिवारिक समस्याएं दूर होंगी और घर में सुख-शांति बनी .रहती है.

मिथुन राशि

मिथुन राशि के लिए सूर्य मंत्र “ॐ आदित्याय नमः” का जाप और जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा सामग्री का दान करना शुभ रहेगा. यह उपाय मानसिक एकाग्रता और करियर में सफलता दिलाएगा.

कर्क राशि

कर्क राशि वालों को इस दिन सूर्य को शक्कर मिला जल अर्पित करना चाहिए और पितरों के लिए तर्पण करना चाहिए. इससे पारिवारिक तनाव दूर होंगे और मानसिक शांति मिलेगी.

सिंह राशि

सिंह राशि स्वयं सूर्य की राशि है. इस दिन इन्हें विशेष लाभ होता है. लाल वस्त्र पहनें, सूर्य को रक्त चंदन अर्पित करना चाहिए और सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए. इससे सम्मान और प्रसिद्धि प्राप्त होती है।.

कन्या राशि

कन्या राशि के जातक इस दिन गुड़ और गेहूं का दान करना चाहिए और सूर्य को अर्घ्य देते समय चने की दाल मिलाएं. इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दूर होंगी और आर्थिक स्थिति सुधरेगी.

तुला राशि

तुला राशि वालों को इस दिन सूर्य को लाल गुलाब के फूल चढ़ाने चाहिए और सूर्य स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. इससे रिश्तों में मिठास बढ़ेगी और वैवाहिक जीवन सुखद बनेगा.

वृश्चिक राशि

वृश्चिक राशि के लिए जल में लाल मसूर की दाल डालकर सूर्य को अर्घ्य देना लाभकारी रहेगा. इससे शत्रुओं पर विजय और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।.

धनु राशि

धनु राशि के लोग इस दिन पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए. यह उपाय भाग्यवृद्धि और नौकरी में तरक्की दिलाता है.

मकर राशि

मकर राशि वालों को इस दिन बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए और सूर्य को गुड़-चावल मिलाकर जल अर्पित करना चाहिए. इससे करियर में स्थायित्व मिलेगा और मान-सम्मान में वृद्धि होती है.

कुंभ राशि

कुंभ राशि के जातक इस दिन सूर्य को शुद्ध जल के साथ केसर या हल्दी डालकर अर्घ्य दें. इसके अलावा विद्यार्थियों को पठन सामग्री दान करना चाहिए. इससे शिक्षा और नौकरी दोनों में सफलता मिलती है.

मीन राशि

मीन राशि के लिए सूर्य उपासना के साथ-साथ जरूरतमंद लोगों वस्त्र और भोजन का दान करना विशेष फलदायी होता है. इससे धन और संतान सुख की प्राप्ति होती है.

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गंगा तृतीया कब और क्यों मनाते हैं जानें इस दिन का महत्व

भारतवर्ष में विभिन्न धार्मिक पर्व-त्योहारों का विशेष महत्व है. इन्हीं में से एक अत्यंत शुभ और पुण्यदायक दिन है गंगा तृतीया. इसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है. यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. गंगा तृतीया न केवल धार्मिक दृष्टि से अपितु आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस दिन पवित्र गंगा नदी का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, इसीलिए इसे ‘गंगा तृतीया’ कहते हैं. यह पर्व हर वर्ष अप्रैल-मई के महीने में आता है.

गंगा तृतीया पर्व

गंगा तृतीया पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. यह दिन त्रेतायुग के प्रारंभ का प्रतीक भी माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं. इसलिए इसे “गंगा अवतरण दिवस” भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्मदिवस भी माना जाता है. साथ ही त्रेता युग में इसी दिन भगवान विष्णु ने नर-नारायण और हयग्रीव रूप में अवतार लिया था. यह पर्व जैन धर्म में भी अत्यंत महत्व रखता है. जैन मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान ऋषभदेव ने वर्षभर की तपस्या के बाद पहला आहार रस का ग्रहण किया था.

गंगा तृतीया पूजा विधि

गंगा तृतीया के दिन श्रद्धालु सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करते हैं. विशेष रूप से गंगा नदी में स्नान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है. यदि गंगा नदी तक पहुँचना संभव न हो, तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है. प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर पवित्र नदियों या घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें. तांबे का कलश, गंगाजल, दूध, अक्षत, चंदन, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि. स्वच्छ स्थान पर गंगा माता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और उन्हें पुष्प, वस्त्र, चंदन आदि अर्पित करें. गंगा माता की आरती करें और विशेष मंत्रों का जाप करें  ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, जल से भरे कलश, छाता, चप्पल, जलपात्र आदि दान करना अत्यंत पुण्यकारी होता है. इस दिन शुभ कार्य जैसे मुंडन, विवाह, गृह प्रवेश आदि को अत्यंत शुभ माना जाता है.

यह दिन गंगा के पृथ्वी पर आगमन का प्रतीक है, जिसे समस्त मानवता के कल्याण के लिए माना जाता है. भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म इसी दिन हुआ था. नर-नारायण और हयग्रीव रूप में भगवान विष्णु ने इसी दिन अवतार लिया.

गंगा तृतीया ज्योतिषीय महत्व 

गंगा तृतीया को शुभ मुहूर्त समय माना गया है. गंगा तृतीया के दिन सूर्य उच्च राशि में रहते हैं, जिससे यह दिन अत्यंत शुभ बन जाता है. यह तिथि त्रेता युग के आरंभ की मानी जाती है. इस दिन कोई भी कार्य जैसे सोना खरीदना, विवाह करना, गृह प्रवेश करना आदि शुभ फलदायक माने जाते हैं.

गंगा तृतीया पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और पुण्य कमाने के लिए अत्यंत लाभकारी है. इस दिन किए गए कार्यों का अक्षय फल मिलता है. गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा पवित्र होती है. इस दिन किया गया दान सौ गुना फल देता है. विशेष रूप से जल से भरे घड़े, अनाज, वस्त्र, सोना, चांदी, गौ आदि का दान करने से अपार पुण्य प्राप्त होता है. सच्चे मन से की गई पूजा और मंत्र जाप से इच्छाएं पूर्ण होती हैं.

गंगा तृतीया: पौराणिक महत्व 

गंगा तृतीया, जिसे अक्षय तृतीया के नाम से भी जाना जाता है. यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इसकी मान्यता अत्यंत शुभ तथा पुण्यदायक मानी जाती है. इस दिन माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था, गंगा तृतीया को हिंदू धर्म में अत्यंत विशेष स्थान प्राप्त है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन राजा भागीरथ के तप से प्रसन्न होकर मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं ताकि उनके पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो सके. अतः यह दिन मोक्षदायिनी गंगा के पृथ्वी पर पदार्पण का प्रतीक है. 

इसके अतिरिक्त यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्मदिवस भी माना जाता है. कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने नर-नारायण और हयग्रीव अवतार भी लिए थे. यही कारण है कि यह दिन केवल गंगा पूजन तक सीमित नहीं, बल्कि विष्णु भक्ति और पुण्यकर्म के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है. जैन धर्म में भी यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है. ऐसा माना जाता है कि पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने इसी दिन एक वर्ष की कठिन तपस्या के बाद गन्ने के रस से पहला आहार ग्रहण किया था.

गंगा तृतीया मंत्र जाप

इस दिन कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से पुण्यफल कई गुना बढ़ जाता है. नीचे कुछ प्रमुख मंत्र दिए गए हैं:

गंगा माता मंत्र:

ॐ नमः शिवायै गंगायै शिवदत्तायै नमो नमः.

स्नानं मे देहि गंगे त्राहि मां दु:खभारतः॥

गंगा स्तोत्र:

देवि सुरेश्वरी भगवति गंगे  

त्रिभुवन-तारिणि तरल-तरंगे.

शंकर-मौलि-विहारिणि विमले  

मम मतिरास्तां तव पद-कमले॥

अक्षय तृतीया महामंत्र:

ॐ श्री लक्ष्मीनारायणाय नमः.

गंगा तृतीया एक ऐसा पर्व है जो मानव जीवन को आध्यात्मिक उन्नति, शुद्धता और पुण्य की ओर प्रेरित करता है. यह दिन भक्ति, सेवा, दान और सद्कर्मों के लिए समर्पित है. गंगा माँ के पावन चरणों में स्नान कर, उनके नाम का जप कर, और सेवा भाव से दान कर हम अपने जीवन को पवित्र बना सकते हैं. यह पर्व हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में पवित्रता, परोपकार और सत्कर्मों से ही मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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पोहेला बैशाख : बंगाली संस्कृति का नववर्ष उत्सव

पोइला बोइसाख

पोहेला बैशाख, जिसे बंगाली नववर्ष के रूप में जाना जाता है, बंगाल और बंगाली लोगों के लिए बेहद खास दिन होता है. यह पर्व न केवल एक नए साल की शुरुआत को दर्शाता है, बल्कि यह सांस्कृतिक एकता, परंपरा और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है. पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, झारखंड, असम और बांग्लादेश में रहने वाले बंगाली लोग इस दिन को बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाते हैं.
इस दिन का नाम “पोहेला” यानी “प्रथम” और “बैशाख” यानी बंगाली कैलेंडर का पहला महीना इन दोनों शब्दों से मिलकर बना है. यह दिन आमतौर पर 14 या 15 अप्रैल को आता है और यह समय वसंत के अंतिम चरण और ग्रीष्म के आरंभ का सूचक होता है.

त्योहार से संबंधित परंपराएं
पोहेला बैशाख के दिन बंगाली समाज में एक खास प्रकार की जीवंतता देखने को मिलती है. लोग पारंपरिक परिधानों में सज-धज कर तैयार होते हैं पुरुष आमतौर पर धोती और कुर्ता पहनते हैं, जबकि महिलाएं सुंदर लाल-श्वेत साड़ी पहनती हैं. चेहरे पर खुशी की चमक होती है और हर तरफ उत्सव का वातावरण छाया रहता है.

यह दिन शुभ कार्यों के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है. लोग इस दिन नया व्यापार शुरू करते हैं, नई चीज़ों की खरीदारी करते हैं और कुछ लोग तो नया मकान या वाहन भी इसी दिन लेना पसंद करते हैं. दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में ‘हलकखाता’ की परंपरा निभाई जाती है, जिसमें पुराने हिसाब-किताब को बंद कर नए खाते की शुरुआत होती है.

पोहेला बैशाख के दिन बंगाली घरों में विशेष पकवान बनाए जाते हैं. सुबह की शुरुआत अक्सर ‘लुचिआलू दम’, ‘सोन्देश’, ‘मिष्टी दही जैसे स्वादिष्ट व्यंजनों से होती है. त्योहार का स्वाद इन पारंपरिक भोजनों से और भी समृद्ध होता है. गांवों में बड़े स्तर पर मेलों और प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है, जहां हस्तशिल्प की वस्तुएं, लोक संगीत, नृत्य, और पारंपरिक खेलों का आयोजन होता है. लोग परिवार और दोस्तों के साथ इन मेलों में हिस्सा लेते हैं, खरीददारी करते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद उठाते हैं.

पोहेला बैशाख इतिहास और महत्व
पोइला बैशाख पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, झारखंड और असम में बंगाली समुदायों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह त्यौहार बंगाली नववर्ष का प्रतीक है और इसका बहुत महत्व है, जिसे आज धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दिन लोग पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, विशेष व्यंजन बनाते हैं और प्रार्थना करने के लिए मंदिरों में जाते हैं। इसके अलावा, अलग-अलग जुलूस और मेले भी आयोजित किए जाते हैं, जहाँ लोग संगीत और नृत्य का आनंद लेते हैं।

लेकिन इसके पीछे का इतिहास भी काफी महत्वपूर्ण रहा है। पोइला बैशाख की उत्पत्ति के बारे में कई विचार मिलते हैं कुछ के अनुसार माना जाता है कि मुगल शासन के दौरान, इस्लामी हिजरी कैलेंडर के साथ कर एकत्र किए जाते थे। लेकिन चंद्र कैलेंडर हिजरी कैलेंडर से मेल नहीं खाता था विभिन्न कृषि चक्रों के कारण तालमेल में कमी बनी हुई थी। इसलिए, बंगालियों ने इस त्योहार की शुरुआत की और बंगाली कैलेंडर को बंगबाड़ा के नाम से जाना जाने लगा।

इसके अलावा एक अन्य विचार के अनुसार, बंगाली कैलेंडर राजा शशांक से जुड़ा हुआ है। बंगबाड़ा का उल्लेख दो शिव मंदिरों में मिलता है, जो दर्शाता है कि इसकी उत्पत्ति अकबर काल से पहले हुई थी। पोहेला बैशाख का बंगाली समुदाय के लोगों के बीच बहुत महत्व है क्योंकि यह दिन उनके लिए शुभ माना जाता है।

इस प्रमुख दिन से बंगाली नववर्ष की शुरुआत होती है, इसलिए इस दिन को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। अगर इस दिन कोई शुभ कार्य शुरु किया जाए तो वह और अच्छे फल देता है। नया काम, नया व्यवसाय शुरू करने और नया घर और नया वाहन खरीदने के लिए शुभ होता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से बंगाल में मनाया जाता है। सभी लोग एक साथ मिलकर धूम धाम से इस त्यौहार को मनाते हैं।

एक दूसरे को नए साल की शुभकामना देने के लिए एक साथ मिलते हैं और एक साथ बैठकर खास व्यंजनों का आनंद लेते हैं। गांवों में पारंपरिक मेले लगते हैं और बड़ी संख्या में लोग आते हैं और दिन का भरपूर आनंद लेते हैं। भोर में जुलूस निकाले जाते हैं, जिसे बोसाखी रैली भी कहा जाता है और लोग इसमें खुशी और उल्लास के साथ भाग लेते हैं। काफी हद तक ये पर्व बैसाखी पर्व के साथ-साथ ही आता दिखाई देता है।

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विकट संकष्टी चतुर्थी : जानिए पूजा विधि, महत्व और लाभ

हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष स्थान है, और इनमें से सबसे पावन मानी जाती है विकट संकष्टी चतुर्थी. यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है और इस दिन श्रद्धालु विशेष रूप से उनकी ‘विकट’ रूप में पूजा करते हैं. आइए जानते हैं कि विकट संकष्टी चतुर्थी कब मनाई जाती है, इसकी पूजा विधि क्या है, इसका धार्मिक महत्व क्या है, और इससे जुड़ी विशेष बातें.

विकट संकष्टी चतुर्थी कब मनाते हैं?

विकट गणेश चतुर्थी भारत का एक प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है, जो वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. यह दिन भगवान श्री गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. भगवान गणेश को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सिद्धिदाता’ कहा जाता है. वे बुद्धि, ज्ञान, समृद्धि और शुभता के देवता माने जाते हैं. इस पर्व को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है. 

विकट संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि

इस दिन भक्तगण दिनभर व्रत रखते हैं और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करते हैं. पूजा विधि इस प्रकार है:

व्रत की शुरुआत:

प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें.

भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें.

पूजन सामग्री:

दूर्वा की 21 गांठ, लाल फूल, लड्डू या मोदक, धूप, दीप, कपूर, अक्षत, रोली आदि.

पूजन विधि:

भगवान गणेश को तिलक लगाकर, दूर्वा अर्पित करें.

लड्डू और मोदक का भोग लगाएं.

‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप करें.

विकट संकष्टी व्रत कथा का पाठ या श्रवण करें.

रात को चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य अर्पित करें और व्रत समाप्त करें.

विकट संकष्टी चतुर्थी का महत्व  

विकट संकष्टी शब्द का अर्थ है ‘संकटों को हरने वाली’. यह दिन भगवान गणेश के उस स्वरूप की आराधना के लिए होता है जो भक्तों के सभी दुख और विघ्न दूर करते हैं. एक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भी यह व्रत रखा था, जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और गणेश जी को संकटमोचक रूप में स्थापित किया. यह व्रत मानसिक संतुलन और आत्मबल को मजबूत करता है, जिससे व्यक्ति जीवन की चुनौतियों का सहजता से सामना कर सकता है.

विकट संकष्टी चतुर्थी के लाभ  

जीवन के समस्त कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं.

पारिवारिक सुख-शांति और समृद्धि में वृद्धि होती है.

संतान प्राप्ति और संतान की दीर्घायु के लिए फलदायी है.

मानसिक तनाव और रोगों से मुक्ति मिलती है.

व्रत करने से कार्यों में सफलता और मनोकामनाओं की पूर्ति होती है.

विकट संकष्टी चतुर्थी की विशेष बातें  

गणेश जी के इस विकट स्वरूप में शक्ति और साहस की प्रतीकता होती है. यदि यह चतुर्थी मंगलवार को पड़े, तो इसका पुण्यफल कई गुना अधिक माना जाता है. इस दिन विवाहित महिलाएं परिवार की सुख-शांति और संतान की भलाई के लिए व्रत करती हैं. यह एकमात्र व्रत है जिसमें चंद्रमा को जल अर्पण कर व्रत पूर्ण किया जाता है.

विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से एक बालक की मूर्ति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए. वह बालक ही गणेश बने. माता पार्वती ने गणेश को द्वारपाल बनाकर स्नान करने गईं. इसी दौरान भगवान शिव वहां आए, लेकिन गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया. इस पर क्रोधित होकर शिव ने उनका मस्तक काट दिया. जब पार्वती को यह ज्ञात हुआ, तो वे अत्यंत दुखी हुईं और प्रलय की स्थिति बन गई. तब भगवान शिव ने उन्हें वचन दिया कि गणेश को दोबारा जीवन देंगे और प्रथम पूज्य देवता भी बनाएंगे. बाद में शिव जी ने एक हाथी का मस्तक गणेश को लगाया और उन्हें जीवनदान दिया. इस तरह भगवान गणेश को ‘गजानन’ नाम प्राप्त हुआ और वे प्रथम पूज्य माने गए.

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक राजा ने यज्ञ में गणेश जी को आमंत्रित नहीं किया, जिससे विघ्न उत्पन्न हो गए. फिर ब्राह्मणों की सलाह से उन्होंने विकट संकष्टी व्रत रखा, जिससे सभी संकट समाप्त हो गए. यह कथा यह सिखाती है कि गणेश जी की पूजा के बिना कोई भी कार्य पूर्ण नहीं होता.

विकट संकष्टी चतुर्थी 

विकट संकष्टी चतुर्थी न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्मविकास, मानसिक संतुलन और संकटों से लड़ने की शक्ति देने वाला पर्व भी है. यदि आप सच्चे मन से यह व्रत करते हैं, तो न केवल आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, बल्कि जीवन में स्थिरता और संतुलन भी आता है.

विकट गणेश चतुर्थी का दिन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है. इस दिन भक्त भगवान गणेश की विशेष पूजा करते हैं. मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से जीवन के सभी कष्टों का नाश होता है और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा गया है, अर्थात वे सभी विघ्नों को दूर करते हैं. उनकी पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि, विवेक और आत्मबल में वृद्धि होती है. विद्यार्थी, व्यापारी और नौकरीपेशा लोग विशेष रूप से गणेश जी की पूजा करते हैं ताकि उनके कार्य सफल हों. विकट गणेश चतुर्थी की पूजा के दौरान गणपति अथर्वशीर्ष, गणेश स्तोत्र, गणेश चालीसा आदि का पाठ किया जाता है. मोदक, लड्डू, दूर्वा घास, शमी के पत्ते और लाल फूल भगवान गणेश को चढ़ाए जाते हैं.  

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चैत्र पूर्णिमा के लिए राशि अनुसार उपाय और लाभ

चैत्र पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार साल के पहले महीने चैत्र की पूर्णिमा होती है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में आती है. यह दिन विशेष रूप से पवित्र होता है और इसे विभिन्न धार्मिक गतिविधियों और व्रतों के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को विशेष रूप से हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग महत्व देते हैं, क्योंकि इसे एक अवसर के रूप में देखा जाता है जिसमें लोग अपने जीवन को सकारात्मक दिशा में बदलने के लिए विभिन्न उपाय करते हैं. 

चैत्र पूर्णिमा पर अपनी कुंडली से जानें इस दिन का विशेष प्रभाव

इस दिन को लेकर ज्योतिष शास्त्र में भी कुछ खास उपाय दिए गए हैं जो व्यक्ति की राशि के अनुसार किए जा सकते हैं. प्रत्येक व्यक्ति की जन्म राशि अलग होती है और हर राशि के लिए खास उपाय होते हैं, जिन्हें यदि सही तरीके से किया जाए तो जीवन में सकारात्मक बदलाव और शुभ परिणाम मिल सकते हैं.तो चलिये जान लेते हैं चैत्र पूर्णिमा के दिन राशियों के अनुसार उपाय और उनके लाभ 

चैत्र पूर्णिमा 12 राशियों के लिए उपाय 

मेष राशि

चैत्र पूर्णिमा के दिन मेष राशि के लोगों को अपने घर में दीपक जलाने चाहिए और किसी विशेष स्थान पर गाय के घी का दीपक अवश्य लगाना चाहिए. साथ ही, वे अपने आराध्य देव श्रीराम या शिव जी की पूजा करें. यह दिन खासतौर पर मानसिक शांति और साहस को बढ़ाने के लिए उपयुक्त होता है, इसलिए खुद को सकारात्मक रखने के लिए भी ध्यान और योग का अभ्यास करें.

इस उपाय से मेष राशि के जातकों को मानसिक मजबूती मिलती है और वे अपने कार्यों में नयापन लाने में सफल रहते हैं. इसके अलावा, यह उपाय कार्यों में सफलता और धन लाभ भी दिलाने में सहायक होता है.

वृषभ राशि

वृषभ राशि के व्यक्ति को इस दिन विशेष रूप से सफेद फूलों का पूजन करना चाहिए. साथ ही, यदि संभव हो तो गाय को आटा या हरा चारा खिलाना चाहिए. इसके अतिरिक्त, घर में शंख और घंटी बजाना भी शुभ माना जाता है.

यह उपाय वृषभ राशि के जातकों को समृद्धि और सुख-शांति प्रदान करता है. साथ ही, यह उपाय प्रेम और रिश्तों में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है. इसके अलावा, आर्थिक उन्नति के भी योग बनते हैं.

मिथुन राशि 

मिथुन राशि के व्यक्ति को चैत्र पूर्णिमा के दिन हल्दी और चने का दान करना चाहिए. इसके साथ ही, पंखा और चश्मा दान करना भी शुभ होता है. इस दिन माता सरस्वती की पूजा और अध्ययन में मन लगाने का प्रयास करें.

इस उपाय से मिथुन राशि के जातकों को ज्ञान में वृद्धि होती है और उनके कार्यों में सफलता मिलने के योग बनते हैं. इसके अलावा, यह उपाय शिक्षा और करियर में उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है.

कर्क राशि 

कर्क राशि के व्यक्ति को इस दिन चांदी का दान करना चाहिए, साथ ही किसी जलाशय में जल अर्पित करना भी लाभकारी होता है. घर में चांदी की चीजें रखें और उनके साफ-सफाई का ध्यान रखें.

यह उपाय कर्क राशि के जातकों को मानसिक शांति और खुशहाली देता है. इसके अलावा, इससे उनके जीवन में आंतरिक संतुलन और सौम्यता बढ़ती है. आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है.

सिंह राशि

सिंह राशि के व्यक्ति को इस दिन पीले वस्त्र पहनने चाहिए और पीले रंग के फूलों का पूजन करना चाहिए. इसके अलावा, भगवान सूर्य की उपासना करें और सूर्योदय से पहले उबटन स्नान करें.

सिंह राशि के जातकों को इस उपाय से शौर्य और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है. उनके कार्यों में सफलता मिलती है और वे अधिक प्रतिष्ठित होते हैं. यह उपाय विशेष रूप से स्वास्थ्य में सुधार लाता है और जीवन में सुख-समृद्धि का संचार करता है.

कन्या राशि 

कन्या राशि के व्यक्ति को चैत्र पूर्णिमा के दिन पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए. साथ ही, धन के देवता भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए और उन्हें दूर्वा अर्पित करें. किसी गरीब को खाने का दान भी बहुत शुभ होता है.

यह उपाय कन्या राशि के जातकों को आर्थिक दृष्टि से लाभकारी होता है. इससे वे अपने कार्यों में अधिक परिश्रम और सफलता प्राप्त करते हैं. इस उपाय से घर में सुख-शांति और समृद्धि भी आती है.

तुला राशि

तुला राशि के जातकों को चैत्र पूर्णिमा के दिन गुलाब के फूलों का पूजन करना चाहिए और किसी निर्धन को वस्त्र दान देना चाहिए. इसके साथ ही, शनिदेव की पूजा और तेल का दान भी करें.

तुला राशि के जातकों को इस उपाय से शांति और सुख-समृद्धि मिलती है. इसके अतिरिक्त, यह उपाय शनि दोषों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है और जीवन में सौभाग्य लाता है.

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि के जातकों को इस दिन अपने घर में रुद्राक्ष की माला धारण करनी चाहिए और विशेष रूप से भगवान शिव का पूजन करना चाहिए. साथ ही, ताम्बे की वस्तु का दान करें.

यह उपाय वृश्चिक राशि के जातकों को मानसिक शक्ति और शांति प्रदान करता है. इसके अलावा, यह उपाय जीवन में सकारात्मक बदलाव और शुभ फल लाने में सहायक होता है.

धनु राशि 

धनु राशि के जातकों को इस दिन लाल वस्त्र पहनने चाहिए और किसी गरीब को खाने का दान करना चाहिए. साथ ही, घर में गाय के बछड़े को गुड़ खिलाना भी बहुत शुभ माना जाता है.

इस उपाय से धनु राशि के जातकों को समृद्धि और सफलता मिलती है. साथ ही, यह उपाय उन्हें जीवन में चुनौतियों से उबरने और कार्यों में सफलता प्राप्त करने में मदद करता है.

मकर राशि

मकर राशि के जातकों को इस दिन केले के पौधे की पूजा करनी चाहिए और उसे घर में रखना चाहिए. साथ ही, भगवान शिव और पार्वती की पूजा करनी चाहिए और दूध का दान करना चाहिए.

यह उपाय मकर राशि के जातकों को सौभाग्य और समृद्धि का संकेत देता है. इसके अलावा, यह उपाय उन्हें अपने करियर में सफलता और पारिवारिक जीवन में खुशहाली लाने में मदद करता है.

कुंभ राशि

कुंभ राशि के जातकों को इस दिन पानी में ताम्बे के सिक्के डालकर उसे किसी जलाशय में प्रवाहित करना चाहिए. इसके साथ ही, हरे रंग के वस्त्र पहनने और किसी को हरा चारा देने का प्रयास करें.

उपाय से कुंभ राशि के जातकों को मानसिक शांति, समृद्धि, और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है. साथ ही, यह उपाय उन्हें समाज में मान-सम्मान और खुशहाली दिलाता है.

मीन राशि

मीन राशि के जातकों को इस दिन विशेष रूप से शंख की पूजा करनी चाहिए और उसे घर में रखना चाहिए. साथ ही, कोई भी ऐसा कार्य करें जिससे आपके आसपास का वातावरण शुद्ध और सकारात्मक बने.

यह उपाय मीन राशि के जातकों को मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है. इसके अलावा, यह उपाय उनके जीवन में शांति और सौम्यता लाता है और कार्यों में सफलता दिलाने में सहायक होता है.

चैत्र पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से शक्तिशाली और प्रभावशाली होता है. राशियों के अनुसार किए गए उपाय व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं. इन उपायों को ईमानदारी से और श्रद्धा भाव से करना चाहिए, ताकि अच्छे परिणाम मिल सकें.

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फलदा एकादशी : जानें इस दिन की पूजा विधि और महत्व

फलदा एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. इस एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।यह एकादशी विशेष रूप से भगवान श्री विष्णु की उपासना के रूप में मनाई जाती है, और इसे विशेष रूप से पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति के लिए महत्व दिया जाता है. फलदा एकादशी का नाम ही इस बात का संकेत देता है कि इस दिन व्रति करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है, जो भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लेकर आता है. इस दिन के व्रत और पूजा का उद्देश्य न केवल भौतिक लाभ प्राप्त करना है, बल्कि आत्मिक उन्नति और भगवान के साथ एक गहरे संबंध की ओर अग्रसर होना है.

फलदा एकादशी पूजा

फलदा एकादशी की पूजा विशेष रूप से भगवान श्री विष्णु की उपासना के लिए की जाती है. इस दिन उपवास करने, मंत्र जाप करने और धार्मिक क्रियाओं का पालन करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है. फलदा एकादशी की पूजा विधिपूर्वक करने के लिए निम्नलिखित बातों का पालन किया जाता है:

फलदा एकादशी के दिन भक्त पूरी तरह से उपवास रखते हैं. विशेष रूप से अनाज, दाल, नमक और अन्य तामसिक भोजन से दूर रहते हुए सिर्फ फल, दूध, और जल का सेवन करते हैं. यह उपवास मानसिक और शारीरिक शुद्धि के लिए होता है.

पूजा में भगवान श्री विष्णु की विधिपूर्वक पूजा की जाती है. सबसे पहले स्वच्छता की जाती है, फिर भगवान श्री विष्णु के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक जलाकर उन्हें फल, फूल, और तुलसी की पत्तियां अर्पित की जाती हैं.

इस दिन विशेष रूप से ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ और ‘श्री विष्णु सहस्त्रनाम’ का पाठ किया जाता है. यह मंत्र भगवान विष्णु की आराधना और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं.

तुलसी को भगवान श्री विष्णु का प्रिय माना जाता है, और इस दिन तुलसी के पौधे की पूजा विशेष रूप से की जाती है. इस दिन तुलसी के पौधे को जल अर्पित करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. पूजा के बाद भगवान के प्रसाद को भक्तों में वितरित किया जाता है, जिससे उनके जीवन में खुशहाली और समृद्धि आए.

फलदा एकादशी का महत्व

फलदा एकादशी का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है. यह एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी मानी जाती है जो जीवन में किसी कठिनाई या समस्या का सामना कर रहे हैं. इस दिन विशेष रूप से भगवान श्री विष्णु की आराधना करने से जीवन में शांति, सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

फलदा एकादशी व्रत को पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ रखने से जीवन के सभी पाप समाप्त होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है. यह दिन विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए शुभ है, जो अपने जीवन में आंतरिक शांति और संतुलन की तलाश में हैं.

फलदा एकादशी का उपवास शारीरिक और मानसिक शुद्धि का कार्य करता है. उपवास के दौरान शरीर को आराम मिलता है और मन को शांति प्राप्त होती है, जिससे मानसिक तनाव दूर होता है.

जो भक्त इस दिन व्रत और पूजा करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. फलदा एकादशी को विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है जो आत्मिक उन्नति और भगवान से निकटता चाहते हैं.

इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह दिन खासकर उन व्यक्तियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है जो किसी न किसी प्रकार की दरिद्रता या दुखों से घिरे होते हैं.

फलदा एकादशी विशेष 

फलदा एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन भक्तों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाला माना जाता है. यह एक ऐसा दिन है, जब विशेष रूप से भगवान विष्णु की उपासना से समस्त संसार के दुखों का निवारण होता है और जीवन में खुशियां और समृद्धि आती है.

फलदा एकादशी व्रत का पालन करते समय भक्त पूरे मन, विश्वास और श्रद्धा से इस दिन को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं. यह व्रत न केवल भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए होता है, बल्कि यह आत्मिक उन्नति और भगवान के साथ एक गहरे संबंध की ओर भी मार्गदर्शन करता है.

तुलसी को भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी और उनके साथ एक गहरा संबंध रखने वाली देवी माना जाता है. फलदा एकादशी के दिन तुलसी के पौधे की पूजा करने से व्यक्ति की समस्त इच्छाएँ पूरी होती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

फलदा एकादशी विशेष रूप से उन परिवारों के लिए भी लाभकारी होती है जो किसी पारिवारिक संकट का सामना कर रहे होते हैं. इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा करने से पारिवारिक जीवन में सुख-शांति का वास होता है.

फलदा एकादशी के लाभ 

फलदा एकादशी के व्रत और पूजा के कई लाभ हैं, जो जीवन को सकारात्मक दिशा में बदलने में सहायक होते हैं. इनमें से कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

इस दिन उपवासी होने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसका मन पवित्र होता है. भगवान श्री विष्णु की आराधना से सभी अधर्म दूर हो जाते हैं.

फलदा एकादशी के व्रत और पूजा से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और ऐश्वर्य का वास होता है. यह दिन धन, संपत्ति और सुख की प्राप्ति के लिए बहुत शुभ माना जाता है.

फलदा एकादशी के दिन उपवासी होने से मानसिक शांति मिलती है. उपवास और ध्यान के माध्यम से मन को स्थिरता मिलती है, और व्यक्ति मानसिक रूप से सशक्त होता है.

उपवासी होने से शरीर को विश्राम मिलता है इससे स्वास्थ्य बेहतर होता है और शरीर में ऊर्जा का संचार होता है.

फलदा एकादशी के दिन श्रद्धा भाव से पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, जिससे व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उसे आत्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है.

फलदा एकादशी एक विशेष धार्मिक अवसर है, जो भक्तों को भगवान श्री विष्णु की उपासना करने का एक उत्तम अवसर प्रदान करता है. इस दिन के व्रत और पूजा से न केवल भौतिक सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मिक उन्नति भी संभव होती है. फलदा एकादशी का पालन करने से पापों का नाश होता है, जीवन में शांति और समृद्धि आती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह दिन उन सभी के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति को प्रगाढ़ करना चाहते हैं.

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संकटहरा चतुर्थी : जानें कब मनाई जाती है संकटहरा चतुर्थी

संकटहरा चतुर्थी एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है जो हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. इसे संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है, और यह दिन विशेष रूप से भगवान गणेश की पूजा का दिन होता है. भगवान गणेश को समस्त विघ्नों और समस्याओं का नाश करने वाला माना जाता है और यही कारण है कि इस दिन का नाम “संकटहरा” पड़ा है. यह दिन भक्तों के लिए विशेष आस्था और पूजा का समय होता है, जब वे भगवान गणेश से अपने जीवन की सभी कठिनाइयों को दूर करने की प्रार्थना करते हैं.

संकटहरा चतुर्थी प्रभाव 

संकटहरा चतुर्थी का धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है. यह दिन भगवान गणेश के साथ-साथ उनके आशीर्वाद की प्राप्ति का अवसर होता है. गणेश जी को बुद्धि, समृद्धि, और सौभाग्य के देवता माना जाता है. उनके आशीर्वाद से न केवल व्यक्तिगत समस्याएँ दूर होती हैं, बल्कि जीवन में नई राहों की खोज भी होती है. भक्त इस दिन अपने दुखों और परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए भगवान गणेश की पूजा करते हैं और उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं.

संकटहरा चतुर्थी कथा

इस पर्व के पीछे एक दिलचस्प पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, जिसे प्रचलित किंवदंती के रूप में जाना जाता है. कहा जाता है कि एक बार ऋषि नारद ने राजा सूर्यनारायण को संकटहरा चतुर्थी का व्रत रखने की सलाह दी थी. उन्होंने बताया था कि इस व्रत से उनके जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी और वे हर प्रकार की कठिनाई से मुक्त हो जाएंगे. राजा ने नारद की सलाह मानी और व्रत रखा, जिससे उनके जीवन में बदलाव आया और वे हर समस्या से उबर गए. तभी से यह परंपरा प्रचलित हो गई और लोग इस दिन व्रत रखकर भगवान गणेश से संकटों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं.

संकटहरा चतुर्थी का व्रत और पूजा विधि

संकटहरा चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करने के लिए भक्त विशेष अनुष्ठान करते हैं. इस दिन विशेष रूप से व्रत रखा जाता है, और भक्त सुबह से शाम तक उपवासी रहते हैं. कुछ भक्त केवल फल या दूध का सेवन करते हैं, जबकि कुछ केवल साबूदाना या आलू खाकर व्रत करते हैं. इस दिन का व्रत पूरे दिन उपवास रखने के बाद चंद्रमा के दर्शन के साथ समाप्त होता है. चंद्रमा को देखने के बाद, लोग गणेश जी की पूजा करते हैं और व्रत का समापन करते हैं.

गणेश पूजा के अनुष्ठान

संकटहरा चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा करना एक विशेष अनुष्ठान है. पूजा के दौरान भक्त गणेश जी को ताजे फूल, दूर्वा घास, फल, लड्डू, मोदक, नारियल, और अन्य मिठाइयाँ चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न करते हैं. गणेश जी को मोदक विशेष रूप से प्रिय है, और इसे उनकी पूजा में विशेष रूप से चढ़ाया जाता है. इसके अलावा, पूजा में दीपक जलाना, अगरबत्ती लगाना, और गणेश श्लोकों का जाप करना भी आवश्यक होता है.

मंत्रों का जाप और उनका महत्व

संकटहरा चतुर्थी के दिन गणेश जी के मंत्रों का जाप किया जाता है. विशेष रूप से “वक्रतुंड महाकाय” और “संकष्टनाशन स्तोत्र” का जाप किया जाता है. इन मंत्रों का उच्चारण मानसिक शांति और मनोबल को बढ़ाता है. मंत्रों का जाप करने से भगवान गणेश की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली बाधाओं का नाश होता है.

चंद्रमा के दर्शन और उसकी पूजा

इस दिन चंद्रमा का विशेष महत्व होता है. व्रत समाप्त करने से पहले, भक्त चंद्रमा के दर्शन करते हैं. चंद्रमा के दर्शन के बाद, वे उसे जल, चंदन, फूल, और चावल चढ़ाते हैं. ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा के दर्शन से व्रत का प्रभाव और भी अधिक शक्तिशाली हो जाता है और व्यक्ति के जीवन में आने वाली सारी समस्याएँ दूर हो जाती हैं.

संकटहरा चतुर्थी की पूजा के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है. यह प्रसाद मुख्य रूप से गणेश जी को चढ़ाए गए लड्डू, मोदक, फल, और अन्य मिठाइयों का होता है. प्रसाद वितरण से भक्तों के बीच भाईचारे और एकता का संदेश जाता है, और यह भगवान गणेश की कृपा के साझा करने का प्रतीक बनता है.

संकटहरा चतुर्थी पर व्रत रखने से आध्यात्मिक शुद्धि की प्राप्ति होती है. उपवासी रहकर और पूजा करके मन, आत्मा और शरीर की शुद्धि होती है. यह दिन आत्मनिरीक्षण और मानसिक शांति की प्राप्ति के लिए उपयुक्त होता है. व्रत रखने से व्यक्ति अपने आंतरिक उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित कर सकता है और जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित कर सकता है.

संकटहरा चतुर्थी का प्रमुख उद्देश्य जीवन की समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करना होता है. चाहे वह व्यक्तिगत जीवन के संघर्ष हों, पेशेवर जीवन की कठिनाई हो, या फिर मानसिक समस्या, भक्त इस दिन भगवान गणेश से अपनी चुनौतियों के समाधान की प्रार्थना करते हैं. उन्हें विश्वास होता है कि गणेश जी के आशीर्वाद से वे सभी कठिनाइयों से पार पा सकते हैं.

संकटहरा चतुर्थी महत्व 

संकटहरा चतुर्थी का प्रभाव जीवन के हर पहलू पर असर डालता है। यह न केवल एक व्यक्तिगत आध्यात्मिक चेतना की ऊर्जा को पाने का अवसर नहीं है, बल्कि यह परिवार के बीच बंधन बनाने का भी एक तरीका है. इस दिन लोग एक साथ मिलकर पूजा करते हैं, भोग का वितरण करते हैं और आपस में भक्ति और प्रेम को दर्शाते हैं.

संकटहरा चतुर्थी एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली पर्व है, जो भक्तों को मानसिक शांति, आशीर्वाद और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने का अवसर प्रदान करता है. इस दिन व्रत रखने और गणेश जी की पूजा करने से न केवल व्यक्तिगत समस्याएं दूर होती हैं, बल्कि आत्मिक उन्नति भी प्राप्त होती है. यह दिन जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और जीवन को एक नई दिशा देता है.

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