ऋषि वेदव्यास | Rishi Ved Vyasa | Ved Vyasa | Sage Veda Vyasa | Veda Vyasa Story
द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर इन्होंने वेदों के विभाग प्रस्तुत किए हैं. प्रथम द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य , चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए हैं और इस तरह से इन्द्र, धनजंय, सूर्य, मृत्यु, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए हैं. अट्ठाइस बार वेदों का विभाजन किया गया तथा व्यास जी ने ही अट्ठारह पुराणों की भी रचना की थी.
वेदव्यास जन्म कथा | Ved Vyas Birth Story
ऋषि वेद व्यास जी के विषय में पौराणिक ग्रंथों में अनेक तथ्य प्राप्त होते हैं कहीं कहीं पर इन्हें भगवान विष्णु का अंश माना गया है. इनके जन्म की कथा अनुसार यह ऋषि पराशर के पुत्र थे इनकी माता का नाम सत्यवती था. सत्यवती का नाम मत्स्यगंधा भी था क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध आती थी वह नाव खेने का कार्य करती थी. एक बार जब पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करते हैं तो पाराशर मुनि सत्यवती के रूप सौंदर्य पर आसक्त हो जाते हैं और उसके समक्ष प्रणय संबंध का निवेदन करते हैं.
परंतु सत्यवती उनसे कहती है कि हे "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या अत: यह संबंध उचित नहीं है तब पाराशर मुनि कहते हैं कि चिन्ता मत करो क्योंकि संबंध बनाने पर भी तुम्हें अपना कोमार्य नहीं खोना पड़ेगा और प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी इस पर सत्यवती मुनि के निवेदन को स्वीकार कर लेती है. ऋषि पराशर अपने योगबल द्वारा चारों ओर घने कोहरे को फैला देते हैं और सत्यवती के साथ प्रणय करते हैं. ऋषि सत्यवती को आशीर्वाद देते हैं कि उसके शरीर से आने वाली मछली की गंध, सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी.
वहीं नदी के द्विप पर ही सत्यवती को पुत्र की प्राप्ति होती है यह बालक वेद वेदांगों में पारंगत होता है बालक जन्म लेते ही बड़ा हो जाता है और माता से कहता है कि माता आप जब भी कभी मुझे स्मरण करेंगी, मैं आपके समक्ष उपस्थित हो जाउँगा यह कह कर वह बालक वेद व्यास तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप की ओर चला जाता है. व्यास जी सांवले रंग के थे जिस कारण इन्हें कृष्ण कहा गया तथा यमुना के बीच स्थित एक द्वीप में उत्पन्न होने के कारण यह 'द्वैपायन' कहलाये और कालांतर में वेदों का भाष्य करने के कारण वह वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये.
महाभारत के रचियता । Author of the Mahabharata
वेद व्यास जी महाभारत ग्रंथ के रचियता थे. उन्हीं के द्वारा भारत को इस महान ग्रंथ की प्राप्ति संभव हो पाई यह न केवल रचियता थे बल्कि महाभारत की घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी ओर साक्षी भी थे. व्यास जी अपने आश्रम से हस्तिनापुर की समस्त गतिविधियों की सूचना प्राप्त कर लेते थे. माता सत्यवती उनसे विचार-विमर्श के लिए उनके पास जाती थीं और वह उन्हें अपना परामर्श भी देते थे. जब सत्यवती ने शान्तनु से विवाह किया, तो उसे दो पुत्र प्राप्त हुए थे जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र चित्रांगद युद्ध में मारा जाता है और छोटा विचित्रवीर्य संतानहीन मर गया.
तब अपने कुल की रक्षा के लिए सत्यवती अपने पुत्र व्यास को याद करती हैं परंतु कृष्ण द्वैपायन धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन जीते थे परंतु माता के आग्रह पर यह विचित्रवीर्य की दोनों रानियों को नियोग के नियम द्वारा दो पुत्रों की प्राप्ति कराते हैं जो धृतराष्ट्र तथा पाण्डु कहलाये, और तीसरे दासी पुत्र विदुर थे. वेद व्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की, जिससे वह महाभारत के युद्ध-दर्शन का वर्णन धृ्तराष्ट्र को सुना सके.
वेदों के ज्ञाता | Scholar of Vedas
वेदव्यास जी योग शक्तिसम्पन्न और ऋषि व्यास त्रिकालदर्शी ऋषि थे. वेदों का विस्तार करने के कारण इन्हें वेदव्यास कहा गया. ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान इन्होंने अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को प्रदान किया वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण ही वेद व्यास ने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को सरल रूप और कथा माध्यम से व्यक्त किया गया.
वेद व्यास जी के शिष्यों ने वेदों की अनेक शाखाएँ और उप शाखाएँ बना दीं. इन्होंने वेदों के विस्तार के साथ महाभारत, अठारह पुराणों ता ब्रह्मसूत्रका प्रणयन किया और मान्यता है कि भगवान स्वयं व्यास के रूप में अवतार लेकर वेदों का विस्तार किया था अत: व्यासजी की गणना भगवान के चौबीस अवतारों में की जाती है व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है. पृथ्वी पर विभिन्न युगों में वेदों की व्याख्या व प्रचार करने के लिए अवतीर्ण होते हैं. भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति में व्यासजी का प्रमुख स्थान रहा है.