कौमुदी-महोत्सव 2024 - प्रेम और अनुराग का उत्सव
भारत जैसे विशाल भूभाग पर संस्कृतियों का अनोखा संगम देखने को मिलता है. इस संगम में अनेकों व्रत व त्यौहार, भिन्न भिन्न विचारधारें आकर मिलती हैं. इन सभी का रंग किसी न किसी रुप में सभी को प्रभावित भी करता है. इसी में आता है एक पर्व कौमुदी महोत्सव का .
15 नवंबर 2024 शुक्रवार के दिन कौमुदी महोत्सव का उत्सव मनाया जाएगा.
भारत में बहुत पुराने समय से चला आ रहा एक उत्सव है कौमुदी महोत्सव. यह पर्व भारत की पारंपरिक सांस्कृतिक चेतना का प्रमाण है. जो आज भी बहुत ही खूबसूरती के साथ मौजूद है. कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन होने वाला यह पर्व उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है.
प्रकृति का प्रेम कौमुदी महोत्सव
इसे उत्सव को प्रेम और हास विलास के रुप में देखा जाता है. इस उत्सव को कला, समृद्धि, शिक्षा, संसार विषयक कार्यों, सौंदर्य, रति क्रियाओं हेतु मनाया जाता है. इसी समय प्रकृति में शरद ऋतु का नवीन रुप दिखाई पड़ता है.मन को लुभाने आया कौमुदी महोत्सव का आरम्भ प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है. यह सर्वसमृद्ध, सुविख्यात, भारतीय कला, कौशल व प्रकृति के प्रेम का महापर्व होता है.
कौमुदी पर्व एक तरफ ऋतु परिवर्तन तो दूसरी तरफ बौद्धिक विकास और विभिन्न प्रकार की कलाओं में निपुणता प्राप्त करने के संकेत भी प्रस्तुत करता है. इसे मानव सुशिक्षित व नम्र हो जीवन जीने की भिन्न-भिन्न कलाओं में दक्षता प्राप्त करता है. जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है. इस पर्व को ऋतुराज के नाम से भी संबोधित किया जा सकता है. क्योंकि इस दौरान भी प्रक्रति का रंग अपने चरम को छूता दिखाई देता है. इस उत्सव के दौरान पेड़-पौधों में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे फूल भी खिल उठते हैं. खेतों मे फसलों का अलग रंग दिखाई पड़ता है. मंद-मंद बहती ठंडी हवा ओर व खिली हुई चांदनी सभी का मन मोह लेती है.
इस समय प्रकृति का मनमोहक अंदाज दिखाई पड़ता है जो प्रत्येक व्यक्ति को मनमुग्ध कर देता है. प्रकृति के सौंदर्य को निखारने के कारण ही इसे ऋतुराज कहना भी गलत नहीं होगा. इस तिथि का धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्व रहा है. धार्मिक दृष्टि से इस दिन ज्ञान, विद्या, कौशल, कला, संगीत, स्वास्थ्य सुख की प्राप्ति के लिए पूजा आराधना की जाती है. इस दिन भगवान कृष्ण, भगवान शिव, देवी लक्ष्मी, गणेश सभी का पूजन होता है. सम्पूर्ण विश्व में ज्ञानरूपी ज्योति को प्रकशित करते हुए यह दिवस व्यक्ति को अंधकार व अज्ञान के बंधनों से सहज ही मुक्त होने की कला भी सिखाता है.
कौमुदी महोत्सव पूजा महत्व
प्राचीन काल में कौमुदी महोत्सव के समय लोक जीवन पर इस पर्व का खास प्रभाव दिखाई देता था. इस पर्व के दौरान सभी ओर साज सजावट होती थी. गांव हों या नगर सभी ओर मार्गों को सजाया जाता था. घर पर सुंदर रंगोली इत्यादि से सजावट की जाती थी. सुगंधित द्रव्यों एवं पुष्पों से मंदिरों को भी सजाया जाता था.
इस उत्सव में युवा से लेकर बच्चे बुजुर्ग सभी उत्सहा से भाग लेते दिखाई देते थे. इस पर्व का वर्णन राजा हर्षवर्धन के शासन काल में भी मिलता है. प्रेमी युगल, दम्पती इस समय पर अपने प्र्म का इजहार अपने प्रेमी के समक्ष करते थे. इस दिन को प्रेम और अनुराग से भरपूर माना गया है. ऎसे में इस दिन किसी भी नए संबंध की शुरुआत करना भी बहुत शुभस्थ होता है. धार्मिक दृष्टिकोण से इस दिन विवाह का आरंभ करना भी उत्तम होता है.
कौमुदी महोत्सव के समय पर घूमना फिरना, पतंगबाजी करना, या किसी भी प्रकार के मन को आन्म्द देने वाली कार्य क्रम भी आयोजित किए जाते हैं. कौमुदी उत्सव के दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है. चंद्रमा का पूजन करने से सभी प्रकार के दोष शांत होते हैं. मान्यता अनुसार चंद्रमा भगवान शिव-पार्वती पूजन करने से जीवन में सदैव प्रेम की प्राप्ति होती है. दांपत्य जीवन में सदैव ही प्रसन्नता बनी रहती है.
कौमुदी-महोत्सव के दिन अन्य पर्वों का महत्व
कौमुदी महोत्सव का पर्व एक ऎसे समय पर होता है जब बहुत से अन्य पर्व भी इसी दिन मनाए जाते हैं. जो इस प्रकार हैं -
कार्तिक पूर्णिमा -
इस दिन कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाती है, चंद्रमा का पूजन होता है. इस दिन को शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
मत्स्य जयंती -
स दिन मत्स्य अवतार पूजन होता है कह्ते हैं इसी दिन इसी दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों रक्षा और सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था.
त्रिपुरोत्सव -
त्रिपुरोत्सव का पर्व होता है जिसमें भगवान शिव त्रिपुरान्तक स्वरुप का पुजन होता है. त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर को मारक देवों को मुक्त किया था. इस दिन ही भगवान शिव त्रिपुरारी के रूप में पूजे जाते हैं.
कृतिका पूजन - इस दिन नक्षत्रों का पूजन होता है. कृतिकाओं का पूजन करके जीवन में सुख का आगमन होता है. नक्षत्र शांति भी होती है. शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से कष्टों का नाश होता है.
श्री राधा कृष्ण पूजन -
इस दिन भगवान श्री कृष्ण व राधा जी का पूजन भी किया जाता है.
महारास पर्व -
इस दिन को रास पर्व के नाम से भी जाना जाता है. राधा उत्सव और रासमण्डल का आयोजन होता है.
गुरुनानक जयंती -
इस दिन गुरु नानक जयंती भी मनाई जाती है. सिख सम्प्रदाय में इस दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाते हैं. इस दिन गुरू नानक देव का जन्म हुआ था इसलिए सिख सम्प्रदाय के अनुयायीयों के लिए गुरु पर्व बहुत महत्व रखता है.
कौमुदी उत्सव महत्व
कौमुदी उत्सव का रुप इतना शुभ और व्यापक होता है की ये जन जीवन को प्रभावित करने कि क्षमता भी रखता है.
कौमुदी पर्व तु की मधुरम, सुहावनी और गुलाबी रंगत को देखकर काव्यों की रचनाओं में इसका वर्णन मिलाता है, रामायण में आदि कवि वाल्मीकि ने राम के द्वारा शरद के सौन्दर्य का वर्णन कराते हैं. चंद्रमा की रात्रि में हंस नदियों को कमल तालाबों को, पुष्पों से ढके वृक्षों ने जंगल को और मालती के फूलों ने वाटिकाओं को उज्जवल बना दिया होता है. इस समय पर खिलने वाले वाले फूल हारसिंगार, कमल आदि से सभी स्थानों की सुंदरता बढ़ जाती है. इसलिए संभवतः इस समय में सबसे अधिक पर्व, उत्सव, मेलों का आयोजन होता है. कौमुदी पर्व अपने साथ में उल्लास और उमंग भी ले कर आता है.
कौमुदी पर्व के दिन पारंपरिक रुप से पूजा और विविध प्रकार के सांस्कृति कार्यक्रम आयोजित होते हैं. इस समय पर किया गया भगवान का पूजन और अयोजन प्रेम और सोहार्द बढ़ाने के साथ ही जीवन को प्रकाशवान कर देते है.