फाल्गुन अमावस्या 2024 : कब है और क्या है पूजा विधि
फाल्गुन अमावस्या का पर्व फाल्गुन माह की 30वीं तिथि के दिन मनाया जाता है. फाल्गुन अमावस्या में गंगा एवं पवित्र नदियों में स्नान इत्यादि का महत्व रहा है. इस अमावस्या के दौरान श्राद्धालु श्रद्धा के साथ दान और पूजा पाठ से संबंधित कार्य भी करते हैं.
फाल्गुन अमावस्या के दौरान पितरों के लिए भी मुख्य रुप से तर्पण का कार्य किया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार माह अंतिम माह होता इस अंतिम अमावस्य के दौरान विशेष रुप से जप एवं तप करने की महत्ता को बताया गया है.
इस वर्ष फाल्गुन अमावस्या 10 मार्च 2024 को रविवार के दिन मनाई जाएगी. यह अमावस्या तर्पण कार्यो के लिये सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. इस दिन चाहें तो व्रत भी किया जा सकता है जिसका शुभ फल आपके कर्मों को शुभता प्रदान करने वाला होता है.
फाल्गुन अमावस्या को शिव उपासना करनी चाहिए. भगवान शिव की उपासना अकाल मृत्य, भय, पीड़ा और रोग निवारण में प्रभावी मानी गई है. इस दिन पूजा करने से कठिनाईयों एवं उलझनों से छुटकारा प्राप्त होता है. शास्त्रों में इसे अश्वत्थ प्रदक्षिणा व्रत कहा गया है इस दिन पिपल के वृक्ष की पूजा करने व पीपल के पेड तले तेल का दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए, इसी के साथ शनि देव की पूजा करनी चाहिए. इस दिन मंत्र जाप करना विशेष रुप से कल्याणकारी होता है.
इस के अतिरिक्त पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा करने और श्री विष्णु का पूजन करने का नियम है. पीपल जिसमें त्रिदेवों का वास माना जाता है. इस दिन पीपल के वक्ष की जड़ को दूध अर्पित करना चाहिए एवं इसका पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायी कहा जाता है.
फाल्गुन अमावस्या पर पीपल पूजा
फाल्गुन अमावस्या पर पीपल के वृक्ष की पूजा बहुत फलदायी कही गई है. पीपल के वृक्ष की जड़ में दूध, जल, को अर्पित करते हुए पुष्प, अक्षत, चन्दन इत्यादि से पूजा करनी चाहिए और पेड़ के चारों ओर 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा पूर्ण करनी चाहिए. पीपल की प्रदक्षिणा करने के बाद अपने सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा देना शुभ होता है. इन पूजा उपायों से पितृदोष, ग्रहदोष और शनिदोष का बुरा प्रभाव समाप्त होता है तथा परिवार में शांति का आगमन होता है.
स्नान दान की फाल्गुन अमावस
फाल्गुन अमावस्या के दिन स्नान, दान करने का विशेष महत्व कहा गया है. फाल्गुन अमावस्या के दिन मौन रहने का सर्वश्रेष्ठ फल कहा गया है. देव ऋषि व्यास के अनुसार इस तिथि में मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गौ दान के समान पुण्य का फल प्राप्त होता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व समझा जाता है. इस दिन कुरुक्षेत्र के ब्रह्मा सरोवर में डूबकी लगाने का भी फल कहा गया है. इस स्थान पर सोमवती अमावस्या के दिन स्नान और दन करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है.
देश भर में इस दिन सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक की अवधि में पवित्र नदियों पर स्नान करने वालों का तांता सा लगा रहेगा. स्नान के साथ भक्तजन भाल पर तिलक लगवाते है. यह कार्य करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. सोमवती अमावस्या का व्रत करने वाली स्त्रियों को व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए.
कहा जाता है कि महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य सभी दुखों से मुक्त होकर सुख को पाता है. ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से पितरों कि आत्माओं को शांति प्राप्त होती है और पितरों का आर्शीवाद भी मिलता है.
फाल्गुन अमावस्या पूजा
- अमावस्या के दिन गंगा स्नान करना चाहिए अगर यह संभव न हो तो स्नान के दोरान नहाने के पानी में गंगाचल की कुछ बूम्दे डाल कर स्नान करना चाहिए.
- स्नान करने के उपरांत भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए एवं सूर्य मंत्र का पाठ करना चाहिए.
- इसके पश्चार मंदिर में भगवान श्री गणेशजी की पूजा करनी चाहिए.
- भगवान शिव और श्री विष्णु भगवान का स्मरण एवं पूजन करना चाहिए.
- यदि व्रत करना हो तो व्रत का संकल्प लेना चाहिए और अगर व्रत न रख सकें तो सामान्य रुप से पूजन किया जा सकता है.
- भगवान श्री विष्णु की को पीले रंग के फूल अर्पित करने चाहिए.
- केसर, चंदन इत्यादि को भगवान को लगाना चाहिए.
- घी का दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए.
- सुगंधित इत्र अर्पित करने चाहिए और तिलक लगाना चाहिए.
- इसके बाद धूप और दीप जलाएं और आरती करनी चाहिए.
- आरती के बाद परिक्रमा करें. अब नेवैद्य अर्पित करें.
- प्रसाद में पंचामृत चढ़ाना चाहिए और लड्डओं का या गुड़ का भोग लगाएं.
- पितरों को याद करते हुए उनके लिए भोजन की वस्तुएं एवं फल इत्यादि को भेंट करना चाहिए.
ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और सामर्थ्य अनुसार पितरों के निमित दान उन्हें भेंट करना चाहिए. संध्या समय के दौरान भी दीप अवश्य जलाना चाहिए एवं पूजा पाठ करना चाहिए.
फाल्गुन अमावस्या महात्म्य
फाल्गुनी अमावस्या में भ्गवान विष्णु का स्मरण एवं भागवत कथा का पाठ करना उत्तम माना गया है. इस दिन किए गए दान और पूण्य का अक्षय फल प्राप्त होता है. संतान के सुख एवं परिवार की सुख समृद्धि के लिए भी इस दिन किया गया व्रत एवं पूजन अत्यंत लाभकारी माना गया है. परिवार में यदि किसी कारण से पितृ दोष की स्थिति उत्पन्न होती है या किसी जातक की कुण्डली में पितर दोष का निर्माण होता है, तो उस स्थिति में इस अमावस्या के दिन विशेष रुप से पूजन एवं उपवास का पालन करने से दोष की शांति होती है.