कार्तिक पूर्णिमा 2024 : कार्तिक पूर्णिमा इसलिए होती है इतनी खास
कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा को “कार्तिक पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है. कार्तिक पूर्णिमा का पर्व संपूर्ण भारत वर्ष में उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन के पावन अवसर पर देश के अनेक क्षेत्रों पर पूजा पाठ, धार्मिक अनुष्ठान कार्य किए जाते हैं. इस उपलक्ष्य पर प्रकाश का उत्सव भी होता है. सभी ओर प्रकाश किया जाता है. घर हो या भवन या ईमारतें सभी को रोशनी से भी सजाया जाता है.
पवित्र नदियों ओर धर्म स्थलों को को दीपों से सजया जाता है. इस अवसर पर धर्म कथाओं और धार्मिक यज्ञ-हवन जैसे काम होते हैं. स्नान और दान का भी इस दिन विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन दान-पुण्य करना कभी भी व्यर्थ नहीं जाता. इस दिन पर जरुरतमंदों की मदद करना सबसे उत्तम कार्य माना जाता है. धर्म धार्मिक कार्यों और दान की महिमा का महत्व किसी विशेष त्योहार पर और भी बढ़ जाती हैिसी शृंखला में कार्तिक पूर्णिमा पर धार्मिक कार्य करने का कई गुना फल मिलता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव का पूजन करने से जन्म जन्माम्तर के पाप नष्ट हो जते हैं.
कार्तिक पूर्णिमा व्रत मुहूर्त
कार्तिक पूर्णिमा इस वर्ष 15 नवम्बर 2024 को शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी.
14 नवंबर, 2024 को 09:44 से पूर्णिमा आरम्भ.
15 नवंबर, 2024 को 26:59 पर पूर्णिमा समाप्त.
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष कि पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार करके भगवान शिव ने सभी देवों कों उसके कष्ट से मुक्त किया था, इसलिए इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ के नाम से भी पुकारा जाता है. अगर इस पूर्णिमा का समय कृतिका नक्षत्र का संयोग भी बन रहा हो तो इसे महाकार्तिकी माना जाता है. यह बहुत ही पुण्यदायी हो जाती है. अगर इस समय पर भरणी नक्षत्र या रोहिणी नक्षत्र का योग बनता हो तो भी इसका महत्व और बढ़ जाता है.
कार्तिक पूर्णिमा के दिन मत्स्यावतार जयंती
ग्रंथों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के समय पर ही भगवान विष्णु का मत्स्यावतार हुआ था. इस दिन को मत्स्य जयंती के रुप में भी मनाए जाने कि परंपरा रही है. भगवान विष्णु का पूजन और भागवद कथा का पाठ इस दिन किया जाता है. इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान का फल दस राजसूय यज्ञों के समान होता है.
महापुनीत पर्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन को महापुनीत पर्व के नाम से भी पुकारा जाता है. इसका अर्थ होता है कि इस दिन किया गया दान अत्यंत ही शुभ और अमोघ फलों को देने वाला होता है. यह महादान की श्रेणी में आता है. इस दान को किसी भी रुप में किया जा सकता है. दान के लिए अनाज, वस्त्र, भोजन, वस्तु, धन-संपदा में किसी भी वस्तुर का दन चाहे वह छोटा हो या बड़ा सभी का अत्यंत महत्व होता है.
कार्तिक पूर्णिमा की पूजन विधि
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त समय पर उठ कर स्नान करना चाहिए.
- इस दिन पवित्र नदियों, जलाशयों, घाटों इत्यादि में स्नान करना चाहिए. इस दिन गंगा स्नान का पुण्य फल प्राप्त होता है.
- यदि गंगा स्नान करने नहीं जा सकते हैं तो घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करना उत्तम होता है.
- कार्तिक पूर्णिमा के दिन घी, दूध, केले, खजूर, चावल, तिल और आवंले का दान उत्तम माना जाता है.
- भगवान शिव, भगवान श्री विष्णु का पूजन करना चाहिए.
पूजन के पश्चात संध्या समय घर के मुख्य द्वार पर, तुलसी पर दीपक जरुर जलाना चाहिए.
कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक तारकासुर नाम का एक राक्षस था. तारकासुर का वध कार्तिकेय ने किया था. तारकासुर के वध के पश्चात उसके तारकासुर के पुत्र अपने पिता कि मृत्यु का बदला लेने हेतु घोर तपस्या करते हैं. ब्रह्माजी से वरदान स्वरुप वह अमरता का वर मांगते हैं. ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न होते हैं पर उन्हें अमरता का वरदान के बदले कुछ ओर मांगने को कहते हैं.
तब तीनों ने ब्रह्मा से तीन अलग नगरों का निर्माण और ऎसे रथ की प्राप्ति कराएं जिसमें तीनों बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में भ्रमण कर सकें. उन तीनों की मृ्त्यु तभी हो पाए जब वह एक समय पर एक सीध पर हों और केवल एक बाण से उन्हें मारा जा सके. ब्रह्मा जी उन्हें इस इसी तरह का वरदान देते हैं.
वरदान पाकर तीनों अपना आतंक चारों ओर मचाने लग जाते हैं. मयदानव तीनों के लिए तीन नगर बना देते हैं. तीनों ने मिलकर अपनी शक्ति द्वारा तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया. इंद्रआदि सभी देवताओं को वे देव लोक से निकाल देते हैं. सभी देव भयभीत होकर भगवान ब्रह्मा की शरण में जाते हैं. ब्रह्मा जी ने देवों को शांत किया और उन्हें शिव की शरण जाकर सहायता मांगे, केवल शिव ही उन का संहार कर सकते हैं. राक्षसों से भयभीत हुए देव, भगवान शिव की शरण में जाते हैं.
शिव भगवान देवों को आश्वासन देते हैं और दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण होता है. इस दिव्य रथ का निर्माण देवताओं ने किया. रथ के पहिए चंद्रमा और सूर्य से निर्मित होते हैं. इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के घोड़े बनते हैं. हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनते हैं. इस दिव्य रथ पर भगवान शिव विराजमान होते हैं. भगवानों और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध होता है. ब्रह्मा के वरदान अनुसार एक हज़ार वर्ष पश्चात जब तीनों एक सीध पर आते हैं तो मिलकर एक होत हैं ओर उसी क्षण तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने एक बाण से उनका नाश कर दिया.
स्नान दान की पूर्णिमा
कार्तिक मास में आने वाली पूर्णिमा वर्षभर की पवित्र पूर्णमासियों में से एक है. इस दिन किये जाने वाले दान-पुण्य के कार्य विशेष फलदायी होता है. इस दिन संध्याकाल समय में दीपदान करने से पुनर्जन्म के पाप भी शांत हो जाते हैं. इस दिन दीपदान करने का है बड़ा महत्व होता है.
कार्तिक पूर्णिमा पर सिर्फ गंगा स्नान ही नहीं बल्कि दीपदान का भी खास है. दीप दान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मुक्ति प्राप्त होती है. श्रद्धालु काशी, संगम हरिद्वार जैस पवित्र स्थलों पर जाकर दीपदान करते हैं. कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता अनुसार देवता भी इस दिन दीये जलाते हैं.