हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास वर्ष का तीसरा महीना होता है, जो वैशाख मास के बाद आता है. यह मास विशेष रूप से तप, संयम, और पवित्र आचरण के लिए जाना जाता है. इस माह में सूर्य देवता का विशेष पूजन किया जाता है, क्योंकि यह समय ग्रीष्म ऋतु का चरम होता है, जब सूर्य अपनी पूरी ऊर्जा के साथ पृथ्वी पर प्रभाव डालते हैं. ऐसे में धर्म, साधना, सेवा, और दान का विशेष महत्व होता है. ज्येष्ठ मास में व्रत, तीर्थ स्नान, जल दान, और गंगा स्नान आदि को अत्यधिक पुण्यदायी माना जाता है. इस महीने में मनुष्य को अपने इंद्रियों पर संयम रखते हुए सात्विक जीवनशैली अपनानी चाहिए ताकि आत्मिक बल की वृद्धि हो सके.
ज्येष्ठ माह और इस समय की विशेष बातें
ज्येष्ठ मास में विशेष रूप से वट सावित्री व्रत, निर्जला एकादशी, गंगा दशहरा, और श्री गंगा पूजन जैसे पर्व आते हैं, जो धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत शुभ माने जाते हैं. निर्जला एकादशी का व्रत तो समस्त एकादशियों में सबसे महान माना गया है, क्योंकि इसमें बिना जल के उपवास किया जाता है और इसका फल समस्त एकादशियों के समान होता है. इस मास में प्यासे प्राणियों को जल दान करना, प्याऊ लगवाना, छाया देना, और शीतल जल का वितरण करना महान पुण्य का कार्य माना जाता है. साथ ही, ज्येष्ठ मास में की गई पूजा-अर्चना का फल कई गुना बढ़ जाता है.
यह मास वैदिक ग्रंथों और पुराणों में भी विशेष स्थान रखता है. स्कंद पुराण में बताया गया है कि इस महीने में भगवान विष्णु और भगवान शिव की आराधना करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस महीने में संयमित आहार, जल सेवन में सावधानी, अधिक गर्म पदार्थों से परहेज़, और सूर्य नमस्कार का विशेष महत्व होता है. इस मास में भगवान सूर्य को अर्घ्य देना, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना और हनुमान जी की आराधना करना भी विशेष रूप से लाभकारी माना गया है.
ज्येष्ठ माह में राशि अनुसार किए जाने वाले कार्य
अब यदि हम ज्येष्ठ मास में विभिन्न राशियों के लिए किए जाने वाले उपायों की बात करें, तो ज्योतिष के अनुसार यह समय ग्रहों की चाल और प्रभाव के आधार पर हर राशि पर भिन्न-भिन्न परिणाम देता है. इस मास में यदि जातक अपनी राशि के अनुसार विशेष उपाय करें तो जीवन में सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्राप्ति हो सकती है.
मेष राशि वालों के लिए यह मास आत्मनिरीक्षण और आत्मशक्ति बढ़ाने का होता है. इन्हें इस समय हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए और मंगलवार के दिन लाल वस्त्र में चना दाल और गुड़ बांधकर हनुमान मंदिर में अर्पण करना चाहिए.
वृषभ राशि के लिए यह समय धन-संचय और परिवारिक शांति के लिए उपयुक्त है. इन्हें मां लक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए और शुक्रवार के दिन सफेद मिठाई गरीबों में बांटनी चाहिए.
मिथुन राशि के लोगों को इस समय वाणी पर संयम रखना चाहिए. इन लोगों को बुधवार के दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करना लाभदायक होता है.
कर्क राशि वालों के लिए यह समय भावनाओं पर नियंत्रण और आत्मबल बढ़ाने का होता है. इन्हें शिवलिंग पर कच्चा दूध अर्पित करना चाहिए और सोमवार के दिन रुद्राष्टक का पाठ करना चाहिए.
सिंह राशि को इस समय स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए और सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए. इन्हें आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन करना चाहिए.
कन्या राशि वालों के लिए यह समय करियर और संबंधों को सुदृढ़ बनाने का होता है. इन्हें बुध ग्रह को प्रसन्न करने के लिए तुलसी में जल अर्पित करना चाहिए और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करना चाहिए.
तुला राशि को इस समय मन की शांति और न्याय की भावना को बल देना चाहिए. इन्हें मां दुर्गा की उपासना करनी चाहिए और शुक्रवार के दिन कन्याओं को भोजन कराना शुभ होता है.
वृश्चिक राशि के लिए यह समय ऊर्जा और साहस को पुनः जाग्रत करने का होता है. इन्हें हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए और प्रत्येक मंगलवार को मसूर की दाल दान करना लाभदायक होता है.
धनु राशि के लोगों को इस मास में धर्म और अध्यात्म की ओर झुकाव रखना चाहिए. इन्हें बृहस्पति देव की पूजा करनी चाहिए और पीले वस्त्र पहनकर गुरुवार को पीले फल और मिठाई दान करनी चाहिए.
मकर राशि वालों को इस समय व्यावसायिक निर्णय सोच-समझकर लेने चाहिए. शनिदेव की पूजा करना, शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाना, और काले तिल का दान करना लाभकारी होता है.
कुंभ राशि के जातकों को इस मास में समाज सेवा और मानसिक संतुलन पर ध्यान देना चाहिए. इन्हें शनिवार के दिन गरीबों को छाता, चप्पल, या जल पात्र दान करना चाहिए.
मीन राशि के लिए यह समय आत्मिक उन्नति और ध्यान के लिए उपयुक्त होता है. इन्हें भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए, जल में तुलसी डालकर अर्घ्य देना चाहिए, और “ॐ विष्णवे नमः” का जाप करना चाहिए.
ज्येष्ठ माह और इस समय का महत्व
ज्येष्ठ मास की तीव्र गर्मी केवल बाहरी रूप से शरीर को तपाती नहीं, बल्कि आंतरिक ऊर्जा को भी जागृत करने का अवसर प्रदान करती है. यह तपस्या, दान, सेवा और संयम का काल होता है. इस मास में जितना अधिक संयम और सत्कर्म किया जाता है, उतना ही अधिक आत्मिक विकास संभव होता है. सूर्य की उग्रता जहां शरीर को अशांत करती है, वहीं यह आत्मा के परिष्कार के लिए आदर्श काल बनती है.
इस मास में संयमित जीवनशैली अपनाकर, जल से जीवन की रक्षा कर, और देवी-देवताओं की आराधना कर मनुष्य अपने जीवन को अधिक पवित्र, शुद्ध और आनंदमय बना सकता है. इसके साथ ही यदि जातक अपनी राशि के अनुसार विशेष उपाय करें तो उन्हें मानसिक शांति, आर्थिक स्थिरता, और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति संभव होती है. इस प्रकार ज्येष्ठ मास न केवल एक ऋतु विशेष का परिचायक है, बल्कि यह आत्मिक जागरण और कर्म के प्रति सजगता का संदेश देता है, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है.