गोविन्द द्वादशी व्रत से दूर होंगे सभी दुख : जानें गोविंद द्वादशी व्रत कथा और पूजा विधि

द्वादशी तिथि का महत्व भगवान श्री विष्णु की उपासना से संबंधित होता है. जिस प्रकार एकादशी प्रत्येक माह में आती हैं, उसी प्रकार द्वादशी भी प्रत्येक माह में आती हैं और प्रत्येक माह की द्वादशी श्री विष्णु के किसी न किसी नाम से संबंधित होती है. मान्यता है की यदि एकादशी का व्रत न रख पाएं तो द्वादशी का व्रत रख लेने से उसी के समान फलों की प्राप्ति भी होती है.

फाल्गुन माह में आने वाली द्वादशी को "गोविंद द्वादशी" नाम से जाना जाता है. गोविंद द्वादशी के शुभ प्रभाव से व्यक्ति के कष्ट एवं व्याधियों का नाश होता है. इस द्वादशी का पूजन एवं व्रत इत्यादि करने से "अतिरात्र याग" नामक यज्ञ का फल प्राप्त होता है. यह वेदों में वर्णित अनुष्ठान के अंतर्गत आने वाला फल होता है.

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दूसरे दिन गोविन्द द्वादशी का व्रत करने का विधान बताया गया है. इस द्वादशी पूजा में सदाचार, शुद्ध आचार और पवित्रता का अत्यंत ध्यान रखना चाहिए. गोविंद द्वादशी तिथि में अगर तिथि वृद्धि के कारण 2 दिनों तक प्रदोष काल में भी यह व्याप्त रहे तो ऎसे में दूसरे दिन के प्रदोष काल में ही मनाया जा सकता है.

गोविंद द्वादशी का पूजन एवं उपवास नियम धारण करने से व्यक्ति को सुख की प्राप्ति होती है. मानसिक शांति प्राप्ति होती है. आरोग्य को बढ़ाने वाला है, सुख से परिपूर्ण करने वाला है. गोविन्द द्वादशी करने से समस्त रोगादि की शांति भी होती है.

गोविन्द द्वादशी पूजा विधि

  • गोविंद द्वादशी तिथि के दिन भगवान गोविंद का स्मरण करते हुए दिन का आरंभ करना चाहिए.
  • दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर, पूजा का संकल्प करना चाहिए.
  • गोविंद का पूजन करना चाहिए. भगवान श्री विष्णु प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए.
  • चंदन, अक्षत, तुलसी दल व पुष्प को श्री गोविंद व श्री हरी बोलते हुए भगवान को अर्पित करने चाहिए.
  • भगवान की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाना चाहिए. इसके पश्चात प्रतिमा को पोंछन कर सुन्दर वस्त्र पहनाने चाहिए.
  • भगवान श्री गोविंद को दीप, गंध , पुष्प अर्पित करना, धूप दिखानी चाहिए.
  • आरती करने के पश्चात भगवान को भोग लगाना चाहिए.
  • भगवान के भोग को प्रसाद रुप में को सभी में बांटना चाहिए. सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए व दान-दक्षिणा इत्यादि भेंट करनी चाहिए.

गोविंद द्वादशी व्रत में एकादशी से ही व्रत का आरंभ करना श्रेयस्कर होता है. अगर संभव न हो सके तो द्वादशी को व्रत आरंभ करें. पूरे दिन उपवास रखने के बाद रात को जागरण कीर्तन करना चाहिए और दूसरे दिन स्नान करने के पश्चात ब्राह्मणों को फल और भोजन करवा कर उन्हें अपनी क्षमता अनुसार दान देना चाहिए. जो पूरे विधि-विधान से गोविंद द्वादशी का व्रत करता है वह बैकुंठ को पाता है. इस व्रत की महिमा से व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह सभी सांसारिक सुखों को भोग कर पाता है.

गोविंद द्वादशी मंत्र

गोविंद द्वादशी के दिन भगवान श्री विष्णु के मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है. श्री गोविंद का स्वरूप शांत और आनंदमयी है. वह जगत का पालन करने वाले हैं. भगवान का स्मरण करने से भक्तों के जीवन के समस्त संकटों का नाश होता है और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस दिन इन मंत्रों से भगवान का पूजन करना चाहिए.

"ॐ नारायणाय नम:"
"ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
"ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि। "

गोविंद द्वादशी कथा महात्म्य

गोविंद द्वादशी के दिन श्री विष्णु भगवान की कथाओं का श्रवण अवश्य करना चाहिए. इस दिन गीता का पाठ करने से व्यक्ति बंधन से मुक्ति पाता है. इसी प्रकार श्रीमद भागवत को पढ़ने अथवा श्रवण द्वारा भक्त को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. गोविंद द्वादशी के दिन श्री विष्णु के बाल स्वरुप का पूजन करने से संतान का सुख प्राप्त होता है.

गोविंद द्वादशी के दिन ही नृसिंह द्वादशी का पर्व भी मनाया जाता है. भगवान विष्णु के बारह अवतारों में से एक नृसिंह अवतार भी है. भगवान श्री हरि विष्णु का यह अवतार आधा मनुष्य व आधा शेर के रुप में रहता है. भगवान श्री विष्णु ने ये अवतार दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु को मारने हेतु लिया था.

पौराणिक कथा अनुसार कश्यप ऋषि की पत्नी दिति से उन्हें हिरण्याक्ष व हिरण्यकशिपु नाम दो पुत्र प्राप्त होते हैं. दिति दैत्यों की माता थी अत: उनके पुत्र दैत्य हुए. हिरण्याक्ष व हिरण्यकशिपु दोनों ही असुर प्रवृत्ति के थे. पृथ्वी की रक्षा करने के लिए जब श्री विष्णु भगवान ने वराह अवतार लेकर हरिण्याक्ष का वध कर दिया, तो अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोद्ध लेने के लिए हिरण्यकशिपु श्री विष्णु का प्रबल विरोधी बन जाता है और जो भी व्यक्ति श्री विष्णु की भक्ति करता है वह उसे मृत्यदण्ड देता है. हिरण्यकशिपु ने अपनी कठोर तपस्या ब्रह्मा जी से अजेय होने का वरदान प्राप्त करता है.

अपनी शक्ति का गलत उपयोग कर हिरण्यकशिपु स्वर्ग पर भी अधिकार स्थापित कर लेता है. हिरण्यकशिपु को एक पुत्र प्राप्त होता है जिसका नाम प्रह्लाद होता है. प्रह्लाद श्री विष्णु का परम भक्त होता है. जब पिता हिरण्यकशिपु को अपने पुत्र प्रह्लाद की श्री विष्णु के प्रति भक्ति को देख वह उसे मृत्यदण्ड देता है, लेकिन हर बार श्री विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच जाता है.

एक बार भरी सभा में जब प्रह्लाद भगवान श्री विष्णु के सर्वशक्तिमान होने और हर कण में उनके होने की बात कहता है, तो हिरण्यकशिपु क्रोधित हो उससे पूछता है की यदि तेरा भगवान इस खम्बे में है तो उसे बुला कर दिखा. तब प्रह्लाद अपनी भक्ति से भगवान को याद करता है और श्री विष्णु भगवान खम्बे की चीरते हुए नृसिंह अवतार में प्रकट होते हैं ओर हिरण्यकशिपु का वध कर देते हैं. भगवान नृसिंह, प्रह्लाद को वरदान देते हैं कि आज के दिन जो मेरा स्मरण, एवं पूजन करेगा उस भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी.

इस प्रकार गोविंद द्वादशी का दिन ही भगवान श्री नृसिंह पूजन के लिए भी बहुत ही शुभ माना गया है. गोविंद द्वादशी के दिन श्री विष्णु भगवान का पूजन एवं कीर्तन एवं रात्रि जागरण करने से समस्त सुखों की प्राप्ति है एवं कष्टों व रोगों का नाश होता है.