अन्नपूर्णा अष्टमी व्रत 2024 : नही रहती कभी धन धान्य की कमी

अन्नपूर्णा अष्टमी का पर्व फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है. माता पार्वती के अनेक रुपों में से एक रुप माँ अन्न पूर्णा का भी है. जिसमें माता को अन्न की देवी भी कहा गया है. माँ अन्नपूर्णा समस्त प्राणियों के जीवन का आधार हैं. देवी के शक्ति के स्वरुप का दूसरा रंग उनके वात्सल्य स्वरुप में अन्नपूर्णा मां का है.

अन्नपूर्णाआष्टमी कथा

मां जगदम्बा ने किस प्रकार अन्नपूर्णा का रुप धारण किया इस के पिछे अनेकों कथाएं प्रचलित हैं जिन्में से एक पौराणिक कथा अनुसार जब भगवान शिव और माता पार्वती विचारों की एक प्रकिया में थे तो एक दूसरे के समक्ष तर्क पूर्ण वार्तालाप कर रहे होते हैं. इस समय में भगवान शिव ने पार्वती को कहा की सृष्टि में जो कुछ भी उपस्थित है वह माया के आवरण का स्वरुप ही है. अत: भौतिकता ओर भोजन की उपयोगिता का होना कोई महत्वपूर्ण नही है. महादेव वैरागी हैं और वह माया से मुक्त है, किंन्तु सृष्टि तो उस माया के आवरण से मुक्त नहीं है. ऎसे में भगवान को इस तथ्य का बोध कराने हेतु माता पार्वती सृष्टि से लुप्त हो जाती हैं.

देवी के लुप्त होते ही संसार में कुछ भी व्याप्त नही रहता है. भौतिक स्वरुप समाप्त हो जाता है, सृष्टि बंजर हो जाती है और प्राणियों में हाहाकार मच जाता है. प्राणी भूख से व्याकुल होने लगते हैं. ऎसे में सृष्टि का ये स्वरुप देख कर भगवान शिव उस तथ्य की महत्ता को समझते हैं कि किस प्रकार सृष्टि के लिए भौतिकता का होना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है उन जीवों के लिए जो इसके बिना रह नहीं सकते हैं. सृष्टि का ये स्वरुप देख देवी पार्वती अन्नपूर्णा रुप में काशी में प्रकट होती हैं और रसोई स्थापित कर अपने हाथों से प्राणियों को भोजन देती हैं. देवी के अन्नपूर्णा रुप को पाकर समस्य सृष्टि पुन: सौंदर्य से पूर्ण एवं पुष्ट होती है.

पौराणिक मान्यता है कि काशी में अन्न की कमी होने पर भगवान शिव भी विचलित हो जाते हैं और देवी अन्नपूर्णा के समक्ष भिक्षा मांगते हैं और वरदान स्वरुप अन्नपूर्णा ने उन्हें वरदान दिया की उनकी शरण में आने वाले को कभी धन-धान्य से वंचित नहीं होगा और सदैव मेरा आशीर्वाद उन्हें प्राप्त होगा.

काशी में स्थिति अन्न पूर्णा मंदिर

मान्यता है कि देवी अन्नपूर्णा काशी में ही सर्वप्रथम प्रकट हुई थी अत: काशी में उनके नाम का एक भव्य मंदिर भी स्थापित है. इस मंदिर में प्रतिवर्ष फाल्गुन अष्टमी के दिन मेले और विशेष पूजा का विधान होता है. इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और देवी अन्नपूर्णा का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

एक मान्यता अनुसार देवी अन्नपूर्णा संसार का भरण-पोषण करती हैं. महादेव से विवाह करने के पश्चात जब देवी पार्वती उनके साथ काशी में निवास करने की बात करती हैं तो महादेव उन्हें अपने साथ काशी ले चलते हैं. किंतु काशी का स्वरुप शमशान होना नहीं भाया तो काशी में अन्नपूर्णा के रुप में देवी ने खुद को स्थापित किया और काशी अन्नपूर्णा का देवी धाम भी है. काशीखण्ड में इस बात का वर्णन मिलता है की भगवान शिव गृहस्थ हैं और देवी भवानी उनकी गृहस्थी को चलाने वाली हैं. मान्यता भी है की काशी में कोई भूखा नहीं सोता है. देवी अन्नपूर्णा ही सभी की भूख को शांत करती हैं.

अन्नपूर्णा अष्टमी पूजा विधि

अन्नपूर्णा अष्टमी के दिन देवी की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि अन्नपूर्णा अष्टमी की पूजा करने से हर प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है. इस दिन देवी अन्नपूर्णा के समक्ष कलश स्थापित करना चाहिए. अन्नपूर्णा अष्टमी के दिन प्रातः काल स्नान करने के पश्चात शुद्ध मन से स्वच्छ वस्त्र धारण करके पूजा आरम्भ करनी चाहिए. देवी अन्नपूर्णा को लाल चुनरी चढ़ानी चाहिए.

देवी की पूजा द्वारा भक्तों के सभी पापों का नाश होता है. देवी के समक्ष घी के दीपक को जलाना चाहिए और उन्हें रोली लगानी चाहिए. देवी का ध्यान करते हुए अन्नपूर्णा पूजन सम्पन्न करना चाहिए. आरती करने के उपरांत भोग भेंट करना चाहिए. अन्नपूर्णा के दिन कन्या पूजन करना चाहिए कन्याओं को श्रृंगार वस्तुएं भेंट करनी चाहिए व उनकीअन्नपूर्णा के रूप में पूजा की जानी चाहिए. सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. भोजन में छोले, पूड़ी, हलवा और खीर का भोग अवश्य लगवाना चाहिए. अन्न पूर्णा अष्टमी पूजन से मनोकामानाएं पूर्ण होती है.

शंकराचार्य द्वारा देवी भवानी अन्नपूर्णा पूजन एवं स्त्रोत रचना

आदि गुरु शंकराचार्य ने अपनी भक्ति से देवी अन्नपूर्णा को प्रसन्न किया था. एक कथा है की जब एक बार शंकराचार्य काशी में पहुंचे तो वहां उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा. वह देह से बहुत ही कमजोर हो गए थे. ऎसे में एक दिन देवी अन्नपूर्णा ने एक स्त्री का वेश धारण कर वहां पहुंची और बड़े से मटके को वहां रख कर कुछ देर विश्राम करने के बाद जब चलने लगती हैं तो शंकराचार्य से उस मटके को उठाने में सहायता करने का आग्रह करती हैं.

तब शंकराचार्य उनसे कहते हैं कि उनमें बिलकुल भी शक्ति नहीं जिस कारण वह उनकी सहायता कर पाएं. ऎसे में स्त्री वेष में मौजूद देवी अन्नपूर्णा उन्हें कहती हैं यदि तुमने शक्ति की उपासना की होती तो तुम को अवश्य ही शक्ति की प्राप्ति होती. यह सुन शंकराचार्य को आत्मबोध होता है. और वह देवी की उपासना करने में मग्न हो जाते हैं. इसमें उन्हके द्वारा अन्नपूर्णा अष्टमी स्त्रोत की रचना भी करी और उन्हें पुन: शक्ति की प्राप्ति होती है.

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी।

निर्धूताखिल-घोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।

प्रालेयाचल-वंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी।

भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपुर्णेश्वरी।।

अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे।

ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्‌यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति।।

माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।

बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम्‌ II