अशोकाष्टमी 2024: अशोका अष्टमी कथा और पूजा विधि
अशोका अष्टमी का पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है. इस वर्ष 2024 में 15 अप्रैल सोमवार के दिन अशोकाष्टमी के दिन अशोक वृक्ष की पूजा का विधान है. इस दिन अशोक वृक्ष एवं भगवान शिव का पूजन होता है. भगवान शिव को अशोक वृक्ष प्रिय है. इस कारण से इस दिन अशोक के वृक्ष के साथ ही भगवान शिव के निमित्त भी व्रत किया जाता है.
क्यों करते हैं अशोका अष्टमी पूजन
भारत वर्ष में अनेकों ऎसे पर्व मनाए जाए हैं जिनमें हम प्रकृति का पूजन विशेष रुप से किया करते हैं. शास्त्रों में सृष्टि की समस्त वस्तु में उस ईश्वर का वास ही माना गया जो सभी में मौजूद है, ऎसे में वृक्षों का पूजन भी इस संस्कृति के साथ बहुत ही घनिष्ट रुप में जुड़ा हुआ है.
सभी पेड़ पौधों का अपना महत्व है, ये हमारे जीवन रक्षक होने के साथ ही धन संपदा में भी बढ़ोतरी करते हैं. ऎसे में अशोक वृक्ष भी हमारे जीवन में सुख और शांति को देने वाला बनता है. ऎसे में प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का दूसरा रुप ही अशोका अष्टमी का पर्व है.
मान्यता और धारणाओं के अनुसार अशोक वृक्ष को भगवान शिव से उत्पन्न माना गया है. इस वृक्ष का पूजन करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है. सोमवार के दिन अशोक वृक्ष की जड़ में दूध चढ़ाने और वृक्ष पर सूत लपेटने से मनवांछित फल प्राप्त होते हैं. अशोक वृक्ष का पूजन धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही रुपों में महत्व रखता है.
अशोकोष्टमी कथा
अशोक वृक्ष का संबंध हमें पौराणिक कथाओं से भी प्राप्त होता है. रामायण में माता सीता लंका में जिस स्थान पर रहीं उस स्थान पर अशोक का वृक्ष भी था. माता सीता का अशोक वृक्ष के नीचे बैठे होना और हनुमान द्वारा उन्हें मुद्रिका दिखा कर कहना की “वह श्री राम की ओर से उनके लिए संदेश लेकर आए हैं”. यह सुन कर माता सीता का सारा शोक समाप्त होता है. ऎसे में इस वृक्ष के नीचे बैठ कर ही मातअ सीता के दुख का वो क्षण तब समाप्त हो जाता है जब उन्हें अपने पति श्री राम के संदेश का पता चलता है.
अशोक वृक्ष के संबंध में एक अन्य कथा प्राप्त होती है जिसमें बताया गया है की अशोक वृक्ष की उत्पत्ति रुद्राक्ष की ही तरह भगवान शिव के आंसू से हुई है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार रावण ने जब अपने कष्ट से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु शिव तांडव स्त्रोत गाया तब शिव भगवान ने तांडव आरंभ किया ऎसे में सृष्टि पर कोई संकट न आ पड़े इसके लिए सभी देव श्री विष्णु भगवान के पास जाकर प्रार्थना करते हैं. उस समय भगवान शिव की आंखों से दो आंसू गिरते हैं एक आंसू से रुद्राक्ष की उत्पति हुई और दूसरे से अशोक वृक्ष की उत्पत्ति होती है. भगवान के आंसू से निर्मित यह दोनों ही वृक्षों से सभी कष्टों का निवारण होता है.
अशोकाष्टमी व्रत एवं पूजा विधि
- अशोका अष्टमी के दिन प्रात:काल उठ कर शुद्ध जल से स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए.
- शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए.
- शिवलिंग पर अशोक के पत्तों को चढ़ाना चाहिए.
- अशोक वृक्ष पर जल अर्पित करना चाहिए.
- कच्चे दूध में गंगाजल डाल कर इसे अशोक वृक्ष की जड़ में डाल कना चाहिए.
- सूत अथवा लाल धागे को सात बार अशोक वृक्ष लपेटना चाहिए.
- अशोक वृक्ष की परिक्रमा करनी चाहिए.
- कुमकुम अक्षत से वृक्ष पर लागाना चाहिए.
- अशोक वृक्ष के समक्ष घी का चौमुखी दीपक जलाना चाहिए.
- वृक्ष की धूप दीप से आरती करनी चाहिए.
- वहीं बैठ कर रामायण के एक अध्याय का पाठ करना चाहिए.
- अशोक वृक्ष पर थोड़ा सा मिष्ठान भी अर्पित करना चाहिए.
- अशोकाष्टमी के दिन व्रत करने, अशोक वृक्ष की पूजा करने से दुखों क नाश होता है.
- इस दिन पानी में अशोक के पत्ते डाल कर पीने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं.
अशोका अष्टमी का व्रत एवं पूजन करने से व्यक्ति के जीवन के दुख कलेश दूर होते हैं. कष्टों से छुटकारा मिल जाता है.
गरुण पुराण में अशोका अष्टमी की महिमा
“अशोककलिका ह्यष्टौ ये पिबन्ति पुनर्वसौ ।
चैत्रे मासि सिताष्टम्यां न ते शोकमवाप्नुयुः ॥ “
गरुण पुराण में भी अशोक वृक्ष के बारे में बहुत ही सुंदर वर्णन प्राप्त होता है. इसके अनुसार चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो तो इस दिन अशोका अष्टमी का व्रत बहुत ही शुभ दायक होता है. इस दिन व्रत करने से सभी शोक दूर हो जाते हैं.
अशोकाष्टमी व्रत के दिन अशोक की मञ्जरी की आठ कलियों का सेवन करने से सभी शोक दूर होते हैं. अशोक की मंजरियों का सेवन करते समय इस मंत्र का उचारण करना चाहिए -
“त्वामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव ।
पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु ।।”
अशोक का वास्तुशास्त्र में उपयोग
अशोक का वृक्ष को एक बहुत ही शुभ और सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर वृक्ष माना गया है. इस वृक्ष को यदि घर में उत्तर दिशा में लगाया जाए तो यह घर की नकारात्मकता को दूर कर देता है.
घर में अगर किसी भी प्रकार का वास्तु दोष हो तो अशोक वृक्ष को लगाने से दोष दूर होता है. घर में सकारात्मक ऊर्जा बहने लगती है.
अशोक के वृक्ष को घर पर लगाने से सुख व समृद्धि का आगमन होता है.
अशोक वृक्ष घर पर होने से अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त होता है.
स्त्रियों यदि अशोक वृक्ष की छाया में बैंठें तो उनकी शारीरिक व मानसिक ऊर्जा को बल प्राप्त होता है.
अशोक का पूजन करने से दांपत्य जीवन सुखद रहता है.
इस प्रकार अशोकाष्टमी का न सिर्फ आध्यात्मिक स्वरुप में ही अपना महत्व नहीं रखता है, अपितु यह संपूर्ण स्वरुप में मानव जीवन को प्रभावित करने में भी सक्षम होता है. किसी भी वृक्ष के प्रति आदर भाव प्रकृति के प्रति हमारा सम्मान ही है. जो प्रकृति हमें जीवन प्रदान करती है यदि हम उसके प्रति समर्पण का भाव रख सकें तो मनुष्य जीवन के लिए यह प्रगति और शांति के मार्ग को ही प्रशस्त करने में सहायक होता है. अपनी आने वाली पिढ़ियों को हम इन संस्कारों द्वारा प्रकृति और मनुष्य के जीवन का संबंध समझा सकने में सफल होंगे और एक शुभ वातावरण दे सकते हैं.