दुर्गा अष्टमी महाविद्या पूजा | Durga Ashtami Mahavidya Puja | Goddess Dhumavati | Durga Ashtami

मां शक्ति की दस महा विद्या का पूजन वर्ष के विभिन्न मासों में किया जाता है और यह दस महा विद्याओं का पूजन गुप्त साधना के रुप में भी जाना जाता है. धूमावती देवी के स्तोत्र पाठ व सामूहिक जप का अनुष्ठान होता है. काले वस्त्र में काले तिल बांधकर मां को भेंट करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

महाविद्या आराधना जो अधिकांश तान्त्रिक साधकों के लिए मुख्य पूजा साधना होती है और साधारण भक्तों को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली होती है. महाविद्या उपासना में भक्त एकांत वास में साधना करते हुए अपने को सबल बनाने का प्रयास करता है देवी कि उपासन अका एक अभेद रुप जब साधक हृदय में समाहित होता है.

धर्म ग्रंथों के अनुसार मां धूमावती अपनी क्षुधा शांत करने के लिए भगवान शंकर को निगल जाती हैं. इस कारण मां के शरीर से धुंआ निकलने लगा और उनका स्वरूप विकृत और श्रृंगार विहीन हो जाता है जिस कारण उनका नाम धूमावती पड़ता है.

माँ धूमावती मंत्र | Goddess Dhumavati Mantra

  • ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा
  • ॐ धूं धूं धूमावती ठ: ठ:

देवी धूमावती के विषय में पुराणों में कहा गया है कि जब देवी भगवान शिव से कुछ भोजन की मांग करती हैं. इस पर महादेव पार्वती जी से कुछ समय इंतजार करने को कहते हैं. समय बीतने लगता है परंतु भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती और देवी भूख से व्याकुल होकर भगवान शिव को ही निगल जाती हैं. महादेव को निगलने पर देवी पार्वती के शरीर से धुआँ निकलने लगाता है. धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा. भगवान कहते हैं तुमने जब मुझे खाया तब विधवा हो गई अत: अब तुम्हारी इसी रुप पूजा होगी. तब से माता धूमावती इसी रुप में पूजी जाती हैं.

दुर्गा अष्टमी महत्व | Significance of Durga Ashtami

देवी का स्वरुप मलिन और भयंकर प्रतीत होता है.यह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए, खुले केश रुप में होती हैं. मां धूमावती के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. धूमावती दीक्षा प्राप्त होने से साधक मजबूत तथा सुदृढ़ बनता है. नेत्रों में प्रबल तेज व्याप्त होता है, शत्रु भयभीत रहते हैं. किसी भी प्रकार की तंत्र बाधा या प्रेत बाधा क्षीण हो जाती है. मन में अदभुद साहस का संचार हो जाता है तथा भय का नाश होता है.  तंत्र की कई क्रियाओं का रहस्य इस दीक्षा के माध्यम से साधक के समक्ष खुल जाता है. नष्ट व संहार करने की सभी क्षमताएं देवी में निहीत हैं.

सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है. चौमासा देवी का प्रमुख समय होता है जब देवी का पूजा पाठ किया जाता है. माँ धूमावती जी का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है. यह विधवा हैं, केश उन्मुक्त और रुक्ष हैं. इनके रथ के ध्वज पर काक का चिन्ह है. इन्होंने हाथ में शूर्पधारण कर रखा है, यह भय-कारक एवं कलह-प्रिय हैं. ऋषि दुर्वासा, भृगु, परशुराम आदि की मूल शक्ति धूमावती हैं. माँ की पूजा बहुत कठिन है जो इनकी भक्ति को पा लेता है उसके सभी कष्टों का नाश हो जाता है.