क्यों और कब मनाई जाती है विनायक चतुर्थी ? ऎसे करें चतुर्थी पूजा
हिन्दू पंचांग अनुसार प्रत्येक माह दो पक्षों में कृष्ण पक्ष एवं शुकल पक्ष में विभाजित है. ऎसे में इन दोनों ही पक्षों में चतुर्थी तिथि आती है. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इन बातों में मुख्य बात यह है की इन दोनों ही पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से ही अधिकांशत: पुकारा और जाना जाता है.
चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को अत्यंत प्रिय है. इस चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्म समय से भी जोड़ा गया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भी चतुर्थी तिथि के संदर्भ में अनेकों कथाएं मिलती हैं जो श्री गणेश जी के साथ इस तिथि के संबंध की प्रगाढ़ता और महिमा को दर्शाती है. प्रतेक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन विनायक चतुर्थी का व्रत होता है पर इसी के साथ इन सभी में भाद्रपद माह में आने वाली जो चतुर्थी होती है उस गणेश चतुर्थी को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. इस गणेश चतुर्थी को भगवान श्री गणेश के जन्मोत्सव के रुप में संपूर्ण भारत में बहुत ही उल्लास और श्रृद्धा के साथ मनाया जाता है.
विनायक चतुर्थी कथा
विनायक जिस का एक अर्थ बिना नायक के होना भी होता है. भगवान श्री गणेश को माता पार्वती ने स्वयं ही निर्मित किया था इसलिए गणेश को एक नाम विनायक जो बिना पुरुष(नायक) की सहायता के उत्पन्न होते हैं. इसके पीछे की कथा को समझने के लिए हम पैराणिका आख्यानों द्वारा इसे जान सकते हैं. कथा इस प्रकार है की कैलाश में स्थिति माता पार्वती स्नान करने के से पूर्व उबटन तैयार करती हैं और उसे अपने शरीर पर लगा लेती हैं, थोड़ी देर बाद उस उबटन को हटाते हुए वह उस उबटन से एक बच्चे की प्रतिमा बना देती हैं और उसमें प्राण डाल कर उसे जीवन देती हैं.
उस बालक को माता पार्वती ने अपनी सुरक्षा हेतु द्वार पर खड़े होने का आदेश दिया और कहा की जब तक मैं स्नान करके वापस न आ जाएं वह बालक किसी को भी अंदर न आने दे. ऎसा कह कर माता पार्वती स्नान के लिए अंदर चली जाती है.
जब भगवान शिव वहां आते हैं तो वह बालक भगवान शिव को अंदर प्रवेश करने से रोक देता है. भ्गवान शिव के अनेको प्रयत्न एवं समझाने के बाद भी जब वह बालक भगवान शिव को अंदर जाने नहीं देता, तो भगवान शिव क्रोध से भर जाते हैं ओर बालक को दण्ड देते हैं उसके सिर को काट देते हैं. माता पार्वती उस बालक की ये दशा देख कर अत्यंत विचलित हो जाती दुख एवं क्रोधवश वह उस बालक को पुन: ठीक करने के लिए भगवान शिव से भी प्रतिशोध लेने की लिए तैयार हो जाती हैं. भगवान शिव को जब सारी बातों का पता चलता है तो वह गणों को आदेश देते हैं की उन्हें अभी इसी समय जाएं ओर जो प्रथम जीव उन्हें प्राप्त हो या जिस किसी का भी सिर प्राप्त होता है लेकर आएं.
भगवान शिव का आदेश सुन सभी गण सिर की खोज में आगे बढ़ते हैं, जहां उन्हें सबसे पहले एक हाथी दिखाई देता है जिस का सिर वह ले आते हैं. भगवान शिव उस सिर को बाल के शरीर से जोड़ कर उसे जीवन प्रदान करते हैं और विनायक नाम देते हैं और अपने गणों का नायक नियुक्त करते हैं जिस कारण वह बालक गणेश कहलाया.
भाद्रपद माह की विनायक चतुर्थी का महत्व
भादो अर्थात भाद्रपद माह के दौरान आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी या गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इस चतुर्थी का आरंभ एवं अंत दस दिनों के दौरान भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. महाराष्ट्र में तो इसकी धूम विश्व भर को चौंका देने वाली होती है. इस पर्व के दौरन पर घर हो या मंदिर या पंडाल जगह -जगह पर भगवान श्री गणेश की स्थापना की जाती है. भगवान श्री गणेश का जन्मोत्सव पूरे दस दिनों तक चलता है और अनंत चतुर्दशी पर इसका समापन होता है.
गणेश चतुर्थी की पूजन विधि
हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को आदि देव के रुप में पूजा जाता है. किसी भी कार्य का आरंभ श्री गणेश जी की पूजा पश्चात ही शुरु होता है. गणेश चतुर्थी के दिन विशेष रुप से भगवान श्री गणेश का पूजन करने से सभी सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है. आईये जान्ते हैं चतुर्थी पूजन विधि के बारे में विस्तार से :-
पूजा समाप्ति पर भगवान गणेश जी से अपनी गलतियों की क्षमा मांगनी चाहिए और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए. भगवान के प्रसाद को समस्त परिवार जनों में बांटना चाहिए और स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए. इस प्रकार चतुर्थी के दिन विधि पूर्वक भगवान श्री गणेश का पूजन करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति प्राप्त होती है.