चैत्र मास नाग पंचमी 2024 : जानिए क्यों मनायी जाती है नाग पंचमी
प्रत्येक माह की पंचमी तिथि के देव नाग माने जाते हैं. ऎसे में प्रत्येक माह में आने वाली पंचमी तिथि का संबंध किसी न किसी नाग से होता है. इस लिए पंचमी तिथि के दिन नाग देव के पूजन का विधान रहा है. हिन्दू पंचांग अनुसार चैत्र माह में आने वाली पंचमी तिथि को विशेष रुप से नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 12/13 अप्रैल 2024 को शुक्रवार के दिन नाग पंचमी पर्व मनाया जाएगा. हिन्दू धर्म में नाग को धन धान्य और वंश वृद्धि से जोड़ा गया है. इसलिए नाग की पूजा व उनका सम्मान करने से व्यक्ति के जीवन में सुख संपन्नता का वास होता है और उसके वंश की वृद्धि होती है.
चैत्र माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन, नाग पूजा में नाग को जोड़े के रुप में पूजा जाता है. इस दिन भगवान शिव का पूजन एवं जलाभिषेक करना बहुत ही शुभ होता है. इस दिन किए गए पूजा पाठ से शुभ कर्म की वृद्धि होती है और पापों का नाश होता है.
क्यों मनाते हैं नाग पंचमी
नागों का संबंध पैराणिक काल से ही सनातन धर्म के साथ रहा है. हिन्दू धर्म में पशु पक्षिओं को भी प्रेम व भक्ति भाव की दृष्टि से देखा जाता रहा है. इसी विचार में एक पर्व जुड़ता है, जिसे नाग पंचमी के त्यौहार के रुप में मनाया जाता है. नाग को हिन्दूओं के महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रथों में स्थान प्राप्त है. वैदिक काल से ही नागों के संबंध में हमें कई कथाएं और पौराणिक आख्यान भी प्राप्त होते हैं.
नाग को विशेष रुप का दर्जा प्रदान किया गया है. श्री विष्णु भगवान शेष नाग पर विराजमान होते हैं. वहीं भगवान शिव सर्प को अपने गले में धारण किए हैं. कुंडलिनी शक्ति जो हम सभी में विराजमान है. उसे सोए हुए सर्प के स्वरुप में दर्शाया गया है. यह शरीर में मौजूद वह ज्ञान है जिसे कुंडलिनी जागरण करने पर ही प्राप्त किया जा सकता है. ऎसे में हमारे आंतरिक ज्ञान का संबंध भी नाग के स्वरुप से जोड़ा गया है.
नाग पंचमी व्रत व पूजन विधि
- नाग पंचमी के दिन प्रात:काल स्नान करने के उपरांत शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए.
- नाग पंचमी के दिन अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख नामक आठ नागों के नामों का स्मरण करना चाहिए.
- नाग पंचमी के दिन यदि संभव हो सके तो व्रत रखना चाहिए और फलाहार का सेवन करना चाहिए.
- नाग और नागिन की पूजा में इनका चित्र अथवा मिट्टी, चांदी, सोना इत्यादि से बने नाग देव का स्थापित करने चाहिए.
- पूजन के लिए लाल रंग का आसन तैयार करना चाहिए और उस पर नाग देव को स्थापित करना चाहिए.
- नाग देव के अभिषेक के लिए कच्चा दूध, घी, चीनी, दही और गंगा जल मिलाकर इससे नाग देव को स्नान कराना चाहिए.
- हल्दी, रोली, चावल से तिलक करना चाहिए.
- फूल माला चढ़ानी चाहिए और नाग देव की पूजा करनी चाहिए.
- पूजा के बाद सर्प देवता की आरती उतारनी चाहिए.
- नाग पंचमी के दिन नाग देव की कथा अवश्य सुननी चाहिए.
- नाग देव को भोग लगाना चाहिए और उस भोग को प्रसाद रुप में सभी लोगों में बांटना चाहिए.
नाग पंचमी के दिन करें इन मंत्रों से पूजा
नाग पंचमी के दिन इन मंत्रों का जाप करने से जीवन में सर्प दोष से मुक्ति प्राप्त होती है और काल सर्प दोष की शांति भी होती है. प्रत्येक माह में आने वाली पंचमी के दिन नीचे दिये गए मंत्र जाप से लाभ मिलता है: -
चैत्र माह में ॐ शंखपालाय नम:, वैशाख माह में ॐ तक्षकाय नम: , ज्येष्ठ माह में ॐ पिंगलाय नम: , आषाढ़ माह में ॐ कालिदाय नम:, श्रावण माह में ॐ अनंतर्पिणी नम:, भाद्रपद माह में ॐ वासुकी नम:, आश्विन माह में ॐ शेषाय नम:, कार्तिक माह में ॐ पद्माय नम:, मार्गशीर्ष माह में ॐ कम्बलाय नम:, पौष माह में ॐ अश्वतराय नम:, माघ माह में ॐ कर्कोटकाय नम: और फाल्गुन माह में ॐ घृतराष्ट्राय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए. इन प्रमुख मंत्रों से प्रत्येक माह में पंचंमी के दिन नाग पूजन करना अत्यंत शुभ होता है.
नाग पंचमी कथा
नाग पंचमी से संबंधित अनेकों कथाएं मिलती हैं. जो नागों के जन्म एवं उनकी मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को दर्शाती हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए संपूर्ण सर्प जाती का नाश करने के लिए सर्प नाशक यज्ञ का अनुष्ठान आरंभ करते हैं.
राजा जन्मजेय के पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सांप के काटने से हुई थी. सर्पों से बदला लेने और वंश के विनाश के लिए जनमेजय द्वारा चलाए गए यज्ञ में अनेकों सापों की मृत्यु होने लगी. ऎसे में तब तक्षक अपने प्राणों की रक्षा के लिए इंद्र के पास चला जाता है और इंद्र उसकी रक्षा करने का उसे आश्वासन देते हैं. यज्ञ में जब ब्राह्मणों द्वारा तक्षक का आहवान होता है तो वह नहीं आता. ऎसे में जनमेजय ऋषियों को कहते हैं कि अगर इंद्र तक्षक को नहीं त्यागता है तो इंद्र का आहवान किया जाए. ऎसे में ऋषियों ने इंद्र का आहवान किया.
तब इंद्र ने डर से तक्षक को छोड़ दिया और तक्षक अग्निकुंड के पास आ गया. ऎसे में उसी समय पर ऋषि आस्तीक ने आकर जनमेजय के क्रोध को शांत किया और उनसे तक्षक को मुक्त करने और सर्प नाशक यज्ञ को समाप्त करने की प्रार्थना की. जनमेजय ऋषि आस्तिक के वचनों से शांत होते हैं और तक्षक नाग को जीवनदान प्राप्त होता है.
माना जाता है की जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन पंचमी तिथि थी. इस कारण इस दिन को नाग पंचमी के पर्व के रुप में भी मनाया जाता है. इसी प्रकार अन्य बहुत सी कहानियां नाग पंचमी के महत्व को अलग-अलग रुपों से दर्शाती हैं.
क्यों है नागों का पौराणिक व धार्मिक महत्व
पुराणों में नागों के विषय में विस्तार रुप से उल्लेख प्राप्त होता है. नागों को कश्यप ऋषि की संतानें कहा गया है. इसके अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी जिनमें से एक पत्नी कुर्दू थीं जिनसे नागों की उत्पत्ति हुई. नागों के नामों में मुख्य रुप से अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक नामों का जिक्र मिलता है. अगर किसी की जन्म कुंडली में काल सर्प दोष बनता है, तो वह इन्हीं आठ नागों के प्रभाव का परिणाम होता है.
नाग पंचमी में करें कालसर्प दोष शांति पूजा
कुंडली में कालसर्प योग के बनने के कारण जीवन में रुकावटें बहुत आती हैं. किसी न किसी कारण प्रयास बार-बार विफल होते जाते हैं. पारिवारिक सुख की कमी भी जीवन में लगातार बनी रहती है. ऎसे में काल सर्प दोष की शांति के लिए नाग पंचमी का पर्व अत्यंत ही मुख्य समय होता है.
काल सर्प दोष कुण्डली में बनने वाला एक खराब योग होता है. यह किसी व्यक्ति की कुण्डली में तब बनता है जब सूर्य, चंद्र, बुध, मंगल, गुरु, शुक्र और शनि सभी ग्रह राहु और केतू के बीच आ जाते हैं तो काल सर्प योग का निर्माण होता है. कुंडली में बनने वाले अन्य सर्प दोष का निर्माण भी इन्हीं के द्वारा होता है.
इसके साथ ही काल सर्प शांति की पूजा में नाग पंचमी के दिन शिव मंदिर में नाग पूजन के साथ भगवान शिव का पूजन भी होता है. इस पूजन में रुद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना चाहिए. शिवजी एवं नाग देव को दूध चढ़ाना चाहिए.
कालसर्प शांत के लिए सबसे उपयुक्त दिन नाग पंचमी का ही होता है. इस दिन यदि विधि विधान के साथ नागों का पूजन किया जाए तो कुंडली में बनने वाले इस योग की शांति होती है.