सुखी जीवन पाने का उपाय | Remedies for a prosperous life

हमारे धर्म शास्त्रों में जीवन को सफल एवं सुखमय बनाने के लिए कई बातों का उल्लेख किया गया है. वेदों उपनिषदों एवं धर्म ग्रंथों में सुखी जीवन के कुछ सूत्र बताए गए हैं जिनपर चलकर मनुष्य़ जीवन में एक नई दिसा और सकारात्मक सोच को पाता है. कुछ ऎसे तथ्य हैं जिनका पालन करके प्राणी स्वयं एवं समाज का उद्धार कर सकता है जिसमें से एक रहस्य ॐ प्रज्ञानं ब्रह्म में छुपा हुआ है जिसक अर्थ है चेतना ही ब्रह्म है वह विशुद्ध-रूप, बुद्धि-रूप, मुक्त-रूप एवं अविनाशी है. सत्य, ज्ञान और सच्चिदानन्द स्वरूप का स्वामी है उसी का ध्यान इस चेतना द्वारा ज्ञात होता है.

इसको जानने के लिए चित कि शुद्धता आवश्यक है,  ब्रह्म ज्ञान गम्यता से परे है, ब्रह्म का ध्यान करके ही हम 'मोक्ष' को प्राप्त कर सकते हैं, उसी का आधार प्राप्त करके सभी जीवों में चेतना का समावेश होता है, वह अखण्ड विग्रह रूप में चारों ओर व्याप्त होता है. वही हमारी शक्तियों हमारी किर्याओं पर नियंत्रण करने वाला है. उसी की प्रार्थना द्वारा चित और अहंकार पर नियन्त्रण प्राप्त किया जा सकता है वह प्रज्ञान अर्थात चैतन्य विद्वान पुरुष है सभी में समाहित ब्रह्म मोक्ष का मार्ग है.

ॐ अहं ब्रह्मास्मि - ॐ अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य का अर्थ 'मैं ब्रह्म हूं’ से प्रकट होता है. जब जीव परमात्मा का अनुभव प्राप्त कर लेता है, और उससे साक्षात्कार कर बैठता है तब वह उसी ब्रह्म का रूप हो जाता है और साधक एवं ब्रह्म के मध्य द्वैत भाव समाप्त हो जाता है. इसी मै से वह उस त्याग को जान पाता है जो दूसरों के लिए उपकार की भावना लाता है ओर व्यक्ति को सभी के प्रति समर्पित करता है. भेद और भिन्नता का अंतर समापत हो जाता है, चाहे वह भाषा की वजह से हो, धर्म की वजह से हो या फिर सीमाओं के कारण हो

ॐ तत्त्वमसि -  इस ॐ तत्त्वमसि महावाक्य को स्पष्ट करते हुए यह अर्थ सामने आता है कि ब्रह्म तुम्हीं हो,  सृष्टि पूर्व, द्वैत रहित, नाम, रूप से रहित,केवल ब्रह्म ही विराजमान था और आज भी वही है आदि से अंत उसी की सत्ता उपस्थित रही है. इसी कारण ब्रह्म को 'तत्त्वमसि' कहा गया.  हर प्राणी में एक ही प्रकार का जीव है दूसरे जो तुम में है, वही मुझमें है कि इस धारणा की पूर्ण व्याख्या करता हे. ब्रह्म देह में रहते हुए भी उससे मुक्त है केवल आत्मा द्वारा उसका अनुभव होता है, वह संपूर्ण सृष्टि में होते हुए भी उससे दूर है.

ॐ अयमात्मा ब्रह्म -  ॐ अयमात्मा ब्रह्म महावाक्य का अर्थ है 'यह आत्मा ब्रह्म है से दृष्ट होता है. देह का प्राण आत्मा ही है वह आत्मा ही परब्रह्म के रूप में समस्त प्राणियों में विराजमान है. सम्पूर्ण चर, अचर में तत्त्व-रूप में वह व्याप्त है, आत्मतत्त्व के रूप में स्वयं प्रकाशित ब्रह्म है. इस प्रकार इन तथ्यों के ज्ञान का बोध करके ही जीव अपने को मुक्त कर सकत अहै ओर जीवन तथा समाज में नई दिशा ला सकने में सक्षम हो सकता है. अत: इस सच्चिदानन्द ब्रह्म को, तपस्या एवं साधना ध्यान द्वारा प्राप्त किया जा सकता है तथा गुरू के निर्देश स्वरुप तप करके ब्रह्म को जाना जा सकता है. जो भी जीव इस ब्रह्म को जान लेते है वह मोक्ष को पाता है. इस प्रकार मनुष्य संपूर्ण सृष्टि स्वरूप परमेश्वर में तन्मय होकर विरक्त हो जाता है.