जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2025 | Puri Rath Yatra 2025
भगवान जगन्नाथ का जी की मूर्ति को उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की छोटी मूर्तियाँ को रथ में ले जाया जाता है और धूम-धाम से इस रथ यात्रा का आरंभ होता है यह यात्रा पूरे भारत में विख्यात है. जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का पर्व आषाढ मास में मनाया जाता है. इस पर्व पर तीन देवताओं की यात्रा निकाली जाती है. इस अवसर पर जगन्नाथ मंदिर से तीनों देवताओं के सजाये गये रथ खिंचते हुए दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं और नवें दिन इन्हें वापस लाया जाता है. इस अवसर पर सुभद्रा, बलराम और भगवान श्री कृ्ष्ण का पूजन नौं दिनों तक किया जाता है.
इन नौ दिनों में भगवान जगन्नाथ का गुणगान किया जाता है. एक प्राचीन मान्यता के अनुसार इस स्थान पर आदि शंकराचार्य जी ने गोवर्धन पीठ स्थापित किया था. प्राचीन काल से ही पुरी संतों और महात्मा के कारण अपना धार्मिक, आध्यात्मिक महत्व रखता है. अनेक संत-महात्माओं के मठ यहां देखे जा सकते है. जगन्नाथ पुरी के विषय में यह मान्यता है, कि त्रेता युग में रामेश्वर धाम पावनकारी अर्थात कल्याणकारी रहें, द्वापर युग में द्वारिका और कलियुग में जगन्नाथपुरी धाम ही कल्याणकारी है. पुरी भारत के प्रमुख चार धामों में से एक धाम है.
जगन्नाथ रथ यात्रा वर्णन | Jagannath Yatra description
जगन्नाथ जी का यह रथ 45 फुट ऊंचा भगवान श्री जगन्नाथ जी का रथ होता है. भगवान जगन्नाथ का रथ सबसे अंत में होता है, और भगवान जगन्नाथ क्योकि भगवान श्री कृ्ष्ण के अवतार है, अतं: उन्हें पीतांबर अर्थात पीले रंगों से सजाया जाता है. पुरी यात्रा की ये मूर्तियां भारत के अन्य देवी-देवताओं कि तरह नहीं होती है.
रथ यात्रा में सबसे आगे भाई बलराम का रथ होता है, जिसकी उंचाई 44 फुट उंची रखी जाती है. यह रथ नीले रंग का प्रमुखता के साथ प्रयोग करते हुए सजाया जाता है. इसके बाद बहन सुभद्रा का रथ 43 फुट उंचा होता है. इस रथ को काले रंग का प्रयोग करते हुए सजाया जाता है. इस रथ को सुबह से ही सारे नगर के मुख्य मार्गों पर घुमा जाता है. और रथ मंद गति से आगे बढता है. सायंकाल में यह रथ मंदिर में पहुंचता है. और मूर्तियों को मंदिर में ले जाया जाता है.
यात्रा के दूसरे दिन तीनों मूर्तियों को सात दिन तक यही मंदिर में रखा जाता है, और सातों दिन इन मूर्तियों का दर्शन करने वाले श्रद्वालुओं का जमावडा इस मंदिर में लगा रहता है. कडी धूप में भी लाखों की संख्या में भक्त मंदिर में दर्शन के लिये आते रहते है. प्रतिदिन भगवान को भोग लगने के बाद प्रसाद के रुप में गोपाल भोग सभी भक्तों में वितरीत किया जाता है.
सात दिनों के बाद यात्रा की वापसी होती है. इस रथ यात्रा को बडी बडी रस्सियों से खींचते हुए ले जाया जाता है. यात्रा की वापसी भगवान जगन्नाथ की अपनी जन्म भूमि से वापसी कहलाती है. इसे बाहुडा कहा जाता है. इस रस्सी को खिंचने या हाथ लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है.