होली | Holi | Holi Festival 2024
होलिका दहन | Holika Dahan
इस वर्ष 24 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा. प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन भद्रा रहित काल में संपन्न होता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार प्रदोष काल के समय भद्रा हो तथा भद्रा आधी रात से पूर्व ही समाप्त हो रही हो तो भद्रा के बाद और अर्द्धरात्रि से पहले होलिका दहन करना चाहिए. परंतु यदि भद्रा आधी रात से पहले समाप्त न हो और अगले दिन प्रात:काल तक रहे और अगले दिन पूर्णिमा प्रदोषयुक्त भी न हो तब पहले दिन ही भद्रा का मुख छोड़कर प्रदोष काल में होलिका पूजन कर देना चाहिए.
होलाष्टक | Holashtak
होली के त्यौहार का आरंभ होलाष्टक से होता है, होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा कहा जाता सकता है. "होलाष्टक" के शाब्दिक अर्थ पर जायें, तो होला+ अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है. सामान्य रुप से होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे आठ दिनों का त्यौहार है. दुलैण्डी के दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन होता है.
होली की शुरुआत होली पर्व होलाष्टक से प्रारम्भ होकर धुलैंण्डी तक रहती है. इसके कारण प्रकृ्ति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है. होलाष्टक से होली के आने की दस्तक मिलती है, साथ ही इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियाँ भी शुरु हो जाती है.
होलिका पूजन | Holi Puja
होलिका-दहन से पूर्व और भद्रा समय के पश्चात होली का पूजन किया जाना चाहिए. भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है. विधिवत रुप से होलिका का पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है.
होली का पौराणिक महत्व | Significance of Holi
होली से संबन्धित कई कथाएं जुडी हुई है. होली की एक कथा जो सबसे अधिक प्रचलन में है, वह हिर्ण्यकश्यप व उसके पुत्र प्रह्लाद की है.जिसके अनुसार राजा हिर्ण्यकश्यप अहंकारवश और भगवान विष्णु से वैर द्वेष के कारण अपने पुत्र प्रह्लाद को जो भगवान विष्णु का परम भक्त था. उसे दण्ड स्वरुप आग में जलाने का आदेश दे देता है इसके लिये राजा नें अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रह्लाद को जलती हुई आग में लेकर बैठ जाये. क्योंकि होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी.
होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाती है. लेकिन आश्चर्य की बात थी की होलिका जल गई, और प्रह्लाद नारायण कृपा से बच जाता है. इस तरह बुराई की हार हुई और अच्छाई की विजय. इसलिए भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है कि हिमालय पुत्री पार्वती की यह मनोइच्छा थी, कि उनका विवाह केवल भगवान शिव से हो. परन्तु श्री भोले नाथ थे की सदैव गहरी समाधी में लीन रहते थे, ऎसे में भगवान शिव के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखना कठिन था. तब इस कार्य में कामदेव भगवान भोले नाथ की तपस्या को भंग करने का प्रयास करते हैं. अपनी तपस्या के भंग होने से शिवजी क्रोध में आ कर कामदेव को भस्म कर देते हैं. परंतु भाब में शांत होने पर और देवों के आग्रह पर वह कामदेव को क्षमा कर देते हैं.