सावन में तीज का महत्व | Importance of Teej in Shravan Month
हाथों में रचि मेंहंदी की तरह ही प्रकृति पर भी हरियाली की चादर सी बिछ जाती इस न्यनाभिराम सौंदर्य को देखकर मन में स्वत: ही मधुर झनकार सी बजने लगती है और हृदय पुलकित होकर नाच उठता है , इस अवसर पर स्त्रियाँ गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और नाचती हैं. इस समय वर्षा ऋतु की बौछारें प्रकृति को पूर्ण रूप से भिगो देती हैं.
इस समय वर्ष अपने चरम पर होती है प्रकृति में हर तरफ हरियाली की चादर सी बिछी होती है और शायद इसी कारण से इस त्यौहार को हरियाली तीज कहा जाता है. सावन की तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए करती हैं. देश के पूर्वी इलाकों में लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं. इस समय प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित हो जाता है जगह-जगह झूले पड़ते हैं और स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं.
तीज का पौराणिक महत्व | Mythological importance of Teej
सावन की तीज का पौराणिक महत्व भी रहा है. इस पर एक धार्मिक किवदंती प्रचलित है जिसके अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए इस व्रत का पालन करती हैं और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें भगवान शिव वरदान स्वरुप प्राप्त होते हैं. मान्यता है कि श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन देवी पार्वती ने सौ वर्षों की तपस्या साधना पश्चात भगवान शिव को पाया था. इसी मान्यता के अनुसार स्त्रियां माँ पार्वती का पूजन करती हैं.
तीज पूजा एवं व्रत | Teej worship and fast
अपने सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिये स्त्रियां यह व्रत किया करती हैं. इस दिन उपवास कर भगवान शंकर-पार्वती की बालू से मूर्ति बनाकर षोडशोपचार पूजन किया जाता है जो रात्रि भर चलता है. सुंदर वस्त्र धारण किये जाते है तथा कदली स्तम्भों से घर को सजाया जाता है. इसके बाद मंगल गीतों से रात्रि जागरण किया जाता है. इस व्रत को करने वालि स्त्रियों को पार्वती के समान सुख प्राप्त होता है.
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में तीज | Teej in various parts of India
तीज का त्यौहार भारत के अनेक भागों में बहुत जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है. उत्तर भारत के क्षेत्रों जैसे बुन्देलखंड, झाँसी, राजस्थान इत्यादि क्षेत्रों में हरियाली तीज के नाम से बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश, बनारस, गोरखपुर, जौनपुर, सुलतानपुर आदि जिलों में इसे कजली तीज के रूप में मनाया जाता है.
तीज का लोक जीवन पर प्रभाव | Effects of Teej on culture
तीज का आगमन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही आरंभ हो जाता है. आसमान काले मेघों से आच्छ्दित हो जाता है और वर्षा की बौछर पड़ते ही हर वस्तु नवरूप को प्राप्त करती है. ऎसे में भारतीय लोक जीवन में हरियाली तीज या कजली तीज महोत्सव बहुत गहरा प्रभाव देखा जा सकता है. तीज पर मेहंदी लगाने और झूले झूलने का विशेष महत्त्व रहा है. तीज समय नवयुवतियाँ हाथों में मेंहदी रचाती हैं तथा लोक गीतों को गाते हुए झूले झूलती हैं. तीज के दिन खुले स्थान पर बड़े–बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले लगाए जाते हैं जिन पर स्त्रियां झूला झूलती हैं हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं.
इस अवसर पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नव विवाहिता लड़की को ससुराल से पिहर बुला लिया जाता है विवाहिता स्त्रियों को उनके ससुराल पक्ष की ओर से सिंधारा भिजवाया जाता है जिसमें वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई इत्यादि सामान भेजा जाता है.